Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 02
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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235 प्रमाद मत करो इमं च मे अत्थि इमं च नत्थि, इमं च मे किच्च इमं अकिच्चं तं एवमेवं लालप्पमाणं, हरा हरंति,त्ति कहं पमाओ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1187] __ - उत्तराध्ययन - 1445 ___'यह मेरा है और यह मेरा नहीं है।' यह मुझे करना है और यह नहीं करना है, इसप्रकार व्यर्थ की बकवास करनेवाले व्यक्ति को आयुष्य का अपहरण करनेवाले दिन और काल उठा ले जाते हैं । ऐसी स्थिति में प्रमाद करना कैसे उचित है ? 236 काम, मोक्ष-विपक्षी संसार मोक्खस्स विपक्ख भूया ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1187]
- उत्तराध्ययन 14/13 सारे-काम-भोग संसार-मुक्ति के विरोधी हैं । 237 शुक-विद्या Vवेया अधीया ण भवंति ताणं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1187]
- उत्तराध्ययन - 1412 अध्ययन कर लेने मात्र से वेद-शास्त्र रक्षा नहीं कर सकते। 238 क्षणिक-सुख खणमेत्त सोक्खा बहु काल दुक्खा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1187]
- उत्तराध्ययन 1443 संसार के विषयभोग क्षणभर के लिए सुख देते हैं,किन्तु बदले में चिरकाल तक दु:खदायी होते हैं।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 115