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________________ श्री गौतमस्वामि ॥ १६॥ Jain Education Internat तिहां केवल उपजे ए । आप कन्हे अणहुंत, गोयम दीजे दान इम ॥ ३१ ॥ गुरु उपरे गुरुभत्ति, सामी गोयम उपनीय । इण छल केवलनाण, रागज राखे रंगभरे ॥ ३२ ॥ जो अष्टा पदशैल, वंदे चढी चउवीश जिण । आतमलब्धिवसेण, चरमसरीरी सोय मुनि ॥ ३३ ॥ इअ देसण निसुणेइ, गोयमगणहर संचलिओ । तापसपनरसएण, तो मुनि दीठो आवतो ए ॥ ३४ ॥ तवसोसिय नियअंग, अम्ह शक्ति नवि उपजे ए । किम चढशे दृढकाय, गज जिम दिसे गाजतो ए ? ॥ ३५ ॥ गिरुओ एणे अभिमान, तापस जो मन चिंतवे ए। तो मुनि चढीयो वेग, आलंबवि दिनकर किरण ॥ ३६ ॥ कंचणमणिनिष्पन्न, दंडकलसधजवड सहिय । पेखवि परमाणंद, जिणहर भरहेसरमहिय ॥ ३७ ॥ नियनियकायप्रमाण, चउदिसि संठिअ जिगह बिंब | पणमवि मनउल्लास, गोयमगणहर तिहां वसिय ॥ ३८ ॥ वयरस्वामीनो जीव, तिर्यग्जृंभक देव तिहां । प्रतिबोधे पुंडरीककंडरीक अध्ययन भणी ॥ ३९ ॥ वळता गोयमसामि, सवि तापस प्रतिबोध करे । लेई आपण साथ, चाले जिम जूथाधिपति ॥ ४० ॥ खरिखांडघृत आण, अमिअवूठ अंगुठवि । गोयम एकण पात्र, करावइ पारणुं सवे ॥ ४१ ॥ पंचसयां शुभभाव, उज्ज्वल For Private & Personal Use Only रास ॥ ॥ १६ ॥ ww.jainelibrary.org
SR No.600104
Book TitleNavsmaranani
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year
Total Pages36
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size2 MB
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