Book Title: Aagam 13 RAJPRASHNIYA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 302
________________ आगम (१३) "राजप्रश्निय”- उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्ति:) ---------- मूलं [८४-८५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१३], उपांग सूत्र - [२] "राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: श्रीराजपनी पलय गिरीया वृत्तिः मूत्रस्य उरसंहार मु.८५ प्रत सूत्रांक [८४-८५] ॥१४९॥ दीप अनुक्रम [८४-८५] परियागं पाउणित्ता अप्पणो आउसेसं आभोएत्ता बढ़ाई भत्ताई पश्चक्रवाइस्सइ २ चा बहाई भचाई अणसणाए इस्सइ २ ना जस्सहाए कीरइ णग्गभावे केसलोचबंभचेरवासे अण्हाणगं अदतवर्ण अणुवहाणगं भूमिसेजाओ फलहसेजाओ परघरपवेसो लडावलडाई माणावमाणाई परेसि हीलणामी दिसणाओ गरहणा उच्चावया विरूवा बावीसं परोसहोवसग्गा गामकंटगा अहियासिज्जते तमहूँ आराहेइ २त्ता चरिमेहिं उस्सासनिस्सासे हिं सिज्झिहिति मुचिहिति परिनि बाहिति स दृवाणमंतं करेहिति ॥ (सू०८४) ॥ सेवं भंते ! सेवे भंते! नि भगवं गोयमे समर्ण भगवं महावीर बदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरति । णमो जिणाणं जियभयाणं । णमो सुयदेवयाए भगवतीए । णमो षण्णत्तीए भगवईए। णमो भगवओ अरहओ पासस्स पस्से सुपस्से पस्सवणा णमो ९ । रायप्पसेणीयं सम्मः ॥ (सू. ८५) ॥ ग्रंथाग्रं सूत्र २१००। नवंगसुत्तपतियोहिए' इति दे श्रोत्र हे नयने द्वे नासिके एका जिह्वा एका व एक मन इनि सुप्तानीच पाल्या| दम्यक्तनेतनानि प्रतिबोधिनानि-यौवनेन व्यक्तचेतनानि कृतानि यस्य स तथा, व्यवहारभाएपे ' सोत्ताई नव सुत्ताई' इत्यादि, 'अट्ठारसविहदेसीप्पयारभासाविसारए' अष्टादशविधाया-अधाशभेदाया देशीम काराया-देशीवरूपाया भाषाया विशारदो-विचक्षणः, तथा गीतरवि तथा गन्धर्व गीते नाटधे च कुशला हयेन युध्यते इति हययोधी एवं गजयोधो रथयो V १४९। SAREnatinal A udiarary.org | प्रदेशी राजस्य आगामि भवा: एवं मोक्ष-प्राप्ति: अत्र सूर्याभदेवस्य प्रकरणं परिसमाप्त: ~ 301~

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