Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 02
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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बाल, स्त्री, मूढ व मूर्ख मनुष्यों तथा चारित्र ग्रहण करने की इच्छावालों पर अनुग्रह करने के लिए तत्त्वज्ञों ने सिद्धान्त की रचना प्राकृत में की है। 130 महामुनि - असंदीनद्वीप
जहा से दीवे असंदीणे एवं से भवति सरणं महामुणी । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 2 पृ. 512] आचारांग - 1/6/5/197
महामुनि संसार-प्रवाह में डूबते हुए जीवों के लिए वैसे ही शरणभूत होता है । जैसे - समुद्र में डूब रहे जलयात्रियों के लिए असंदीनद्वीप । 131 रसासक्ति
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विषया विनिवर्तन्ते, निराहारस्य देहिनः । रसवर्ज रसोऽप्येवं, परं दृष्टवा निवर्तते ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 2 पृ. 548] भगवद्गीता 2/59
यद्यपि इन्द्रियों द्वारा विषयों को ग्रहण नहीं करनेवाले पुरुष के भी केवल विषय तो निवृत्त हो जाते हैं, परन्तु राग (आसक्ति) निवृत्त नहीं होता और स्थिरबुद्धि पुरुष का तो राग भी परमात्मा को साक्षात् करके निवृत्त हो जाता है।
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132 लङ्घन हितकर ज्वरादौ लङ्घनं हितं ।
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 2 पृ. 548]
ज्वरादि में लङ्घन
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चरक संहिता - ज्वर प्रकरण
उपवास हितकारी है 1
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133 भूख- वेदना
i/ नत्थि छुहाए सरिसा वेयणा ।
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 2 पृ. 548] ओघनियुक्ति भाष्य 290
संसार में भूख के समान कोई वेदना नहीं है ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस खण्ड-2 • 90
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