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________________ श्रीवौतम-है। | सामि जाण्यु केवल मागशे ए, चिंतवियु ए बाळक जेम अहवा केडे लागशे ए ॥४८॥ई किम HIR स्वामि। ए वीर जिणंद ! भगते भोळो भोळव्यो ए, आपणो ए अविहड नेह नाह ! न संपे साचव्यो ए। साचो ए एक वीतराग नेह न जेणे लालिओ ए, इण समे गोयमचित्त रागवैरागे वाळिओ ए॥ ४९ ॥ आवतुं ए जे ऊलट्ट रहेतुं रागे साहिउं ए, केवल ए नाण उप्पन्न गोयम सहेजे उमाहिओ ए । तिहुअण ए जयजयकार केवलमहिमा सुर करे ए, गणहर ए करेय वखाण भवियण भव जिम निस्तरे ए ॥ ५० ॥ (वस्तुछंद-) पढमगणहर पढमगणहर वरिसपचास, गिहिवासे संवसिय तीसवरिस संजम विभूसिय, सिरिकेवलनाण पुण बारवरिस तिहुयण नमंसियरायगिहि नयरीहिं ठविअ, बाणुंवयवरिसाउ । सामी गोयम गुणनीलो, होशे शिवपुर ठाउ॥५१॥ (ढाळ ६ ठी-भाषा.) जिम सहकारे कोयल टहुके, जिम कुसुमह वन परिमल महके, जिम चंदन सोगंधनिधि । जिम गंगाजल लहेरे लहके, जिम कणयाचल तेजे झलके, तिम गोयम सौभाग्यनिधि ॥ ५२ ॥ जिम मानसरोवर निवसे हंसा, जिम सुरवरसिरि कणयवतंसा, जिम महुयर राजीववने । जिम रयणायर रयणे विलसे, जिम अंबर तारागण विकसे, तिम गोयम AASARAA5% ACASSACROREGAONOKAR Jain Education Intel For Private Personal Use Only
SR No.600104
Book TitleNavsmaranani
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year
Total Pages36
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size2 MB
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