Book Title: Aagam 13 RAJPRASHNIYA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 262
________________ आगम (१३) "राजप्रश्निय”- उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्ति:) ---------- मूलं [६२-६४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१३], उपांग सूत्र - [२] "राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: श्रीराजप्रश्नी भाधोऽवध्यनजीवि प्रश्नः चि मलयगि या पृत्तिः तितोक्तिः ॥१२९॥ प्रत सूत्रांक [६२-६४] दलइ किं पयल्छइ जण एमहालियाए मणुस्सपरिसाए मज्झगए महया २ सद्देणं वुयाए ?, एवं संपेहेइ २ मा चित्तं सारहिं एवं वयासी-चित्ता! जडा खलु भो ! जई पज्जुवासंति जाव बुयाइ, साएवि य णं उजाणभूमीए नो संचाएमि सम्म १कामं पबियरित्तए । तए णं से चिसे सारही पएसीराय एवं वयासी-एस णं सामी ! पासावञ्चिले केसीनाम कुमारसमणे जाहसंपणो जाव चउ.. नाणोवगए आहोहिए अण्णाजीबी तए णं से पएसी राया चित्तं सारहिं एवं बयासी-आहोहिय ण वदासि चित्ता! अण्णजीवियत् णं वदासि चित्ता, हंता ! सामी ! आहोहिअण्णं वयामि०, अभिगमणिजे गं चित्ता! अहं एस पुरिसे १, हंता ! सामी ! अभिगमणिजे, अभिगच्छामो णं चित्ता ! अम्हे एयं पुरिसं?, हंता सामो ! अभिगच्छामो ॥ (सू०६२) ॥ तए णं से पएसी राया चिरेण सारहिणा सहिं जेणेव केसीकुमारसम तेणेव उवागच्छइ २ ता केसीस्स कुमारसमणस्स अदरसामसे ठिचा एवं बयासी-तुम्भेण भंते! आहोहिया अण्णजीविया ?,तएणं केसी कुमारसमणे पएसि रायं एवं वदासी-पएसी से जहाणामए अंकवाणियाइ वा संखवाणियाइ वा दंतवाणियाई वा सुंक भसिकामा णो सम्म पंथ पुच्छइ.एवामेव पएसी तुम्भेवि विणयं भंसेउकामो मो सम्म पुरुछसि, से शृणं तव पएसी ममं पासित्ता अयमेयारुवे अज्झथिए जाय समु. प्पजिस्था-जड्डा खलु भो ! जड़े पज्जुवासंति, जाय पवियरित्तप, से गूणं परसी अढे समत्थे १, दीप अनुक्रम [६२-६४] ॥ १२९॥ SAMEmirahini T amurary.om केसिकुमार श्रमणं साधं प्रदेशी राजस्य धर्म-चर्चा ~261~

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