Book Title: Aadarsh Gyan
Author(s): Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 14
________________ ( ३ ) दिया था और संस्था ने इसे पूर्ण करने का प्रयत्न किया । हां, यदि जिन भक्त लोगों ने मसाला एकत्र किया था वे इस कार्य का संपादित करते तो कार्य कुछ और ही रूप में बनता पर खैर, जो बनने का होता है वही बनता है । अस्तु, हम गुरु-भक्ति से प्रेरित हो जैसी बन सका वैसा एक वार्ता के रूप में महाराज के जीवन के साथ घटनाये बनी और हमे जितनी प्राप्त हुई उसको लिख कर जनता के सामने रख दी है जिसको पढ़ने से आप ठीक तौर पर जान सकोगे कि एक परमार्थी पुरुष जनता का किस तरह कल्याण में निमित्त कारण सकता है। पूज्य गुरुबर्थ्य के जीवन में एक यह विशेषता है कि आष जमाना हाल के सुधारक विचार वाले निडर पुरुष होने पर भी शासन के प्रत्येक कार्य में कटिबद्ध होकर भाग लिया करते हैं जब से आप संवेगपक्ष में श्राये उस दिन से ही श्रापका यह मुख्य ध्येय बन गया था कि छोटा-छोटा ट्रक्टों द्वारा समाज में जागृति पैदा करनी और चिरकाल से पडिदुइ कुरूढ़ियों को निकाल नी । इसके लिये सब से पहला आपने सं० १९७३ में फलौदी शहर में श्री रत्नप्रभाकर ज्ञानपुष्पयाला नामक संस्था को जन्म दिया और उस सँस्था द्वारा छोटे बड़े २१५ पुस्तक की करीए ४००००० प्रतियें छपवा कर सर्वत्र प्रचार करवाया इनके पूर्वं मारवाड़ में इस प्रकार पुस्तकें का प्रचार नहीं हुआ था जिसमें भी विशेषता यह कि इतना बड़ा कार्य के लिये न रखा पण्डित न रखा नौकर प्रायः सब कार्य मुनि श्री ने अपने हाथों से ही किया था इस सस्था के श्राय व्यव का कार्य भी फलौदी के ज्ञान प्रेमियों ने परमार्थ एवं परोपकार को लक्ष में रख कर ही किया था जिन्हों के हिसाब की सफाई श्राप मुद्रित हिसाब से देख सकते ही । २ - गुरुवर्य की लिखी हुई पुस्तकें एक ही विषय की नहीं पर तात्विक, दार्शनिक अध्यात्मिक, श्रौपदेशिक मक्ति विधिविधान समाजसुधार चर्चा और ऐतिहासिकादि अनेक विषय की है । १ - श्राप भी स्वयं कण्ठस्थ ज्ञान करना और दूसरों का करवाने का भी 'प्रयत्न किया और आपश्री ने अनेक मावुकों की ज्ञान दान दिया ।

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