________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
13
April-2019
SHRUTSAGAR
राजरत्न गणि कृत चार प्रत्येकबुद्ध सज्झाय तथा आर्य महागिरिसज्झाय
गणि सुयशचंद्रविजयजी प्रस्तावना
आपणे बधा निमित्तवासी आत्माओ छीए एटले कोई एकाद नानु मोटु कोईपण निमित्त मळता आपणा क्रोध, मान, मायादि कषायो सळगी उठे छे, तो वळी जरा, मृत्यु आदि दुःखना विशिष्ट निमित्तोथी आपणने वैराग्य पण थाय छे । जो के ते वैराग्य स्मशानियो होई ज्ञानगर्भित न होवाथी लांबो टकी शकतो नथी। ज्यारे आपणामांना केटलाक पुण्यवंत आत्माओने आमांना ज केटलाक बाह्य हेतुओ मोक्षमार्गमां कारणभूत थाय छे।
आपणे त्यां नवतत्त्व प्रकरणमां सिद्धना १५ भेद गणावता ग्रंथकार महर्षिए उपरोक्त पुण्यवंत आत्माओनो उल्लेख 'प्रत्येकबुद्ध सिद्ध एवा नामथी एक भेद रूपे त्यां दर्शाव्यो छे। तेनो शब्दार्थ सामान्यथी विचारीए तो प्रत्यय एटले हेतु, तेनाथी बुद्ध एटले बोध पामेला ते प्रत्येकबुद्ध अने विशेषे विचारीए तो एकाद वस्तु जेवा के संध्याना रंगो, सफेद वाळ, युद्ध विगेरे कोई एकाद प्रत्ययने जोई जे जीवने संसारनी असारता समजाय अने तेनाथी बोध पामी, निग्रंथपणुं स्वीकारी जे सिद्धगतिनी प्राप्ति करे तेने प्रत्येकबुद्ध कहेवाय । आगमोमां उल्लेखित अंगिरस, इंद्रनाग, नारद, अंबड, औदालक विगेरे आत्माओ आवा ज प्रत्येकबुद्ध सिद्ध गणाय छे। कृति परिचय
उत्तराध्ययनसूत्रमा पूर्वधर महर्षिए प्रत्येकबुद्ध सिद्धनी वात करता कलिंग आदि विभिन्न प्रांतोमां जन्मेला छता एक ज समये स्वर्गमांथी च्यवेला, समकाळे ज प्रव्रजित थयेला, तेमज साथे ज केवलज्ञान तथा निर्वाण पामेला करकंडु आदि ४ प्रत्येकबुद्धनुं जीवन वृत्तांत सुंदर रीते आलेख्यु छे । जेने आपणी भाषामा सामान्य कही शकाय एवा निमित्तोए तेमना आत्माने कई रीते जगाडी दीधो तेनी वर्णना करता त्यां ग्रंथकारश्रीए राजर्षि करकंडु वृषभनी जीर्णावस्था जोईने, महाराज दुमुह इंद्रस्थंभने हणायेली शोभावाळो निहाळीने, नमिराजा स्त्रीना कंकण ध्वनिना आलंबने तथा नृपति नग्गई मंजरीविहीन वृक्षने जोईने संसारथी विरक्त थया छता जातिस्मरण ज्ञान पामी
For Private and Personal Use Only