Book Title: Aagam 13 RAJPRASHNIYA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(१३)
"राजप्रश्निय”- उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्ति:)
---------- मूलं [६७-७४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१३], उपांग सूत्र - [२] "राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [६७-७४]
दीप अनुक्रम [६७-७४]
नीसासइडीए महजुइअप्पतराए चेव, एवं च कुंथुओहत्या महाकम्मतराए चेष महाकिरिय जाय?,हता पएसी! हत्थीओ कुंधू अप्पकम्मतराए चेव कुंथुओ वा हत्थीमहाकमतराए चेव तं चेव, कम्हाणे भंते! हथिस्स य कुथुस्स य समे चेव जीवे ,पएसी! से जहा णामए कूडागारसाला सिया जाव गंभीरा अहण के पुरिसे जोई व दीवं बगहाय तं कूडागारसालं अंतो २ अणुपविसइ तीसे कडागारसालाए सप्तो समंता घणनिचिपनिरंतराणि णि छिड्डाई दुवारवयणाई पिहेतिरतीसे कूडागारसालाए यहमज्झदेसभाए तं पईवं पलीवेजा, तर णं से पईवे तं कूडागारसालं अंतोरओभासह उज्जोवेइ तवति पभासेइ, णो चेव णं बाहि, अहणं से पुरिसे ते पईच इजरएणं पिहेजा, तए से पर्डवे से डरयं अंतो ओभासेइ, णो चेव णं इडरगस्त बाहि णो चेव णं कूरगारसालाए बार एवं किलिजेणं गंडमाणियाए पच्छिडिएणं आढतेणं अहातेणं पत्थएणं अहपथएणं अट्टमाइयाए चाउम्भाड्याए सोलसियाए छत्तीसियाए चउस ट्ठियाए दीवर्चपरणं तए णं से पदीये दीवचंपगस अंतो ओभासति४, नो चेव पं दीवचंपगस्स याहि, नी चेव णं च उसट्टियाए बाहि. णो चेवणं कूडागारसालं णो चेव णं कूडागारसालाए बाहि, एवामेव परसी! जीववि जं जारिसर्य पदकम्मनियई बोंदि णिवत्तेइ तं असंखेजेहिं जीवपदेसेहि सचित्तं करेइ खुड्डियं वा महालियं वा, तं सद्दहाहि णं तुम पएसी! जहा अपणी जीवो तं चेव णं ।। (सू०७४)।
केसिकुमार श्रमणं साधं प्रदेशी राजस्य धर्म-चर्चा
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