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April-2019
SHRUTSAGAR वड वयरागी नगगई, मुनि प्रत्येकबुद्ध । गांम नगरि पुरि वहिरता", पालइ चारित्र शुद्ध नगगई... ॥२०॥ राग द्वेष सवि परिहरिया, सम शत्रुनइ मित्र । एहवा मुनिवर वांदता, तनु थाय पवित्र
नगगई... ॥२१॥ नगगई मुनि केवल लही, पुहुता गति सुठाय । राजरत्न वाचक सदा, मुनिवर गुण गाइ(य)
नगगई... ॥२२॥ ॥ इति चतुर्थ प्रत्येकबुद्ध नगगई रूषि रास सज्झाय संपूर्णः॥
॥राग-गुडी।। वाडी फूली अति भली- ए देसी ॥ करकंडू दो(दु)मुह मुनी(नि) मनमोहन रे, नाम नगगति ए च्यार साधु मनमोहन रे। व्याहार करंता आवीआ मनमोहन रे, क्षितिप्रतिष्ठित नगरि उदार साधु मनमोहन रे चिहुं दिसिथी च्यारई मल्या मन..., चुमुहइ देवकुलि आवि साधु...। यक्ष साधु सेवा करइ मन..., च्यार रूप करी भावि
साधु... ॥२॥ उपसमरस भरि झीलता मन..., ममता नही लगार साधु...। धर्मगोष्ठि चरचां करइ मन..., ऊह प्रत्यूह अपार साधु... ॥३॥ कंडू हेति करकंडूनइ मन..., हाथि शिलाका एक साधु...। देखी दुमुह मुनी(नि) कहइ मन..., एतलु सिउं अविवेक साधु... ॥४॥ दुमुह प्रतिइं नमि मुनि कहइ मन..., चोयणा त्यजी नही राज साधु...। नगगई मुनि कहइ नमि सुणउ मन..., तुम्ह निंद्या कसिउं काज साधु... ॥५॥ करकंडू मुनिनइ र(रु)च्यिउं° मन..., साचु एह विचार साधु...। च्यारइ साधु चारित्रीआ मन..., नही अभिमान लगार साधु... ॥६॥ च्यारइ जाती स्मरणीया मन..., च्यारइ वडा महंत साधु...। च्यारइ केवल पांमीआ मन..., कीधउ भवनुं अंत
साधु... ॥७॥
॥१॥
३५. विचरण करता, ३६. चौमुख, ३७. कहे (?), ३८. प्रत्युत्तर (?), ३९. ?, ४०. गम्यु
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