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४५ ष०
धर्मसंग्रह सटीक ।
४६ ६० २० - धर्मरत्नप्रकरण सटीक । ४७ नयो० नयोपदेश सटीक । नन्दी सूत्र सहति ।
४८ नं०
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४६ नि० निरयावली सूत्र सटीक | ५० नि०० - निशीयसूत्र सचूर्णि । ५१ पं० चू०- पञ्चकल्पचूर्णि ।
५२ पं० भा०
५३ पञ्चा० -
५४ पं०व० - ५५ पं० सं०
५६ पं० सू०
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५७ प्रव०
५० प्र०सू० - एह प्रति०
६० प्रश्न०
६५ पा०
६६ प्रा० ६७ भ० ६० महा० ६६ मएम० - ७० यो० चिं०
७१ रत्ना०
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पञ्चकल्प भाष्य । पञ्चाशक सटीक ।
६१ प्रज्ञा० - ६२ प्रमा० - ६३ पिं०
६४ पिएड०० - पिएम नियुक्ति मूल । पाक्षिक सूत्र सटीक ।
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पञ्चवस्तुक सटीक । पञ्चसंग्रह सटीक ।
पञ्चसूत्र सटीक ।
प्रवचनसारोद्धारटीका | प्रवचनसारोकार मूल । प्रतिमाशतक सूत्र सटीक ।
प्रश्नव्याकरण सूत्र सटीक । प्रज्ञापना सूत्र सटीक ।
प्रमाणनयतत्राओकालङ्कार सूत्र । पिएमनिर्युक्तिवृत्ति ।
प्राकृतव्याकरण |
भगवती सूत्र सटीक । महानिशीथ सूत्र मूल । एकलप्रकरण सवृत्ति । योगबिन्दु सटीक । रत्नाकरावतारिका वृत्ति ।
( 4 )
७३ रा०
७३ ल०
७८ व्य०
७० ती०
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७४ लघु० लघुप्रवचनसार मूल । ७५ ल० ०- अघुक्षेत्र समास प्रकरण ।
७६ व्य०अ० - व्यवहार सूत्र अक्षरार्थ ।
७७ वाच०
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- व्यवहारसूत्रवृत्ति ।
विविधर्थिकल्प |
८० बु०
· बृहत्कल्पवृत्ति सभाष्य |
८१ विशे० विशेषावश्यक सजाय सबृहद्वृत्ति ।
८२ विपा०
राजपूरनीय (रायपसेणी ) सटीक । विस्तरा वृत्ति |
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- विपाक सूत्र सटीक ।
वाचस्पत्याभिधान ( कोश )
- श्राचकधर्मप्रज्ञप्ति सटीक ।
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-पोमशपूकरण सटीक ।
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- समवायाङ्ग सूत्र सटीक |
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८३ श्रा०
८४ पो०
८५ स०
८६ संथा० संथारगपयन्ना सटीक |
9 संस०नि०- संसक्तनियुक्ति मूल । GG संघा०
सङ्घाचार जाष्य |
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८ए सत्त० - सत्तरिसयठाणा वृत्ति ।
० सम्म० -
सम्मतितर्क सटीक | ७१ स्था० - स्थानाङ्ग सूत्र सटीक । २ स्या० - स्याद्वादमञ्जरी सटीक ।
३ सू०प्र० - सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र सटीक । ४ सूत्र ० सूत्रकृताङ्ग सूत्र सटीक | ५ सेन०- सेनप्रश्न |
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०६ डा० - हारिनद्राष्टक सटीक |
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७०
हीरप्रश्न |
१३- प्राकृतशब्दों में जो कहीं कहीं ( ) ऐसे कोष्ठक के मध्य में अक्षर दिये गये हैं, उनके विषय में थोड़े से नियम
१-कहीं कहीं एक शब्द के अनेक रूप होते हैं परन्तु सूत्रों में एकही रूप का पाठ विशेष आता है इसलिये उसीको मुख्य रखकर रूपान्तर को कोष्ठक में रक्खा है - जैसे 'अदत्तादाण' या 'अनाग' शब्द है और उसका रूपान्तर प्रदेष्पादाण ' या ' अणुजाव ' होता है किन्तु सूत्र में पाठ पूर्व का ही प्रायः विशेष आता है तो उसीको मुख्य रखकर दूसरे को कोष्ठक में रखादया है; अर्थात्- 'अदत्ता (दिला) दाण, 'अणुभाग (ब) ' ।
2-कहीं कहीं मागधी शब्द के अन्त में (ए) इत्यादि व्यञ्जन वर्ण भी कोष्ठक में दिया गया है वह "अन्त्यव्यञ्जनस्य" । छ । १ । ११ ॥ इस प्राकृतसूत्र से लुप्त हुए की सूचना है ।
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३-कहीं कहीं “क-ग-च-ज-त-द-प-य-वां प्रायो लुक् " ।। ८ । १ । १७७ ।। इस सूत्र से एक पक्ष में व्यञ्जन के लोप होने पर बचे हुए (अ) (इ) आदि स्वरमात्र को रूपान्तर में दिया है ।
४- इसी तरह "अवर्णो यश्रुतिः " ॥ ७ । २ । १८० ॥ का भी विषय कोष्ठक में (य) आदि रक्खा है ।
५- तथा 'स्व-ध-य-ध-नाम् " ॥ ८ । १ । १८७ || इस प्राकृत सूत्र से ख घथ ध न अक्षरों को प्रायः ह्कार हुवा करता
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