Book Title: Navsmaranani
Author(s): 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ णमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स - नव स्मरणानि। RAMAE%% - -- - - (१) प्रथमं नमस्कारमन्त्रस्मरणम्-नमो अरिहंताणं १॥ नमो सिद्धाणं २ ॥ नमो आयरि- | | याणं ३ ॥ नमो उवज्झायाणं ४ ॥ नमो लोए सबसाहूणं ५॥ ' एसो पंचनमुक्कारो, सवपावप्पणासणो । मंगलाणं च सन्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं ॥१॥' (२) द्वितीयं उपसर्गहरस्मरणम्-उवसग्गहरं पासं पासं वंदामि कम्मघणमुक्कं । विसहरविसनिन्नासं मंगलकल्लाणआवासं ॥१॥ विसहरफुलिंगमंतं कंठे धारेइ जो सया मणुओ । तस्स गहरोगमारीदद्रजरा जंति उवसामं ॥२॥चिट्रउ रे मंतो तुज्झ पणामोऽवि बहफलो होइ । नरतिरिएसुऽवि जीवा पावंति न दुक्खदोगचं ॥३॥ तुह सम्मत्ते लद्धे चिंतामणिकप्पपायवs| ब्भहिए । पावंति अविग्घेणं जीवा अयरामरं ठाणं ।। ४ ।। इअ संथुओ महायस ! भत्तिभर -CASSAGARAA%% Jan Education International For Private Personel Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नव स्मरणानि । ॥ १ ॥ Jain Education Internat भिरेण हि । ता देव ! दिज बोहिं भवे भवे पासजिणचंद ! ॥ ५ ॥ (३) तृतीयं शान्तिकरस्मरणम् -संतिकरं संतिजिणं जगसरणं जयसिरीइ दायारं । समरामि भत्तपालगनिवाणीगरुडकयसेवं ॥ १ ॥ ॐ सनमो विप्पोसहिपत्ताणं संतिसामिपायाणं । झाँ स्वाहाidi सवासिवदुरिअहरणाणं ॥ २ ॥ ॐ संतिनमुक्कारो खेलोसहिमाइलद्धिपत्ताणं । साँ ह्रीँ (सं) नमो सबोसहिपत्ताणं च देइ सिरिं ॥ ३ ॥ वाणीतिहुअणसामिणिसिरिदेवी जक्खरायगणिपिडगा । गहदिसिपाल सुरिंदा सयावि रक्खंतु जिणभत्ते ॥ ४ ॥ रक्खंतु मम रोहिणी पेन्नत्ती वैज्जसिंखला य सया । वज्रंकुँसि चक्केसरि नैरदत्ता कालि महाकाली ॥ ५ ॥ गोरी तह गंधारी मैहजाला मौणवी अ वैइरुद्वा । अच्छुत्ता मौणसिआ मैंहमाणसियाउ देवीओ || ६ || जक्खा गोमुँह मैहक्खतिमुह जैक्स तुबेरू कुंसुमो । मायंगो विजयाऽजिअ बंभो मैणुओ सुंरकुमारो ॥ ७ ॥ म्ह याल किन्नेर रुलो गंधव तहय जखिंदो । कुँबर वरुणो भिंउडी गोमेही पास मौयंगो ॥ ८ ॥ देवीओ केसरि अजिंआ दुरिआरि कालि महाकाली । अच्चुअ संता जाला सुतारयाऽसोअं सिरिवच्छ ॥ ९॥ चंडौं विजैयंकुसि पन्नइति निवणि अच्चुआ धरणी । वइरुडेऽत्त गंधौरि अंबे 696-% तृतीयं शान्तिकर स्मरणम् ॥ ॥ १ ॥ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S ACACADAINIK का पउमौवई सिद्धौ ॥ १० ॥ इअ तित्थरक्खणरया अन्नेऽवि सुरा सुरी य चउहावि । वंतरजोइणि-18 5 पमुहा कुणंतु रक्खं सया अम्हं ॥ ११ ॥ एवं सुदिट्ठिसुरगण-सहिओ संघस्स संतिजिणचंदो। मज्झऽवि करेउ रक्खं मुणिसुंदरसूरिथुअमहिमा ॥ १२ ॥ इअ संतिनाहसम्म-विट्ठी रक्खं सरइ5 तिकालं जो । सबोवद्दवरहिओ स लहइ सुहसंपयं परमं ॥ १३ ॥ (४) चतुर्थ तिजयपहुत्तस्मरणम्-तिजयपहुत्तपयासया-अट्ठमहापाडिहेरजुत्ताणं। समयक्खित्त-17 ठिआणं सरेमि चक्कं जिणंदाणं ॥१॥णवीसा य अंसीआ पैन्नरस पन्नास जिणवरसमूहो। नासेउ 15 सयलदुरिअं भविआणं भत्तिजुत्ताणं ॥ २॥ वीसौं पर्णयालावि य तीसी पन्नत्तरी जिणवरिंदा । गहभृअरक्खसाइणि-घोरुवसग्गं पणासंतु ॥३॥ सत्तरि पणतीसाविय सेंट्टी पंचवे जिणगणो एसो। वाहिजलजलणहरिकरिचोरारिमहाभयं हरउ ॥ ४॥ पैणपन्ना य दसैव य पन्नट्ठी तहय चेव चालीसा । रक्खंतु मे सरीरं देवासुरपणमिआ सिद्धा ॥ ५॥ ॐ हरहुंहः सरसुंसः हरहुंहः तहय चेव सरसुंसः। आलिहियनामगन्भं चक्कं किर सवओभदं ॥६॥ ॐ 'रोहिणी पन्नोत्त वैजसिंखला तह य वैजअंकुसिआ। चक्केसरि नरदत्ता कालि महालि तह गोरी ॥ ७॥ गंधारी महजाला CLOCISIGCACIRECRUCIEOSECRE Jan Education Intema For Private & Personal use only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नव स्मरणानि । ॥ २ ॥ Jain Education Internat hrase तह यच्छुत्ता । मौणसि महमणसिआ विज्जादेवीओ रक्खंतु ॥ ८ ॥ पंचदसकम्मभूमि उपपन्नं सत्तारं जिणाण सयं । विविहरयणाइवन्नो वसोहिअं हरउ दुरिआई ॥ ९ ॥ चती असजुआ अट्ठमहापाडिहेरकयसोहा । तित्थयरा गयमोहा झाए अन्वा पयतेणं ॥ १० ॥ ॐ वरकणयसंखविद्दुममरगयघणसन्निहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं सवामरपूइअं वंदे ॥ ११ ॥ स्वाहा ॥ ॐ भवणवइवाणवंतरजोइसवासी विमाणवासी अ । जे केवि दुट्ठदेवा ते सबै उवसमंतु मम ॥ १२ ॥ स्वाहा ॥ चंदणकप्पूरेणं फलए लिहिऊण खालिअं पीअं । एगंतराइगह भूअसाइणिमुग्गं पणासेइ ॥ १३ ॥ इअ सत्तरिसयजंतं सम्मं मंतं दुवारि पडिलिहिअं । दुरिआरिविजयवंतं नितं निचमचेह ॥ १४ ॥ ( ५ ) पंञ्चम नमिऊणस्मरणम् - नमिऊण पणयसुरगणचूडामणिकिरणरंजिअं मुणिणो । चलणजुअलं महाभयपणासणं संथ वुच्छं ॥ १ ॥ सडियकरचरणनहमुह-निबुडुनासा विवन्नलायन्ना । कुट्टमहारोगानलफुलिंगनिद्दङ्कसवंगा ॥ २ ॥ ते तुह चलणाराहणसलिलंजलि सेय वुड्डियच्छाया । वणदवदड्डा गिरिपा-यवव पत्ता पुणो लच्छि ॥ ३ ॥ युग्मं ॥ दुवायखुभियजलनि हिउब्भडकल्लोल पवमं नमिऊण स्मरणम् ॥ ॥ २ ॥ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education Intera भीसणारावे । संभंतभयविसंठुलनिजामयमुक्कवावारे ॥ ४ ॥ अविदलिअजाणवत्ता खणेण पावंति इच्छिअं कूलं । पासजिणचलणजुअलं निच्चं चिअ जे नमंति नरा ॥ ५ ॥ युग्मं ॥ खरपवणुय वणदवजालावलिमिलियसयलदुमगहणे । उज्झतमुद्धमयवहुभीसणरवभीसणम्मि वणे ॥ ६ ॥ जगगुरुणो कमजुअलं निव्वाविअसयलतिहुअणाभोअं । जे संभरंति मणुआ न कुणइ जलणो भयं तो सं ॥ ७ ॥ युग्मं ॥ विलसंतभोगभीसणफुरिआरुणनयणतरलजीहालं । उग्गभुअंगं नवजलयसत्थहं भीसणायारं ॥ ८ ॥ मन्नति कीडसरिसं दुरपरिच्छूढविसमविसवेगा । तुह नामक्खरफुड सिद्धमंतगुरुआ नरा लोए ॥ ९ ॥ युग्मं ॥ अडवी भिल्ल-तक्कर- पुलिंद - सद्दूलसद्दभीमासु । भयविद्दुरवुन्नकायर- उल्लूरिअपहिअसत्थासु ॥ १० ॥ अविलुत्तविहवसारा तुह नाह ! पणाममत्तवावारा । वव विघा सिघं पत्ता हि इच्छियं ठाणं ॥ ११ ॥ युग्मं ॥ पज्जलिआनलनयणं दूरवियारियमुहं महाकायं । नहकुलिसघायविअलिअगइंदकुंभत्थलाभाअं ॥ १२ ॥ पणयससंभमपत्थिवनहमणिमाणिक्कपडिअपमिस्स । तुह वयणपहरणधरा सीहं कुद्धंपि न गणंति ॥ १३ ॥ युग्मं ॥ ससिधवलदंतमुसलं दिहकरुल्लालबुड्डिउच्छाहं । महुपिंगनयणजुअलं ससलिलनवजलहरारावं ॥ १४ ॥ भीमं Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नव स्मरणानि ॥ ३॥ Jain Education Inter महागइंदं अच्चासन्नंपि ते नवि गणंति । जे तुम्ह चलणजुअलं मुणिवइ ! तुंगं समल्लीणा ॥ १५ ॥ युग्मं ॥ समरम्मि तिक्खखग्गाभिग्घाय पविद्धउद्धुयकबंधे । कुंतविणिभिन्नकरिकलह मुक्कसिक्कारपरम् ॥ १६ ॥ निज्जियदप्पुष्धुररिउनरिंदनिवहा भडा जसं धवलं । पावंति पावपसमिण ! पासजिण ! तुह प्पभावेण ॥ १७ ॥ युग्मं ॥ रोगजलजलणविसहरचोरारिमइंदगयरणभयाई । पासजिणनामसंकित्तणेण पसमंति सवाई ॥ १८ ॥ एवं महाभयहरं पासजिणिंदस्स संथवमुआरं । भवियजणाणंदयरं कल्लाणपरंपरनिहाणं ॥ १९ ॥ रायभय- जक्ख- रक्खस- कुसुमिण दुसुमिण-रिक्खपीडासु । संझा दो पंथे उवसग्गे तह य रयणीसु ॥ २० ॥ जो पढइ जो अ निसुणइ ताणं कइणो यमाणतुंगस्स । पासो पावं पसमेउ सयलभुवणच्चि अचलणो ॥ २१ ॥ उवसग्गंते कमठा - सुरम्मि झाणाओ जो न संचलिओ । सुर-नर- किन्नरजुवईहिं संधुओ जयउ पासजिणो ॥ २२ ॥ मज्झयारे अठ्ठारसअक्खरेहिं जो मंतो । जो जाणइ सो झायइ परमपयत्थं फुडं पासं ॥ २३ ॥ पासह समरण जो कुणइ संतुट्ठे हियएण । अद्दुत्तरस्य वाहिभय, नासई तस्स दूरेण ॥ २४ ॥ (६) षष्ठं अजितशान्तिस्मरणम् - अजिअं जिअसवभयं संतिं च पसंतसवगयपावं । जयगुरु पञ्चमं नमिऊण स्मरणम् ॥ ॥ ३ ॥ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कलम 2 संतिगुणकरे दोऽवि जिणवरे पणिवयामि ॥१॥ गाहा ॥ ववगयमंगुलभावे ते हं विउलतवनिम्मल सहावे । निरुवममहप्पभावे थोसामि सुदिट्ठसब्भावे ॥२॥ गाहा ॥ सव्वदुक्खप्पसंतीणं, सबपाव. प्पसंतीणं । सया अजियसंतीणं, णमो अजिअसंतीणं ॥३॥ सिलोगो ॥ अजिअजिण! सहप्प-16 ६ वत्तणं, तव पुरिसुत्तम नामकित्तणं । तह य धिइमइप्पवत्तणं, तव य जिणुत्तम ! संति कित्तणं | ॥४॥मागहिआ॥ किरिआविहिसंचिअकम्मकिलेसविमुक्खयरं, अजिअं निचियं च गुणेहिं महामुणिसिद्धिगयं । अजिअस्स य संतिमहामुणिणोऽविअ संतिकरं, सययं मम निव्वुइकारणयं च नमंसणयं ॥ ५॥ आलिंगणयं ॥ पुरिसा ! जइ दुक्खवारणं, जइ अ विमग्गह सुक्खकारणं । अजिअं संतिं च भावओ, अभयकरे सरणं पवजहा ॥ ६॥ मागहिआ ॥ अरइरइ-तिमिरविरहिअमुवरयजरमरणं, सुर-असुर-गरुल-भुयग-वइपययपणिवइअं। अजिअमहमविअ सुनयनयनिउणमभयकर, सरणमुवसरिअ भुवि-दिविज-महिअं सययमुवणमे ॥७॥ संगययं ॥ तं च जिणुत्तममुत्तमनित्तमसत्तधरं, अज्जव-मद्दव-खंति-विमुत्ति-समाहिनिहिं । संतिकरं पणमामि दमुत्तमतित्थयरं, संतिमुणि! मम संतिसमाहिवरं दिसउ ॥ ८॥ सोवाणयं ॥ सावत्थिपुवपत्थिवं च वरहत्थिमत्थय SECON 35ARCH Jain Education Intema For Private Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नव स्मरणानि ॥ ४ ॥ Jain Education Inte पसत्थविच्छिन्नसंथिअं, थिरसरिच्छवच्छं मयगललीलायमाणवरगंधहत्थिपत्थाणपत्थियं संथवारिहं । हस्थिहत्थबाहुधंतकणगरुअगनिरुवहयपिंजरं पवरलक्खणोवचिअसोम चारुरूवं, सुइसुहमणाभिरामपरमरमणिज्जवरदेवदुंदुहिनिनाय महुरयर सुहगिरं ॥ ९ ॥ वेडओ || अजिअं जिआरिगणं, जिअसवभयं भवोहरिडं । पणमामि अहं पयओ, पावं पसमेउ मे भयवं ! ॥ १० ॥ रासालुद्धओ ॥ कुरुजणवयहत्थिणाउरनरीसरो पढमं तओ महाचक्कवट्टिभोए महत्पभावो, जो बावत्तरिपुरवरसहस्सवरनगरनिगम जणवयवई बत्तीसारायवरसहस्साणुयायमग्गो । चउदसवररयण - नवमहानिहि - चउसट्टि - सहस्लपवरजुवईण सुंदरवई, चुलसीहय-गय-रह-सयसहस्ससामी, छण्णवइगामकोडिसामीआसी जो भारहम्मि भयवं ! ॥ ११ ॥ वेडओ ॥ तं संतिं संतिकरं, संतिष्णं सव्वभया । संतिं थुणामि जिणं, संति विउ मे ॥ १२ ॥ रासानंदिअयं ॥ युग्मं ॥ इक्खाग ! विदेहनरीसर ! नरवसहा ! मुणिवसहा!, नवसारय ससिसकलाणण ! विगयतमा ! विहुअरया ! | अजिउत्तम ! तेअगुणेहिं महामुणिअमिअबला ! विउलकुला !, पणमामि ते भवभयमूरण ! जगसरणा मम सरणं ॥ १३॥ चित्तलेहा ॥ देव-दाणविंद-चंद-सूरवंद ! हट्ठ-तुट्ठ-जिट्ठपरम !, लटुरूव ! धंतरुप्प-पट्ट-सेअ-सुद्ध- निद्ध-धवल ! दंत षष्ठं अजित शांति स्मरणम् ॥ ॥ ४ ॥ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ T पति ! संति ! सत्ति - कित्ति - मुत्ति - जुत्ति - गुत्ति-पवर ! दिसतेअवंद ! धेअ ! सबलोअभाविअप्पभाव ! अ ! इस मे समाहिं ॥ १४ ॥ नारायओ || विमलससिकलाइरेअसोमं वितिमिरसूरकराइरे अअं । तिअसवइगणाइरेअरूवं, धरणिधरप्पवराइरेअसारं ॥ १५ ॥ कुसुमलया || सत्ते असया अजिअं, सारीरे अबले अजिअं । तवसंजमे अ अजिअं, एस थुणामि जिणं अजिअं ॥ १६ ॥ भुअगपरिरिंगिअं ॥ युग्मं ॥ सोमगुणेहि पावइ न तं नवसरयससी, तेअगुणेहि पावइ न तं नवसरयरवी । रूवगुणेहि पावइ न तं तिअसगणवई, सारगुणेहि पावइ न तं धरणीधरवई ॥ १७ ॥ खिज्जिअयं || तित्थवरपवत्त्रयं तमरयरहिअं, धीरजणथुअच्चि चुअकलिकलुस । संतिसुहप्पवत्तयं तिगरणपयओ, संतिमहं महामुणिं सरणमुवणमे ॥ १८ ॥ ललिअयं || विणओणय सिररइअंजलि - रिसिगणसंथुअं थिमिअं, विबुहाहव- धणवइ-नरवइथुअमहिअच्चि बहुसो । अइरुग्गयसरयदिवायरसमहिअसप्पभं तवसा, गयणंगणविवरणसमुइअचारणवंदिअं सिरसा ॥ १९ ॥ किसलयमाला ॥ असुर-गरुलपरिवंदिअं, किन्नरोरगणमंसिअं । देवकोडिसयसंधुअं, समणसंघपरिवंदिअं ॥ २० ॥ सुमुहं ॥ अभयं अणहं, अरयं अरुयं । अजिअं अजिअं, पयओ पणमे ॥ २१ ॥ विज्जुविलसिअं ॥ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नव | त्रिभिर्विशेषकम् ॥ आगया वरविमाणदिवकणगरहतुरयपहकरसएहिं हुलिअं । ससंभमोअरणखु. पर्छ स्मरणानि । | भिअलुलिअचलकुंडलंगयतिरीडसोहंतमउलिमाला ॥ २२ ॥ वेड्डओ॥ जं सुरसंघा सासुरसंघा| अजितवेरविउत्ता भत्तिसुजुत्ता, आयरभूसिअसंभमपिंडिअसुटुसुविम्हिअसवबलोधा । उत्तमकंचणरय-14 शान्ति स्मरणम् ॥ णपरूवियभासुरभूसणभासुरिअंगा, गायसमोणयभत्तिवसागयपंजीलपेसिअसीसपणामा ॥ २३ ॥ रयणमाला ॥ वंदिऊण थोऊण तो जिणं, तिगुणमेव य पुणो पयाहिणं । पणमिऊण य जिणं || सुरासुरा, पमुइआ सभवणाइँ तो गया ॥ २४ ॥ खित्तयं ॥ तं महामुणिमहंपि पंजली, राग-1 दोसभयमोहबजिअं । देवदाणवनरिंदवंदिअं, संतिमुत्चममहातवं नमे ॥ २५ ॥ खित्तयं ॥ अंबरंतरविआरणिआहिं, ललिअहंसवहुगामिणिआहिं । पीणसोणिथणसालिणिआहिं, सकलकमल- | दललोअणिआहिं ॥ २६ ॥ दीवयं ॥ पीणनिरंतरथणभरविणमियगायलआहिं, मणिकंचणपसि ढिलमेहलसोहिअसोणितडाहिं । वरखिंखिणिनेउरसतिलयवलयविभूसणिआहिं, रइकरचउरमणोहरसुंदरदसंणिआहिं ॥ २७ ॥ चित्तक्खरा ॥ देवसुंदरीहिँ पायवंदिआहिँ वंदिआ य जस्स ते सुविक्कमा कमा, अप्पणो निडालएहिँ मंडणोडणप्पगारएहिँ केहिँ केहिँ वी अवंगतिलयपत्तले SCORCHESAGARCANCRECORRECTOR SACCE ॥ ५॥ Jan Education inte For Private & Personal use only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RECCCCCCCIRCR | हनामएहिँ चिल्लएहि संगयंगयाहिँ भत्तिसन्निविट्ठवंदणागयाहिँ हुंति ते वंदिआ पुणो पुणो 5॥ २८ ॥ नारायओ ॥ तमहं जिणचंदं, अजिअं जिअमोहं । धुअसवकिलेसं, पयओ पणमामि ६॥ २९ ॥ नंदिअयं ॥ थुअवंदिअयस्सा रिसिगणदेवगणेहिं, तो देववहुहिँ पयओ पणमिअस्सा। जस्स जगुत्तमसासणअस्सा, भत्तिवसागयपिंडिअयाहिं । देववरच्छरसाबहुआहि, सुरवररइगुणपंडिअयाहिं ।। ३० ॥ भासुरयं ॥ वंससद्दतंतितालमेलिए तिउक्खराभिरामसद्दमीसए कए अ, सुइसमाणणे अ सुद्धसज्जगीअपायजालघंटिहिं । वलयमेहलाकलावनेउराभिरामसद्दमीसए कए | अ, देवनट्टिआहिं हावभावविन्भमप्पगारएहि । नच्चिऊण अंगहारएहि वंदिआ य जस्स ते सुवि. कमा कमा, तयं तिलोअसवसत्तसंतिकारयं पसंतसबपावदोसमेसहं नमामि संतिमुत्तमं जिणं ॥३१॥ नारायओ॥ छत्तचामरपडागजूअजवमंडिआ, झयवरमगरतुरयसिरिवच्छसुलंछणा । दीवसमुद्दमंदर| दिसागयसोहिआ, सत्थिअवसहसीहरहचकवरंकिया ॥ ३१ ॥ ललिअयं ॥ सहावलट्ठा समप्पइट्टा, | अदोसदुट्ठा गुणेहि जिट्ठा । पसायसिट्ठा तवेण पुट्ठा, सिरीहि इट्ठा रिसीहिँ जुट्ठा ॥ ३३ ॥ वाणवासिआ॥ ते तवेण धुअसवपावया, सव्वलोअहिअमूलपावया। संथुआ अजिअसंतिपायया, हंतु 4345459%A5% A CIRCCI 4CASE Jain Education Internet For Private Personal Use Only T ww.jainelibrary.org Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नव TRI मे सिवसुहाणदायया ॥ ३४ ॥ अपरांतिका ॥ त्रिभिर्विशेषकम् ॥ एवं तवबलविउलं, थुअं मए II षष्ठं स्मरणानि । अजिअसतिजिणजुअलं । ववगयकम्मरयमलं, गई गयं सासयं विउलं ॥ ३५ ॥ गाहा ॥ तं बहु- अजितगुणप्पसायं, मुक्खसुहेण परमेण अविसायं । नासेउ मे विसायं, कुणउ अ परिसाऽविअ पसायं ॥ शान्ति स्मरणम् ॥ | ॥ ३६ ॥ गाहा ॥ तं मोएउ अ नंदि, पावेउ अ नंदिसेणमभिनंदि । परिसाऽविअ सुहनदि, मम य दिसउ संजमे नंदि ॥ ३७॥ गाहा ॥ पक्खिअचाउम्मासिअसंवच्छरिए अवस्स भणिअवो। सोअबो सवेहि, उवसग्गनिवारणो एसो ॥३८॥ जो पढइ जो अनिसुणइ, उभओ कालंपि अजिअसंतिथयं । न हु हुँति तस्स रोगा, पुव्वुप्पन्नावि नासंति ॥ ३९ ॥ जह इच्छह परमपयं, अहवा किर्ति | सुवित्थडं भुवणे । ता तेलुक्कुद्धरणे, जिणवयणे आयरं कुणह ॥ ४०॥ (७) सप्तमं भक्तामरस्मरणम्-भक्तामरप्रणतमौलिमणिप्रमाणामुद्द्योतकं दलितपापतमोवि. तानम् । सम्यक् प्रणम्य जिनपादयुगं युगादावालम्बनं भवजले पततां जनानाम् ॥ १॥ यः | संस्तुतः सकलवाज्मयतत्त्वबोधादुद्भूतबुद्धिपटुभिः सुरलोकनाथैः । स्तोत्रैर्जगत्रितयचित्तहरैरुदारैः, स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम् ॥ २ ॥ बुद्धया विनाऽपि विबुधार्चितपादपीठ !, स्तोतुं |॥ ६ ॥ HOPEOPLES %9446 Jan Education intem For Private Personal Use Only w w.jainelibrary.org Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education In समुद्यतमतिर्विगतत्रापोऽहम् । बालं विहाय जलसंस्थितमिन्दुबिम्बमन्यः क इच्छति जनः सहसा ग्रहीतुम् ? ॥ ३ ॥ वक्तुं गुणान् गुणसमुद्र ! शशाङ्ककान्तान्, कस्ते क्षमः सुरगुरुप्रतिमोऽपि बुद्धया ? । कल्पान्तकालपवनोद्धतनक्रचकं, को वा तरीतुमलमम्बुनिधिं भुजाभ्याम् ? ॥ ४ ॥ सोऽहं तथापि तव भक्तिवशान्मुनीश !, कत्तुं स्तवं विगतशक्तिरपि प्रवृत्तः । प्रीत्याऽऽत्मवीर्यमविचार्य मृगो मृगेन्द्र, नाभ्येति किं निजशिशोः परिपालनार्थम् ? ॥ ५ ॥ अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिहासधाम, त्वद्भक्तिरेव मुखरीकुरुते बलान्माम् । यत्कोकिलः किल मधौ मधुरं विरौति, तच्चारुचूतकलिकानिकरैकहेतुः ॥ ६ ॥ त्वत्संस्तवेन भवसन्ततिसन्निबद्धं, पापं क्षणात् क्षयमुपैति शरीरभाजाम् । आक्रान्तलोकमलिनीलमशेषमाशु, सूर्यांशुभिन्नमिव शार्वरमन्धकारम् ॥ ७ ॥ मत्वेति नाथ ! तव संस्तवनं मयेदमारभ्यते तनुधियाऽपि तव प्रभावात् । चेतो हरिष्यति सतां नलिनीदलेषु, मुक्ताफलद्युतिमुपैति नन्दबिन्दुः ॥ ८ ॥ आस्तां तव स्तवनमस्तसमस्तदोषं, त्वत्सङ्कथाऽपि जगतां दुरितानि हन्ति । दूरे सहस्रकिरणः कुरुते प्रभैव, पद्माकरेषु जलजानि विकाशभाञ्जि ॥९॥ नात्यद्भुतं भुवनभूषणभूत ! नाथ !, भूतैर्गुणैर्भुवि भवन्तमभिष्टुवन्तः । तुल्या भवन्ति भवतो P Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नव स्मरमानि ॥७॥ Jain Education Intern ननु तेन किं वा ?, भूत्याश्रितं य इह नात्मसमं करोति ॥ १० ॥ दृष्ट्वा भवन्तमनिमेषविलोकनीयं, नान्यत्र तोषमुपयाति जनस्य चक्षुः । पीत्वा पयः शशिकरद्युतिदुग्धसिन्धोः, क्षारं जलं जलनिधेरशितुं क इच्छेत् ? ॥ ११ ॥ यैः शान्तरागरुचिभिः परमाणुभिस्त्वं, निर्मापितस्त्रिभुवनैकललामभूत ! | तावन्त एव खलु तेऽप्यणवः पृथिव्यां यत्ते समानमपरं नहि रूपमस्ति ॥ १२ ॥ वक्रं क ते सुरनरोरगनेत्रहारि निःशेषनिर्जितजगत्रितयोपमानम् ? । बिम्बं कलङ्कमलिनं क निशाकरस्य ?, यद्वासरे भवति पाण्डुपलाशकल्पम् ॥ १३ ॥ सम्पूर्णमण्डलशशाङ्ककलाकलापशुभ्रा गुणास्त्रिभुवनं तव लङ्घयन्ति । ये संश्रितात्रिजगदीश्वर ! नाथमेकं, कस्तान्निवारयति सञ्चरतो यथेष्टम् ? ॥ १४ ॥ चित्रं किमत्र यदि ते त्रिदशाङ्गनाभिनतं मनागपि मनो न विकारमार्गम् ? | कल्पान्तकालमरुता चलिताचलेन, किं मन्दराद्रिशिखरं चलितं कदाचित् १ ॥ १५ ॥ निर्धूमवर्तिर• पवर्जिततैलपूरः, कृत्स्नं जगत्रयमिदं प्रकटीकरोषि । गम्यो न जातु मरुतां चलिताचलानां, दीपो - परस्त्वमसि नाथ ! जगत्प्रकाशः ॥ १६ ॥ नास्तं कदाचिदुपयासि न राहुगम्यः, स्पष्टीकरोषि सहसा युगपज्जगन्ति । नाम्भोधरोदरनिरुद्धमहाप्रभावः, सूर्यातिशायिमहिमाऽसि मुनीन्द्र ! लोके सप्तमं भक्तामर स्मरणम् ॥ ॥ ७ ॥ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ CIRE OCTOCROCOCESSINGER ॥ १७ ॥ नित्योदयं दलितमोहमहान्धकार, गम्यं न राहुवदनस्य न वारिदानाम् । विभ्राजते तव 8 मुखाजमनल्पकान्ति, विद्योतयजगदपूर्वशशाङ्कबिम्बम् ॥१८॥ किं शर्वरीषु शशिनाहि विवस्वता ६ वा, युष्मन्मुखेन्दुदलितेषु तमस्सु नाथ !। निष्पन्नशालिवनशालिनि जीवलोके, कार्य कियजलहै। धरैर्जलभारननैः ? ॥ १९ ॥ ज्ञानं यथा त्वयि विभाति कृतावकाशं, नैवं तथा हरिहरादिषु । | नायकेषु। तेजः स्फुरन्मणिषु याति यथा महत्त्वं, नैवं तु काचशकले किरणाकुलेऽपि ॥ २० ॥ | मन्ये वरं हरिहरादय एव दृष्टा, दृष्टेषु येषु हृदयं त्वयि तोषमेति । किं वीक्षितेन भवता ? भुवि IR येन नान्यः, कश्चिन्मनो हरति नाथ ! भवान्तरेऽपि ॥ २१ ॥ स्त्रीणां शतानि शतशो जनयन्ति | पुत्रान् , नान्यं सुतं त्वदुपमं जननी प्रसूता। सर्वा दिशो दधति भानि सहस्ररश्मि, प्राच्येव | दिग् जनयति स्फुरदंशुजालम् ॥२२॥ त्वामामनन्ति मुनयः परमं पुमांसमादित्यवर्णममलं समसः | परस्तात् । त्वामेव सम्यगुपलभ्य जयन्ति मृत्यु, नान्यः शिवः शिवपदस्य मुनीन्द्र! पन्थाः ॥२३॥ त्वामव्ययं विभुमचिन्त्यमसङ्घयमाद्यं, ब्रह्माणमीश्वरमनन्तमनङ्गकेतुम् । योगीश्वरं विदितयोगमनेकमेकं, ज्ञानस्वरूपममलं प्रवदन्ति सन्तः ॥ २४ ।। बुद्धस्त्वमेव विबुधार्चितबुद्धिबोधात् , त्वं Jain Education Inteme For Private 3 Personal Use Only Tww.jainelibrary.org Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नव स्मरणानि । सप्तम भक्तामरस्मरणम् ॥ KAHAKAKACKASAGAR शङ्करोऽसि भुवनत्रयशङ्करत्वात् । धाताऽसि धीर ! शिवमार्गविधेर्विधानाद्, व्यक्तं त्वमेव भगवन् ! पुरुषोत्तमोऽसि ॥ २५ ॥ तुभ्यं नमस्त्रिभुवनार्तिहराय नाथ!, तुभ्यं नमः क्षितितलामलभूषणाय । तुभ्यं नमस्त्रिजगतः परमेश्वराय, तुभ्यं नमो जिन ! मवोदधिशोषणाय ॥२६॥को विस्मयोऽत्र यदि नाम गुणैरशेषैस्त्वं संश्रितो निरवकाशतया ? मुनीश!दोषैरुपात्तविविधाश्रयजातगर्वैः, स्वप्नान्तरेऽपि न कदाचिदपीक्षितोऽसि ॥२७॥ उच्चैरशोकतरुसंश्रितमुन्मयूखमाभाति रूपममलं भवतो नितान्तम् । स्पष्टोल्लसकिरणमस्ततमोवितानं, बिम्बं रवेरिव पयोधरपार्श्ववर्ति ॥ २८॥ सिंहासने मणिमयूखशिखाविचित्रे, विभ्राजते तव वपुः कनकावदातम् । बिम्बं वियद्विलसदंशुलतावितानं, तुङ्गोदयाद्रि| शिरसीव सहस्ररश्मेः ॥ २९ ॥ कुन्दावदातचलचामरचारुशोभं, विभ्राजते तव वपुः कलधौतकान्तम् । उद्यच्छशाङ्कशुचिनिर्झरवारिधारमुच्चैस्तटं सुरगिरेरिव शातकौम्भम् ॥ ३० ॥ छत्रत्रयं तव विभाति शशाङ्ककान्तमुच्चैःस्थितं स्थगितभानुकरप्रतापम् । मुक्ताफलप्रकरजालविवृद्धशोभं, प्रख्यापयत्रिजगतः परमेश्वरत्वम् ॥३१॥ उन्निद्रहेमनवपङ्कजपुञ्जकान्तिपर्युल्लसन्नखमयुखशिखाभिरामौ । पादौ पदानि तव यत्र जिनेन्द्र ! धत्तः पद्मानि तत्र विबुधाः परिकल्पयन्ति ॥ ३२ ॥ इत्थं यथा तव H ॥८॥ OCIEOS Jan Education inten For Private Personal use only | Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education Inte विभूतिरभूजिनेन्द !, धर्मोपदेशनविधौ न तथा परस्य । यादृक् प्रभा दिनकृतः प्रहतान्धकारा, तादृक् कुतो ग्रहगणस्य विकाशिनोऽपि ? ॥ ३३ ॥ श्रयोतन्मदाविलविलोलकपोलमूलमन्त्तभ्रमद्धमरनादविवृद्धकोपम् । ऐरावताभमिभमुद्धतमापतन्तं दृष्ट्वा भयं भवति नो भवदाश्रितानाम् ॥ ३४ ॥ भिन्नेभकुम्भगलदुज्ज्वलशोणिताक्तमुक्ताफलप्रकर भूषितभूमिभागः । बद्धक्रमः क्रमगतं हरिणाधिपोऽपि नाक्रामति क्रमयुगाचलसंश्रितं ते ॥ ३५ ॥ कल्पान्तकालपत्रनोद्धतवह्निकल्पं, दावानलं ज्वलितमुज्ज्वलमुत्स्फुलिङ्गम् । विश्वं जिघत्सुमिव सम्मुखमापतन्तं त्वन्नामकीर्तनजलं शमयत्यशेषम् ॥ ३६ ॥ रक्तेक्षणं समदकोकिलकण्ठनीलं, क्रोधोद्धतं फणिनमुत्कणमापतन्तम् । आक्रामति क्रमयुगेन निरस्तशङ्कस्त्वन्नामनागदमनी हृदि यस्य पुंसः ||३७|| वल्गतुरङ्गगजगर्जितभीमनादमा बलं बलवतामपि भूपतीनाम् । उद्यद्दिवाकरमयूखशिखाऽपविद्धं, स्वत्कीर्तनात्तम इवाशु भिदामुपैति ॥ ३८ ॥ कुन्ताग्रभिन्नगजशोणितवारिवाह वे गावतारतरणातुरयोधभीमे । युद्धे जयं विजित दुर्जयजेय पक्षास्त्वत्पादपङ्कजवनाश्रयिणो लभन्ते ॥ ३९ ॥ अम्भोनिधौ क्षुभितभीषणनकचक्रपाठीनपीठभयदोल्बणवाडवानौ । रङ्गत्तरङ्गशिखरस्थितयानपात्रास्त्रासं विहाय भवतः Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्मरणानि। ॥९॥ ACCA% स्मरणाद् ब्रजन्ति ॥४०॥ उद्भूतभीषणजलोदरभारभुम्नाः, शोच्यां दशामुपगताच्युतजीविताशाः। अष्टम त्वत्पादपङ्कजरजोऽमृतदिग्धदेहा, मा भवन्ति मकरध्वजतुल्यरूपाः ॥ ४१ ॥ आपादकण्ठमुरु- | कल्याण मन्दिरशृङ्खलवेष्टिताङ्गा, गाढं बृहन्निगडकोटिनिघृष्टजङ्घाः । त्वन्नाममन्त्रमनिशं मनुजाः स्मरन्तः, सद्यः । में स्मरणम् ॥ स्वयं विगतबन्धभया भवन्ति ॥ ४२ ॥ मत्तद्विपेन्द्रमृगराजदवानलाहिसङ्ग्रामवारिधिमहोदरबन्ध-18 नोत्थम् । तस्याशु नाशमुपयाति भयं भियेव, यस्तावकं स्तवमिमं मतिमानधीते ॥ ४३ ॥ स्तोत्रस्रजं तव जिनेन्द्र ! गुणैर्निवद्धां, भक्त्या मया रुचिरवर्णविचित्रपुष्पाम् । धत्ते जनो य इह कण्ठगतामजस्रं, तं मानतुङ्गमवशा समुपैति लक्ष्मीः ॥ १४ ॥ ___(८) अष्टमं कल्याणमन्दिरस्मरणम्-कल्याणमन्दिरमुदारमवद्यभेदि, भीताभयप्रदमनिन्दितमधिपद्मम् । संसारसागरनिमजदशेषजन्तुपोतायमानमभिनम्य जिनेश्वरस्य ॥ १॥ यस्य स्वयं सुरगुरुगरिमाम्बुराशेः, स्तोत्रं सुविस्तृतमतिर्न विभुर्विधातुम् । तीर्थेश्वरस्य कमठस्मयधूमकेतो. स्तस्याहमेष किल संस्तवनं करिष्ये ॥२॥ युग्मम् ॥ सामान्यतोऽपि तव वर्णयितुं स्वरूपमस्मादृशाः कथमधीश ! भवन्त्यधीशाः ? । धृष्टोऽपि कौशिकशिशुर्यदिवा दिवान्धो, रूपं प्ररूपयति किं RECEIPRASACCASICALCCANCIES AECS Jain Education Intan For Private Personel Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ K ARCHECCANO किल धर्मरश्मेः? ॥३॥ मोहक्षयादनुभवन्नपि नाथ! मो, नूनं गुणान् गणयितुं न तव क्षमेत। 8. कल्पांतवान्तपयसः प्रकटोऽपि यस्मान्मीयत केन जलधेर्न रत्नराशिः?॥ ४॥ अभ्युद्यतोऽस्मि तव ६ नाथ ! जडाशयोऽपि, कर्तुं स्तवं लसदसञ्जयगुणाकरस्य । बालोऽपि किं न निजबाहुयुगं वितत्य, | विस्तीर्णतां कथयति स्वधियाऽम्बुराशेः ? ॥ ५॥ ये योगिनामपि न यान्ति गुणास्तवेश !, वक्तुं कथं भवति तेषु ममावकाशः ? । जाता तदेवमसमीक्षितकारितेयं, जल्पन्ति वा निजगिरा ननु पक्षिणोऽपि ? ॥ ६ ॥ आस्तामचिन्त्यमहिमा जिन ! संस्तवस्ते, नामापि पाति भवतो भवतो जगन्ति । तीव्रातपोपहतपान्थजनान्निदाधे, प्रीणाति पद्मसरसः सरसोऽनिलोऽपि ॥७॥ हृर्तिनि | त्वयि विभो ! शिथिलीभवन्ति, जन्तोः क्षणेन निबिडा अपि कर्मबन्धाः। सद्यो भुजङ्गममया इव मध्यभागमभ्यागते वनशिखण्डिनि चन्दनस्य ॥ ८॥ मुच्यन्त एव मनुजाः सहसा जिनेन्द्र !, रौद्रैरुपद्रवशतैस्त्वयि वीक्षितेऽपि। गोस्वामिनि स्फुरिततेजसि दृष्टमात्रे, चौरैरिवाशु पशवः प्रपलायमानैः ॥ ९॥ त्वं तारको जिन ! कथं भविनां ? त एव, त्वामुवहन्ति हृदयेन यदुत्तरन्तः । यद्वा दृतिस्तरति यजलमेष नूनमन्तर्गतस्य मरुतः स किलानुभावः ॥ १० ॥ यस्मिन् हरप्रभृतयोऽपि ASARASH-50- 50 % A Jan Education Intera For Private Personal Use Only W ww.jainelibrary.org Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नव स्मरणानि । ॥ १० ॥ Jain Education Intemat हतप्रभावाः, सोऽपि त्वया रतिपतिः क्षपितः क्षणेन । विध्यापिता हुतभुजः पयसाऽथ येन, पीतं न किं तदपि दुर्धरवाडवेन ? ॥ ११ ॥ स्वामिन्ननल्पगरिमाणमपि प्रपन्नस्त्वां जन्तवः कथमहो ! हृदये दधानाः । जन्मोदधिं लघु तरन्त्यतिलाघवेन ?, चिन्त्यो न हन्त ! महतां यदि वा प्रभावः ॥ १२ ॥ क्रोधस्त्वया यदि विभो ! प्रथमं निरस्तो, ध्वस्तास्तदा बत कथं किल कर्मचौराः ? | लोषत्यमुत्र यदि वा शिशिराऽपि लोके, नीलद्रुमाणि विपिनानि न किं हिमानी ? ॥ १३ ॥ त्वां योगिनो जिन ! सदा परमात्मरूपमन्वेषयन्ति हृदयाम्बुजकोशदेशे । पूतस्य निर्मलरुचेर्यदि वा किमन्यदक्षस्य सम्भवि पदं ननु कर्णिकायाः ? ॥ १४ ॥ ध्यानाजिनेश ! भवतो भविनः क्षणेन, देहं विहाय परमात्मदशां व्रजन्ति । तीत्रानलादुपलभावमपास्य लोके, चामीकरत्वमचिरादिव धातुभेदाः ॥ १५ ॥ अन्तः सदैव जिन ! यस्य विभाव्यसे त्वं भव्यैः कथं तदपि नाशय से शरीरम् ? । एतत्स्वरूपमथमध्यविवर्तिनो हि, यद्विग्रहं प्रशमयन्ति महानुभावाः ॥ १६ ॥ मनीषिभिरयं त्वदभेदबुद्धया, ध्यातो जिनेन्द्र ! भवतीह भवत्प्रभावः । पानीयमप्यमृतमित्यनुचिन्त्यमानं, किं नाम नो विषविकारमपाकरोति १ ॥ १७ ॥ त्वामेव वीततमसं परवादिनोऽपि, अष्टमं कल्याण मन्दिरस्मरणम् ॥ ॥ १० ॥ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ CASUALSACREC नूनं विभो ! हरिहरादिधिया प्रपन्नाः । किं काचकामलिभिरीश ! सितोऽपि शङ्खो, नो गृह्यते । | विविधवर्णविपर्ययेण? ॥१८॥ धर्मोपदेशसमये सविधानुभावादास्तां जनो भवति ते तरुरप्य शोकः । अभ्युद्गते दिनपतौ समहीरुहोऽपि, किंवा विबोधमपयाति न जीवलोकः ॥ १९ ॥ चित्रं | विभो! कथमवाङ्मुखवृन्तमेव, विष्वक् पतत्यविरला सुरपुष्पवृष्टिः। तद्गोचरे सुमनसां यदि वा मुनीश !, गच्छन्ति नूनमध एव हि बन्धनानि ॥ २०॥ स्थाने गभीरहृदयोदधिसम्भवायाः, | पीयूषतां तव गिरः समुदीरयन्ति । पीत्वा यतः परमसम्मदसङ्गभाजो, भव्या व्रजन्ति तरसाऽप्यजरामरत्वम् ॥ २१ ॥ स्वामिन् ! सुदूरमवनम्य समुत्पतन्तो, मन्ये वदन्ति शुचयः सुरचामरौघाः। येऽस्मै नतिं विदधते मुनिपुङ्गवाय, नूनमूर्ध्वगतयः खलु शुद्धभावाः ॥ २२ ॥ श्यामं गभीरगिरमुज्ज्वलहेमरत्नसिंहासनस्थमिह भव्यशिखण्डिनस्त्वाम् । आलोकयन्ति रभसेन नदन्तमुच्चैश्चामीकरादिशिरसीव नवाम्बुवाहम् ॥ २३ ॥ उद्गच्छता तव शितिद्युतिमण्डलेन, लुप्तच्छदच्छविरशोकतरुर्बभूव । सान्निध्यतोऽपि यदि वा तव वीतराग!, नीरागतां व्रजति को न सचेतनोऽपि ? ॥२४॥ भो भोः ! प्रमादमवधूय भजध्वमेनमागत्य निर्वृतिपुरिं प्रति सार्थवाहम् । एतन्निवेदयति देव ! CASSERIEOCOCCARD CANCECCICS Jain Education Internet For Private Personel Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नव स्मरणानि । ॥ ११ ॥ Jain Education Inter जगन्नयाय, मन्ये नदन्नभिनभः सुरदुन्दुभिस्ते ॥ २५॥ उद्योतितेषु भवता भुवनेषु नाथ !, तारान्वितो विधुरयं विताधिकारः । मुक्ताकलापकलितोच्छ्वसितातपत्रव्याजात्त्रिधा धृततनुर्भुवमभ्युपेतः॥ २६ ॥ प्रपूरितजगत्रपण्डितेन, कान्तिप्रतापयशसामिव सञ्चयेन । माणिक्यहेमरजतप्रविनिर्मितेन, सालत्रयेण भगवन्नाभितो विभासि ॥ २७ ॥ दिव्यत्रजो जिन ! नमत्रिदशाधिपानामुत्सृज्य रत्नखचितानपि मौलिबन्धान् । पादौ श्रयन्ति भवतो यदि वा परत्र, त्वत्सङ्गमे सुमनसो न रमन्त एव ॥ २८ ॥ त्वं नाथ ! जन्मजलधेर्विपराङ्मुखोऽपि यत्तारयस्यसुमतो निजपृष्ठलग्नान् । युक्तं . हि पार्थिवनिपस्य सतस्तवैव, चित्रं विभो ! यदसि कर्मविपाकशून्यः ॥ २९ ॥ विश्वेश्वरोऽपि जनपालक ! दुर्गतस्त्वं, किं वाऽक्षरप्रकृतिरप्यलिपिस्त्वमीश ! । अज्ञानवत्यपि सदैव कथञ्चिदेव, ज्ञानं स्वयि स्फुरति विश्वविकाशहेतुः ॥ ३० ॥ प्राग्भारसम्भूतनभांसि रजांसि रोषादुत्थापितानि कमठेन शठेन यानि । छायाऽपि तैस्तव न नाथ ! हता हताशो, ग्रस्तस्त्वमीभिरयमेव परं दुरात्मा ॥ ३१ ॥ यद् गर्जदूर्जितघनौघमदभ्रभीमं भ्रश्यत्तडिन्मुसलमांसलघोरधारम् । दैत्येन मुक्तमथ दुस्तरवारि दुधे, तेनैव तस्य जिन ! दुस्तरवारिकृत्यम् ॥ ३२ ॥ ध्वस्तोर्ध्वकेशविकृताकृतिम - अष्टमं कल्याण मन्दिरस्मरणम् ॥ ॥ ११ ॥ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education Interna मुण्डप्रालम्बभृद्भयदवक्त्रविनिर्यदग्निः । प्रेतव्रजः प्रति भवन्तमपीरितो यः, सोऽस्याभवत् प्रतिभवं | भवदुःखहेतुः || ३३ ॥ धन्यास्त एव भुवनाधिप ! ये त्रिसन्ध्यमाराधयन्ति विधिवद् विधुतान्यकृत्याः । भक्त्योल्लसत्पुलकपक्ष्मल देहदेशाः पादद्वयं तव विभो ! भुवि जन्मभाजः ॥ ३४ ॥ अस्मिन्न पारभववारिनिधौ मुनीश !, मन्ये न मे श्रवणगोचरतां गतोऽसि । आकर्णिते तु तव गौत्रपवित्रमन्त्रे, किं वा विपद्विषधरी सविधं समेति ? ॥ ३५ ॥ जन्मान्तरेऽपि तत्र पादयुगं न देव !, मन्ये मया महितमीहितदानदक्षम् । तेनेह जन्मनि मुनीश ! पराभवानां, जातो निकेतनमहं मथिताशयानाम् ॥३६॥ नूनं न मोहतिमिरावृतलोचनेन पूर्वं विभो ! सकृदपि प्रविलोकितोऽसि । मर्माविध विधुरयन्ति हि मामनर्थाः, प्रोद्यत्प्रबन्धगतयः कथमन्यथैते ? ॥ ३७ ॥ आकर्णितोऽपि महितोऽपि निरीक्षितोऽपि, नूनं न चेतसि मया विधृतोऽसि भक्त्या । जातोऽस्मि तेन जनबान्धव ! दुःखपात्रं, यस्मात् क्रियाः प्रतिफलन्ति न भावशून्याः ॥ ३८ ॥ त्वं नाथ ! दुःखिजनवत्सल हे शरण्य !, कारुण्य पुण्यवसते ! वशिनां वरेण्य ! । भक्त्या नते मयि महेश ! दयां विधाय दुःखाङ्कुरोद्दलनतत्परतां विधेहि ॥ ३९ ॥ निःसङ्घयसारशरणं शरणं शरण्यमासाद्य सादितरिपु জল জল এনে Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SE %A5 % A नव प्रथितावदातम्। त्वत्पादपङ्कजमपि प्रणिधानवन्ध्यो, वध्योऽस्मि चेद भुवनपालन ! हा हतोऽस्मि नवमं स्मरणानि। ॥४०॥ देवेन्द्रवन्ध ! विदिताखिलवस्तुसार !, संसारतारक ! विभो ! भुवनाधिनाथ ! त्रायस्व 81 बृहच्छा॥१२॥ देव ! करुणाहृद ! मां पुनीहि, सीदन्तमद्य भयदव्यसनाम्बुराशेः ॥ ४१॥ यद्यस्ति नाथ ! स्मरणम् ॥ भवदङ्घिसरोरुहाणां, भक्तेः फले किमपि सन्ततिसञ्चितायाः। तन्मे त्वदेकशरणस्य शरण्य ! भूयाः । स्वामी स्वमेव भुवनेऽत्र भवान्तरेऽपि ॥ ४२ ॥ इत्थं समाहितधियो विधिवजिनेन्द्र !, सान्द्रोल्लसत्पुलककञ्चुकिताङ्गभागाः। त्वद्विम्बनिर्मलमुखाम्बुजबद्धलक्षा, ये संस्तवं तव विभो ! रचयन्ति भव्याः ॥४३॥ जननयनकुमुदचन्द्र !, प्रभास्वराः स्वर्गसम्पदो भुक्त्वा । ते विगलित. मलनिचया, अचिरान्मोक्षं प्रपद्यन्ते ॥ ४४ ॥ युग्मम् ॥ (९) नवमं बृहच्छान्तिस्मरणम् ॥-भो ! भो ! भव्याः ! शृणुत वचनं प्रस्तुतं सर्वमेतद्, ये & यात्रायां त्रिभुवनगुरोराहता भक्तिभाजः। तेषां शान्तिर्भवतु भवतामहदादिप्रभावादारोग्यश्रीधृति मतिकरी क्लेशविध्वंसहेतुः॥१॥ भो ! भो ! भव्यलोकाः ! इह हि भरतैरावतविदेहसम्भवानां समस्ततीर्थकृतां जन्मन्यासनप्रकम्पानन्तरमवधिना विज्ञाय सौधर्माधिपतिः, सुघोषाघण्टा- ॥१२॥ RECCCCCCANCE 4 % 95% Jain Education Intem For Private Personel Use Only All ES Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education Inter चालनानन्तरं सकलसुरासुरेन्द्रः सह समागत्य सविनयमर्हद्भट्टारकं गृहीत्वा गत्वा कनका. द्रिशृङ्गे विहितजन्माभिषेकः शान्तिमुद्धोषयति यथा ततोऽहं कृतानुकारमिति कृत्वा 'महाजो येन गतः स पन्थाः ' इति भव्यजनैः सह समेत्य स्नात्रपीठे स्नात्रं विधाय शान्तिमुद्धेोषयामि, तत्पूजायात्रास्नात्रादिमहोत्सवानन्तरमिति कृत्वा कर्णं दत्त्वा निशम्यतां निशम्यतां स्वाहा । ॐ पुण्याहं पुण्याहं प्रीयन्तां प्रीयन्तां भगवन्तोऽर्हन्तः सर्वज्ञाः सर्वदर्शिनस्त्रिलोकनाथा. स्त्रिलोकमहितास्त्रिलोकपूज्यास्त्रिलोकेश्वरात्रिलोकोद्योतकराः । ॐ ऋषभअजितसम्भव अभिनन्दन सुमतिपद्मप्रभसुपार्श्वचन्द्रप्रभसुविधिशीतलश्रेयांसवासुपूज्यविमलअनन्तधर्मशान्तिकुन्थुअरमल्लिमनिसुव्रतनमिनेमिपार्श्ववर्धमानान्ता जिनाः शान्ताः शान्तिकरा भवन्तु स्वाहा । ॐ मुनयो मुनिप्रवरा रिपुविजयदुर्भिक्षकान्तारेषु दुर्गमार्गेषु रक्षन्तु वो नित्यं स्वाहा । ॐ ह्रीं श्रीं धृतिमतिकीर्तिकान्तिबुद्धिलक्ष्मीमेधाविद्या साधनप्रवेशननिवेशनेषु सुगृहीतनामानो जयन्तु ते जिनेन्द्राः । ॐ रोहिणीप्रज्ञप्तिवज्रशृङ्खलावज्राङ्कुशीअप्रेतिचक्रापुरुषदत्ताकाली महाकाली गौरीगांधीं िसर्वास्त्रामहाज्वाला मानवीवेरोट्या अच्छुतोमानसी महमानसी षोडश विद्यादेव्यो रक्षन्तु वो नित्यं स्वाहा । ॐ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बन स्मरणानि ॥ १३ ॥ Jain Education Intert ग्रहा आचार्योपाध्यायप्रभृति चातुर्वर्णस्य श्री श्रमणसङ्घस्य शान्तिर्भवतु तुष्टिर्भवतु पुष्टिर्भवतु । ॐ श्चन्द्रसूर्याङ्गारकबुधबृहस्पतिशुक्रशनैश्चरराहु केतुसहिताः सलोकपालाः सोमयमवरुणकुबेरवासवाऽऽदित्यस्कन्दविनायकोपेता ये चान्येऽपि ग्रामनगरक्षेत्र देवतादयस्ते सर्वे प्रीयन्तां प्रीयन्तां अक्षीणकोषकोष्ठागारा नरपतयश्च भवन्तु स्वाहा । ॐ पुत्रमित्रभ्रातृकलत्र सुहृत्स्वजन सम्बन्धिबन्धुवर्गसहिता नित्यं चाऽऽमोदप्रमोद कारिणः, अस्मिंश्च भूमण्डलायतननिवासिसाधु साध्वीश्रावकश्राविकाणां रोगोपसर्गव्याधिदुःखदुर्भिक्ष दौर्मनस्योपशमनाय शान्तिर्भवतु । ॐ तुष्टिपुष्टिऋद्धिवृद्धिमाङ्गल्योत्सवाः, सदा प्रादुर्भूतानि पापानि शाम्यन्तु दुरितानिं, शत्रवः पराङ्मुखा भवन्तु स्वाहा । श्रीमते शान्तिनाथाय नमः शान्तिविधायिने । त्रैलोक्यस्यामराधीश मुकुटाभ्यर्चिताङ्घये ॥ १ ॥ शान्तिः शान्तिकरः श्रीमान्, शान्ति दिशतु मे गुरुः । शान्तिरेव सदा तेषां येषां शान्तिर्गृहे गृहे ॥ २ ॥ उन्मृष्टरिष्टदुष्टग्रहगतिदुःखप्रदुर्निमित्तादि । सम्पादितहितसम्पन्नामग्रहणं जयति शान्तेः ॥ ३ ॥ श्रीसङ्घजगज्जनपदाजाधिपराजसन्निवेशानाम् । गोष्ठिकपुरमुख्याणां व्याहरणैर्व्याहरेच्छान्तिम् ॥ ४ ॥ श्रीश्रमणसङ्घस्य शान्तिर्भवतु, श्रीजनपदानां शान्तिर्भवतु, श्रीराजाधिपानां शान्तिर्भवतु, श्रीराजस नवमं बृहच्छा न्ति स्मरणम् ॥ ॥ १३ ॥ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education Internati निवेशानां शान्तिर्भवतु, श्रीगोष्ठिकानां शान्तिर्भवतु, श्रीपौर मुख्याणां शान्तिर्भवतु, श्रीपौरजस्य शान्तिर्भवतु, श्रीब्रह्मलोकस्य शान्तिर्भवतु, ॐ स्वाहा ॐ स्वाहा ॐ श्रीपार्श्वनाथाय स्वाहा । एषा शान्तिः प्रतिष्ठायात्रास्नात्राद्यवसानेषु शान्तिकलशं गृहीत्वा कुङ्कुमचन्दनकर्पूराऽगरुधूपवासकुसुमाञ्जलिसमेतः स्नात्रचतुष्किकायां श्रीसङ्घसमेतः शुचि शुचिवपुः पुष्पवस्त्रचन्दनाssभरणालङ्कृतः पुष्पमालां कण्ठे कृत्वा शान्तिमुद्धोषयित्वा शान्तिपानीयं मस्तके दातव्यमिति । नृत्यन्ति नृत्यं मणिपुष्पवर्षं, सृजन्ति गायन्ति च मङ्गलानि । स्तोत्राणि गोत्राणि पठन्ति मन्त्रान्, कल्याणभाजो हि जिनाभिषेके ॥ १ ॥ शिवमस्तु सर्वजगतः परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः । दोषाः प्रयान्तु नाशं, सर्वत्र सुखीभवन्तु लोकाः ॥ २ ॥ अहं तित्थयरमाया, सिवादेवी तुम्ह नयरनिवासिनी । अम्ह सिवं तुम्ह सिवं, असिवोवसमं सिवं भवतु ॥ ३ ॥ स्वाहा ॥ उपसर्गाः क्षयं यान्ति, च्छिद्यन्ते विघ्नवलयः । मनः प्रसन्नतामेति, पूज्यमाने जिनेश्वरे ॥ ४ ॥ सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं, सर्वकल्याणकारणम् । प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम् ॥ ५ ॥ इति प्रत्यहमसंक्लेशे उत्सवेषु च त्रिसन्ध्यं वर्षारंभदिने च प्रातश्चतुर्विधश्रीसंघसमक्षं स्मर्तव्यानि ॥ समाप्तानि नव स्मरणानि ॥ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री गौतम स्वामि ॥ १४ ॥ Jain Education Internatio श्रीगौतमस्वामिरास. 906 ( ढाळ १ ली - भाषाछंद. ) वीरजणेसरचरणकमलकमलाकरवासो, पणमवि पभणिसु सामिसालगोयमगुरुरासो । मणतणुवयकत करवी निसुणो भो भविया, जिम निवसे तुम्ह देहगेह, गुणगणगहगहीया ॥ १ ॥ जंबूदीव सिरिभरहखित्त खोणीतलमंडण, मगधदेश सेणियनरेस रिउदलबलखंडण | धणवर गुब्बराम नाम जिहां जण गुणगणसज्जा, विप्प वसे वसुभूइ तत्थ, तसु पुहवी भज्जा ॥ २ ॥ ताण पुत सिरिइंदभूइ भूवलयपसिद्धो, चउदहविज्जा विविहरूव नारीरसविद्धो । विनयविवेक विचारसार गुणगणमनोहर, सात हाथ सुप्रमाणदेह रूप हि रंभावर ॥ ३ ॥ नयणवयणकरचरण जिणाव पंकज जळ पाडिय, तेजे ताराचंदसुर आकाश भमाडिय । रूवे मयण अनंग करवी मेल्ह्यो निरधाडीय, धीरमें मेरु गंभीर सिंधु चंगिमचयचाडिय ॥ ४ ॥ खवि निरुवमरूव जास जण जंपे किंचिय, एकाकी कलिभीत इत्थ गुण म्हेल्या संचिय | अहवा निश्चे पुवजम्म जिणवर इणे रास ॥ | ॥ १४ ॥ ww.jainelibrary.org Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4%A4%95 PI अंचिय, रंभापउमागौरीगंगरति । हा विधि वंचिय ॥ ५॥ नहि बुध नहि गुरु कवि न कोइ जसु आगल रहिओ, पंचसया गुणपात्र छात्र हिंडे परवरिओ। करे निरंतर यज्ञकर्म मिथ्यामतिमोहिय, इण छळ होशे चरण नाण देसणह विसोहिय ॥ ६ ॥ (वस्तुछंद-) जंबूदीवह जंबूदीवह भरहवासंमि, खोणीतलमंडण ममधदेस सेणिय नरेस। वर गुब्बरगाम तिहां, विप्प वसे वसुभूइ सुंदरतसु भजा पुहवी सयलगुणगणरूवनिहाण । ताण पुत्त विजानीलो, गायम अतिहि सुजाण ॥७॥ (ढाळ २ जी-भाषा.) चरमजिणेसर केवलनाणी, चउविहसंघ पइट्ठा जाणी। पावापुरी सामी | संपत्तो, चउविहदेवनिकायहि जुत्तो ॥ ८॥ देवे समवरण तिहां कीजे, जिण दीठे मिथ्यामति | खीजे । त्रिभुवनगुरु सिंहासन बइठ्ठा, ततखिण मोह दिगंते पइछा ॥ ९ ॥ क्रोध मान माया मद पूरा, जाये नाठा जिम दिन चौरा । देवदुंदुहि आकाशे वाजे, धर्मनरेसर आव्या गाजे ॥१०॥ कुसुमवृष्टि विरचे तिहां देवा, चोसठ इंद्र जसु मागे सेवा। चामरछत्र शिरोवरि सोहे. रूपाहि जिणवर जग सह मोहे ॥ ११ ॥ उवसमरसभरभरी वरसंता, जोजनवाणि वखाण करता। जाणवि वद्धमाणजिणपाया, सुरनरकिन्नर आवे राया ॥ १२ ॥ कांतिसमूहे झलझलकता, गयण %%ATES Jan Educat an inte For Private Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमस्वामि ॥ १५ ॥ Jain Education Intern विमाणे रणरणकंता । पेखवि इंदभूइ मन चिंते, सुर आवे अम्ह यज्ञ होवंते ॥ १३ ॥ तीर तरंडक जिम ते वहता, समवसरण पुहता गहगहता । तो अभिमाने गोयम जंपे, इणि अवसरे कोपेत कंपे ॥ १४ ॥ मूढा लोक अजाणुं बोले, सुर जाणंता इम कांई डोले । मू आगळ को जाण भणजे, मेरु अवर किम उपमा दीजे ? ॥ १५ ॥ (वस्तुछंद-) वीर जिणवर वीर जिणवर नाणसंपन्न, पावापुरी सुरमहिय पत्त नाह संसारतारण, तहिं देवेहिं निम्मविय समवसरण बहुसुखकारणजिणवर जग उज्जो करे, तेजे करि दिनकार | सिंहासण सामी ठव्यो, हुओ सुजयजयकार ॥ १६ ॥ ( ढाळ ३ जी-भाषा. ) तव चढिओ घणमानगजे, इंदभूइ भूदेव तो । हुंकारो करि संचरिओ, कवण जिणवरदेव तो ? ॥ १७ ॥ जोजनभूमि समवसरण, पेखे प्रथमारंभ तो । दहदिसि देखे विबुधवधू, आवंती सुररंभ तो ॥ १८ ॥ मणिमयतोरणदंडधज, कोसीसे नवघाट तो । वैरविवजित जंतुगण, प्रातिहारज आठ तो ॥ १९ ॥ सुरनरकिन्नर असुरवर, इंद्र इंद्राणी राय तो । चित्ते चमक्किय चिंतवे ए, सेवंता प्रभुपाय तो ॥ २० ॥ सहसकिरण सम वीरजिण, पेखवि रूपविशाळ तो । एह असंभव संभवे ए, साचो ए इंद्रजाळ तो ॥ २१ ॥ तो बोलावे त्रिजग रास ॥ ॥ १५ ॥ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FिACCI51514ॐॐ गुरु, इंदभुइ नामेण तो। श्रीमुखे संशय सामि सवे, फेडे वेदपएण तो ॥ २२॥ मान मेल्ही | मद ठेली करी, भगते नामे सीस तो। पंचसयासुं व्रत लीयो ए, गोयम पहिलो सीस तो॥२३॥ | बंधवसंजम सुणवि करी, अगनिभुइ आवेइ तो। नाम लेइ आभास करे, ते पण प्रतिबोधेइ तो ॥ २४ ॥ इण अनुक्रमे गणहररयण, थाप्या वीर अग्यार तो । तव उपदेशे भुवनगुरु, संजमशुं | व्रत बार तो ॥ २५ ॥ बिहुँ उपवासे पारणुं ए, आपणपे विहरंत तो। गोयम संजम जग सयल, जयजयकार करंत तो ॥ २६ ॥ ( वस्तुछंद-) इंदभूइअ इंदभूइअ चढिय बहुमान हुंकारो करी कंपतो समवसरण पहोतो तुरंत । इह संसा सामि सवे, चरमनाह फेडे फुरंत-बोधिबीज संजाय | मने, गायम भवह विरत्त । दिक्ख लेइ सिक्खा सहिय, गणहरपय संपत्त ॥ २७॥ ___(ढाळ ४ थी-भाषा.) आज हुओ सुविहाण, आज पचेलिमां पुण्यभरो । दीठा गोयमसामि, | जो नियनयणे अमियभरो ॥ २८ ॥ सिरिगोयमगणहार, पंचसयां मुनिपरिवरिय, भूमिय करे विहार, भवियां जण पडिबोह करे ॥ २९ ॥ समवसरण मोझार, जे जे संसा उपजे ए । ते ते परउपगार कारण पूछे मुनिपवरो ॥ ३० ॥ जिहां जिहां दीजे दिक्ख, तिहां EिARCHCRACTREAUCRICA ॐ ॐॐ Jain Educat an intemel For Private Personal use only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री गौतमस्वामि ॥ १६॥ Jain Education Internat तिहां केवल उपजे ए । आप कन्हे अणहुंत, गोयम दीजे दान इम ॥ ३१ ॥ गुरु उपरे गुरुभत्ति, सामी गोयम उपनीय । इण छल केवलनाण, रागज राखे रंगभरे ॥ ३२ ॥ जो अष्टा पदशैल, वंदे चढी चउवीश जिण । आतमलब्धिवसेण, चरमसरीरी सोय मुनि ॥ ३३ ॥ इअ देसण निसुणेइ, गोयमगणहर संचलिओ । तापसपनरसएण, तो मुनि दीठो आवतो ए ॥ ३४ ॥ तवसोसिय नियअंग, अम्ह शक्ति नवि उपजे ए । किम चढशे दृढकाय, गज जिम दिसे गाजतो ए ? ॥ ३५ ॥ गिरुओ एणे अभिमान, तापस जो मन चिंतवे ए। तो मुनि चढीयो वेग, आलंबवि दिनकर किरण ॥ ३६ ॥ कंचणमणिनिष्पन्न, दंडकलसधजवड सहिय । पेखवि परमाणंद, जिणहर भरहेसरमहिय ॥ ३७ ॥ नियनियकायप्रमाण, चउदिसि संठिअ जिगह बिंब | पणमवि मनउल्लास, गोयमगणहर तिहां वसिय ॥ ३८ ॥ वयरस्वामीनो जीव, तिर्यग्जृंभक देव तिहां । प्रतिबोधे पुंडरीककंडरीक अध्ययन भणी ॥ ३९ ॥ वळता गोयमसामि, सवि तापस प्रतिबोध करे । लेई आपण साथ, चाले जिम जूथाधिपति ॥ ४० ॥ खरिखांडघृत आण, अमिअवूठ अंगुठवि । गोयम एकण पात्र, करावइ पारणुं सवे ॥ ४१ ॥ पंचसयां शुभभाव, उज्ज्वल रास ॥ ॥ १६ ॥ ww.jainelibrary.org Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SAHARSAGAR भरियो खीरमीसे । साचागुरु संजोग, कवळ ते केवळरूप हुओ ॥ ४२ ॥ पंचसयां जिणनाह, समवसरण प्राकारत्रय । पेखवि केवलनाण, उप्पन्नु उज्जोयकरे ॥ ४३ ॥ जाणे जिणवि पियूष, गाजंती घणमेघ जिम । जिणवाणी निसुणेइ, नाणी हुआ पंचसयां ॥ ४४ ॥ ( वस्तुछंद-) इणे अनुक्रमे इणे अनुक्रमे नाणसंपन्न, पन्नरह सय परिवरिय हरियदुरिय जिणनाह वंदइ, जाणवि जगगुरुवयण तिण्ह नाण अप्पाण निंदइ चरमजिणेसर इम भणइ, गोयम म करिस खेउ । छेडे जइ आपण सही, होसुं तुल्ला बेउ ॥४५॥ . ( ढाळ ५ मी-भाषा.) सामिओ ए वीरजिणंद पुनिमचंद जिम उल्लसिअ, विहरिओ ए भरहवासम्मि वरिस बहोंतेर संवसिअ । ठवतो ए कणयपउमेसु पायकमळ संघहि सहिअ, आविओ ए नयणाणंद नयर पावापुरी सुरमहिय ॥ ४६ ॥ पेखिओ ए गोयमसामी देवशर्मा प्रतिबोध करे, आपणो ए त्रिशलादेवीनंदन पहोतो परमपए । वळतां ए देव आकाश पेखवि जाणिय जिणसमे ए. तो मनि मन विखवाट नाटभेट जिम ऊपनो ए॥४७॥ कण समो ए सामिय देखि आप कन्हे हुँ टालिओ ए, जाणतो ए तिहुअणनाह लोकविवहार न पालिओ ए । अतिभलं ए कीधलं SASARDARKERSEARCANCERTIS Jain Education inte For Private Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीवौतम-है। | सामि जाण्यु केवल मागशे ए, चिंतवियु ए बाळक जेम अहवा केडे लागशे ए ॥४८॥ई किम HIR स्वामि। ए वीर जिणंद ! भगते भोळो भोळव्यो ए, आपणो ए अविहड नेह नाह ! न संपे साचव्यो ए। साचो ए एक वीतराग नेह न जेणे लालिओ ए, इण समे गोयमचित्त रागवैरागे वाळिओ ए॥ ४९ ॥ आवतुं ए जे ऊलट्ट रहेतुं रागे साहिउं ए, केवल ए नाण उप्पन्न गोयम सहेजे उमाहिओ ए । तिहुअण ए जयजयकार केवलमहिमा सुर करे ए, गणहर ए करेय वखाण भवियण भव जिम निस्तरे ए ॥ ५० ॥ (वस्तुछंद-) पढमगणहर पढमगणहर वरिसपचास, गिहिवासे संवसिय तीसवरिस संजम विभूसिय, सिरिकेवलनाण पुण बारवरिस तिहुयण नमंसियरायगिहि नयरीहिं ठविअ, बाणुंवयवरिसाउ । सामी गोयम गुणनीलो, होशे शिवपुर ठाउ॥५१॥ (ढाळ ६ ठी-भाषा.) जिम सहकारे कोयल टहुके, जिम कुसुमह वन परिमल महके, जिम चंदन सोगंधनिधि । जिम गंगाजल लहेरे लहके, जिम कणयाचल तेजे झलके, तिम गोयम सौभाग्यनिधि ॥ ५२ ॥ जिम मानसरोवर निवसे हंसा, जिम सुरवरसिरि कणयवतंसा, जिम महुयर राजीववने । जिम रयणायर रयणे विलसे, जिम अंबर तारागण विकसे, तिम गोयम AASARAA5% ACASSACROREGAONOKAR Jain Education Intel For Private Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education Intern गुणकेलि वने ॥ ५३ ॥ पुनमनिशि जिम शशहर सोहे, सुरतरु महिमा जिम जग मोहे, पूरवदिसि जिम सहसकरो | पंचानन जिम गिरिवर राजे, नरवरघर जिम मयगल गाजे, तिम जिनशासन मुनिपवरो ॥ ५४ ॥ जिम सुरतरुवर सोहे शाखा, जिम उत्तममुख मधुरी भाषा, जिम वनकेतकी महमए । जिम भूमिपति भुयबल चमके, जिम जिनमंदिर घंटा रणके, तिम गोयम लब्धे गहगए ॥ ५५ ॥ चिंतामणि कर चढिओ आज, सुरतरु सारे वंछितकाज, कामकुंभ सवि वश हुओ ए । कामगवी पूरे मनकामिय, अष्ट महासिद्धि आवे धामिय, सामिय गोयम अणुसरो ए ॥ ५६ ॥ पणवक्खर पहेलो पभणीजे, मायाबीज श्रवण निसुणीजे, श्रीमति शोभा संभवे ए । देवह धुरि अरिहंत नमीजे, विनय पहुत्त उवझाय धुणीजे, इण मंत्रे गोयम नमो ॥५७॥ पुरपुर वसतां कां करीजे, देश देशांतर कांइ भमीजे, कवण काज आयास करो। प्रह उठी गोयम समरीजे, काज समग्गह ततखण सीझे, नवनिधि विलसे तास घरे ॥ ५८ ॥ चउदह सय बारोत्तर वरसे, गोयमगणहर केवलदिवसे, किओ कवित उपगारपरो । आदेहि मंगल एह भणीजे, परवमहोच्छ पहिलो कीजे, ऋद्धिवृद्धिकल्याण करो ॥ ५९ ॥ धन्य माता जिणे उदरे धरिया, ANAA ww.jainelibrary.org Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीगौतम-2| धन्य पिता जिणे कुल अवतरिया, धन्य सद्गुरु जिणे दिक्खिया ए। विनयवंत विद्याभंडार, II रास // स्वामि। जस गुण कोई न लब्भे पार, विद्यावंत गुरु वीनवे ए // 60 // गौतमस्वामितणो ए रास, भणतां // 18 // सुणतां लीलविलास, सासय सुख निधि संपजे ए / गौतमस्वामिनो रास भणीजे, चउविहसंघ रलियायत कीजे, ऋद्धिवृद्धिकल्याण करो // 61 // इति // सर्वमंगलमांगल्यं, सर्वकल्याणकारणम् / प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम् // 1 // // श्रीगौतमस्वामिरास संपूर्ण / -- -- -- श्रीदीवालि-पर्व- गणj नो०२०-श्रीमहावीरस्वामिसर्वज्ञाय नमः-आ पदनुं पहेली रात्रे आठ वागे गणणुं गणवू. नो० २०–श्रीमहावीरस्वामिपारंगताय नमः-आ पदनुं गणवू, बाद श्रीमहावीर निर्वाणना पाछली रात्रे देव वांदवा. नो० २०-श्रीगौतमस्वामिसर्वज्ञाय नमः-आ पदनी गणवी अने प्रभाते देव वांदवा. G // 18 // SEARCRAKASHAIL PRECALCHECRECRUAROCHAKARANA Jain Education Interation For Private Personel Use Only G wjainelibrary.org