Book Title: Abhidhan Rajendra kosha Part 1
Author(s): Rajendrasuri
Publisher: Abhidhan Rajendra Kosh Prakashan Sanstha

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Page 15
________________ ६ प्रस्तुत बृहद् विश्वकेाश को पुनः प्रकाशित करने को हलचल और हमारा दक्षिण विहार दोनों एक साथ प्रारम्भ हुए । बबई चातुर्मास में हमारा अनेक मुनिजनों और विद्वानों से साक्षात्कार हुआ। जा भी मिला, उसने यही कहा कि 'अभिधान राजेन्द्र' जो कि दुर्लभ हो गया है, उसे पुनः प्रकाशित करके सर्वजन सुलभ किया जाये । हमें यह भी सुनना पड़ा कि यदि आपके समाज के पास वर्तमान में इसके प्रकाशन की कोई योजना न हो; तो हमें इसके प्रकाशन का अधिकार दीजिये। हमने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा कि त्रिस्तुतिक जैन संघ इस मामले में सम्पन्न एवं समर्थ है ! • अभिधान राजेन्द्र यथावसर शीघ्र प्रकाशित होगा । श्रीमद् पूज्य गुरुदेव की यह महती कृपा हुई कि हम क्रमशः विहार करते हुए मद्रास पहुँच गये । तामिलनाडु राज्य की राजधानी है यह मद्रास । दक्षिण में बसे हुए दूर दूर के हजारों श्रद्धालुओं ने इस चातुर्मास में मद्रास की यात्रा की । मद्रास चातुर्मास आज भी हमारे लिए स्मरणीय है । चातुर्मास समाप्ति के पश्चात् पोष सुदी सप्तमी के दिन मद्रास में गुरु सप्तमी उत्सव मनाया गया। गुरु सप्तमो प्रातःस्मरणीय पूज्य गुरुदेव श्री राजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज साहब का जन्म और स्मृति दिन है । गुरु सप्तमी के पावन अवसर पर एक विद्वद् गोष्ठी का आयोजन किया गया । उपस्थित विद्वानों ने अपने प्रवचन में पूज्य गुरुदेवश्री के महान कार्यों की प्रशस्ति करते हुए उनकी समीचीनता प्रकट की और प्रशस्ति में · अभिधान राजेन्द्र' का उचित मूल्याङ्कन करते हुए इसके आवश्यकता पर जोर दिया । पुनर्मुद्रण की बीड़ा उठाने का गंगा उमड़ पड़ी । 4 इस ग्रन्थराज का प्रकाशन एक भगीरथ कार्य है। इस महत्वपूर्ण कार्य का आह्वान मैंने मद्रास संघ को किया । आह्नान होते ही संघ हिमाचल से गुरुभक्ति इस महत्कार्य के लिए भरपूर सहयोग का हमें आश्वासन प्राप्त हुआ । ग्रन्थ की छपाई गतिमान हुई; पर श्रेयांसि बहुविधनानि ' की उक्ति के अनुसार हमे यह पुनीत कार्य स्थगित करना पड़ा। कोई ऐसा aara इसके प्रकाशन मार्ग में उपस्थित हो गया कि उसे दूर करना आसान नहीं था । प्रकाशन की स्थगिति सबके लिए दुःखद थी; पर मैं मजबूर था । आंतरिक विरोध को जन्म दे कर कार्य करना मुझे पसन्द नहीं है । हमारी इस मजबूरी से नाजायज लाभ उठाया दिल्ली की प्रकाशन संस्थाओंने । उन्होंने इस पुनीत ग्रन्थ को शुद्ध व्यवसायिक दृष्टि से चुपचाप प्रकाशित कर दिया। श्रीमद् ने जो भी लिखा, स्वान्तः सुखाय और सर्वजन हिताय लिखा; व्यवसायियों के लिये नहीं । यही कारण है कि इसकी प्रथम आवृत्ति में यह स्पष्ट कर दिया गया कि • इसके पुनःप्रकाशन का अधिकार त्रिस्तुतिक सकल संघ को है ।' त्रिस्तुतिक समाज की इस अनमोल adier को प्रकाशित करने से पहले त्रिस्तुतिक समाज को इसके प्रकाशन से आगाह करना आवश्यक था । ऐसा न करके इसके अन्य प्रकाशकों ने एक तरह से नैतिकता का भंग ही किया है । श्री भाण्डवपुर तीर्थ पर अखिल भारतीय श्री सौधर्म बृहत्तपोगच्छीय श्रीजैन श्वेताम्बर त्रिस्तुतिक संघ का विराट अधिवेशन सम्पन्न हुआ। देश के कोने कोने से गुरुभक्त उस अधिवेशन के लिए अस्थित हुए । पावन पुण्यस्थल श्री भाण्डवपुर भक्तजनों के भक्तिभाव की स्वर लहरियों से गूंज उठा । Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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