Book Title: Aagam 13 RAJPRASHNIYA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(१३)
"राजप्रश्निय”- उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्ति:)
---------- मूलं [८१-८२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१३], उपांग सूत्र - [२] "राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
[८१-८२]
दीप अनुक्रम [८१-८२]
Sonई विचित्रपणविपुकभषणसयमासणजमणवाहणाई बहुधणबहुजातरूवरययाई आओगपओससपउनाई बिमाडियमममसपाणाई बहुदासीदासगोमहिसगवेलगप्पभूयाई बहुजणस्स अपरिभूताई, सस्थ भायरेसु कुलेसु पुत्तत्ताए पश्चाइलाइ । तए णं तंसि दारगंसि गम्भगयंसि नेव समार्णसि अम्मापिऊ धम्मे बता पहण्णा भविस्सइ । लए णं तस्स दारयस्स नवई मासाण पहपडिगाणं अबढमाण राईदियाणे वितिकताणं सुकुमालपाणिपाय अहीणपढिपुषणपंचिदियसरीर लक्खणवंजणगुणोववेयं माणुम्माणपमाणपडिपुनसुजायसवंगसुंदरंग ससिसोमाकार केत पिपदसणं सुरूवं दारयं पयाहिसि । तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे ठितिबडिये करहिंति हतियदिवसे चंदसूरदसणिगं करिस्संति छट्टे दिवसे जागरियं जागरिस्संति एकाइसमे दिवसे पीश्यकते संपत्ते पारसाहे दिक्से णिबिसे अमुह जायकम्मकरणे चोक्खे संममिओबलिरी विउलं असणवाणखाइमसाइमं उबक्खडावेस्संति २ मित्तणाइणियमसयणसंबंधि परिजणं आमंतेत्ता तमो पच्छा पहाया करवलिकम्मा जाब अल किया भोयणमंडबंसि सुहासणवरगया ते मिलणा जाब परिज गेण सहि बिउलं असणं ४ आसाएमाणा बिसाएमाणा परिभुजेमाणा परिभाषमाणा एवं थेवणं विहरिस्संति, जिमियभुतुत्तरागयावि य गं समाणा आयता चोक्खा परमसुइभूया तं मित्तणाइ जाव परिजणं विउलेणं वस्यगंधमल्लालंकारेणं सकारेस्संति सम्माणि
प्रदेशी राजस्य आगामि भवा: एवं मोक्ष-प्राप्ति:
~294~
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