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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर अप्रैल-२०१९ गुरुवाणी आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी योगनिष्ठ आचार्यश्री ने नवपद महिमा का गान करते हुए इस लघु कृति के माध्यम से घट में ही नवपद ऋद्धि की विद्यमानता, नवपदों का गण और गणी में विभाजन (पहले ५ पद गुणी और बाकी के ४ पद गुण), चार निक्षेपा में अवतरण, पिंडस्थादिक भेदयुक्त नवपद ध्यान से कर्मक्षय एवं मोक्ष प्राप्ति की बात कहकर संक्षेप में संपूर्ण जिनशासन का सार और मुक्तिमार्ग का आधार बता दिया है। चार पदों की गाथाओं में प्रारंभ के दो पद एक-दुसरे के साथ प्रास मिलाते हैं और तीसरा पद आंकणी के साथ ताल मिलाता है। आंकणी भी अपने आप में अलग ही धुन जमाती है। इस प्रकार यह लघुकाय, मधुर रचना वाचक को अध्यात्म भावना के साथ नवपद भक्तिगान में लीन बनाती है। ॥ नवपद गीत ॥ नमुं. ॥३॥ (राग बनजारो) नमुं नवपद जग जयकारी, अद्भुत महिमा छे भारी. नवपद ऋद्धि घट दाखी, ज्यां सूत्रसिद्धांतो साखी लेजो उरमांही उतारी. नमुं. ॥१॥ मयणासुंदरी श्रीपाल, पाम्या छे मंगलमाल, आंबील तपने दील धारी. नमुं. ॥२॥ निश्चयव्यवहारे दाख्यां, गुणगुणी विभागे भाख्यां, चउ निक्षेपा अवतारी. अंतरनी शक्ति आपे, परमातम पदमां थापे, नवपदनी छे बलीहारी. नमुं. ॥४॥ पदपिंडस्थादिक भेदे, नव पद ध्याने सुख वेदे, सहु कर्म कलंक विडारी, नमुं. ॥५॥ नवपदनुं ध्यान धरीजे, आतमनी लक्ष्मी वरीजे, पामो भव जलधि पारी. नमुं. ॥६॥ नवपदनो साचो यंत्र, नवपदनो ए महामंत्र ए नवपद मंगलकारी नमुं. ॥७॥ स्मरो नवपद श्वासोश्वासे, सिद्धि ऋद्धिघटवासे बुद्धिसागर अवधारी. नमुं. ॥८॥ (भजनपद संग्रह भाग-२ पृष्ठ सं.९) For Private and Personal Use Only
SR No.525345
Book TitleShrutsagar 2019 04 Volume 05 Issue 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2019
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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