Book Title: Aagam 13 RAJPRASHNIYA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
View full book text
________________
आगम
(१३)
"राजप्रश्निय”- उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्ति:)
---------- मूलं [६७-७४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१३], उपांग सूत्र - [२] "राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
यया पपेद्
तथा दणुः व्यवहारीच
श्रीराजप्रश्नी मलयगिरी या वृत्तिः
७२
प्रत सूत्रांक [६७-७४]
उचावरहि आउसेहि आउसित्तए उच्चावयाहि उद्धसणाहिं उहंसित्तए एवं निम्भंछणाहि निकछोडणाहि!, तए णं केसीकुमारसमो परसिं रायं एवं वयासी-जाणासि णं तुम पएसी! कति परिसाओ पणशाओ,भते ' जाणामि चत्तारि परिसाओ पण्णता, तजहा-वयिपरिसा गाहावापरिसा माहणपरिसा इसिपरिसा, जाणासि णं तुम पएसीराया! एयासि चउण्ह परिसाणं कस्स का दडणीई पण्णता, हंता ! जाणामि जेणं खसियपरिसाए अवर झह से ण हत्थच्छिपणए वा पायरिछपगए वासीसच्छिपणए वा मूलाइए वा एगाहचे कूटाचे जीवियाओ ववरोविजड,जे ण गाहावइपरिसाए अवरज्झइ से ण तएण वा वेटेण वा पलालेण वा बेठित्ता अगणिकापणं झाभिजइ, जेणं माहणपरिसाए अवरज्झइ से णं अणिवाहिं अकताहिं जाव अमणामाईि वग्गहि उवालंभित्ता कुंडियालंछणए वा सूणगल छणए वा कीरइ निविसए चा आणविजइ, जे णं इसिपरिसाए अवरजसइ से णं णाइअणिवाहि जाव णाइअमणामाहि बग्गाहिं उधालम्बाइ, एवं च ताव पपसी ! तुम जाणासि तहावि ण तुमं मम वाम थामेणं दड दोणं पडिकलं पडिकलेणं पडिलोमं पडिलोमे गं विवञ्चासं विवञ्चासेणं घट्टसि. तर णं पएसी राया केसि कुमारसमण एवं व यासी-एवं खलु अहं देवाणुप्पिरहिं पढमिल्लुएगं चेव बागरण संलते तर णं मम इमेयासवे अम्भत्थिए जाव संकप्पे समुपजित्था, जहा जहाणं एयस्स परिसस्स वाम थामेणं जाय विवश्वास
本宫》十語本字亭》發空
दीप अनुक्रम [६७-७४]
|01१३८॥
A
uraurary.orm
केसिकुमार श्रमणं साधं प्रदेशी राजस्य धर्म-चर्चा
~ 279~
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/584be1b16c721c7c74b28a2f936af4e90d65c7d6d7a6c3e21838e8e8a3e32320.jpg)
Page Navigation
1 ... 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304