Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 02
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora

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Page 146
________________ 126 शरीरेण सुगुप्त शरीरी चिनुते शुभम् । सततारम्भिणा जन्तुघातफेना शुभं पुनः ॥ 2 503 2 232 84 शुचीन्यप्य शुचीकर्तुं समर्थेऽशुचिसंभवे । देहे जलादिना शौचं भ्रमो मूढस्य दारूणः ॥ 125 शुभार्जनाय निर्मिथ्यं श्रुतज्ञानाश्रितं वचः । विपरीतं पुनर्जेयमशुभार्जनहेतवे ॥ 8 सव्वेसि जीवितं पियं। 2 10 सव्वे पाणा पियाउया सुहसाता दुक्ख पडिकूला अप्पियवधा पियजीविणो जीवितुकामा। 2 10 12 समयं गोयम ! मा पमायए। 2 11 58 सव्वत्थेसु विमुत्तो, साहू सव्वत्थ होइ अप्पवसो। 2 185 93 स एव भव्वसत्ताणं, चक्खुभूए वियाहिए। दंसेइ जो जिणुद्दिटुं, अणुट्ठाणं जहाट्ठियं ॥ 2 335 101 सज्झाय सज्झाण रयस्स, ताइणो, अपावभावस्सतवरयस्स विसुज्झइ जं से मलं पुरे कडं, समीरियं रूप्पमलं व जोइणा ॥ 2 387 123 समणेण सावण्ण य अवस्स कायव्व हवति जम्हा।। अंतो अहो निसिस्स उ तम्हा आवस्सयं नाम ॥ 2 472 149 सरित्सहस्रदुष्पूर समुद्रोदर सोदरः । तृप्तिमानेन्द्रियग्रामो, भव तृप्तोऽन्तरात्मना । 2 597 247 सद्धाखमं णे विणइत्तु रागं। 2 1190 252 सव्वं जगं जइ तुहं, सव्वं वावि धण भवे । सव्वं पि ते अपज्जत्तं, नेव ताणाए तं तव ॥ 2 1191 अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 138

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