Book Title: Abhakshya Anantkay Vichar
Author(s): Pranlal Mangalji
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 10
________________ ॥ श्री-वीतराग-परमात्माने नमः ॥... अभक्ष्य-अनन्तकाय-विचार मङ्गलाचरणः विषयः संबंधः अधिकारीः प्रयोजनः इ. अति दुष्कर तपः और रागद्वेष को क्षयः कर मोक्ष की विशाल समृद्धि प्राप्त करने में निकटोपकारी वर्तमान शासन के नायक श्रमण भगवंत श्रीमहावीर जिनेश्वर प्रभु को हमें नमस्कार करना चाहिए। आठ मद का जय करने के साथ में इंद्रियों के दमन करने वाले तथा उत्तम धर्म और शुक्ल ध्यान धारण करने में सदा तत्पर मुनिपुङ्गवोः श्रीगणधर भगवंतोः तथा धुरंधर पूर्वाचार्योः हमारा मंगल करें। चौदह पूर्वधर श्री भद्रबाहुस्वामीः श्रीस्थूलभद्रस्वामीः दशपूर्वी श्रीवज्रस्वामीः तथा श्रीदेवर्धिगणि क्षमाश्रमणजी आदि निग्रंथ श्रमण भगवंतो को हम शरण लेते हैं। श्री मृगावतीः और चन्दनबालाः प्रमुख साध्वीजी के उत्तम चारित्र, शील तथा विनयादि गुणों का अहर्निश अनुमोदन करना चाहिए। श्री आणंदजीः श्रीकामदेवजीः श्री पुणियाजी और श्री जीरणः प्रमुख श्रावकों के उत्तम उत्तम द्वादश व्रत, ज्ञानः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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