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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 10 ॥१॥ श्रुतसागर अप्रैल-२०१९ दुमुह मुनीसर गुण थव्या, संखेपइं सुविचार रे । उवझाय राजरत्न रंगसिउं, कहइ धन एह अणगार रे प्रत्येक... ॥१९॥ ॥ इति श्री द्वितीय प्रत्येकबुद्ध दुमुह ऋषि सज्झाय ॥२॥ ॥पास जिणंद जुहारीइ-ए देसी॥ आरिज देश विदेह भलउ, मथुरा नगर उदार रे । युगबाहुसुत सुंदरू, मयणरेहा मात मल्हार रे साधु शिरोमणि गाईइ, नमिराजा अणगार रे। प्रत्यय देखी छांडीउ, राज रमणि परिवार रे साधु...(आंचली) ॥२॥ राज करंता एक दिनि, पूरव करम संयोगई रे। अगनि-झाल परि आंकरु, ऊपर्नु दाघज्वर रोग रे साधु... ॥३॥ रयणि न आवइ नींद्रडी, न रुचइ अन्न लगार रे। एक सहिस आठ कामिनी, विलवइ२५ वारोवार रे साधु... ॥४॥ राजवैद्य बोलावीआ, करइ अनेक उपाय रे। गोसीरष-चंदन घसी, नरपति अंगि लगाय रे साधु... ॥५॥ सोवन चूडी खलखलइ, नृप-श्रवणे न सुहावइ रे । मंगलीकनइ कारणिं, एक एक करइं२६ रखावइ रे साधु... ॥६॥ नमि राजाइं पूछीउं, कहिउ कंकण-वृत्तंत रे। वलय कोलाहलनी परिइं, जगमांहिं दुख अनंत रे साधु... ॥७॥ एकाकी अति सोहिलं, दुखदाई परिवार रे। राजा चित्तसुं चेतीउ, एक जिनधरम आधार रे साधु... ॥८॥ मनोरथ एह मनमांहिं धरी, न(नि)सि सूतु नमिराय रे । सुपन लहिउं एक अति भलउं, मेरु ऊपरि गजराय रे साधु... ॥९॥ झबकई राजा जागीउ, वेदन थई विसराल रे। जाती-समरणी सांभर्यु, सुर भव अतिहिं रसाल रे साधु... ॥१०॥ पाटि थापी निज पुत्रनइं, राज रमणि सवि छंडई रे । माया ममता परिहरी, नमि पुहुतु वनखंडई रे साधु... ॥११॥ २४. स्तव्या, २५. विलाप करे, २६. हाथमां, २७. बंगडी, २८. रात्रि, For Private and Personal Use Only
SR No.525345
Book TitleShrutsagar 2019 04 Volume 05 Issue 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2019
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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