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( १२ ) १७- स्वरयर' शब्द पर स्वरतर गच्छ का संक्षिप्त विवरण; तथा 'स्खणियवाई' शब्द पर बौद्धों के मत का संक्षिप्त नि रूपण, और वन आदि देखने के लायक है ।
२०--'खेल' शब्द पर क्षेत्र का निरूपण, क्षेत्र के तीन भेद, क्षेत्र के गुण, क्षेत्र का आभवनव्यवहार आदि कई विषय निरूपित हैं।
. २१ - 'ग' शब्द पर स्पृशद्गति और अस्पृशद्गति से गति के दो जेद, प्रकारान्तर से भी दो भेद, गति शब्द की व्युत्पत्ति, नारक तिर्यग् मनुष्य देव के जैद से गति के चार भेद, प्रकारान्तर से पाँच भेद, अथवा आठ जेद, नारकादिकों की शीघ्रगति आदि विषय दिये हुए हैं ।
२३- 'गच्छ' शब्द पर गच्छविधि, सदाचाररूपी गच्छ का लक्षण, गच्छ का अगच्छत्व, गच्छ में बसने से विशेष निर्जरा होती है इसका निरूपण, शिष्य तथा गच्छ का स्वरूप, आर्यिकाओं के साथ संवाद का निषेध, क्रयविक्रयकारी गच्छ का निषेध, सुगच्छ में बसना चाहिये, वसति का रचण, अष्टभाषण, गच्छमर्यादा, आचार्यादिकों के प्रभाव होने पर गच्छ में नहीं बसना, गच्छ और जिनकरूप दोनों की प्रशंसा इत्यादि विषय हैं।
२३-‘गणह ( ध ) र' शब्द पर गणधर का स्वरूप, किस तीर्थङ्कर के कितने गणधर हैं, गणधर शब्द का अर्थ, जिनगुणों से गणधर होने की योग्यता होती है उनका निरूपण किया है।
२४ - ' गब्ज ' शब्द पर गर्भ में अहोरात्रियों का प्रमाण, मुहूर्तों का प्रमाण, गर्भ में निःश्वासोच्छ्रास का प्रमाण, गर्जका स्वरूप, ध्वस्तयोनि के काल का मान, कितने वर्ष के बाद स्त्री गर्भ धारण नहीं करती और पुरुष निर्वार्य हो जाता है इसका निरूपण, कितने जीव एक देला से एक स्त्री के गर्भ में उत्पन्न होते हैं, कुक्षि में पुरुषादि कहाँ बसते हैं, गर्भ में जीव उत्पन्न होकर क्या आहार करता है ?, गर्भस्थ जीव के उच्चार और प्रावरण का विचार, गर्भसे भी जीव नरक या देवलोक को जाता है या नहीं इस गौतम स्वामी के प्रश्न का उत्तर, नवमास का अन्तर हो जाने पर पूर्व भव को जीव क्यों नहीं स्मरण करता ?, और गर्भगत का शौचादि विचार, स्त्री के गर्भधारण करने के पाँच प्रकार, गर्भपतन का कारण, गर्भपोषण में विधि इत्यादि विषय हैं ।
२५- ' गिलाल ' शब्द पर ग्लान के प्रति जागरण, सचित्ताचित्त से चिकित्सा, ग्लान का अनुवर्तन, वैद्यानुवर्तना, वैद्य का उपदेश, ज्ञान के लिये एपणा इत्यादि विषय हैं।
२६ - 'गुण' शब्द पर मूलगुण, उत्तग्गुण, एकतीस सिकादिगुण, सत्ताईस अनगार गुण, महार्द्ध प्राप्त्यादि, सौनाग्यादि, मृफुत्वौदार्यादि, क्षान्त्यादि, वैशेषिकसंमत गुण, अव्यगुणों का परस्पर प्रभेद, गुणपर्याय के नेद, गुणपर्याय का ऐक्य, और जैनसंमत गुण इत्यादि प्रष्टव्य विषय है ।
२७- ' गुणट्ठाण' शब्द पर चौदह गुणस्थान, कायस्थिति, गुणस्थान में बन्ध इत्यादि विषय हैं।
२६-' गोयरचरिया ' शब्द पर जिनकल्पिक स्थविरकल्पिक, निर्ग्रन्थियों की जिक्षा में विधि, जिक्षाटन में विधि, आचार्य की आज्ञा, जाने के समय धार्याधार्य और कार्याकार्य, मार्ग में जिस तरह जाना, दृष्टिकाय के गिरने पर विधि, गृह प्रवेश, गृह के अवयवों को पकड़ करके नहीं खड़े होना, अंगुली दिखाने का निषेध, अगारी (स्त्री) के साथ खमे होने का निषेध, ब्राह्मणादि को प्रविष्ट देख कर के जिक्षा के लिये प्रवेश नहीं करना, तीर्थकर और उत्पन्नकेवलज्ञानदर्शन वाले शिक्षा के लिये भ्रमण नहीं करते, आचार्य भिक्षा के लिये नहीं जाता, ब्राह्मवस्तु, गोचरातिचार में प्रायश्चित्त, साध्वियों की जिक्षा का प्रकार इत्यादि विषय बहुत उपयोगी हैं।
२६ - ' चक्कट्टी ' शब्द पर चक्रवर्तियों की गति का प्रतिपादन, गोत्रप्रतिपादन, चक्रवर्ती के पुर का प्रतिपादन, चक्रवर्ती कावल, मुक्ताहार, वर्णादि, स्त्रियां, स्त्रियों के सन्तान आदि का निरूपण, उत्सर्पिणी में १२ चक्रवर्त्ती होते हैं, कौन और कैसे चक्रवर्ती होता है इसका निरूपण इत्यादि विषय हैं ।
३० - ' चारित' शब्द पर कुम्न के दृष्टान्त से चारित्र के चार भेद, सामायिकादि रूप से चारित्र के पाँच जेद, किस तरह चारित्र की प्राप्ति होती है इसका प्रतिपादन, चारित्र मे हीन ज्ञान अथवा दर्शन मोक्ष का साधन नहीं होता है, किन कषायों के उदय से चारित्र का लाभ ही नहीं होता और किन से हानि होती है इसका निरूपण, वीतराग का चारित्र न बढ़ता प्रायः चारित्र का कारण है इत्यादि विषय है।
है और न घटता है, चारित्र की विराधना नहीं करना, आहारशुद्धि
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