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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 10 अप्रैल-२०१९ अंजलि आपतां कडं, ‘ए तो खरेखर सागर हतो।' ‘एवो साधु संघने पचासे वर्षोए मळो तो संघना सद्भाग्य।' ‘ए तो साचो संन्यासी हतो।' 'एना दिलनी उदारता परसंप्रदायीओने वशीकरण करती।' 'बुद्धिसागरजी महानुभाव विरामतामां खेलता, संप्रदायमां तो ए शोभता, पण अनेक संप्रदायीओना समुदाय संघमां पण एमनी तेजस्विता अछानी नहोती।' ‘एमनी भव्य मूर्ति एमना आत्मस्वरूप जेवी भव्य हती। विशाळ मुखारविंद, उच्च अने पुष्ट देहस्थंभ, योगीन्द्र जेवी दाढी!' ‘एमनो जबरजस्त दंड! आपणे सौ मूर्तिपूजक छीए, अने ए भव्य मूर्ति अदृश्य थई छे, पण नीरखी छे तेमना अंतरमांथी ते जल्दी भुसाशे नहि ज।' 'आनंदघनजी पछी आवा अवधूत जैनसमाजमां थोडा ज थया हशे।' १४० ग्रंथोना रचयिता योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजीए जैन साधुनी जीवनचर्यानुं नखशिख पालन करवानी अने ध्यान-समाधिमां दीर्घकाळ पसार करवानी साथोसाथ १०८ अमर ग्रंथशिष्योनुं सर्जन कर्यु । योगनिष्ठ आचार्यश्री ग्रंथलेखन माटे एकांत पसंद करता हता अने ज्यारे ज्यारे विजापुर के महुडी होय, त्यारे भोयरामां बेसीने पलांठी वाळी, चूंटण पर डायरी टेकवीने लेखन करता हता। क्यारेक प्रातःकाळे तेओ ग्रंथरचना करवा बेसता हता, तो क्यारेक बपोरनी गोचरी पछी लखवा बेसी जता हता। आचार्यश्री लेखन करे, त्यारे पेन्सिल तैयार राखता हता अने दिवसभरना लेखन दरमियान दसथी बार पेन्सिल वपराती हती। क्यारेक ए बरुनी कलमथी पण लेखन करता हता। ___ एवं पण बनतुं के उपाश्रयना एकांत खूणे लखता होय, त्यारे कोई श्रावक के जिज्ञासु आवे तो ते योगनिष्ठ आचार्यश्रीने निःसंकोच मळी शकता हता। आचार्यश्री एमनी वात सांभळीने योग्य मार्गदर्शन आपता हता अने जेवा ए विदाय थाय के तरत ज पुनः लेखनमा प्रवृत्त थई जता हता। ज्ञानोपासना प्रत्ये एमनो एटलो भाव हतो के जीवनना अंतिम दिवसोमां पण एमने एमनी महेच्छा विशे कोईए पृच्छा करतां का हतुं के- 'मारुं लेखन कार्य तो मारी For Private and Personal Use Only
SR No.525345
Book TitleShrutsagar 2019 04 Volume 05 Issue 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2019
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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