________________
[4]
के बाद जिन-जिन विद्वान् आचार्यादि ने श्रुत का अर्थ किया उनका ज्ञान एवं क्षयोपशम उनकी तुलना में अल्प होता है। दूसरा आचार-विचार की शिथिलता/न्यूनता के प्रभाव से वैचारिक और मान्यता भेद के कारण अर्थ में जान बूझकर गड़बड़ी कर दी जाती है। जैसा कि मध्य काल में हुआ । इस प्रकार वर्तमान में उपलब्ध अर्थ प्रथम प्रकार का अर्थ नहीं, प्रत्युत दूसरे प्रकार का है जिसका आधार श्रुत है । इसलिए इसे प्रथम अर्थ की भांति मौलिक एवं परममान्य नहीं कहा जा सकता है। पर जो श्रुत है जिसके आधार पर भाषान्तर किया गया है वह तो मौलिक ही है।
वर्तमान में उपलब्ध आगम साहित्य दो भागों में विभाजित है- अंग प्रविष्ट और अंग बाह्य । अंग प्रविष्ट में इग्यारे अंग है उनमें आचारांग सूत्र का प्रथम स्थान है इसमें क्या सामग्री का संकलन है वह इसके नाम से ही फलितार्थ हो जाता है। इस सूत्र का सम्पूर्ण विषय आचार - धर्म से सम्बन्धित है । श्रमण जीवन की साधना, आचार-विचार, विधि निषेध आदि का जितना मार्मिक एवं विस्तृत विवेचन इस अंग सूत्र में है । वैसा अन्य सूत्रों में कहीं नहीं है। चूंकि मोक्ष के अव्याबाध सुखों को प्राप्त करने का मूल सम्यक् आचार है और अंगों का सार तत्व आचार में रहा हुआ है। दूसरी बात संघ व्यवस्था की दृष्टि से आचारसंहिता की सर्व प्रथम आवश्यकता होती है। जब तक आचार संहिता की स्पष्ट रूपरेखा न
वहाँ तक सम्यग् प्रकार से आचार का पालन नहीं किया जा सकता । इन्हीं कारणों से इस सूत्र को अंग साहित्य में प्रथम स्थान दिया गया है।
आचारांग सूत्र के दो श्रुत स्कन्ध हैं । प्रथम श्रुतस्कन्ध का नाम आचार अथवा ब्रह्मचर्य है । इसके नौ अध्ययन एवं ५१ उद्देशक है। उनमें से सातवां अध्ययन अभी विच्छेद गया हुआ है । इस श्रुत स्कंध में सूत्र रूप में श्रमणाचार (अहिंसा, संयम भाव, कषाय विजय, अनासक्ति, विमोक्ष आदि) का वर्णन है । द्वितीय श्रुतस्कन्ध जिसका नाम आचार चूला है। चूला से तात्पर्य पर्वत अथवा प्रसाद पर जैसे शिखर अथवा चोटी होती है, उसी प्रकार प्रथम श्रुतस्कन्ध की यह चूला रूप चोटी है। इसमें श्रमण चर्या से सम्बन्धित ( भिक्षाचरी, गमन, स्थान, वस्त्र - पात्र आदि एषणा, भाषा विवेक, शब्दादि विषय, विरति महाव्रत आदि) का वर्णन है।
नंदी
सूत्र में इस सूत्र के परिचय के लिए निम्न पाठ दिया गया है।
"से किं तं आयारे ? आयारे णं समणाणं णिग्गंथाणं आयार-गोयर वेणइय - सिक्खा
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jalnelibrary.org