Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 02
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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काम - भोग अनर्थों की खान है ।
231 अशरण भावना
जाया य पुत्ता न भवंति ताणं ।
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एक
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उत्तराध्ययन 14/12
औरस पुत्र भी शरणभूत या रक्षक नहीं होते ।
232 अल्प- सुखदायी
पकामदुक्खा अनिकाम सोक्खा ।
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 2 पृ. 1187]
उत्तराध्ययन- 14/13
ये काम-भोग चिरकाल तक दुःख देते हैं अर्थात् बहुत दुःख और थोड़ा सुख देनेवाले हैं ।
233 निरन्तर भटकाव
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परिव्वयन्ते अनियत्तकामे,
अहो य राओ परितप्यमाणे ।
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 2 पृ. 1187 ]
उत्तराध्ययन
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जो काम - भोगों को नहीं छोड़ते हैं वे अतृप्ति की ज्वाला से संतप्त
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 2 पृ. 1187]
होते हुए दिन-रात भटकते रहते हैं ।
234 धन की खोज में - प्रमत्त पुरुष अण्णप्पमत्ते ण मेमाणे,
पप्पोति मच्चुं पुरिसे जरं च ।
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 2 पृ. 1187]
उत्तराध्ययन 14/14
अन्य के लिए प्रमत्त होकर धन की खोज में लगा हुआ वह पुरुष
दिन बुढापा एवं मृत्यु को प्राप्त हो जाता है ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 114