Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 02
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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124 मैत्र्यादिवासितं चेतः, कर्म स्यूते शुभात्मकं । कषायविषयाक्रान्तं, वितनोत्यशुभं मनः ॥
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219 मोह जंति नरा असंवुडा ।
229 मंद परिक्कमे ।
मे
मेढी आलंबणं खंभं दिट्टि जाण सुउत्तमं ।
सूरी जं होइ गच्छस्स, तम्हा तं तु परिक्खए ॥
मै
य
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य स्नात्वा समताकुण्डे, हित्वा कश्मलजं मलम् । पुनर्न याति मालिन्यं, सोऽन्तरात्मा परः शुचि ॥ य पश्येन्नित्यमात्मानमनित्यं पर सङ्गमम् । छलं लब्धुं न शक्नोति, तस्य मोहमलिम्लुचः ॥ यथा योधैः कृतं युद्धं स्वामिन्येवोपचर्यते । शुद्धात्मन्य विवेकेन, कर्म स्कन्धोजितं तथा ।। 164 यदि स्थिरा भवेत् विद्युत्, तिष्ठन्ति यदि वायवः । दैवात्तथापि नारीणां न स्थेम्ना स्थीयते मनः ।।
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111 लद्धे आहारे अणगारे मातं जाणेज्जा ।
ला
109 लाभोत्ति ण मज्जेज्जा ।
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लोगं च आणाए अभिसमेच्चा अकुतोभयं ।
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वओ अच्चेति जोव्वणं च ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 136
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