Book Title: Aagam 13 RAJPRASHNIYA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(१३)
"राजप्रश्निय”- उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्ति:)
---------- मूलं [६५-६६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१३], उपांग सूत्र - [२] "राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [६५-६६]
सुपइडिया मे पइपणा जहा तं जीवो त सरीरं नो अन्नो जीवो अन्ने सरीर । तए ण केसीकुमारसमणे पएसीरायं एवं वयासी-जति ण तुम पपसी! हाय कयवलिकम्म कयकोउयमंगलपायकिछत्तं उल्लपडसाडगं भिंगारकडच्छयहत्थगयं देवकुलमणुपविसमाणं केइ य पुरिसे बच्चधरंसि ठिचा एवं वदेजा-ह(ए हताव सामी! इह मुहत्तगं आसयह वा चिट्ठह वा निसीयह वा तुयह वा, तस्स णं तुम पएसीपुरिसस्स खणमवि एयम पडिसुणिज्जासि, णो ति०, कम्हाणे?, भंते ! असुइ २ सामंतो,एवामेव पएसी! तववि अज्जिया होत्था इहेव सेयवियाए णपरोए धन्मिया जाव विहरति, साणं अम्हं वत्तघयाए सुबहुंजाव उववन्ना, तीसे णं अजियाए तुम णनए होत्था इट्ट० किमंग पुण पासणयाए 1, सा णं इच्छह माणुसं लोग हवमागच्छित्तए, णो चेव णं संचाएइ हवमागच्छित्तए, चाहिं ठाणेहि पएसी अहणोववन्ने देवे देवलोपमु इसजा माणुसं लोगं णो चेवणे संचाएइ. अहुणोववपणे देवे देवलोएसु दिव्वेहिं कामभोगेहिं मुछिए गिडे गढिए अजमोववणे से णं माणसे भोगेनो आढाति नो परिजाणाति, सेणं इच्छिज्ज माणुसं नो चेव णं संचाएति १, अहुणोववण्णए देवे देवलोएम दिवेहिं कामभोगेहिं मुछिए जाव अज्झोववण्णे, तस्स णं माणुस्से पेम्मे वोच्छिनए भवति दिव्वे पिम्मे संकेते भवति, से ण इच्छेज्जा माणुस० णो चेव णं संचाएइ २, अहुणोववपणे देवे दिन्वेहि कामभोगेहि मुच्छिए जाव अज्झोववणे,
दीप अनुक्रम [६५-६६]
केसिकुमार श्रमणं सार्धं प्रदेशी राजस्य धर्म-चर्चा
~268~
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