Book Title: Shrutsagar 2019 04 Volume 05 Issue 11
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RNI:GUJMUL/2014/66126 ISSN 2454-3705 "श्रुतसागर | श्रुतसागर SHRUTSAGAR (MONTHLY) April-2019, Volume :05, Issue : 11, Annual Subscription Rs. 150/- Price Per copy Rs. 15/EDITOR: Hiren Kishorbhisi Doshi BOOK-POST / PRINTED MATTER राष्ट्रपति भवन में भारत के राष्ट्रपति महामहिम श्री राम नाथ कोविंदजी के साथ धर्म सत्संग करते राष्ट्रसन्त पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूज्य आचार्यश्री को अपने श्रद्धा सुमन अर्पण करते हुए महामहिम राष्ट्रपति राष्ट्रपति भवन के परिसर में पूज्य आचार्यदेव श्री अपने शिष्य परिवार व भक्तों के साथ For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3 SHRUTSAGAR RNI : GUJMUL/2014/66126 April-2019 ISSN 2454-3705 आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर का मुखपत्र) श्रुतसागर મૃતસાગર SHRUTSAGAR (Monthly) वर्ष-५, अंक-११, कुल अंक-५९, अप्रैल-२०१९ Year-5, Issue-11, Total Issue-59, April-2019 वार्षिक सदस्यता शुल्क - रु. १५०/- * Yearly Subscription - Rs.150/अंक शुल्क - रु. १५/- * Price per copy Rs. 15/ आशीर्वाद राष्ट्रसंत प. पू. आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. * संपादक * * सह संपादक * * संपादन सहयोगी * हिरेन किशोरभाई दोशी रामप्रकाश झा राहुल आर. त्रिवेदी एवं ज्ञानमंदिर परिवार १५ अप्रैल, २०१९, वि. सं. २०७५, चैत्र शुक्ल-१० आराधन श्रा कन्न. महावीर अमृतं तू विद्या आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर (जैन व प्राच्यविद्या शोध-संस्थान एवं ग्रन्थालय) श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा, गांधीनगर-३८२००७ फोन नं. (079) 23276204, 205, 252 फैक्स : (079) 23276249, वॉट्स-एप 7575001081 Website : www.kobatirth.org Email : gyanmandir@kobatirth.org For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3 ७ 9 r श्रुतसागर अप्रैल-२०१९ अनुक्रम १. संपादकीय रामप्रकाश झा २. गुरुवाणी आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी 3. Awakening Acharya Padmasagarsuri ४. ज्ञानसागरना तीरे तीरे डॉ. कुमारपाल देसाई ५. राजरत्न गणि कृत चार प्रत्येकबुद्ध सज्झाय तथा आर्य महागिरि सज्झाय गणि सुयशचंद्रविजयजी ६. गुजराती बोलीमां विवृत अने संवृत ए-ओ चुनीलाल वर्धमान शाह ७. श्रुतसेवा के क्षेत्र में आचार्य श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर का योगदान राहुल आर. त्रिवेदी ८. पुस्तक समीक्षा रामप्रकाश झा ९. समाचार धरम करत संसार सुख, धरम करत निरबाण। धरमपंथ साधन बिना, नर तिर्मंच समान ॥ हस्तप्रत ८१२९० भावार्थ – सांसारिक सुख या निर्वाण की प्राप्ति तो धर्म करने से ही होती है। धर्मपंथरूपी साधन के अभाव में तो मनुष्य तिर्यंच के समान है। * प्राप्तिस्थान * आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर तीन बंगला, टोलकनगर, होटल हेरीटेज़ की गली में डॉ. प्रणव नाणावटी क्लीनीक के पास, पालडी अहमदाबाद - ३८०००७, फोन नं. (०७९) २६५८२३५५ For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR April-2019 संपादकीय रामप्रकाश झा श्रुतसागर के प्रस्तुत अंक में 'गुरुवाणी; शीर्षक के अन्तर्गत योगनिष्ठ आचार्यदेव श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म. सा. के द्वारा रचित “नवपद गीत" प्रस्तुत किया जा रहा है। इस कृति में नवपद की महिमा का वर्णन किया गया है। द्वितीय लेख राष्ट्रसंत आचार्य भगवंत श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के प्रवचनों की पुस्तक 'Awakening' से क्रमबद्ध श्रेणी के अंतर्गत संकलित किया गया है, जिसके अन्तर्गत जीवनोपयोगी प्रसंगों का विवेचन किया गया है। “ज्ञानसागरना तीरे तीरे” नामक तृतीय लेख में डॉ.कुमारपाल देसाई के द्वारा आचार्यदेव श्रीमद बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म. सा. के जीवन, व्यक्तित्व एवं कृतित्व का परिचय प्रस्तुत किया गया है। इस लेख को आगामी अंकों में भी शृंखलाबद्ध रूप से प्रकाशित किया जाएगा। अप्रकाशित कृति प्रकाशन के क्रम में पूज्य गणिवर्य श्री सुयशचन्द्रविजयजी म. सा. के द्वारा सम्पादित राजरत्नगणिकृत दो अप्रकाशित कृतियाँ “चार प्रत्येकबुद्ध सज्झाय तथा आर्य महागिरि सज्झाय” प्रकाशित की जा रही है। प्रथम कृति में करकंडु आदि चार प्रत्येकबुद्ध के जीवनवृत्तान्त का सुन्दर वर्णन किया गया है तथा द्वितीय ऐतिहासिक कृति में आर्य महागिरि की निर्दोष आहारचर्या का विशेष रूप से परिचय दिया गया है। पुनःप्रकाशन श्रेणी के अन्तर्गत इस अंक में बुद्धिप्रकाश, ई.१९३४, पुस्तक८१,अंक-३ में प्रकाशित “गुजराती बोलीमां विवृत अने संवृत ए-ओ” नामक लेख प्रकाशित किया जा रहा है। इसके लेखक श्री चुनीलाल वर्धमान शाह ने इस लेख में सत्रहवीं सदी तथा उसके पूर्व की गुजराती बोली में हुए परिवर्तनों का वर्णन किया गया है। पुस्तक समीक्षा के अन्तर्गत पंन्यास श्री सम्यग्दर्शनविजयजी गणि द्वारा सम्पादित श्री दानप्रकाश सभाषान्तर' पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत की जा रही है, श्री कनककुशल गणि द्वारा रचित दानप्रकाश को श्री हीरालाल हंसराज ने गुजराती अनुवाद के साथ लगभग सौ वर्ष पूर्व प्रकाशित किया था। जिसका पुनः सम्पादन किया गया है। इसमें दान के आठ प्रकारों का दृष्टान्तों के साथ वर्णन किया गया है। इस अंक में “श्रुतसेवा के क्षेत्र में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर का योगदान” नामक शीर्षक के अन्तर्गत यहाँ संगृहीत व संकलित सूचनाओं का उल्लेख करते हुए यहाँ की विविध प्रवृत्तियों के ऊपर प्रकाश डाला गया है। जो विद्वानों के संशोधनसम्पादन से सम्बन्धित कार्य में अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगी। हम यह आशा करते हैं कि इस अंक में संकलित सामग्रियों के द्वारा हमारे वाचक अवश्य लाभान्वित होंगे व अपने महत्त्वपूर्ण सुझावों से हमें अवगत कराने की कृपा करेंगे। For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर अप्रैल-२०१९ गुरुवाणी आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी योगनिष्ठ आचार्यश्री ने नवपद महिमा का गान करते हुए इस लघु कृति के माध्यम से घट में ही नवपद ऋद्धि की विद्यमानता, नवपदों का गण और गणी में विभाजन (पहले ५ पद गुणी और बाकी के ४ पद गुण), चार निक्षेपा में अवतरण, पिंडस्थादिक भेदयुक्त नवपद ध्यान से कर्मक्षय एवं मोक्ष प्राप्ति की बात कहकर संक्षेप में संपूर्ण जिनशासन का सार और मुक्तिमार्ग का आधार बता दिया है। चार पदों की गाथाओं में प्रारंभ के दो पद एक-दुसरे के साथ प्रास मिलाते हैं और तीसरा पद आंकणी के साथ ताल मिलाता है। आंकणी भी अपने आप में अलग ही धुन जमाती है। इस प्रकार यह लघुकाय, मधुर रचना वाचक को अध्यात्म भावना के साथ नवपद भक्तिगान में लीन बनाती है। ॥ नवपद गीत ॥ नमुं. ॥३॥ (राग बनजारो) नमुं नवपद जग जयकारी, अद्भुत महिमा छे भारी. नवपद ऋद्धि घट दाखी, ज्यां सूत्रसिद्धांतो साखी लेजो उरमांही उतारी. नमुं. ॥१॥ मयणासुंदरी श्रीपाल, पाम्या छे मंगलमाल, आंबील तपने दील धारी. नमुं. ॥२॥ निश्चयव्यवहारे दाख्यां, गुणगुणी विभागे भाख्यां, चउ निक्षेपा अवतारी. अंतरनी शक्ति आपे, परमातम पदमां थापे, नवपदनी छे बलीहारी. नमुं. ॥४॥ पदपिंडस्थादिक भेदे, नव पद ध्याने सुख वेदे, सहु कर्म कलंक विडारी, नमुं. ॥५॥ नवपदनुं ध्यान धरीजे, आतमनी लक्ष्मी वरीजे, पामो भव जलधि पारी. नमुं. ॥६॥ नवपदनो साचो यंत्र, नवपदनो ए महामंत्र ए नवपद मंगलकारी नमुं. ॥७॥ स्मरो नवपद श्वासोश्वासे, सिद्धि ऋद्धिघटवासे बुद्धिसागर अवधारी. नमुं. ॥८॥ (भजनपद संग्रह भाग-२ पृष्ठ सं.९) For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR April-2019 Awakening (from past issue...) Acharya Padmasagarsuri The Aim of Life If a bud smiles, it blooms and becomes a flower. In the same manner, Prasannata or cheerfulness is essential for the flowering and development of life. The passions such as anger destroy this cheerfulness. The same thing happens even on account of passions like moha (infatuation) and mamata (attachment). Grief, worry, injustice, violence and fear also take away our cheerfulness. Fear arises from weakness and cowardice. According to a poet who deals with the sentiment of peace (Shantarasa) in this world fear arises from our relationship with all things except renunciation. A person will be fearless if he has renounced everything, because always our minds are occupied by the fear that we may lose the things that we wish to acquire and the things that we acquire. “सर्व वस्तु भयान्वितं भुविनृणां वैराग्यमेवाभयम् ॥” Sarvam Vastu Bhayanvitam Bhuvinrunam Vairagyamevabhayam All objects in this world cause fear; only renunciation brings fearlessness. When Arjuna asked Sri Krishna how one could conquer one's mind, Sri Krishna said; अभ्यासेन तु कौन्तेय! वैराग्येण च गृह्यते Abhyasena tu Kaunteya Vairagyena cha grihyathe Oh, Arjuna; the mind can be conquered and kept under control only through practice and renunciation. Who will not get the thoughts of renunciation when they For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर अप्रैल-२०१९ see the dead body burning in the cremation grounds? Who will not think that even he one day must leave all the wealth he has acquired through hard work and go alone? Even the loving members of our family do not come with us. We deck ourselves with wealth and palatial houses; but all those things will go in vain at the end.. The mind feels repentant when it has lost its opportunity. Money, property, beauty, youth and family are like a furious whirlwind. All things lose their lustre when the air (breath) moves away. Hence, feeling proud of those things is vain and futile. The whole world is like a choultry. We have to stay in it for a fixed period. After the fixed period is over, We have to go forward carrying the bundle of sins and merits. This is inevitable. Nobody can live permanently in a choultry. धनानि भूमौ पशवश्च गोष्ठे; कान्तागृहद्वारे जनः श्मशाने। देहश्चितायां परलोक मार्गे; कर्मानुगो गच्छति जीव एकः॥ Dhanani bhoomau pashavascha goshte kanta grihadware janah smashane Dehaschitayam paraloka marge karmanugo gachchati jiva ekah Wealth remains underground; (in those days people used to bursy their money secretly underground); cattle remain in the shed; wife comes up to the door of the house; the members of the family and other relatives come up to the cremation grounds; the body comes up to the funeral pyre. Beyond that the Jiva has to go on its journey alone carrying Karma. Life is like a borrowed jewel that gives a false pride and it is nothing more. (Continue...) For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR April-2019 ज्ञानसागरना तीरे तीर (योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराजः १) डॉ. कुमारपाल देसाई ए एकमां अनेक हता, अनेकमां ए एक हता। अध्यात्मयोगी आचार्यश्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी- जीवन मात्र बे पच्चीसी, परंतु एमना जीवनना पूर्वार्द्धमां एक उत्कट साधक अने धर्मजिज्ञासु आत्मानो आलेख जोवा मळे छ । एमना जीवनना उत्तरार्द्धमां जैनाचार्य तरीकेनी एमनी आगवी गरिमा नजरे पड़े छे। जिनशासनने पामवाना पोताना ध्येयनी आडे आवता तमाम अवरोधो एमणे पार कर्या अने विजापुरना शेठ नथ्थुभाईनो सहयोग सांपडतां जीवनउत्थानना सोपान पर एक पछी एक डगलुं आगळ भरता रह्या। एमांथी महान त्यागी, तेजस्वी अने शासनप्रभावक सूरिपुंगव समाजने मळ्या। ए महान योगी हता, उत्तम कवि हता, प्रवचन प्रभावक हता, मानवतानी भावनाथी परिपूर्ण हता, वज्रांग ब्रह्मचर्यन तेज धारण करता हता। विशेषे तो योगी आनंदघननी याद आपे एवा अने अढारे आलमनी चाहना मेळवनारा मस्त अवधूत हता। अध्यात्मयोगी योगनिष्ठ आचार्य बुद्धिसागरसूरीश्वरजीना ए समयनो पण विचार करवो जोईए के जे समये वहेम, अज्ञान अने भूतप्रेतना भयथी प्रजा बीकण बनेली हती, त्यारे एमणे निर्भयतानो सिंहनाद कर्यो अने प्रजामां मर्दानगीनुं प्रागट्य कयें । एक सत्यवीरनी सम्यक् दृष्टि आत्मसाधुता दर्शावती एमनी ग्रंथरचनाओ मात्र जैनसमाजमां ज नहीं, पण विराट् अने व्यापक जनसमूहमां आत्मज्ञाननां अजवाळां पाथरनारी बनी रही। देश गुलामीनी जंजीरोमां जकडायेलो हतो, त्यारे एमणे एमनी ग्रंथरचनाओ द्वारा आध्यात्मिकतानो शंखनाद फूंक्यो। समय जतां केटलीक परंपराओ झांखी पडे छे अने विस्मृत थाय छे, ए रीते योगसाधनानी परंपरा विसराती जती हती, त्यारे योगनिष्ठ आचार्यश्रीए पोताना ध्यानपूर्ण जीवनथी अने उत्कृष्ट ग्रंथरचना करीने योगनी पराकाष्ठा बतावी। बाह्याचारोमां डूबेला समाजने आत्माना ऊर्ध्व मार्गनो परिचय आप्यो अने अलौकिक आनंद आपती अध्यात्म-साधनानी ओळख आपी। गुजरातना महाकवि न्हानालाले योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजीने For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 10 अप्रैल-२०१९ अंजलि आपतां कडं, ‘ए तो खरेखर सागर हतो।' ‘एवो साधु संघने पचासे वर्षोए मळो तो संघना सद्भाग्य।' ‘ए तो साचो संन्यासी हतो।' 'एना दिलनी उदारता परसंप्रदायीओने वशीकरण करती।' 'बुद्धिसागरजी महानुभाव विरामतामां खेलता, संप्रदायमां तो ए शोभता, पण अनेक संप्रदायीओना समुदाय संघमां पण एमनी तेजस्विता अछानी नहोती।' ‘एमनी भव्य मूर्ति एमना आत्मस्वरूप जेवी भव्य हती। विशाळ मुखारविंद, उच्च अने पुष्ट देहस्थंभ, योगीन्द्र जेवी दाढी!' ‘एमनो जबरजस्त दंड! आपणे सौ मूर्तिपूजक छीए, अने ए भव्य मूर्ति अदृश्य थई छे, पण नीरखी छे तेमना अंतरमांथी ते जल्दी भुसाशे नहि ज।' 'आनंदघनजी पछी आवा अवधूत जैनसमाजमां थोडा ज थया हशे।' १४० ग्रंथोना रचयिता योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजीए जैन साधुनी जीवनचर्यानुं नखशिख पालन करवानी अने ध्यान-समाधिमां दीर्घकाळ पसार करवानी साथोसाथ १०८ अमर ग्रंथशिष्योनुं सर्जन कर्यु । योगनिष्ठ आचार्यश्री ग्रंथलेखन माटे एकांत पसंद करता हता अने ज्यारे ज्यारे विजापुर के महुडी होय, त्यारे भोयरामां बेसीने पलांठी वाळी, चूंटण पर डायरी टेकवीने लेखन करता हता। क्यारेक प्रातःकाळे तेओ ग्रंथरचना करवा बेसता हता, तो क्यारेक बपोरनी गोचरी पछी लखवा बेसी जता हता। आचार्यश्री लेखन करे, त्यारे पेन्सिल तैयार राखता हता अने दिवसभरना लेखन दरमियान दसथी बार पेन्सिल वपराती हती। क्यारेक ए बरुनी कलमथी पण लेखन करता हता। ___ एवं पण बनतुं के उपाश्रयना एकांत खूणे लखता होय, त्यारे कोई श्रावक के जिज्ञासु आवे तो ते योगनिष्ठ आचार्यश्रीने निःसंकोच मळी शकता हता। आचार्यश्री एमनी वात सांभळीने योग्य मार्गदर्शन आपता हता अने जेवा ए विदाय थाय के तरत ज पुनः लेखनमा प्रवृत्त थई जता हता। ज्ञानोपासना प्रत्ये एमनो एटलो भाव हतो के जीवनना अंतिम दिवसोमां पण एमने एमनी महेच्छा विशे कोईए पृच्छा करतां का हतुं के- 'मारुं लेखन कार्य तो मारी For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR April-2019 जिंदगीना अंत सुधी लगभग चालु ज रहेशे।' भारतीय संस्कृतिनी एक अजोड विचारधारा ते कर्मयोगनी विचारधारा छ। श्रीमद्भगवद्गीतामां श्रीकृष्णना मुखेथी अर्जुननो विषादयोग दूर करवा माटे कर्मयोगर्नु निरूपण थयु छे । आ कर्मयोग विशे श्रीमद्भगवद्गीताना श्लोको साथे एनुं जमाने जमाने महात्माओ, संतो अने विचारकोए विवेचन कर्यु छ । स्वामी विवेकानंद, श्री मणिलाल नभुभाई, लोकमान्य तिलक अने संत विनोबा जेवी व्यक्तिओ अने बीजा अनेक साधु-महात्माओए आना पर पोतानी दृष्टिथी विवरण-विवेचन कर्यु छ । ___आश्चर्यनी वात ए छे के योगनिष्ठ आचार्य बुद्धिसागरसूरीश्वरजीए कर्मयोगनी विचारधाराने दर्शावता ग्रंथ पर विवरण करवाने बदले पोते जाते २७२ संस्कृत श्लोको रचीने जीवननो निचोड आप्यो छे अने आ कर्मयोगमां एमना गहन तत्त्वज्ञान अने योगविद्याना विशाळ ज्ञाननो मधुर सुमेळ निरखवा मळे छ। आवा गहन विषयने आध्यात्मिक भावनानो ऊर्ध्व रसपूट आपीने एनी छणावट करी छे अने अध्यात्मज्ञान वडे आत्मोन्नतिना चरम शिखरे पहोंचवानी भूमिका रची आपी छ। __ १९६६मां 'कर्मयोग' ग्रंथ लखवानो विचार कर्यो। १९७०मां एना केटलाक श्लोकोनी रचना करी अने वि.सं. १९७३ना महा सुदी पूनमे रचायेला १०२५ पृष्ठना आ ग्रंथमां पचास पृष्ठनी तो प्रस्तावना छे अने जैन आचार्य द्वारा लखायेलो होवा छतां एना अनेकांतवादी दृष्टिकोणमां गीतानो जयध्वनि अने कुराननी आयतोनो दिव्य नाद संभळाय छ। आमां प्रवृत्तिमां निवृत्तिनो संदेश प्रवाही अने प्रासादिक गद्यमां दृष्टांत सहित आलेखवामां आव्यो छे। ___ आ ग्रंथ ज्यारे तैयार थईने छपातो हतो, त्यारे एना छापेला फर्मा लोकमान्य तिलकने अभिप्राय अर्थे मोकल्या हता, त्यारे लोकमान्य तिलके लख्यु, 'जो मने शरूआतमां खबर होत के तमे 'कर्मयोग' ग्रंथ लखी रह्या छो, तो में कर्मयोग विशे लख्यु न होत। आ ग्रंथ वांची हुं घणो प्रसन्न थयो छु । मने आनंद छे के भारत देश आवी ग्रंथरचना करनार साधु धरावे छ।' ___ योगनिष्ठ आचार्यश्रीए एमना जीवनमां आशरे दस हजारथी वधारे पुस्तको, वाचन कर्यु हतुं । आ पुस्तकोमा धार्मिक ग्रंथो तो खराज, परंतु एउपरांत इतिहास, समाजशास्त्र, राजनीति वगेरे विषयक ग्रंथोनुं वाचन कर्यु हतुं । विहारमा होय के चातुर्मासमां होय, पण एमनी वाचनयात्रा अविरतपणे चालु रहेती हती। वेद, उपनिषद, भगवद्गीता, पुराणो, सांख्य शास्त्रो, बौद्ध धर्म विशेना महत्त्वना ग्रंथो, बाईबल, कुरान वगेरेनुं वांचन कर्यु हतुं। For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर अप्रैल-२०१९ श्रीमद्भगवद्गीताना अढारे अध्याय एमणे वांच्या हता अने 'कर्मयोग' पुस्तकना रचयिता योगनिष्ठ आचार्यश्रीए आठ वखत 'भगवद्गीता'नुं वाचन कर्यु हतुं। ___सामान्य रीते सहु कोई एक गीताथी परिचित छे, ज्यारे आचार्यश्रीए सात गीताओनुं लेखन कर्यु, जेनां नाम छे आत्मदर्शनगीता, प्रेमगीता, गुरुगीता, जैनगीता, कृष्णगीता, अध्यात्मगीता अने महावीरगीता। ए ज रीते एमणे आत्मा अने अध्यात्म विशे घणी विवेचना करी। महायोगी आनंदघनजीना पदोना भावार्थमां रहेली आध्यात्मिकता प्रगट करवानी साथोसाथ 'अध्यात्मशांति, 'आत्मप्रदीप, ‘आत्मतत्त्वदर्शन', 'आत्मशक्तिप्रकाश' अने 'आत्मप्रकाश' जेवा ग्रंथो लख्या। आ रीते आचार्यश्रीए जगतने विशाळ ग्रंथसमृद्धि अने अनुपम विचारसृष्टि आप्यां। ____ अर्वाचीन युगमां भाग्ये ज कोई आचार्यए योगनिष्ठ आचार्य बुद्धिसागरसूरीश्वरजी जेटलुं वैविध्यपूर्ण काव्यसर्जन कर्यु हशे। एमना काव्यसर्जनोमां एमना आत्मलक्षी भव्य जीवननुं प्रतिबिंब पडे छ । एमनी दृष्टि काव्यना अनेक प्रकारो पर घूमी वळे छे। भजन, ऊर्मिगीत, राष्ट्रगीत, अवळवाणी, खंडकाव्य, काफी, चाबखा, गहुँली जेवा अनेक काव्यप्रकारो पर एमनी कलम आसानीथी विहरे छे अने एमां एमना हृदयना भावो अने आत्मानी मस्ती प्रगट थाय छ। ___ मात्र पंदरमावर्षे काव्यरचनानो प्रारंभ करनार बाळक (बेचरदास) बुद्धिसागरे दुहा, चोपाई, छंद अने सवैयामां प्रारंभिक कविताओ लखी, परंतु ए पछी एमनी निसर्गदत्त काव्यप्रतिभा एवी खिली के जेने परिणामे एमनी पासेथी विपुल काव्यसरितार्नु दर्शन थाय छ । एमनी विशाळ भावनासृष्टिने जोईए तो प्रभुभक्तिना काव्यथी राष्ट्रभक्तिना काव्य सुधी अने एथीय विशेष भावि युगनी कल्पना करतां काव्यो सुधीनी रचनाओ मळे छ । शास्त्रविशारद योगनिष्ठ आचार्य बुद्धिसागरसूरीश्वरजीए एक बाजु भजन, पद अने स्तवननी रचना करी, तो बीजी बाजु ऊर्मिगीतो, प्रकृतिकाव्यो अने राष्ट्रभक्तिनां गीतोनुं सर्जन कर्यु, तो वळी त्रीजी तरफ एमनां काव्योमां आध्यात्मिक मस्ती अने नवा जमानानो सूर प्रगट थाय छे । योगनिष्ठ आचार्यश्री बुद्धिसागरसूरिश्वरजी पासेथी नरसिंह, मीरां के आनंदघननुं स्मरण करावे एवी काव्यरचनाओ मळे छे, तो बीजी बाजु कव्वाली अने गझल जेवा आधुनिक साहित्यस्वरूपोमां करेली रचनाओ मळे छ। (क्रमशः) For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 13 April-2019 SHRUTSAGAR राजरत्न गणि कृत चार प्रत्येकबुद्ध सज्झाय तथा आर्य महागिरिसज्झाय गणि सुयशचंद्रविजयजी प्रस्तावना आपणे बधा निमित्तवासी आत्माओ छीए एटले कोई एकाद नानु मोटु कोईपण निमित्त मळता आपणा क्रोध, मान, मायादि कषायो सळगी उठे छे, तो वळी जरा, मृत्यु आदि दुःखना विशिष्ट निमित्तोथी आपणने वैराग्य पण थाय छे । जो के ते वैराग्य स्मशानियो होई ज्ञानगर्भित न होवाथी लांबो टकी शकतो नथी। ज्यारे आपणामांना केटलाक पुण्यवंत आत्माओने आमांना ज केटलाक बाह्य हेतुओ मोक्षमार्गमां कारणभूत थाय छे। आपणे त्यां नवतत्त्व प्रकरणमां सिद्धना १५ भेद गणावता ग्रंथकार महर्षिए उपरोक्त पुण्यवंत आत्माओनो उल्लेख 'प्रत्येकबुद्ध सिद्ध एवा नामथी एक भेद रूपे त्यां दर्शाव्यो छे। तेनो शब्दार्थ सामान्यथी विचारीए तो प्रत्यय एटले हेतु, तेनाथी बुद्ध एटले बोध पामेला ते प्रत्येकबुद्ध अने विशेषे विचारीए तो एकाद वस्तु जेवा के संध्याना रंगो, सफेद वाळ, युद्ध विगेरे कोई एकाद प्रत्ययने जोई जे जीवने संसारनी असारता समजाय अने तेनाथी बोध पामी, निग्रंथपणुं स्वीकारी जे सिद्धगतिनी प्राप्ति करे तेने प्रत्येकबुद्ध कहेवाय । आगमोमां उल्लेखित अंगिरस, इंद्रनाग, नारद, अंबड, औदालक विगेरे आत्माओ आवा ज प्रत्येकबुद्ध सिद्ध गणाय छे। कृति परिचय उत्तराध्ययनसूत्रमा पूर्वधर महर्षिए प्रत्येकबुद्ध सिद्धनी वात करता कलिंग आदि विभिन्न प्रांतोमां जन्मेला छता एक ज समये स्वर्गमांथी च्यवेला, समकाळे ज प्रव्रजित थयेला, तेमज साथे ज केवलज्ञान तथा निर्वाण पामेला करकंडु आदि ४ प्रत्येकबुद्धनुं जीवन वृत्तांत सुंदर रीते आलेख्यु छे । जेने आपणी भाषामा सामान्य कही शकाय एवा निमित्तोए तेमना आत्माने कई रीते जगाडी दीधो तेनी वर्णना करता त्यां ग्रंथकारश्रीए राजर्षि करकंडु वृषभनी जीर्णावस्था जोईने, महाराज दुमुह इंद्रस्थंभने हणायेली शोभावाळो निहाळीने, नमिराजा स्त्रीना कंकण ध्वनिना आलंबने तथा नृपति नग्गई मंजरीविहीन वृक्षने जोईने संसारथी विरक्त थया छता जातिस्मरण ज्ञान पामी For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 14 अप्रैल-२०१९ उत्कृष्टपणे संयमधर्मनी आराधना करता परमपदने पाम्या तेनी विगते वात वर्णवी छ। प्रस्तुत कृतिकारे तेज शास्त्रग्रंथनो आधार लई अति संक्षिप्तमां ते ४ प्रत्येकबुद्धना चरित्रने वणी लीधुं छे। साथे साथे तेमना नामो कई रीते करकंडु, दुमुह, नग्गई पड्या तेनी माटे पण कविए केटलाक पद्यो फाळव्यां छे । कविनी रचनाशैली सरळ छे जेथी विशेष विवरणनी जरूर जणाती नथी। काव्यान्तनी सज्झायमां कविए ते चारे प्रत्येकबुद्ध यक्ष मंदिरमा भेगा थता घटनाना निरुपण द्वारा ते चारेना जीवदळनी निर्मळता पर प्रकाश पाथरी, विशेष चारित्र वांचन माटे उत्तराध्ययनसूत्रना उल्लेख पूर्वक स्वनामान्त वडे काव्य- समापन कर्यु छ। ____बीजी ऐतिहासिक कृति पण वाचक राजरत्नजीनी अप्रगट रचना छ। प्रत सं. ७९३४७ मां हस्तप्रतना अंतिम पृष्ठ पर लखायेली ते कृतिमां कवि आर्य महागिरिजीनी निर्दोष आहारचर्यानो विशेषे परिचय करावे छे। उपरोक्त कृतिनी जेम आ कृति पण भाषाकिय दृष्टिए सरळ तथा सुबोध छ । कर्ता परिचय___कृतिकारे कृतिमां क्यांय पोताना गच्छर्नु नाम के गुरुपरंपरा नोंधी नथी तेथी ते समयादि विशे अटकळ (ओळख) करवी अघरी छे, पण जैन गुर्जर कविओ प्रमाणे १७मी शताब्दिमा तपागच्छीय लक्ष्मीसागरसूरिनी परंपरामां पं. जयरत्नना शिष्य उपा. राजरत्न नामे थया छे । जेमणे नर्मदासुंदरी रास, विजय शेठ-शेठाणी रास जेवी रचनाओ करी छे तेवी नोंध मळे छ । आपणी बीजी प्रतनी लेखन संवत् १७मां शतकना अंत्य भागनी छे तेथी पण अन्य राजरत्न कवि करता तपागच्छीय राजरत्ननो समय कृतिकार तरीके वधु संगत थाय छे, छता आ बाबत पर विद्वानो प्रकाश पाथरे तेवी आशा छ। प्रत परिचय__संपादनार्थे प्रस्तुत कृतिनी २ हस्तप्रतो आचार्य श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबामांथी मळी हती। जेमांनी ७९३४७ नंबरनी हस्तप्रत करता ७६५९४ नंबरनी हस्तप्रत प्रतिलेखननी दृष्टिए शुद्ध लागता तेने ज आदर्श तरीके स्वीकारी छे। जो के बीजी प्रत पण सारी तो छ ज पण तेमां इ, उ ना पाठभेदो बाद करता ३-४ पाठ भेदो छे तेथी ते अहीं टिप्पण रूपे स्वीकारी छे । आर्य महागिरि सज्झाय कृति प्रत नं. ७९३४७मां छे, तेना आधारे तेनुं संपादन करेल छ । खास संपादनार्थे बन्ने हस्तप्रतोनी नकल आपवा बदल आचार्य श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिरना व्यवस्थापकोनो खूब खूब आभार। For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir April-2019 SHRUTSAGAR 15 ॥ चार प्रत्येकबुद्ध सज्झाय ॥ GO॥ श्रीगुरुभ्यो नमः ।। राग-परगीउ ।। बलदेव मुनिवर तप तपइ नि ए देशी॥ देस कलिंगई नगरी चंपा, दधिवाहन नरनाथ रे। मात पदमावती-नंदन, भविक सदगति साथ रे ॥१॥ वंदीइ करकंडू मुनिवर, जेणई करिउ सवि त्याग रे।। देखी प्रत्यय चतुर चेत्यउ, थयु मुनि महाभाग रे वंदीइ... (आंचली) ॥२॥ एक वार राजा राज करंता, गोकुल देखणि जाइ रे। धवल एक सुभ लक्ष्य(क्षण) लक्षित, दीठउ वत्स समाइरे वंदीइ... ॥३॥ गोकुली प्रति कहइ नरेसर, एहनइं परिघल दूध रे। पाई पोढउ प्रबल करये, वृषभवंश विशुद्ध रे वंदीइ... ॥४॥ विविध युगतई भली भगतिइं, करिउं यौवनवंत रे। सींग तीखां खंध जाडु(ड)उं, कोमल पुच्छ' सुदंत रे वंदीइ.. ॥५॥ मलपतु विचरइ निरंतर, साहिउ न रहइ केम रे। भमर पांशु दोष वर्जित, ऊंचउ पर्वत जेम रे वंदीई.. ॥६॥ धाइ धूंसइ धवल धींगट', निबल वृषभनइं नित्त रे। त्रासवइ घण घाय घालइ, बाडूकई मयमत्त रे वंदीइ... ॥७॥ एक दिनि नृप-दृष्टि पडीउ, मुदित मातउ संड रे। चित्ति चमक्यु रूप देखी, अतुल बल परचंड रे वंदीइ... ॥८॥ दिवस केते वली नरपति, देखइ गोकुल-वृंद रे। एक देशइं पडियउ बरलइ, वृषभ गरढउ२ मंद रे वंदीइ... ॥९॥ हाली चाली नवि सकइ ते, जर-जर्जर तन्न रे। नेत्रि आंसू सींग ढलीआं, कुत्थित दीसइ कन्न रे वंदीइ... ॥१०॥ कहइ राजा वृषभ कुण ए, गोकुली कहि वात रे। स्वामि वल्लभ वृषभ तुम्हचउ, हुई तस ए धात५ रे वंदीइ... ॥११॥ १. दोडी, २. नाश करे, ३. मजबूत, ४. नबळा, ५. त्रास पमाडे, ६. गाढ, ७. प्रहार, ८. करे, ९. ताडूके, १०. उन्मत्त, ११. बबडाट करे, १२. घरडु, १३. मांदु/धीमुं, १४. खराब, /1.पाठांतर-पूंछ, १५. दशा, For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर अप्रैल-२०१९ सुणी व्यतिकर वृषभ केरउ, आव्यिउ मनि वयराग रे। अथिर तनु धन सजन-संगति, जस्यिउ संध्याराग रे वंदीइ.. ॥१२॥ यौवन जाई जरा व्यापइ, कारिमु ए पिंड रे। जीव अबल अनाथ असरण, धर्म एक अखंड रे वंदीइ... ॥१३॥ परिहरी सवि राज रामणि', मस्तकि कीधउ लोच रे। देवताइं वेस दीधउ, भलउ ए आलोचरे वंदीइ... ॥१४॥ विहरइ करकंडू मुनीसर, पहिलु प्रत्येकबुद्ध रे। लेइ फासू" भात पाणी, चरण करण विसुद्ध रे वंदीइ... ॥१५॥ उग्र तपी एकल-विहारी, नव कलपी विहार रे। करइ महाव्रत पंच पालइ, ब्रह्मचर्य उदार रे वंदिइ... ॥१६॥ साधु दशविध धर्मधारक, इंद्र करइ परसंस रे। जाति समरण लहइ केवल, भाजइ भविजन संसरे वंदीइ... ॥१७॥ आयु पूरण करी मुनिवर, पाम्या मुगति सुठाण रे। राजरत्न उवझाय हरखइं, करइ मुनिगुण गान रे वंदीइ... ॥१८॥ ॥ इति प्रथम प्रत्येकबुद्ध सज्झाय करकंडू मुनिनी ॥१॥ ॥राग-वइराडी। कुंता रे माता इम भणइ-ए देशी॥ प्रत्येकबुद्ध गुण गाईइ, दुमुह नामि रषिराय रे । अथिर रूप संसारखें, देखी थयुं निरमाय रे प्रत्येक... (आंचली)।१।। आरिज देस सोहामणउ, प्रसिद्ध पंचाल सुठामो रे। कांपिलपुर वर जाणीइ, जय राजा शुभ नामोरे प्रत्येक... ॥२॥ गुणमाला तस कामिनी, रूप कला सुविशालो रे। एक दिनि नरपति हरखसिउं, मंडावइ चित्रसालो रे प्रत्येक... ॥३॥ खणतां मुगट ज प्रगटीउ, सर्व रत्नमय सार रे। पूरी सभा निज सिरि धरिउ, मुख प्रतिबिंब उदार रे प्रत्येक... ॥४॥ ते देखी सवि जन कहइ, दुमुह नामि भूपाल रे। दैवत वस्तुथी सवि लहइ, ऋद्धि वृद्धि मंगलमालो रे प्रत्येक... ॥५॥ १६. प्रसंग, १७. शरीर, १८. प्रासुक, १९. शंका, २०. धारण कर्यु, / 2.पाठांतर-राज राणिम For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir April-2019 प्रत्येक... ॥६॥ प्रत्येक... ॥७॥ प्रत्येक... ॥८॥ प्रत्येक...॥९॥ प्रत्येक... ॥१०॥ प्रत्येक... ॥११॥ SHRUTSAGAR ___17 मुगट प्रभावई एकदा, जीतुं चंडप्रद्योत रे। निवड बंधन करी बांधीउ, जिम रवि उदइं खद्योत रे दिन केते नृप मोकलिउ, समुहुतु निज ठामो रे। मदनमंजरी निज कन्यका, परण्याविउ अभिराम रे दुमुह राजा राज भोगवइ, एक दिनि नगर मझारि रे। इंद्रध्वज उच्छव मांडीउ, जोई नरवर नारि रे थंभ एक सिणगारिउ, बहु चित्राम विचित्रो रे। उंचउ चिहुं दिसि दीपतु, बाजइ विविध वाजित्रो रे याचक जन जय जय करइ, नाचइ नवला पात्र रे। अगर चंदन अति महिमहइ, आवइ सहू तस यात्र रे राजाइं घणुं रे प्रसंसीउ, आपइ करह केकाण२३ रे । सात दिवस उछव करी, सहु पुहुतुं निज ठाण रे केतु काल अतीक्रमइ, हय चढी नरपति जाय रे । मारग वचि मलमूत्रमां, माणस ठेलइ पाय रे थंभ देखी नृप चीतवइ, धिग धिग अथिर संसारो रे। कारिमी सोभा देहनी, पर पुदगलिई हुइ सार रे कारिमुंरूप संसारमई, मत करुं गरव लगार रे। विणसंता रे वेला नही, जोउ सनतकुमार रे वयराग एणी परिइं आवीउ, रिद्धि त्यजी तृण जेम रे। वेस दीइ सासनदेवता, व्रत लीइ दुमुह सनीम रे सतरभेद संयम धरइ, सहइ परीसह धीर रे। उग्र क्रिया तप जप करइ, दुरित-दावानल-नीर रे जाती समरण पांमीउं, अनुक्रमि केवलज्ञान रे। सुर नर सेव करइ घणी, रिषिजी लहइ निरवाण रे एह नामइं सुख संपदा, एहथी अरथ भंडार रे। तरण-तारण समरथ कह्या, जिनशाससन शिणगार रे २१. आगीयो, २२. मुहूर्त सहित, २३. कयकान प्रदेशना घोडा, प्रत्येक... ॥१२॥ प्रत्येक... ॥१३॥ प्रत्येक... ॥१४॥ प्रत्येक... ॥१५॥ प्रत्येक... ॥१६॥ प्रत्येक.... ॥१७॥ प्रत्येक... ॥१८॥ For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 10 ॥१॥ श्रुतसागर अप्रैल-२०१९ दुमुह मुनीसर गुण थव्या, संखेपइं सुविचार रे । उवझाय राजरत्न रंगसिउं, कहइ धन एह अणगार रे प्रत्येक... ॥१९॥ ॥ इति श्री द्वितीय प्रत्येकबुद्ध दुमुह ऋषि सज्झाय ॥२॥ ॥पास जिणंद जुहारीइ-ए देसी॥ आरिज देश विदेह भलउ, मथुरा नगर उदार रे । युगबाहुसुत सुंदरू, मयणरेहा मात मल्हार रे साधु शिरोमणि गाईइ, नमिराजा अणगार रे। प्रत्यय देखी छांडीउ, राज रमणि परिवार रे साधु...(आंचली) ॥२॥ राज करंता एक दिनि, पूरव करम संयोगई रे। अगनि-झाल परि आंकरु, ऊपर्नु दाघज्वर रोग रे साधु... ॥३॥ रयणि न आवइ नींद्रडी, न रुचइ अन्न लगार रे। एक सहिस आठ कामिनी, विलवइ२५ वारोवार रे साधु... ॥४॥ राजवैद्य बोलावीआ, करइ अनेक उपाय रे। गोसीरष-चंदन घसी, नरपति अंगि लगाय रे साधु... ॥५॥ सोवन चूडी खलखलइ, नृप-श्रवणे न सुहावइ रे । मंगलीकनइ कारणिं, एक एक करइं२६ रखावइ रे साधु... ॥६॥ नमि राजाइं पूछीउं, कहिउ कंकण-वृत्तंत रे। वलय कोलाहलनी परिइं, जगमांहिं दुख अनंत रे साधु... ॥७॥ एकाकी अति सोहिलं, दुखदाई परिवार रे। राजा चित्तसुं चेतीउ, एक जिनधरम आधार रे साधु... ॥८॥ मनोरथ एह मनमांहिं धरी, न(नि)सि सूतु नमिराय रे । सुपन लहिउं एक अति भलउं, मेरु ऊपरि गजराय रे साधु... ॥९॥ झबकई राजा जागीउ, वेदन थई विसराल रे। जाती-समरणी सांभर्यु, सुर भव अतिहिं रसाल रे साधु... ॥१०॥ पाटि थापी निज पुत्रनइं, राज रमणि सवि छंडई रे । माया ममता परिहरी, नमि पुहुतु वनखंडई रे साधु... ॥११॥ २४. स्तव्या, २५. विलाप करे, २६. हाथमां, २७. बंगडी, २८. रात्रि, For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir _19 April-2019 SHRUTSAGAR सासनदेव तिहां दीइ, धर्म तणां उपगरणां' रे। यतन करी मुनि जालवइ, सिवसुखना अधिकरणां रे साधु.... ॥१२॥ इंद्र परिक्षा कारणइं, करी ब्राह्मण रूप रे । नमिराय रिषि आगलि रही, पूछइ प्रश्न सरूपरे साधु... ॥१३॥ हेतु कारणि प्रतिबोधीउ, इंद्र नमइं मुनि पाय रे । प्रश्न प्रत्युत्तर जाणयो, उत्तराध्ययन सखाय रे साधु... ॥१४॥ इंद्र प्रसंसा करइ घणी, धन धन तुं रिषिराय रे। त्रिणि प्रदक्षिणा साचवी, हरि पुहुतु निज ठाय रे साधु... ॥१५॥ व्याहार करइ महीमंडलई, प्रतिबोधइ जनवृंद रे। कर्म कठिन सवि क्षय करी, पाम्या परमानंद रे साधु... ॥१६॥ प्रत्येकबुद्ध मुनिवर तणा, गुण गावइ निसि दीस रे। राजरत्न उवझाय भणइ, तस घरि सकल जगीसरे साधु... ॥१७॥ ॥ इति तृतीय प्रत्येकबुद्ध नमिराज रिषि सज्झाय ॥३॥ ॥सीखिनि सीखिनि चेलणा-ए देशी॥ नगगई मुनिवर वंदीइ, जेणइं जीतुं काम। अथिर संसार जांणी करी, साधइ आतम काम नगगई...(आंचली)॥१॥ प्रत्यय देखी जागीउ, चुथउ प्रत्येकबुद्ध । सज्जन सहू को सांभलउ, लवलेस संबंध नगगई... ॥२॥ दक्षिण भरतइ दीपतु, गंधार सुदेस। पांडूवर्द्धनपुर वर भलउ, जिहां कमला निवेस नगगई... ॥३॥ राज करइ सिंहरथ तिहां, राजा परचंड। वयरी आण मनावीआ, परताप अखंड नगगई... ॥४॥ एक दिनि तुरंगई अपहरउ, पुहुतु वनमांहि। वास हेति परवत चढिउ, दीठउं मंदिर त्यांहि नगगई... ॥५॥ तिहां एक अदभुत कन्यका, मनमोहन रूप। पूछइ राजा कुण तुम्हे, कहु सकल सरूप नगगई.. ॥६॥ २९. साक्षी, ३०. विहार, ३१. लक्ष्मी, / 3.पाठांतर-उपकरणा, 4.पाठांतर-तुरंगयइ For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 20 अप्रैल-२०१९ नगगई... ॥७॥ नगगई... ॥८॥ नगगई... ॥९॥ नगगई... ॥१०॥ नगगई... ॥११॥ नगगई... ॥१२॥ श्रुतसागर जितसत्रुनुं पूरव भवई, हुं नारि चीतारि। करि वीवाह मुझसिउं ईहां, पहिलं प्रेम संभारि साधु वचने हुं इहां रही, विद्याधर-बाल। तात माहरउ व्यंतर अछइ, करइ सार संभाल वचन सुणी जाति स्मरउ, राजा ततकाल। पूरव प्रीतिइं परणीउ, कुमरी भूपाल चरित्र रासथी प्रीछयो, सघलउ अधिकार। संखेपइं सज्झायमां, कहिउ एह विचार प्रगनिप्ती विद्या ग्रही, आव्यि(वि)उ निज ठामि । प्रति दिन जावइ आववइं, हूउं नगगई नाम केता दिनि तिहां रही प्रिया, व्यंतर आदेसि । सुंदर नगर वसावीउं, थापी भुवन प्रदेसि पंच विषय सुख भोगवइ, एक दिनि राजान । क्रीडा करवा वनि गयु, परिकर असमान मारग वचि एक पेखीउ, अभिनव सहकार। कुंपलि मांजरि पत्रनु, नवि दीसइ पार राजाइं एक मंजरि ग्रही, नीसरतां हाथि। एक एक मांजरि कुंपला, लीधां सघलइ साथि काष्टभूत आंबउ कीउ, फूल कुंपल बोडि। वलतां नगगई पूछीउ, कहुं एसी खोडि ए सरूप आंबा तणउं, देखी चिंतइ राय। अथिर सोभा एह देहनी, खिणमांहिं जाय अथिर मानव- आयुर्खा, डाभ-अणी३३ जिम उस । अथिर राजरिद्धि संपदा, डाहुन करइ सोस४ राजरिद्धि सवि परिहरी, लीधउ संयम भार । दीधउ सासनदेवता, साधुवेस विचार ३२. प्रज्ञप्ति विद्या, ३३. दर्भनो अग्रभाग, ३४. खेद नगगई... ॥१३॥ नगगई... ॥१४॥ नगगई... ॥१५॥ नगगई... ॥१५(१६)॥ नगगई... ॥१७॥ नगगई... ॥१८॥ नगगई... ॥१९॥ For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 21 April-2019 SHRUTSAGAR वड वयरागी नगगई, मुनि प्रत्येकबुद्ध । गांम नगरि पुरि वहिरता", पालइ चारित्र शुद्ध नगगई... ॥२०॥ राग द्वेष सवि परिहरिया, सम शत्रुनइ मित्र । एहवा मुनिवर वांदता, तनु थाय पवित्र नगगई... ॥२१॥ नगगई मुनि केवल लही, पुहुता गति सुठाय । राजरत्न वाचक सदा, मुनिवर गुण गाइ(य) नगगई... ॥२२॥ ॥ इति चतुर्थ प्रत्येकबुद्ध नगगई रूषि रास सज्झाय संपूर्णः॥ ॥राग-गुडी।। वाडी फूली अति भली- ए देसी ॥ करकंडू दो(दु)मुह मुनी(नि) मनमोहन रे, नाम नगगति ए च्यार साधु मनमोहन रे। व्याहार करंता आवीआ मनमोहन रे, क्षितिप्रतिष्ठित नगरि उदार साधु मनमोहन रे चिहुं दिसिथी च्यारई मल्या मन..., चुमुहइ देवकुलि आवि साधु...। यक्ष साधु सेवा करइ मन..., च्यार रूप करी भावि साधु... ॥२॥ उपसमरस भरि झीलता मन..., ममता नही लगार साधु...। धर्मगोष्ठि चरचां करइ मन..., ऊह प्रत्यूह अपार साधु... ॥३॥ कंडू हेति करकंडूनइ मन..., हाथि शिलाका एक साधु...। देखी दुमुह मुनी(नि) कहइ मन..., एतलु सिउं अविवेक साधु... ॥४॥ दुमुह प्रतिइं नमि मुनि कहइ मन..., चोयणा त्यजी नही राज साधु...। नगगई मुनि कहइ नमि सुणउ मन..., तुम्ह निंद्या कसिउं काज साधु... ॥५॥ करकंडू मुनिनइ र(रु)च्यिउं° मन..., साचु एह विचार साधु...। च्यारइ साधु चारित्रीआ मन..., नही अभिमान लगार साधु... ॥६॥ च्यारइ जाती स्मरणीया मन..., च्यारइ वडा महंत साधु...। च्यारइ केवल पांमीआ मन..., कीधउ भवनुं अंत साधु... ॥७॥ ॥१॥ ३५. विचरण करता, ३६. चौमुख, ३७. कहे (?), ३८. प्रत्युत्तर (?), ३९. ?, ४०. गम्यु For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 22 श्रुतसागर अप्रैल-२०१९ एकइं समइ ए च्यारिनइं मन..., जन्म दीक्षा वली ज्ञान साधु...। मुगति गया एकइं समइ मन..., जेह भणी च्यारिनुं मान साधु... ॥८॥ प्रत्येकबुद्ध घणा हूआ मन..., वीतरागना शिष्य साधु...। ते सवि कहिनई वंदना मन..., सहिसगमे जे दख्य साधु... ॥९॥ साधु तणा गुण गाइतां मन..., हुइ परमानंद साधु...। मनवांछित फल पांमीइ मन..., भाजइ सघलु दंद३ साधु... ॥१०॥ उत्तराध्ययननी वृत्तिमां मन..., एह तणा संबंध साधु...। ते वांची निज चित्ति धरी मन.., कीधउ सज्झाय बंध साधु... ॥११॥ नाम जपंता साधुनां मन.., पातक जाइ दूरि साधु...। राजरत्न पाठक ऊलटइ मन..., गुण गाइ आनंद पूरि साधु... ॥१२॥ ॥इति च्यार प्रत्येकबुद्धि रिषि सज्झाय समाप्ता ॥छ।। उपाध्याय राजरत्नगणिकृता शिष्य-प्रशिष्यवाच्यमानाश्चिरं जयंतु ॥ इति भद्रम् ॥ श्रीश्रमण संघस्य कल्याणमस्तु ॥छ ॥श्रीः ॥ श्रीमहागिरिसूरि सज्झाय ॥१॥ ॥राग-वयराडी॥ श्रीथूलिभद्रसूरि पटोधरू, दस पूरवधर धीर रे। महागिरि सुहस्ति दोई गणधरू, करम-महामल-नीर रे महागिरिसूरि मुझ मनि वस्यउ, उपशमरस भंडार रे। जिन कलपीनी तुलना करइ, जांणी शुद्ध आचार रे महा...(आंचली)॥२॥ सुहस्तिसूरि गुरुभाईनइं, सुंपी गछनु भार रे। आठमु पाट तेह भोगवइ, पालइ मुनि-परिवार रे उग्र क्रिया मुनि आदरइ, जाणी जिननु विछेद रे। उज्झित ४ भात लेइ सूझतु, ए मोटु तप-भेद रे गछ-नेष्टाइं५ वनमांहिं रहइ, महागिरिसूरि गुरुराय रे। अनुक्रमि पाडलपुरि ६ गया, विहरता दोई गुरुभाय रे महा... ॥५॥ ४१. कोईने, ४२. हजारो, ४३. द्वंद, ४४. भूखो (?), ४५. गच्छनो त्याग करी (?), ४६. पाटलीपुत्र, महा... ॥३॥ महा ... ॥४॥ For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir April-2019 महा... ॥६॥ महा... ॥७॥ महा... ॥८॥ महा... ॥९॥ महा... ॥१०॥ SHRUTSAGAR अभिनव सुभूति श्रावक गृहइं, एकवार सुहस्तिसूरिंद रे। पुहुता कुटुंब वंदाविवा, दिइ प्रतिबोधना वृंद रे पंच समति गुपति त्रिहुँ, गुपतु गुणनिधि साध रे। अंगणिथी पाछा वल्या, जांणी घणुं संबाध रे सूहस्तिसूरि प्रतिं पूछींउ, भगवन एह कुण संत रे। सूरि कहइ मुझ एह गुरु, मोटउ तपसी महंत रे छट्ठ अट्ठम तप पारणइ, आंबिल तपनु उद्धार रे। क्रोधादिक सवि परिहरी, करइ नव कलपी विहार रे एहना गुण एक मुखिं करी, कहितां नावे पार रे। उज्झित अशन प्रमुख लेई, धन धन एह अणगार रे वचन सुणी सवि गृहपति, जांणी पात्र-विशेष रे। बीजइ दिनि उज्झित करी, आपइ अशन अशेष रे ते देखी मुनि चमकीआ, एह नहीं सूझतुं भात रे। सुहस्तिसूरि कालि जाणीइ, श्रावकनई कही वात रे विहिर्या - विण मुनिवर वल्या, गुराहीनइंइ कहि ताम रे। कालि तुम्हे मुझ गुण स्तवी, कीधउ विरूउ'° काम रे रिषिजी मनस्युं चेतीया, मुंकिउं मुनि प्रतिबंध रे। गुरु गछनेष्टा सहु त्यजी, एक जिनधरम संबंध रे आतम साधन साधवा, उग्र तपकरइ अभिराम रे। एकलमल' महीतलि फरइ, सत्रु मित्र सम परिणाम २ रे पहिलं कुल घर जन त्यज्यां, पछइ गुरु गछ परिवार रे । भात सदोष जाणी करी, स्वेछाई१२ करइ विहार रे त्रीस वरस गृह मांहिं रह्या, वरस चालीस व्रतभार रे। युगपह पद त्रीस वरस तां", आयु शत वरस सार रे महा... ॥११॥ महा... ॥१२॥ महा... ॥१३॥ महा... ॥१४॥ महा... ॥१५॥ महा... ॥१६॥ महा... ॥१७॥ ४७. आंगणथी, ४८. वहोर्या, ४९. गुरुने, ५०. खराब, ५१. एकलो, ५२. भाव, ५३. पोतानी इच्छाए, ५४. त्यां सुधी. For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 24 श्रुतसागर अप्रैल-२०१९ बहु तप जप संयम धरी, अणसण करीअ ऊचार रे। पुहुता रे देवविमानमां, लहसइ सुख ऊदार रे महा... ॥१८॥ प्रवचनमांहिं एह सूरिनु, संखेपई संबंध रे। उपदेशमालानी वृत्तिमां, विस्तारइं ए प्रबंध रे महा... ॥१९॥ ते वांची रे निज चित्ति धरी, संखेपइं लवलेस रे। थूलभद्रसूरि-सीस गाईउ, एहना गुण छइ असेसरे महा... ॥२०॥ वइरागी गुणसागरू, महागिरिसूरि सुजाण रे। राजरत्न वाचक गुण स्तवई, प्रहि ऊगतई सुविहाण ६रे महा... ॥२१॥ ॥ इति महागिरिसूरि सज्झायः ॥ पंडित श्री कमलराजगणि लखितां शुभं भवतु ॥ संवत् १६९५ वर्षे । ५५. घणां, ५६.सवार. श्रुतसागर के इस अंक के माध्यम से प. पू. गुरुभगवन्तों तथा अप्रकाशित कृतियों के ऊपर संशोधन, सम्पादन करनेवाले सभी विद्वानों से निवेदन है कि आप जिस अप्रकाशित कृति का संशोधन, सम्पादन कर रहे हैं अथवा किसी महत्त्वपूर्ण कृति का नवसर्जन कर रहे हैं, तो कृपया उसकी सूचना हमें भिजवाएँ, जिसे हम अपने अंक के माध्यम से अन्य विद्वानों तक पहुँचाने का प्रयत्न करेंगे, जिससे समाज को यह ज्ञात हो सके कि किस कृति का सम्पादनकार्य कौन से विद्वान कर रहे हैं? इस तरह अन्य विद्वानों के श्रम व समय की बचत होगी और उसका उपयोग वे अन्य महत्त्वपूर्ण कृतियों के सम्पादन में कर सकेंगे। निवेदक सम्पादक (श्रुतसागर) For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 25 April-2019 गुजराती बोलीमा विवृत अने संवृत ए-ओ चुनीलाल वर्धमान शाह विवृत बैठा प्राकृत-अपभ्रंश-उर्दू ई० हिंदी-राजस्थानी-मारवाडी ई० गुजराती बइठ मइलउं मला करइ खइर (सं० खदिर) खइर (ऊ० खयर) हइरान (ऊ० हयरान) हैरान चउत्थउ चॉथो चउक्क चौक चौथा चॉक ऑलिया कॉल सअउ (सं० शतः) सौ अउलिया (ऊ० अवलिया) औलिया कउल (ऊ कवल) कौल संवृत* प्राकृत-अपभ्रंश-उर्दू इ० (सं० नगर) नयर-नहर (सं० अन्यतरकं) अन्नयरउं-अनइरउं (ऊ० वगयरा) वगइरा (हिं० वगेरह) (सं० कदली) कमली-कइली (सं० मयूर) मऊर गुजराती नेर(चांपानेर) अनेरु वगेरे केळ(केळ्य) मोर *सामान्य रीते ज्यारे संस्कृत-प्राकृतनो कोइ मुख्य तथा प्रयत्नयुक्त वर्ण के दीर्घ स्वर इ रूपने पामे छे, त्यारे ए इ-उ उच्चारमा प्रयत्न मांगे छे अने तेनो संवृत ए-ओ थाय छे. For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रुतसागर www.kobatirth.org मयूर-मऊर-मोर गौरकम्-गर्डरअं-गोरूं मोक्तिकं मउत्तियं-मोती 26 (सं० ननान्दापति) नणंदवइ-नणंदउइ नणंदो संवृत- विवृतनां सूचक उदाहरण | मधुर-महुर- म्हउर- म्हॉर (मॉर) गौरव - गउरव-गॉरव मुखवर्तिकं-मुहवचट्टियंम्ह॑उटिय॑म्हॉतियुं (मोतियुं) गौडीय - गउडी - गॉडिया गौरी-गउरी-गोरी चतुर्वत्मकम्-चऊवदृउं-चौटुं चौटुं-चउवचट-चॉवट चतुर्वेदी-चऊवेइ-चौवे-चॉबो चतुर्विंश - चंउवीस-चटॉवीस कहर-कयर-कइर-कॅर Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नगर-नयर-नइर-नेर यत्-जत-जअं-जे जय-जइ-जॅ अइ-अउ अने अइ-अउ एवा प्रयत्नभेदने आधारे विवृत-संवृत ए-ओ नो सामान्य नियम वर्ततो होवा छतां प्रांतभेद, बोलीभेद अने तेने परिणामे उच्चारमां प्रयत्ननो भेद वर्ततो होवाने कारणे जुदा जुदा शब्दोना विवृत-संवृत उच्चारोमां पण भेद जोवामां आवे छे। विक्रमनी सत्तरमी सदी पछी विवृत उच्चार प्रचारमां आव्यो अने ते पूर्वे बहुधा संवृत उच्चार होय एम जूनां हस्तलिखित काव्योनी जोडणी उपरथी अनुमान करी शकाय छे। अनुमान एटला माटे के ए जोडणीमां एटला बधा विकल्पो जोवामां आवे छे अने कवितामां बेसाडेला प्रासो ए लखाण उपरथी एवा चित्र-विचित्र जणाय छे के ते काळमां वस्तुतः केवा उच्चारो थता हशे अने चोक्कस स्वरयुग्मोमा कया स्वर उपरना प्रयत्नथी केवो उच्चार करातो हशे ते निश्चितरूपे कहेवुं मुश्केल थइ पडे छे । अप्रैल-२०१९ सं० कथति नुं कहइ, कहि, किहि, केह, कहे, केहे एटलां रूप सत्तरमी सदी सुधीमां मळे छे । कहँ उच्चार सत्तरमी सदीमां प्रचारमां आव्यो, ते पूर्वे तेनो संवृत उच्चार हतो। कहइ नो राजस्थानीमां तथा व्रजभाषामां कहै उच्चार थयो ते साथे ज गुजरातीमां कहॅ थयो होय एम जोइ शकाय छे। आ मात्र जूनी लखाणनी भाषा उपरथी; वास्तविक For Private and Personal Use Only +हिंदीमां ए ज रीते बहिणीपति- बहनउइ-बहिनोइ-ब्हनोइ थाय छे, परन्तु गुजरातीमां पति-वइ-उइ न थतां वइनुं वी थवाथी ब्ह्रेवी रूप थयुं छे, जेमके गढपति-गढ़वइ- गढवी ( तडवी - संघवी ई0) एक शब्दना बे जूदां जूदां रूपो प्रचलित थयां होवानुं उदाहरण पण आने कही शकाय . Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 27 April-2019 बोलीमां कहइ' कहि' किहि केह' कहे कहै, केहे ए बधानी वच्चे जे कांइ प्रयत्नभेद होय ते केवो हशे ते कहेवानुं आपणी पासे साधन नथी । पंदरमी सदीनी कवितामां गयउ^(गयो) त्रण लघुने स्थाने वपरायलो, तेमज हतउ + ए लघु-गुरू (हतो) एम बे श्रुतिओने स्थाने वपरायेलो जोवामां आवे छे। अत्यारे गुजराती बोलीमां गयों अने हतों ए बेउमां छेल्ला ऑ अर्धविवृत्त छे, ते जोतां गयउ (गयौ) अने हतंउ (हतौ) एवा उच्चारो स्वाभाविक मनाय; परंतु छंदोमानमां त्रण लघुनां उच्चारण करवा माटे गयउ उच्चारण ज बंध बेसे छे । उच्चारण विषेनी आटली माहिती आपणे मात्र छंदोबद्ध कविताने आधारे ज तारवी शकीए छीए, अने कवितामां लघु-गुरू तथा उच्चारणादिनी छूट लेवाती होय ज, एटले गद्य बोली उच्चारणमां केवी हशे तेनो निर्णय करवानां आपणी पासे कांइ निश्चयात्मक साधनो नथी । मात्र ते वखते विवृत उच्चार नहोतो एम मानवानुं साधन एटलुं छे के प्राकृत अपभ्रंशनां स्वरयुग्मो अइ-अउ मांना अ उपरना प्रयत्ननो त्यारपछी संकोच थयो अने लेखनमां कहइ नुं किहि तथा कहि अने बइठा नुं बिठा* रूप प्रचलित थयुं, जे संवृततानुं सूचन करे छे। । महाप्राण ह ने संवृत-निवृत ए ओ मळेला होय छे अने उच्चारमां इ नो सर्वथा किंवा विकल्पे लोप थाय छे, त्यारे ए संवृत-विवृत ए-ओ तेनी पूर्वना व्यंजननी साथे मळी जाय छे । पहिलुं –प्हइलुं –प्हॅलुं – पॅ’लुं - - - (सं० गृहतकः) घयलउ-घइलउ - चॅलों * मुखडुं - मुहडुं - म्हउडुं – म्हॉडुं - मॉढुं महोटुं – म्होटुं - मोटुं (३) एक ज काळना अने एक ज लेखकनां लखाणोनी जोडणीमां एक ज शब्दनां जूदां जूदां स्वरुपो जोवामां आवे छे, ते उपरथी बे अनुमान थइ शके छेः एक अनुमान ए के लेखननी शुद्धि माटे पूरती काळजी राखवामां नहि आवती होय; बीजुं ए के उच्चारण तथा प्रयत्न विषयक विकल्पो एटला बधा हशे के अमुक शब्दनुं शुद्ध उच्चारण कयुं अने तेना लेखननुं शुद्ध स्वरूप कयुं ते सामान्य प्रकारना लेखको के कविओ निश्चित करी १. मुंज कहइ मणालवइ (प्रबंधचिंतामणि - पंदरमी सदी), २. राय कहि सुत हूया गुणी (गुणमेरूकृत पंचोपाख्यान-१६मी सदी), ३. वलता नारद इम किहि (विष्णदासनं सभापर्व-१७मी सदी), ४. प्रसाद पुरी तारो कनैयो सुतो (नरसिंह महेतानी हारमाळा-पद ४४, १६मी सदी), ५. गयउ गेहिसु कीचक नीच थि..... पसरि पइसई केतकिई हतउ (शालिसूरिनुं विराट पर्व - पंदरमी सदी) * गंगानि उपकण्ठि बिठा ये (हरिदासनं आदिपर्व -सत्तरमी सदी) * जूनी गुजराती कवितमां गेहेलो-घेहेलो एवी जोडणी पण मळे छे. For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 28 श्रुतसागर अप्रैल-२०१९ शकता नहि होय, एटले छंदोमान के ढाळना मेळने माटे एक ज शब्दना मनफावता पृथक्-पृथक् उच्चारणो स्वीकारी तेने अनुरूप जोडणी राखी लीधी हशे। विक्रमनी १७मी सदीना हरिदासनी नीचेनी चार पंक्तिओ ए स्थितिनुं दर्शन करावे छेः मन्दिर मध्य ऊभा रह्या ऋषिनि करी प्रणाम; आप्यूं आसन एकला, पछि बिठा एकि ठामि. देवयानी दुःख धरती, आवि आणि ठाम्य; प्रतिज्ञा नवि रही कुलनी, चूक्या एणि ठाम्य. हरिदासर्नु लेखन कांइ खास अशुद्ध शैली- नथी, छतां ठामि नो अनुप्रास प्रणाम साथे मेळव्यो छे, ते उपरथी एम लागे छे के ठामि नो उच्चार ठाम (आंखमांना लघु प्रयत्न य कारना जेवो) करवानो तेनो इरादो हशे, अने ते माटे तेणे ह्रस्व इ वापर्यो हशे । बीजे स्थळे तेणे ठाम्य चोक्खो लख्यो छे. वस्तुतः तेणे साधित शब्दोमां जे ह्रस्व इ वापर्यो छे ते अइ नुं संकुचित रूप छे अने तेनो उच्चार ए कार जेवो संभवे छे, ते आ प्रमाणे: मन्दिर मध्य ऊभा रह्या, ऋषिने करी प्रणाम, आप्यूं आसन एकला, पछे बेठा एके ठाम. देवयानी दुःख धरती, आवे आणे ठाम्य, प्रतिज्ञा नवि रही कुळनी, चूक्या एणे ठाम्य. आ प्रमाणे इ कारनो उच्चार साधित शब्दोमां ए कार संभवे छे, छतां नवि मां ह्रस्व इ कार कांतो शुद्ध वापर्यो होय, किंवा लघु प्रयत्न यकार माटे-नव्य एवा उच्चारण माटे वापर्यो होय, जेम ठामि शब्दमां पण करवामां आव्यु छ। लेखन, उच्चारण अने प्रयत्नमां विकल्पो तेमज अराजकता ए काळे केवां हशे तेनो आ उपरथी ख्याल आवे छ। भाषाना उच्चारणनी स्थिरता माटे विक्रमनुं १७मुं शतक मंथनकाळ रूप हतुं एम जोई शकाय छे। (क्रमशः) बुद्धिप्रकाश, पुस्तक ८२, अंक १मांथी साभार For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR April-2019 श्रुतसेवा के क्षेत्र में आचार्य श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर का योगदान राहुल आर. त्रिवेदी सम्पूर्ण भारतवर्ष में अनेक संस्थाएँ स्थापित हैं जो धार्मिक, सामाजिक, शैक्षणिक आदि क्षेत्रों में उल्लेखनीय व अनुकरणीय कार्य कर रही हैं । ये संस्थाएँ अनेक प्रकार की होती हैं, प्रथम वे जो मुख्य रूप से व्यक्ति के धार्मिक व आध्यात्मिक उत्कर्ष को ध्यान में रखकर स्थापित की जाती हैं। ऐसी संस्थाओं का मूल उद्देश्य व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास करना है। दूसरी वे संस्थाएँ, जो व्यक्ति या समाज के भौतिक विकास को ध्यान में रखकर स्थापित की जाती है। ऐसी संस्थाओं का मूल उद्देश्य बिना किसी भेदभाव के मानवसमाज की सेवा करनी होती है । आज हम एक ऐसी संस्था की बात करने जा रहे हैं कि जिसमें इन दोनों प्रकारों का सुभग समन्वय है । एक ऐसी संस्था जो देश व समाज की विरासतों के संरक्षण व संवर्द्धन के उद्देश्य को ध्यान में रखकर स्थापित की गई है, जहाँ बड़े पैमाने पर जैनधर्म, भारतीय संस्कृति, इतिहास तथा पुरातत्त्व से सम्बन्धित दुर्लभ वस्तुओं, पुस्तकों व पाण्डुलिपियों का विशाल संग्रह किया गया है तथा उसका विस्तृत व अनूठा सूचीकरण कर समाज के समक्ष प्रस्तुत करने का भगीरथ कार्य किया जा रहा है । यह संस्था आज श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र के नाम से देश-विदेश में प्रसिद्ध हो चुकी है । श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा आज इतना प्रसिद्ध हो गया है कि इसके साथ तीन नाम जुड गए हैं- राष्ट्रसन्त आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. की प्रेरणा से विकसित महावीरालय, आचार्य श्री कैलाससागरसूरिजी म.सा. की पावन स्मृति (गुरुमंदिर) तथा अपने आप में अनुपम आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर। इनमें से किसी एक का भी नाम लेने पर स्वतः ये तीनों स्वरूप उभरकर सामने आ जाते हैं। आज ये तीनों एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं। ___ गच्छाधिपति महान जैनाचार्य श्रीमत् कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. की यह इच्छा थी कि अहमदाबाद और गांधीनगर के बीच एक ऐसी संस्था की स्थापना हो, जहाँ अध्यात्म के साथ-साथ ज्ञान की भी सुन्दर साधना की जा सके, उनके प्रशिष्य युगद्रष्टा, राष्ट्रसंत, आचार्य प्रवर श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. ने पूज्य गच्छाधिपति के सपनों को साकार करते हुए श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र तथा For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 20 श्रुतसागर अप्रैल-२०१९ इसके परिसर में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर की स्थापना करवाई, जहाँ आज धर्म, आराधना और ज्ञान-साधना की एकाध प्रवृत्ति ही नहीं वरन् अनेकविध ज्ञान और धर्म-प्रवृत्तियों का महासंगम हो रहा है । आज आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर अनेकविध प्रवृत्तियों में अपनी निम्नलिखित शाखाओं-प्रशाखाओं के सत्प्रयासों के साथ धर्मशासन श्रुतसंरक्षण की सेवा में योगदान दे रहा है। राष्ट्रसन्त आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. ने अपनी भारत-भर की पदयात्रा के दौरान, छोटे-छोटे गाँवों में जा-जाकर लोगों को प्रेरित कर असुरक्षित, उपेक्षित एवं नष्ट हो रही भारतीय संस्कृति की इस अमूल्य निधि को एकत्र किया। यहाँ इस अमूल्य ज्ञान-सम्पदा को विशेष रूप से निर्मित व ऋतुजन्य दोषों से मुक्त कक्षों में संरक्षित किया गया है तथा क्षतिग्रस्त प्रतियों को रासायनिक आदि प्रक्रिया से सुरक्षित किया जा रहा है। ___ ज्ञानमंदिर में लगभग २,००,००० से अधिक प्राचीन दुर्लभ हस्तलिखित ग्रंथ तथा ३,००० से अधिक प्राचीन व अमूल्य ताडपत्रीय ग्रंथ संगृहीत है। इनमें आगम, न्याय, दर्शन, योग, व्याकरण, इतिहास आदि विषयों से संबंधित अद्भुत ज्ञान का सागर है। इन हस्तप्रतों का डिजीटल स्केनिंग हो रहा है। अभी की वर्तमान स्थिति में हस्तप्रत १,२६,०१० व गोटका प्रत ६८७ को मिलाकर कुल १,२६,६९७ हस्तप्रतों के ४५,४८,१८२ पत्रों का स्केनिंग हो चूका है। इसके अतिरिक्त २५ अन्य ज्ञानभंडारों की ४,५६४ हस्तप्रतों के ९,३२,६४६ पृष्ठों के झेरोक्ष तथा ५ ज्ञानभंडारों की ९६ माइक्रोफिल्म के रोल भी उपलब्ध हैं। इतना विशाल संग्रह किसी भी ज्ञानभंडार के लिए गौरव का विषय हो सकता है। हस्तप्रत सूचीकरण इस भांडागार में संरक्षित प्राचीन व दुर्लभ हस्तप्रतों में से वर्तमान में जैन हस्तप्रतों के सूचीकरण का कार्य चल रहा है, जिसे कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची' नाम से प्रकाशित किया जाता है। अद्यावधि कुल २७ भागों में १,२४,०२५ नंबर तक की कुल ८३,१४९ जैन प्रतों की सूचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। इस सूचीकरण कार्य को लगभग ५०-५५ भागों में प्रकाशित करने की योजना है । इस सूचीकरण की अवधारणा को और विकसित करने में तथा ग्रंथालय विज्ञान की प्रचलित प्रणालियों के स्थान पर महत्तम उपयोगिता व सूझबूझ का उपयोग कर यहाँ के पंडितवों, प्रोग्रामरों तथा कार्यकर्तागण श्रुतसेवी व श्रुतोद्धारक आचार्य श्री अजयसागरसूरीश्वरजी म. सा. के मार्गदर्शन में अपनी शक्तियों का यथासंभव महत्तम उपयोग कर रहे हैं। For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 31 SHRUTSAGAR April-2019 अन्य ज्ञानभंडारों की हस्तप्रतों का सूचीकरण आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर में कुल ३४ ज्ञानभंडारों में संगृहीत १,०५,३७८ हस्तप्रतों के २७ लाख से अधिक पृष्ठों का स्केन कराकर उनका पीडीएफ उपलब्ध कराया है। इस विशेष कार्य में शेठ श्री आणंदजी कल्याणजी पेढी एवं श्री जिनशासन आराधना ट्रस्ट का बहुमूल्य योगदान रहा है। आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर की शहरशाखा अहमदाबाद के पालडी विस्तार में वर्ष २०१६ से अन्य ज्ञानभंडारों की हस्तप्रतों के सूचीकरण का कार्य चालू कराया गया है। इस सूचीकरण कार्य में स्थानीय जैन-श्राविकाओं को जोड़ा गया है, जो अपने दैनिक जीवन में से प्रतिदिन कुछ समय निकालकर श्रुतसेवा के इस पवित्र कार्य में अपना योगदान दे रही हैं । इन्हें विशेषज्ञ विद्वानों के द्वारा सूचीकरण की पद्धति, प्राकृतभाषा वर्ग, प्राचीन लिपि की जानकारी तथा प्रूफरीडिंग की ट्रेनिंग दी गई है। इन वर्गों में अहमदाबाद शहर के अन्य जिज्ञासु लोगों ने भी भाग लिया था। सूचीकरण के इस कार्य में १४ से १५ श्राविकाएँ कार्यरत हैं, इनमें कुछ सेवाभावी श्रुतभक्त निःशुल्क सहयोग दे रही हैं। ___इस सूचीकरण कार्य के अन्तर्गत अब तक तीन भंडारों की हस्तप्रतों की सूचनाएँ भरने का कार्य पूर्ण हो चुका है तथा अन्य भंडारों का कार्य प्रगति पर है। आशा है कि सूचीकरण का यह कार्य पूर्ण होने पर ये सूचनाएँ वाचकों तथा विद्वानों के संशोधनसंपादन कार्य में बहुत उपयोगी सिद्ध होगी। (क्रमशः) नवपदमहिमा स्तुति अरिहंत सिद्ध आचार्ज पाठिक, साधुम्हा गुणवंता जी, दरसण ज्ञान चारित्र तप उतम, नवपद जग जयवंता जी । एहनुं ध्यान धरंतां लहियै, अविचल पद अविन्यास जी, ते सगला जिननायक नमियें, जिन ए नीत प्रकासी जी ॥१॥ हस्तप्रत क्र. ५११८९ For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 32 अप्रैल-२०१९ पुस्तक समीक्षा रामप्रकाश झा मूल्य पुस्तक नाम श्री दानप्रकाश सभाषान्तर सम्पादक पंन्यास श्री सम्यग्दर्शनविजय गणि प्रकाशक स्मृतिमन्दिर प्रकाशन ट्रस्ट, अहमदाबाद कुल पृष्ठ ८+१२२+१० १००/भाषा संस्कृत+गुजराती धर्म के चार प्रकार बतलाए गए हैं - दान, शील, तप और भाव । इनमें सबसे प्रथम स्थान दान को दिया गया है । धन-सम्पत्ति, रुपये-पैसे, जमीन-जायदाद अथवा पशु-सम्पदा, जिनके ऊपर स्वयं का अधिकार हो, ऐसी वस्तुएँ किसी भी जरूरतमंद को निःशुल्क रूप से, अनुकम्पा भाव से देना, उसे दान कहा जाता है । आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह परिग्रह कहलाता है । इसे सर्व पापों का मूल कहा जाता है । इस पाप से बचने के लिए संग्रह की गई वस्तुओं का दान किया जाना चाहिए । धन-सम्पत्ति को विष कहा जाता है, परन्तु यदि इस विष को अमृत बनाना हो तो दान के द्वारा यह सम्भव है । श्री कनककुशल गणिकृत दानप्रकाश ग्रन्थ में सुन्दर दृष्टान्तों के द्वारा दानधर्म का अलौकिक वर्णन किया गया है । संस्कृत भाषा में रचित तथा कुल आठ प्रकाशों में व ६८० श्लोकों में दान के कुल सात प्रकारों का विस्तृत वर्णन करते हुए प्रत्येक को अलगअलग दृष्टान्तों के साथ समझाने का प्रयत्न किया गया है । दान के सात प्रकारों में सर्वप्रथम वसतिदान, दूसरा शय्यादान, तीसरा आसनदान, चौथा अन्नदान, पाँचवाँ जलदान, छठा औषधदान, सातवाँ वस्त्रदान और आठवाँ पात्रदान का वर्णन संक्षेप में किया गया है । ___ग्रन्थ के प्रारम्भ में मात्र मूल संस्कृत पाठ दिया गया है और बाद में मूल कृति का गुजराती में भाषान्तर दिया गया है । प्रथम प्रकाश में वसति दान के ऊपर मन्त्रियों में श्रेष्ठ कुरुचन्द्र का कथानक कहा गया है । इस कथानक के अनुसार मुनि को वसतिदान देना श्रावक का कर्तव्य है । द्वितीय प्रकाश में शय्यादान के ऊपर पद्माकर की कथा कही गई है । जिस प्रकार पद्माकर ने समता को धारण करनेवाले साधुओं को शय्यादान दिया, उसी प्रकार बुद्धिमान पुरुषों को साधुओं को शय्यादान देना चाहिए । तृतीय प्रकाश में आसनदान के ऊपर करिराज की कथा का वर्णन किया गया है । पूर्वभव में साधु को श्रेष्ठ For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 33 April-2019 आसनदान देने के प्रभाव से करिराज महिपाल को दुर्लभ गुणों से युक्त हाथी प्राप्त हुआ, यह कथा सुनकर भव्य प्राणियों को पापों का नाश करने हेतु मुनियों को आसन दान देना चाहिए । चतुर्थ प्रकाश में अन्नदान के ऊपर कनकरथ राजा की कथा कही गई है । मोक्ष की इच्छा रखनेवाले पुरुष को चाहिए कि साधुओं को शुद्ध अन्न दान करें । पंचम प्रकाश में जलदान के ऊपर धन्यक-पुण्यक दो भाईयों की कथा कही गई है । पुण्यक ने साधुओं को प्रासुक जल देकर पुण्य का उपार्जन किया, उसी प्रकार भव्य पुरुषों को प्रयत्नपूर्वक साधुओं को निर्दोषजल का दान करना चाहिए । षष्ठ प्रकाश में औषधदान के ऊपर रेवती नामक श्राविका की कथा कही गई है । रेवती श्राविका ने भगवान महावीर को अतिसार रोग की शान्ति हेतु औषधि का दान देकर महान् पुण्य को प्राप्त किया, उसी प्रकार भव्य जीवों को प्रयत्नपूर्वक साधुओं को औषधि का दान देना चाहिए । सप्तम प्रकाश में वस्त्रदान की महिमा कही गई है । गुणवान साधुओं को योग्य वस्त्रदान के ऊपर ध्वज भुजंग की कथा का उल्लेख किया गया है । अष्टम प्रकाश में पात्रदान की महिमा के विषय में धनपति श्रेष्ठि की कथा कही गई है । पात्रदान के फल का प्रतिपादन करनेवाली धनपति श्रेष्ठि की कथा सुनकर भव्य पुरुषों को भक्तिपूर्वक साधुओं को पात्रदान देना चाहिए । इस पुस्तक का सम्पादन पंन्यास श्रीसम्यग्दर्शनविजयजी गणि ने किया है । पुस्तक की छपाई बहुत सुंदर ढंग से की गई है। आवरणपृष्ठ पर हाथों में सोने-चांदी के सिक्के भरकर दान देने हेतु किसी श्रावक की अंजलि का आकर्षक चित्र प्रस्तुत किया गया है, जो इस कृति के अनुरूप ही है । इस पुस्तक के माध्यम से लगभग सौ वर्षों पूर्व प्रकाशित दानप्रकाश के गुजराती भाषान्तर को मूल पाठ के साथ प्रकाशित कर पुनः लोकसमक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है । इस प्रकार पूज्य पंन्यास श्री सम्यग्दर्शनविजयजी गणि का यह प्रयास सुश्रावकों के मानसपटल पर एक अमिट छाप छोड़ने में पूर्ण सफल होगा, और सक्षम श्रावकों को दानधर्म हेतु प्रेरित करेगा। सामान्य श्रावकों के लिए भी यह पुस्तक बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी । जैन श्रेष्ठी व श्रावकवर्ग इस प्रकार के उत्तम प्रकाशनों से दानधर्मादि हेतु अवश्य प्रेरित होंगे। पूज्यश्री का यह सम्पादन कार्य निरन्तर जारी रहे ऐसी शुभेच्छा है। अन्ततः यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि प्रस्तुत प्रकाशन जैन श्रावकों और श्रेष्ठियों को हमेशा प्रतिबोधित करता रहेगा । इस कार्य की सादर अनुमोदना सह वन्दना । For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 34 श्रुतसागर अप्रैल-२०१९ समाचारसार पूज्य राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज का नई दिल्ली के विविध स्थलों में विचरण श्री शौरीपुरतीर्थ में प्रभु श्री नेमिनाथ की भव्य प्रतिष्ठा कराने के बाद सशिष्य परिवार आस-पास के विविध स्थलों में विहार करते हुए पूज्य राष्ट्रसन्त आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज २२ बरसों के बाद दि. २२-३-२०१९ शुक्रवार को नई दिल्ली पहुँचे। राष्ट्रपति महोदय के आग्रह से राष्ट्रसंतश्री की राष्ट्रपति भवन में पधरामणी हुई और महामहिम राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंदजी से आत्मीय स्तर पर धर्म संवाद हुआ। दूसरे दिन वहाँ से विहार कर दि.२३-३-२०१९ शनिवार को दिल्ली के चाँदनी चौक में प्रवेश किया। प्रवेश की शोभायात्रा प्रातः ८.०० बजे साईकल मार्केट परेड ग्राउन्ड से प्रारम्भ होकर श्री आत्मवल्लभ जैन श्वेताम्बर संघ (पंजी) किनारी बाजार दिल्ली पहुँची। वहाँ श्रद्धालुओं ने पूज्य गुरुदेवश्री के प्रवचनामृत का लाभ लिया व पूज्यश्री से आशीर्वाद ग्रहण किया। वहाँ से विहार कर दि.२६-३-२०१९ मंगलवार को प्रातः८.०० बजे पूज्य आचार्यश्री शिष्य परिवार सहित प्रीतमपुरा, नई दिल्ली पहुंचे। वहाँ भव्य शोभायात्रा के साथ उनका स्वागत किया गया। १० बजे गुजरात अपार्टमेन्ट स्थित श्री आत्मवल्लभ विद्यामन्दिर जैन पाठशाला के बेसमेन्ट में पूज्य आचार्यदेव के मधुर प्रवचनों का श्रद्धालुजनों ने लाभ लिया। दिल्ली गुजराती श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ के श्रद्धालुओं ने पूज्य गुरुदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया, दोपहर १२.३० बजे प्रवचन में पधारे हुए श्रद्धालुओं की साधर्मिक भक्ति की गई। दि.२७-३-२०१९ बुधवार को धर्मसभा का आयोजन किया गया। वहाँ से विहार कर पूज्य आचार्यश्री JIO के द्वारा संचालित IPS होस्टल पहुँचे, जहाँ होस्टल के विद्यार्थियों ने पूज्यश्री का भव्य स्वागत किया और उनके प्रवचनों का लाभ लिया । गुरुदेव के अमृतमय प्रवचनों से वहाँ के छात्र बहुत प्रभावित हुए। For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SOLCHARITR नई दिल्ली के विविध स्थलों पर विहार करते हुए पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज आचार्य सुशील आश्रम, नई दिल्ली में व्याख्यान करते हुए पूज्य आचार्यदेव TO JAIN INTERNATIONAL ORGANISATION GARG TUTIONS JIO के द्वारा संचालित IPS होस्टल, दिल्ली के छात्रों के साथ पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज व उनका शिष्य परिवार 35 For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Registered Under RNI Registration No. GUJMUL/2014/66126 SHRUTSAGAR (MONTHLY). Published on 15th of every month and Permitted to Post at Gift City SO, and on 20th date of every month under Postal Regd. No. G-GNR-334 issued by SSP GNR valld up to 31/12/2021. THOD ASHISHORT Vाका Poe.droom 24tayai नवपद की आराधना करते हुए महाराज श्रीपाल और मयणा सुन्दरी BOOK-POST/PRINTED MATTER प्रकाशक श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र आचार्य श्री कैलाससागरसरि ज्ञानमंदिर, कोबा जि. गांधीनगर 382007 फोन नं. (071) 23276204,205,252 फेक्स (071) 23276249 Website: www.kobatirth.org email: gyanmandir@kobatirth.org Printed and Published by: HIREN KISHORBHAI DOSHI, on behalf of SHRI MAHAVIR JAIN ARADHANA KENDRA, New Koba, Ta.&Dist. Gandhinagar, Pin-382007, Gujarat. And Printed at : NAVPRABHAT PRINTING PRESS, 9, Punaji Industrial Estate, Dhobighat, Dudheshwar, Ahmedabad-380004 and Published at : SHRI MAHAVIR JAIN ARADHANA KENDRA, New Koba, Ta.& Dist. Gandhinagar, Pin-382007, Gujarat. Editor : HIREN KISHORBHAI DOSHI 36 Dise Per acabana San AINARADHANA KENIREA SE DOSAT For Private and Personal Use Only