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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir April-2019 महा... ॥६॥ महा... ॥७॥ महा... ॥८॥ महा... ॥९॥ महा... ॥१०॥ SHRUTSAGAR अभिनव सुभूति श्रावक गृहइं, एकवार सुहस्तिसूरिंद रे। पुहुता कुटुंब वंदाविवा, दिइ प्रतिबोधना वृंद रे पंच समति गुपति त्रिहुँ, गुपतु गुणनिधि साध रे। अंगणिथी पाछा वल्या, जांणी घणुं संबाध रे सूहस्तिसूरि प्रतिं पूछींउ, भगवन एह कुण संत रे। सूरि कहइ मुझ एह गुरु, मोटउ तपसी महंत रे छट्ठ अट्ठम तप पारणइ, आंबिल तपनु उद्धार रे। क्रोधादिक सवि परिहरी, करइ नव कलपी विहार रे एहना गुण एक मुखिं करी, कहितां नावे पार रे। उज्झित अशन प्रमुख लेई, धन धन एह अणगार रे वचन सुणी सवि गृहपति, जांणी पात्र-विशेष रे। बीजइ दिनि उज्झित करी, आपइ अशन अशेष रे ते देखी मुनि चमकीआ, एह नहीं सूझतुं भात रे। सुहस्तिसूरि कालि जाणीइ, श्रावकनई कही वात रे विहिर्या - विण मुनिवर वल्या, गुराहीनइंइ कहि ताम रे। कालि तुम्हे मुझ गुण स्तवी, कीधउ विरूउ'° काम रे रिषिजी मनस्युं चेतीया, मुंकिउं मुनि प्रतिबंध रे। गुरु गछनेष्टा सहु त्यजी, एक जिनधरम संबंध रे आतम साधन साधवा, उग्र तपकरइ अभिराम रे। एकलमल' महीतलि फरइ, सत्रु मित्र सम परिणाम २ रे पहिलं कुल घर जन त्यज्यां, पछइ गुरु गछ परिवार रे । भात सदोष जाणी करी, स्वेछाई१२ करइ विहार रे त्रीस वरस गृह मांहिं रह्या, वरस चालीस व्रतभार रे। युगपह पद त्रीस वरस तां", आयु शत वरस सार रे महा... ॥११॥ महा... ॥१२॥ महा... ॥१३॥ महा... ॥१४॥ महा... ॥१५॥ महा... ॥१६॥ महा... ॥१७॥ ४७. आंगणथी, ४८. वहोर्या, ४९. गुरुने, ५०. खराब, ५१. एकलो, ५२. भाव, ५३. पोतानी इच्छाए, ५४. त्यां सुधी. For Private and Personal Use Only
SR No.525345
Book TitleShrutsagar 2019 04 Volume 05 Issue 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2019
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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