Book Title: Aagam 13 RAJPRASHNIYA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 246
________________ आगम (१३) “राजप्रश्निय"- उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्तिः ) ---------- मूलं [१४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१३], उपांग सूत्र - [२] "राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्तिः प्रत सुत्रांक [५४] श्रीराममनी का | राजा नव मल्लकिनो नव लेच्छकिनः, 'अन्ने य बहवे राईसरे' त्यादि, राजानो-मण्डलिका ईश्वरा-युवराजानस्तलवरा:-17 मकवगिरी चौमाक्षिक परितुष्टनरपतिप्रदत्तपट्टवन्धविभूषिता राजस्थानीयाः माडम्बिका:-चित्रमण्डपाधिपाः कुटुम्बिका:-कतिषयकुटुम्बस्वामिनोऽवया वृत्तिः S०५४ लगकाः इभ्या-महाधनिनः श्रेष्ठिन:--श्रीदेवताध्यासितसौवर्णपट्टविभूषितोत्तमागाः सेनापतयो-नृपतिनिरुपिताश्चतुरङ्ग सैन्य॥१२१॥ नायकाः सार्थवाहा-सार्थनायका प्रभृतिगृहणा मन्त्रिमहामन्त्रिगणकदौवारिकपोठमर्दादिपरिग्रहः, तत्र मन्त्रिणा प्रतीताः महामन्त्रिणो-मन्त्रिमण्डलभधानाः इस्तिसाधनोपरिका इतिद्धाः गणका--गणितज्ञा भाण्डागारिका इति वृद्धार ज्योतिषिका इत्यपरे दौवारिका:-पतीहारा राजद्वारिका वा पीटमर्दा:-आस्थाने आसन्नमत्यासन्नसेषका बयस्या इति | भावः 'जाव अवरतलमिव फोडेमाणा' इति यावत्करणात् 'अप्पेगतिया' बंदणवत्तियं अपेगइया पूअणवत्तिय एवं | सकारवचियं सम्माणवत्तियं कोउहलवत्तियं अमुयाई मुणिस्सामो सुयाई निस्संकियाई करिस्सामा मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पवइस्सामो पंचाणुवयाई सत्त सिक्खावयाई दुवालसविद गिहिधम्म पडिवज्जिस्सामो, अप्पेगइया जिणभतिरा-41 णेणं अप्पेगइया जीयमेयंतिकटु पहाया कयबलिकम्मा कयकोउयमंगलपायच्छित्ता सिरसाकंठेमालाकडा आविंद्धमणिमुवष्णा All कप्पियहारदहारनिसरयपालबपलबमाणकडिसुत्तयसोभाभरणा वत्थ पवर परिहिया चंदणोलितगायसरीरा अपेगश्या हयगया | 1 अप्पेगइया गयगया अप्पेगइया रहगया अप्पेगइया सिविकागया अप्पेग० संक्माणियागया अप्पेगइया पायर्यावहारचारिणी | परिसबम्गराय परिक्खिता मइया उक्विडिसीहनाइया बोलकलकलरषेण समुद्दस्क्भूयं पित्र करमाणा अंबरतलंपिच फोडेमाणा' | इति परिग्रहः, एतच्च प्रायः सुगम, नवरं गुणव्रतानामपि निरन्तरमभ्यस्यमानतया शिक्षात्रतत्वेन विचक्षणात् ' सत्त सिक्खा- १२॥ बायकायदा-कर-% दीप अनुक्रम [५४] | चित्र-सारथिः, तस्य धर्म-प्राप्ति: ~245~

Loading...

Page Navigation
1 ... 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304