Book Title: Jin Darshan Chovisi
Author(s): Prakrit Bharti Academy
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिन दर्शन चौवीसी PATN बीमालारनामी नालातमा Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृत भारती पुष्प-83 जिन दर्शन चौवीसी अनानुपूर्वी सहित (जयपुरी चित्रकला के उत्कृष्ट बहुरंगी चित्र) प्रकाशक: प्राकृत भारती अकादमी, जयपर. Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशक: देवेन्द्रराज मेहता प्राकृत भारती अकादमी 13-ए, मेन मालवीय नगर, जयपुर-302017 दूरभाष - 524827, 524828 पुनर्मुद्रण-1995 द्वितीय संस्करण-2000 मूल्य : 100 रूपये मुद्रकः इन्टरनेशनल प्रिन्ट-ओ-पैक लिमिटेड् Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय जयपुरी चित्रकला के उत्कृष्ट 25 बहुरंगी चित्रों के साथ “जिन दर्शन चौवीसी' को प्राकृत भारती के 83 वे पुष्प के रुप में प्रकाशित करते हुए हमें अत्यधिक प्रसन्नता है। लगभग 55-60 वर्ष पूर्व जयपुर पेलेस के प्रसिद्ध चित्रकार श्री बद्रीनारायणजी ने अपनी सूक्ष्म तूलिका एवं अनोखी सूझबूझ के साथ विविध रंगों में इन चित्रों का अंकन/निर्माण किया था। यह निर्माण कार्य उन्होंने तत्कालीन जयपुर में स्थित जैन स्थापत्य, मूर्तिकला, चित्रकला तथा ज्योतिष शास्त्र के प्रसिद्ध जैन विद्वान स्व0 पंडित भगवानदासजी जैन के परामर्श एवं निरीक्षण में किया था। यही कारण है कि ये सभी चित्र शास्त्रानुसार प्रमाणोपेत बन सके। इन चित्रों का यह वैशिष्ट्य है कि प्रत्येक तीर्थकर का चित्र अष्ट महाप्रातिहार्य, वर्ण एवं लंछन संयुत है। चित्र के आजू बाजू में शासन देव-देवियों के चित्र भी शास्त्रीय-पद्धति से उनके वर्ण, स्वरूप एवं आयुधों के साथ अंकित किये गये हैं। पच्चीसवां चित्र सूरिमन्त्राधिष्ठाता सर्वलब्धिनिधान गौतमस्वामी का है और इस चित्र के चारों दिशाओं में क्रमशः सरस्वती, त्रिभुवन स्वामिनी, लक्ष्मी एवं गणिपिटक यक्षराज के चित्र हैं। श्री बद्रीनारायण ने निर्माणोपरान्त ये सभी चित्र गुरुभक्तिवश पं0 भगवानदासजी जैन को सप्रेम अर्पित कर दिये थे। पं0 भगवानदासजी ने इन चित्रों को "आदर्श जैन दर्शन चौवीसी और अनानूपूर्वी' के नाम से वीर संवत 2466, विक्रम संवत 1996, ईस्वी सन् 1939 में स्वयं ने ही प्रकाशित किये थे। कलापूर्ण चौवीसी होने से समाज ने भी इसे अच्छा सम्मान दिया। फलतः यह प्रथमावृत्ति कुछ ही समय में अप्राप्त हो गई थी। Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृत भारती अकादमी की कई वर्षों से यह उत्कट अभिलाषा रही कि जयपुरी शैली की इस कलात्मक चौवीसी का पुनर्मुद्रण अवश्य करवाया जाए। पं0 भगवानदासजी के देहावसान के पश्चात इस चौवीसी के चित्रों एवं ब्लाकों को खोजने का पूर्ण प्रयास भी किया, किन्तु इसके ओरछोर का पता न लग सका। इसी बीच हमने नाथद्वारा और कलकत्ता के प्रसिद्ध चित्रकारों द्वारा एकएक नवीन चित्र भी बनवाने का प्रयत्न किया किन्तु वे सन्तुष्टिकारक न बन सके। यह संयोग ही था कि 4 वर्ष पूर्व साहित्य मंदिर, पालीताणा में विराजमान प्रसिद्ध कला मर्मज्ञ पूज्य आचार्य श्री विजय यशोदेवसूरिजी म. से मिलना हुआ। वार्ता के दौरान इस चौवीसी के पुनर्मुद्रण प्रसंग पर उनसे ज्ञात हुआ कि चौवीसी के चित्र 50 वर्ष पूर्व ही पं0 भगवानदासजी जैन से उन्होंने खरीद लिये थे, वे उनके पास सुरक्षित है। यह जानकर हमें हार्दिक प्रसन्नता हुई। प्राकृत भारती की प्रबंध समिति में इसके पुनर्मुद्रण की सहमति प्राप्त कर हमने पूज्य आचार्यश्री से पत्राचार द्वारा विनम्र अनुरोध किया कि 'प्राकृत भारती उक्त चौवीसी छपवाना चाहती है अतःचौवीसी के चित्र हमें भिजवाने की कृपा करावें, हम ब्लाक बनवाकर चित्र वापस लौटा देंगे अथवा चित्रों की ट्रान्सपरेंसी भिजवा दें। हमारे सविनय निवेदन को उदारमना कलाप्रेमी आचार्य श्री विजययशोदेवसूरिजी म0 ने सहर्ष स्वीकार किया और प्रसन्नतापूर्वक ट्रान्सपरेन्सी भिजवादी और प्रकाशन की स्वीकृति प्रदान की, इतना ही नहीं अपितु प्रकाशनार्थ आशीर्वादात्मक दो शब्द भी लिखकर भिजवा दिये। अतएव हम पूज्य आचार्यश्री के अत्यन्त आभारी हैं कि उनकी विशाल सहृदयता, सौमनस्यता के फलस्वरूप ही इस दुर्लभ चौवीसी का 57 वर्ष पश्चात पुनर्मुद्रण संभव हो सका। Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्त में हम श्री रवीन्द्रकुमारजी सिंघवी एवं उनकी धर्मपत्नी श्रीमती अमिला सिंघवी, जो कि हमारी अकादमी के उपाध्यक्ष एवं परम संरक्षक सदस्य भी हैं, के माध्यम से सौभाग्य एडवरटाइजिंग कं0, दिल्ली से यह दर्शनीय एवं नयनाभिराम प्रकाशन संभव हो सका, अतः इन्हें पुनःपुनः हार्दिक धन्यवाद देते हैं। हम आशा करते हैं कि इस दुर्लभ कलात्मक चौवीसी के पुनः प्रकाशन से जैन समाज की चिरकाल से पोषित अभिलाषा अवश्य पूर्ण होगी और कलाप्रिय दर्शनार्थी इस का उपयोग कर अवश्य ही लाभ उठायेंगे। देवेन्द्रराज मेहता म० विनयसागर निदेशक एवं संयुक्त सचिव प्राकृत भारती अकादमी, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर जयपुर Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूज्य आ० श्री यशोदेवसरि के दो शब्द एक दिन जैन समाज तथा विद्वत् जगत में प्रख्यात महोपाध्याय श्री विनयसागरजी का मेरे उपर पत्र आया कि "प्राकृत भारती अकादमी पं0 भगवानदासजी द्वारा प्रकाशित “दर्शन चौवीसी" पुनः प्रकाशित करना चाहती है। इस चौवीसी के मूल चित्र आपके पास है अतः इन चित्रों की ट्रान्सपरेन्सी करवा कर भिजवा दें तो एक सुन्दर कलात्मक कृति प्रकाश में आ जाय।" इसके लिए “मरीज की इच्छानुसार वैद्य ने पथ्य बतलाया" ऐसा ही बना, क्योंकि मैंने स्वयं ही आज से दस वर्ष पूर्व “दर्शन चौवीसी" छपवाने का निर्णय लिया था, मुद्रण व्यय का लेखाजोखा भी प्राप्त किया था। मेरी अभिलाषा थी कि यह चौवीसी जिस रूप में प्रकाशित हुई है उस रूप में नहीं किन्तु प्रत्येक पृष्ठ पर कुछ नवीनता एवं आकर्षक हो, ऐसा कुछ संभव हो तो नवीन स्वरूप प्रदान कर इसको छपवाया जाये। उस समय प्रकाशन के एवं कला आदि से संबंधित मेरे कितने ही कार्य चल रहे थे, समयाभाव के कारण यह योजना आगे नहीं बढ़ सकी। यह तो मेरा दृढ़ निश्चय था कि अनुकूलता होने पर इसको अवश्य ही प्रकाशित करना है, तभी एक सद्ध व्यक्ति द्वारा मेरी भावना साकार हो ऐसे सुसमाचार मिले तब किसको आनन्द नहीं होगा? इसमें एक कारण यह भी था कि भगवानदासजी के जो चित्र हैं, उसे कलाकार जयपुर कला की दृष्टि से उच्च कोटि के गिनते हैं। पचपन वर्ष पूर्व जयपुर में बद्रीनारायण नाम के श्रेष्ठ कलाकार थे, जो जयपुर महाराजा के महल में स्थायी रूप से काम करते थे। ऐसे श्रेष्ठ कलाकार ने स्वयं के लिए आर्थिक दृष्टि से उपकारी पं0 भगवानदासजी को श्रेष्ठ कलाकृति भेंट स्वरूप देनी थी। यही कारण है कि प्रेम और धैर्य से एक भव्य चौवीसी कई वर्षों में तैयार हो सकी। Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आज से पचास वर्ष पूर्व आफसेट प्रिंट का युग नहीं था, उस समय ब्लाक प्रिंटिंग प्रेस और लीथो प्रेस प्रारंभिक दशा में थे, जो पत्थर के उपर प्लेट बनवाते थे, तत्पश्चात् कागज के उपर छापते थे। इसी कारण चित्रों को छापने के लिए लाक बनवाना और उसे छपवाना यह एक ही मार्ग प्रकाशकों के लिए था। पंडितजी ने भी ब्लाक दिल्ली में बनवाये और उस समय में प्राप्त आर्ट पेपर पर उन चित्रों को छपवाया, किंतु तीन कलर के ब्लाकों का काम उभार वाला न हो सका, जिससे श्रेष्ठ कोटि के न तो ब्लाक बन सके और न उच्च श्रेणी का मुद्रण हो सका, जो हुआ वह भी मध्यम कोटि का हुआ। आज के युग में जब आफसेट का कार्य उन्नत कोटि पर पहुंच गया है, तब जैसे चित्र हैं, यदि वैसा ही उनका मुद्रण हो तभी उत्तम कलाकारों के श्रेष्ठ चित्रों के साथ न्याय किया जा सकता यह चौवीसी कई दशकों से अनुपलब्ध थी, इसी कारण जैन संस्कृति कलाकेन्द्र संस्था की ओर से प्रकाशित करवाने का निश्चय किया था। एकाएक मेरे धर्मस्नेही श्रीमान् विनयसागरजी की ओर से अनुरोध आया और मैंने उसे सहर्ष स्वीकार कर समस्त प्रकार का सहकार देने का संकेत किया। उन्होंने प्राकृत भारती अकादमी की प्रबंध समिति द्वारा इस चौवीसी को प्रकाशित करने का निर्णय करवाया। यह सुखद संयोग ही कहा जायेगा कि जिस धरती पर इसका प्रथम संस्करण निकला था, उसका द्वितीय संस्करण भी उसी घरती की संस्था प्राकृत भारती जयपुर की ओर से हो रहा है। इसके लिए प्राकृत भारती तथा इसके संस्थापक एवं मानद सचिव धर्मश्रद्धालु सौजन्य स्वभावी श्री देवेन्द्रराज मेहता तथा इस संस्था को प्रेरणा देने वाले श्रीमान् विनयसागरजी अधिकाधिक धन्यवाद के पात्र हैं। एक Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विस्तृत प्रकाशन वर्षों के अन्तराल के बाद नवीन स्वरूप में, नूतन/आकर्षक रंगों में जनता के हाथ में आयेगा। इस प्रकार परमात्मा की भक्ति का और समाज के लिए उपकारक बनने का प्रकाशकों को महत लाभ प्राप्त होगा। कलाप्रेमी इसको खरीद कर अवश्य ही लाभ उठवें। भगवानदासजी मेरे अंतरंग/आत्मीय मित्र थ्य। अतः उनके प्रकाशन के पुनर्मुद्रण में मुझे थोड़ा बहुत निमित्त बनने का सदभाग्य प्राप्त हुआ है अतः मेरे लिए भी यह गौरव की बात है। जैन समाज में हजारों आत्माएं प्रातःकाल में अनानुपूर्वी दर्शन चौवीसी को गिनते हैं, उन्हें भी इस नूतन एवं श्रेष्ठ प्रकाशन से अत्यधिक आनन्द होगा। पुनः एकबार प्रस्तुत प्राकृत भारती द्वारा जैनधर्म के प्राण समान सतत ज्ञान प्रकाशन का यज्ञ प्रारम्भ कर संस्था को उत्तरोत्तर सेवा देकर संस्था को समृद्ध बनाने में सुयोग्य सहयोग देने वाले श्री विनयसागरजी को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ। जैन साहित्य मंदिर, पालीताणा यशोदेवसूरि Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुरी-चित्रों की प्राप्ति कथा -आचार्य यशोदेवसूरि जयपुर निवासी अत्यन्त धर्मश्रद्धालु, सरल स्वभावी सुश्रावक श्रीमान पं0 भगवानदासजी एक विद्वान् व्यक्ति थे। उन्होंने मूर्ति-शिल्प, उत्तम. कोटि का शिल्प स्थापत्य और ज्योतिष ग्रंथों के प्रकाशन द्वारा तथा जैनाचार्यों आदि के लिए सरिमंत्र वर्धमानविद्या आदि के कई पट चित्रित करवाकर एवं स्वयं की देखरेख में जयपुरी शिल्पियों द्वारा सैकड़ों मूर्तियां बनवाकर जैन शासन तथा जैनाचार्यों की बहुत सेवा की थी। __ आज से 50 वर्ष पूर्व मुझ से मिलने के लिए वे साहित्य मंदिर, पालीताणा में आये। उस समय मैं अपने तीनों ही बड़े गुरुदेवों के साथ में था। शिल्प, स्थापत्य, कला के प्रति मुझे छोटी अवस्था से ही अधिक आकर्षण था। कला के संबंध में कोई भी बात चलती तो मेरे गुरुदेव यह समझकर कि यह प्रसंग यशोविजयजी से संबंधित है वे उस व्यक्ति के साथ मेरा संबंध करा देते थे। पं0 भगवानदासजी स्वप्रकाशित "अनानुपूर्वी दर्शन चौवीसी" की पुस्तिका लेकर मेरे पास आये थे. यह पुस्तिका उन्होंने मुझे भेंट प्रदान की। दर्शन चौवीसी में चौबीस तीर्थकरों के जयपुरी कला में श्रेष्ठ कोटि के चित्र मुझे पहली बार देखने का अवसर मिला। इन चित्रों को देखकर मैं भावविभोर हो गया। कुछ समय पश्चातू उन्हें धन्यवाद दिया और धीमे से मधुरता के साथ मैंने उनसे कहा-"चित्रों एवं लेखन का मुद्रण बहुत सुंदर नहीं हुआ है, इतना बढ़िया काम. फिर भी आपने प्रिंटिंग में न्यूनता कैसे रखी?" उन्होंने कहा-"मैं दूसरों के विश्वास पर रहा और छोटे से प्रेस में काम करवाया, इसीलिए ऐसा हुआ।" तत्पश्चात उन्होंने यह भी कहा कि "इस चौवीसी के जयपुरी मूल चित्र मुझे बेचने हैं, इन चित्रों की मुझे अब आवश्यकता नहीं रही, काम पूरा हो गया और मुझे प्रेस Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के बिलों का भुगतान करना है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि जोधपुर स्टेट इन चित्रों को खरीदना चाहता है। आज प्रातःकाल ही में पूज्य नेमिसूरिजी महाराज के पास गया था, वे भी इन चित्रों को लेना चाहते हैं।" यह सुनकर मैंने कहा-"किसी राजा को अथवा सरकार को बेचेंगे तो कला की दृष्टि से ये चित्र अवश्य ही प्रसिद्धि को प्राप्त होंगे, किंतु यदि आप इन चित्रों को जैन धार्मिक स्थानों में प्रदान करेंगे तो कला के साथ भक्ति की दृष्टि से भी ये पूजित होंगे। जो आप दोनों ही दृष्टियों से इन चित्रों का गौरव चाहते हों तो सूझ-बूझ के साथ निर्णय करियेगा।" जब वे जाने लगे तब फिर मैंने उन्हें भलामण देते हुए कहा कि "आप इस संबंध में जो भी निर्णय लें तो सर्वप्रथम मुझे अवगत अवश्य करा दें।" उन्होंने उसी समय मुझे वचन दिया कि बेचने के पूर्व आपको अवश्य ही परिस्थिति की जानकारी दे दूंगा। तदनन्तर कुछ महीनों के बाद भगवानदासजी का मेरे पास पत्र आया कि "इन चित्रों को अन्य स्थान पर बेचने की बात मैने बंद कर दी है। आपका विचार मुझे पसंद आया है। आप कलाप्रिय हैं और आपके यहां दोनों दृष्टियों से चित्रों का गौरव बढ़ेगा। अतः इन चित्रों को मैं आपकी संस्था को देना चाहता हूँ।" पत्र के उत्तर में मम उनको लिखा कि "आप चित्र लेकर पालीताणा आ जावें।" पंडितजी पालीताणा आये। पूज्य गुरुदेवों ने इन चित्रों को देखा और खरीदने की सहमति प्रदान की, अतः अत्यधिक उल्लास और उत्साह से जैन साहित्य मंदिर की संस्था में रखने के लिए ये चित्र खरीद लिए गये। संयोग से उस समय दानवीर श्रेष्ठिवर्य श्री माणेकलाल चुन्नीलाल यात्रार्थ पालीताणा आये हुए थे। वे पूज्य गुरुदेवों को वंदन करने के लिए आये, उस समय सारे चित्र वहीं रखे हुए थे। मैंने वे चित्र उन्हें बतलाये। वे चित्रों की कला देखकर बहुत प्रसन्न हुए,और इन चित्रों के संबंध में जानकारी चाही। मैंने कहा कि ये चित्र कल ही आये हैं और उन्हें खरीद लेना है तथा इसका लाभ आप लें, ऐसी हमारी भावना है। पूज्य गुरुदेवों ने भी माणेकभाई को प्रोत्साहित किया। वे उदार दिल के थे। उनकी ओर से ये चौबीस चित्र Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खरीद लिये गये। तत्पश्चात इन चित्रों को मढ़वाया गया और इनके लिए सुन्दर एवं विशाल मंजूषा/पेटी बनवाकर ये चित्र उसमें सुरक्षित रूप से रख दिये। __कुछ समय पश्चात हमने पालीताणा से विहार किया। 25 वर्ष पर्यंत हम बम्बई में रहे। उस समय में विश्वशान्ति का महामहोत्सव पायधुनी, बम्बई में मनाया गया। इस प्रसंग पर विशाल रूप से एक भव्य प्रदर्शनी भी आयोजित की गयी थी तब कतिपय चित्र वहां प्रदर्शित भी किये गये थे। मम्बादेवी के मैदान पर इस प्रदर्शनी को चार लाख लोगों ने देखा था। प्रासंगिक पुरानी घटना प्रस्तुत की है। अनानुपूर्वी दर्शन चौवीसी की प्रथमावृत्ति बहुत वर्षों से अप्राप्त थी। इसका पुनर्मुद्रण कला वैशिष्ट्य की दृष्टि से कोई श्रेष्ठ आफसेट प्रेस में करवाना आवश्यक था, लेकिन पूज्य गुरुदेवों की आज्ञा से कल्पसूत्र सबोधिका टीका का प्रकाशन किया गया, उसका सम्पादन विशिष्ट प्रकार से मैंने किया था। इस सबोषिका प्रति में चित्र कलात्मक होने से जनता को उसकी जानकारी मिले इसलिए पांच तीर्थकरों के पांच तथा छठा श्री गौतमस्वामीजी के चित्रों को मुद्रण कराकर रखा गया। पालीताणा में बड़े पर्व दिवसों में भी कुछ चित्र दर्शनार्थ रखे गये थे। लगभग 40 वर्ष से मेरा एक स्वप्न था कि भविष्य में एक उत्कष्ट असाधारण एवं दर्शकों को प्रभावित करने वाला म्यूजियम का निर्माण करवाऊ। इसके लिए बम्बई के मध्य में विशाल स्थान प्राप्त करने के लिये प्रयत्न भी किये, किन्तु मध्य बम्बई में विशाल स्थान प्राप्त करने की बात अशक्य सिद्ध हुई। फलतः यह कार्य स्थगित हो गया। तत्पश्चात 33 वर्षों के बाद संवत् 1933 में पूज्य गुरुदेवों के साथ पुनः पालीताणा आने पर आगम मंदिर के सम्मुख खेत की जगह पर अतिविशाल संग्रहालय के लिए विचार किया। यह भूमि आणंदजी कल्याणजी पेढ़ी की थी। जैन समाज के अग्रगण्य प्रभावशाली सेठ श्री कस्तूरभाई लालभाई जब पालीताणा आये तब वे मुझे मिले। उस समय मैंने उनसे कहा कि एक विशिष्ट शैली, अनोखी पद्धति Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ और विलक्षण संग्रह युक्त संग्रहालय बनवाना है, इसके लिए आपके छोटे से संग्रहालय के पार्श्व में जो भूमि है वह यदि आप प्रदान करें तो वहां संग्रहालय बन सकता है। उन्होंने सहानुभूति दर्शाई, साथ में संग्रहालय की रुपरेखा भी मांगी जो मैने लिखकर उनको भेज दी। पेढ़ी के ट्रस्टियों ने दो-तीन बार मिलकर विचार विमर्श किया और मुझे सूचित किया कि आपका आयोजन वर्तमान देशकाल को ध्यान में रखकर बहुत ही महत्वपूर्ण और उपयोगी है, अतः भूमि भी देंगे और आर्थिक सहयोग भी देंगे। __उसके पश्चात मेरे सामने कमभाग्य से ऐसे अनेक संयोग उपस्थित हुए कि म्यूजियम-प्रदर्शनी के आयोजन की दिशा में मैं आगे बढ़ न सका, अन्यथा वहां साथ में एक चित्र (पिक्चर) गैलरी का निर्माण हो जाता और वहां जयपुरी चित्र आकर्षक पद्धति से प्रदर्शित कर दिये जाते। अब तो जीवन की संध्या वेला में पहुंच गया हूं। मेरी इच्छा तीस साल से बड़ौदा राजकीय पुस्तकालय जैसा एक अखिल भारतीय विशाल जैन पुस्तकालय खड़ा करने की थी और दूसरी इच्छा बड़ौदा के संग्रहालय (म्यूजियम) जैसा विशाल संग्रहालय खड़ा करने की थी; जो कि अनेक दृष्टियों से विशिष्ट, बुद्धिवर्धक और ज्ञानवर्धक हो। और, तीसरी इच्छा जैन समाज, जैन शासन का जैन-अजैन समाज में गौरव बढ़े इस लिए अस्वस्थ एवं पीडित जीवों के लिये अति जरूरी बोम्बे चिकित्सालय-हास्पीटल जैसी विशाल अस्पताल बनवाने की थी। लेकिन मेरे तीनों स्वप्न कमनसीबी से सफल नहीं हुए। यह है मुझे चित्र किस प्रकार प्राप्त हुए उसकी छोटी कथा। Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चित्र परिचय इस आदर्श जिन दर्शन चौवीसी में अनुक्रम से चौवीस तीर्थकरों के बहुरंगी चित्र अशोक वृक्ष आदि आठ महा प्रातिहार्य युक्त दिए गये हैं, तथा उनके दोनों तरफ उनके शासन रक्षक और यक्षिणियों के रंगीन चित्र शास्त्रानुसार प्रमाणोपेत दिये गये हैं। पचीसवां चित्र श्री सूरिमंत्राधिष्ठाता गणधर श्री गौतमस्वामी का है, उसकी चारों दिशाओं में क्रमशः सरस्वती देवी, त्रिभुवनस्वामिनी देवी, लक्ष्मी देवी और गणिपिटक यक्षराज के चित्र है। Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओमपनवजावान (श्री आदिनाथ भगवान आदिमं पृथिवीनाथ-मादिमं निष्परिग्रहम् / आदिमं तीर्थनाथं च ऋषभस्वामिनं स्तुमः / / Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. 1. भगवान् ऋषभदेव . जो पृथ्वीपतियों के मध्य प्रथम हैं, जो त्यागवतियों में भी प्रथम हैं और प्रथम तीर्थङ्कर हैं उन ऋषभदेव भगवान की मैं स्तुति करता हूँ। पूर्वभव संख्या -13 च्यवन स्थान सर्वार्थसिद्धि . च्यवन तिथि -आषाढ़ वदि 14 जन्म नगरी -विनीता जन्म तिथि -चैत्र वदि८ वंश -इक्ष्वाकु पितृ नाम -नाभि कुलकर मात नाम -मरुदेवी - जन्म नक्षत्र -उत्तराषाढ़ा जन्म राशि -धन लाञ्छन -वृषभ वर्ण -स्वर्ण दीक्षा नगरी -विनीता दीक्षा तिथि -चैत्र वदि८ छद्यस्थ काल -1000 वर्ष ज्ञान नगरी -पुरिमताल ज्ञान तिथि -फाल्गुन वदि 11 गणधर.संख्या-८४ गणधर नाम -पुण्डरीक मोक्ष स्थान -अष्टापद मोक्ष तिथि -माघ वदि 13 यक्ष नाम -गोमुख यक्षिणी नाम -चक्रेश्वरी प्रमुख तीर्थ- शत्रुजय, पुरिमताल, अयोध्या, कांगड़ा, केशरियाजी, राणकपुर, आबू कुलपाक, हस्तिनापुर। Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ CALA ज्रच्चन्न्पन्न श्री अजित नाघन गवान अहन्तमजितं विश्व-कमलाकरभाम्करम् / अम्लान केवलादर्श-संक्रान्तजगतं स्तुवे / / Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2. भगवान् अजितनाथ विश्वरूप कमल सरोवर में जो सूर्य रूप हैं, जिनके निर्मल, केवलज्ञान रूपी दर्पण में त्रिलोक प्रतिबिम्बित होता है उन अर्हत् अजितनाथ की मैं स्तुति करता हूँ। पूर्वभव संख्या -3 च्यवन स्थान - विजय च्यवन तिथि - वैशाख सुदि 13 जन्म नगरी - अयोध्या जन्म तिथि -माघ सुदि८ वंश -इक्ष्वाकु पितृ नाम -जितशत्रु मातृ नाम -विजया जन्म नक्षत्र -रोहिणी जन्म राशि -वृष लाञ्छन -हस्ति वर्ण -स्वर्ण दीक्षा नगरी -अयोध्या दीक्षा तिथि -माघ सुदि९ 'छास्थ काल -12 वर्ष ज्ञान नगरी -अयोध्या ज्ञान तिथि -पौष सुदि 11 गणधर संख्या-९५ गणधर नाम -सिंहसेन मोक्ष स्थान -सम्मेतशिखर मोक्ष तिथि -चैत्र सुदि 5 यक्ष नाम -महायव यक्षिणी नाम - अजितबला प्रमुख तीर्थ - तारंगा, अयोध्या, वाव Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ोसतबगाथलगनगि विश्वभव्यजनाराम-कुल्यातुल्या जयन्ति ताः। देशनासमये वाचः श्रीसंभवजगत्पतेः / / Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3. भगवान् सम्भवनाथ . भव्यजीव रूपी उद्यान को सिंचित करने के लिए जगत्पति श्री सम्भवनाथ के मुख से नि:सृत जलधारा रूपी जो वाणी है वह वाणी सर्वदा यशस्वी हो। पूर्वभव संख्या -3 च्यवन स्थान-आनत . च्यवन तिथि -फाल्गुन सुदि८ जन्म नगरी -श्रावस्ती जन्म तिथि -मार्गशीर्ष सुदि 14 वंश -इक्ष्वाकु पितृ नाम -जितारि मातृनाम -सेना जन्म नक्षत्र -मृगशिरा जन्म राशि -मिथुन लाञ्छन -अश्व वर्ण -स्वर्ण दीक्षा नगरी -श्रावस्ती दीक्षा तिथि -मार्गशीर्व सुदि 15 छद्मस्थं काल -14 वर्ष ज्ञान नगरी -श्रावस्ती ज्ञान तिथि -कार्तिक वदि५ गणधर संख्या-१०२ गणधर नाम -चारु मोक्ष स्थान -सम्मेतशिखर मोक्ष तिथि -चैत्र सुदि५ यक्ष नाम -त्रिमुख यक्षिणी नाम-दुरितारि प्रमुख तीर्थ -श्रावस्ती, जीयागंज, कोजरा Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MOCS कालिलादेनी श्रीअनि नैरननंगनान / अनेकान्तमताम्मोधि-समुल्लासनचन्द्रमाः। दद्यादमन्दमानन्दं भगवानमिनन्दनः / / Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4. भगवान् अभिनन्दन - अनेकान्त रूपी समुद्र को उल्लसित करने में चन्द्र तुल्य हैं वे भगवान् अभिनन्दन स्वामी आनन्ददायी बनें। पूर्वभव संख्या -3 च्यवन स्थान-विजय च्यवन तिथि -वैशाख सुदि४ जन्म नगरी -अयोध्या जन्म तिथि -माघ सुदि 2 वंश -इक्ष्वाकु पितृ नाम -संवर मातृ नाम -सिद्धार्था जन्म नक्षत्र -पुनर्वसु (अधीचि) जन्म राशि -मिथुन लाञ्छन -वानर वर्ण - स्वर्ण दीक्षा नगरी - अयोध्या दीक्षा तिथि -माघ सुदि 12 छ्यस्थ काल -18 वर्ष ज्ञान नगरी -अयोध्या ज्ञान तिथि - पौष सुदि 14 गणधर संख्या-११६ गणधर नाम -वज्रनाभ मोक्ष स्थान -सम्मेतशिखर मोक्ष तिथि -वैशाख सुदि८ यक्ष नाम -यक्षनायक यक्षिणी नाम-काली प्रमुख तीर्थ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनानुपूर्वी गुणने की रीति और फल 2. 3. 4. 5. जहाँ एक का अंक है वहाँ ‘णमो अरिहंताणं' बोलना। जहाँ दो का अंक है वहाँ ‘णमो सिद्धाणं' बोलना। जहाँ तीन का अंक है वहाँ ‘णमो आयरियाणं' बोलना। जहाँ चार का अंक है वहाँ ‘णमो उवज्झायाणं' बोलना। जहाँ पांच का अंक है वहाँ ‘णमो लोए सव्वसाहूणं बोलना। फल :- इस प्रकार अनानुपूर्वी गुरााने से छमासी तप का फल होता है और पांचसौ सागरोपम के नरक का आयुष्य टूटता है। कहा है कि - अशुभ कर्म के हरण को, मंत्र बड़ो नवकार। वाणी द्वादश अंग में, देख लियो तत्वसार।। Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ оооооооооооооооооооооооооооооооо оооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооо ооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооо оооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооо Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसुमतिना जगजान ACASSOORY द्य सकिरीटशाणामो-जितांघ्रिनखावलिः। भगवान सुमतिस्वामी तनोत्वभिमतानि वः / / Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5. भगवान् सुमतिनाथ देवगणों के मुकुट की मणियों की प्रभा में प्रदीप्त जिनके चरण-नख हैं, वे भगवान् सुमतिनाथ तुम्हारी इच्छा पूर्ण करें। पूर्वभव संख्या -3 च्यवन स्थान-वैजयन्त . च्यवन तिथि -श्रावण सुदि 2 जन्म नगरी -विनीता जन्म तिथि -वैशाख सुदि८ वंश -इक्ष्वाकु पितृ नाम -मेघ मातृ नाम -मंगला जन्म नक्षत्र -मघा जन्म राशि -सिंह लाञ्छन -क्रौंच -स्वर्ण दीक्षा नगरी -विनीता दीक्षा तिथि -वैशाख सुदि 9 छद्यस्थ काल -20 वर्ष ज्ञान नगरी -विनीता ज्ञान तिथि -चैत्र सुदि 11 गणधर संख्या-१०० गणधर नाम -चमर मोक्ष स्थान -सम्मेतशिखर मोक्ष तिथि -चैत्र सुदि९ यक्ष नाम -तुम्बुरु यक्षिणी नाम - महाकाली वर्ण प्रमुख तीर्थ- तालध्वज, मातर, बीकानेर Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ UUUNJA Benz पद्मप्रभप्रभोह-भासः पुष्णन्तु वः श्रियम् / अन्तरङ्गारिमथने कोपाटोपादिवारुणाः // Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6. भगवान् पद्मप्रभ काम-क्रोधादि रूपी अन्तरंग वैरियों के मन्थन हेतु कोप-प्रबलता के कारण जिनके शरीर ने अरुण वर्ण धारण किया है वे . पद्मप्रभ तुम्हारा, कल्याण करें। पूर्वभव संख्या -3 च्यवन स्थान-नवम त्रैवेयक च्यवन तिथि -माघ वदि६ जन्म नगरी -कौशाम्बी जन्म तिथि -कार्तिक वदि 12 वंश -इक्ष्वाकु पितृ नाम -धर मातृ नाम -सुसीमा जन्म नक्षत्र -चित्रा जन्म राशि -कन्या लाञ्छन -कमल वर्ण -रक्त दीक्षा नगरी -कौशाम्बी दीक्षा तिथि -कार्तिक वदि 13 / छयस्थ काल -6 मास ज्ञान नगरी -कौशाम्बी ज्ञान तिथि -चैत्र सुदि 15 गणधर संख्या-१०७ गणधर नाम -सुव्रत मोक्ष स्थान -सम्मेतशिखर मोक्ष तिथि -मिगसिर वदि 11 यक्ष नाम -कुसुम यक्षिणी नाम - श्यामा प्रमुख तीर्थ- कौशाम्बी, नाडोल, महुडी, लक्ष्मणी Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INTONIES IN INTERINESIA INETINUENESI uits TN ENEMIENT HINDI HIT Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ பபாயாவின் மாராயம் IT INHETINாயாயாயாயா Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ LAPUR E श्रीसुपाचं जिनेन्द्राय महेन्द्रमहितांघ्रये / नमश्चतवर्णसङ्घ-गगनाभोगभास्वते॥ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7. भगवान् सुपार्श्वनाथ . चतुर्विध संघ रूप आकाश में जो सूर्य की भांति देदीप्यमान है, जिनके चरण इन्द्र द्वारा पूजित हैं, उन सुपार्श्वनाथ को मैं नमस्कार करता हूँ। पूर्वभव संख्या -3 च्यवन स्थान-षष्ठं त्रैवेयक च्यवन तिथि -भादवा वदि८ जन्म नगरी -वाराणसी जन्म तिथि -ज्येष्ठ सुदि 12 वंश -इक्ष्वाकु पितृ नाम -प्रतिष्ठ मातृ नाम -पृथ्वी जन्म नक्षत्र -विशाखा जन्म राशि -तुला लाञ्छन -स्वस्तिक वर्ण -स्वर्ण दीक्षा नगरी -वाराणसी दीक्षा तिथि - ज्येष्ठ सुदि 13 छास्थ काल -9 मास ज्ञान नगरी -वाराणसी ज्ञान तिथि -फाल्गुन वदि६ गणधर संख्या-९५ गणधर नाम -विदर्भ मोक्ष स्थान -सम्मेतशिखर मोक्ष तिथि -फाल्गुन वदि७ यक्ष नाम -मातंग यक्षिणी नाम -शान्ता प्रमुख तीर्थ- मांडवगढ़, भदैनी Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बनेजरमहा श्रीचन्द्र पन भगवान चन्द्रप्रभप्रभोश्चन्द्र-मरीचिनिचयोज्ज्वला। मृत्तिमुत्त सितध्यान-निर्मितेव श्रियेऽस्तु वः / / Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 8. भगवान् चन्द्रप्रभ चन्द्रकौमुदी की भांति उज्ज्वल चन्द्रप्रभ भगवान् की जो मूर्ति है, उसे देखने से लगता है जैसे शुक्लध्यान ही मूर्तिमंत हो उठा है,. वह मूर्ति तुम्हारे ज्ञान-लाभ का कारण बने। पूर्वभव संख्या -3 च्यवन स्थान-वैजयन्त च्यवन तिथि -चैत्र वदि 5 जन्म नगरी -चन्द्रपुरी जन्म तिथि -पौष वदि 12 वंश -इक्ष्वाकु पितृ नाम -महासेन मातृ नाम -लक्ष्मणा जन्म नक्षत्र -अनुराधा जन्म राशि -वृश्चिक लाञ्छन -चन्द्र -शुक्ल दीक्षा नगरी -चन्द्रपुरी दीक्षा तिथि -पौष वदि 13 छयस्थ काल -3 मास ज्ञान नगरी -चन्द्रपुरी ज्ञान तिथि -फाल्गुन वदि७ गणधर संख्या-९३ गणधर नाम मोक्ष स्थान -सम्मेतशिखर मोक्ष तिथि -भादवा वदि७ यक्ष नाम -विजय यक्षिणी नाम-मृकुटि वर्ण. प्रमुख तीर्थ- राजगृही, चन्द्रपुरी, प्रभास पाटण। Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 00000000000000.0000000000.. | 4 | 3 | 2 | 1 | 5 ........0000000000000000000000000000........... Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ..........00000000000 00000000000000000000000 3 | 2 | 1 | 5 | 4 10.............. .0000000000000000 ... ...............................00000.00 Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ANSAR ANLN039 सुनायरेनी मी सुनिधितापनगमान पुष्प दस्त भगवान atching करामलकवद्विश्व कलयन् केवलश्रिया। अचिन्त्यमहात्म्यनिधिः सुविधिर्बोधयेऽस्तु वः / / Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 9. भगवान् सुविधिनाथ (पुष्पदन्त) / जो केवलज्ञान के प्रभाव से जगत् को करामलकवत् जानते हैं और जो अचिन्तनीय प्रभाव के आधार हैं वे सुविधिनाथ तुम्हें बोध प्रदान करें। पूर्वभव संख्या -3 च्यवन स्थान-वैजयन्त . च्यवन तिथि -फाल्गुन वदि 9 जन्म नगरी -काकन्दी जन्म तिथि -मिगसर वदि 12 वंश -इक्ष्वाकु पितृ नाम -सुग्रीव मातृ नाम -रामा जन्म नक्षत्र -मूल जन्म राशि -धन लाञ्छन -मकर वर्ण -शुक्ल दीक्षा नगरी -काकन्दी दीक्षा तिथि -मिगसर वदि६ छद्मस्थं काल -4 मास ज्ञान नगरी -काकन्दी ज्ञान तिथि -कार्तिक सुदि३ गणधर संख्या-८ गणधर नाम -वराह मोक्ष स्थान -सम्मेतशिखर मोक्ष तिथि -कार्तिक वदि९ यक्ष नाम -अजित यक्षिणी नाम-सुतारका प्रमुख तीर्थ- काकन्दी Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीवझमश शोकादेवी सत्त्वानां परमानन्द-कन्दोद्भदमवाम्बुदः / स्याद्वादामनिस्यन्दी शीतलः पातु वो जिनः / / Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10. भगवान् शीतलनाथ प्राणी मात्र में आनन्द-अंकुर विकसित करने में जो नवीन जलद तुल्य है, जो स्याद्वाद रूपी अमृत का वर्षण करते हैं वे शीतलनाथ तुम्हारी रक्षा करें। पूर्वभव संख्या -3 च्यवन स्थान-प्राणत च्यवन तिथि - वैशाख वदि६ जन्म नगरी -महिलपुर जन्म तिथि -माघ वदि 12 वंश -श्याकु पितृ नाम -दृढ़रथ मातृ नाम -नन्दा जन्म नक्षत्र -पूर्वापाड़ा जन्म राशि -धन लाञ्छन -श्रीवत्स वर्ण . -स्वर्ण दीक्षा नगरी -महिलपुर दीक्षा तिथि -माघ वदि 12 छद्यस्थ काल -३मास ज्ञान नगरी -अहिलपुर ज्ञान तिथि -पौष वदि 14 गणधर संख्या-८१ गणधर नाम -आनन्द मोक्ष स्थान -सम्मेतशिखर मोक्ष तिथि -वैशाख वदि२ यक्ष नाम -ब्रह्मा यक्षिणी नाम -अशोका प्रमुख तीर्थ- कलकत्ता, सूरत Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 0000000000000000000000000000000000 5 | 2 || قم | عر 10000000000000000000000000.00 0000000000000000000000000........" 5 | 2 | 1 | 3 | 4 0000000 00000000000000000000000000000000000000 Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1000000000000000000000000000000000000000000000000000: 82 है है है 00000000000000000000000000 00.00000000000000000000000000000000000000000.000 Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मान योरेनी भवरोगात जन्तूना-मग दङ्कारदर्शनः / निःश्रेयसश्रीरमण: श्रेयांसः श्रेयसेऽस्तु वः / / Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 11. भगवान् श्रेयांसनाथ जिनका दर्शन संसार रूपी रोगों से पीड़ित लोगों के लिए वैद्य की भांति है, जो निःश्रेयस् रूप से मोक्ष रूपी लक्ष्मी के पति हैं वे श्रेयांसनाथ तुम्हारे कल्याण का कारण बनें। पूर्वभव संख्या -3 च्यवन स्थान-महाशुक्र च्यवन तिथि -ज्येष्ठ वदि६ जन्म नगरी -सिंहपुर जन्म तिथि -भादवा वदि 12 . वंश -इक्ष्वाकु पितृ नाम -विष्णु मातृ नाम -विष्णु जन्म नक्षत्र -श्रवण जन्म राशि -मकर लाञ्छन -खड्गी -स्वर्ण दीक्षा नगरी -सिंहपुर दीक्षा तिथि -फाल्गुन वदि 13 छद्मस्थ काल -2 मास ज्ञान नगरी -सिंहपुर ज्ञान तिथि -माघ वदि 15 गणधर संख्या-७६ गणधर नाम - गोशुभ मोक्ष स्थान -सम्मेतशिखर मोक्ष तिथि -श्रावण वदि 3 यक्ष नाम -यक्षेश यक्षिणी नाम -मानवी वर्ण प्रमुख तीर्थ- सिंहपुरी Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Seccan लोकमारमा गो-पायंडादेना बास पूजा जगजातूर 12 विश्वोपकार कीभूत-तीर्थकृत्कर्मनिर्मितिः / सुरासुरनरैः पूज्यो वासुपूज्यः पुनातु वः / / Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 12. भगवान् वासुपूज्य ___ जो समस्त विश्व के कल्याणकारी हैं, जिन्होंने तीर्थंकर रूप नाम कर्म प्राप्त किया है और जो सुरासुर-नर-पूजित है वे वासुपूज्य तुम्हारी रक्षा करें। पूर्वभव संख्या -3 च्यवन स्थान-प्राणत च्यवन तिथि -ज्येष्ठ सुदि 9 जन्म नगरी -चम्पापुरी जन्म तिथि -फाल्गुन वदि 14 वंश -इक्ष्वाकु पित नाम -वसपूज्य मातृ नाम -जया जन्म नक्षत्र -शतभिषा जन्म राशि -कुम्भ लाञ्छन -महिष वर्ण दीक्षा नगरी -चम्पापुरी दीक्षा तिथि -फाल्गुन वदि 15 . छद्यस्थ काल -१मास ज्ञान नगरी -चम्पापुरी ज्ञान तिथि -माघ सुदि 2 गणधर संख्या-६६ गणधर नाम -सूक्ष्म मोक्ष स्थान -चम्पापुरी मोक्ष तिथि -आषाढ़ सुदि 14 यक्ष नाम -कुमार यक्षिणी नाम-चण्डा प्रमुख तीर्थ- चम्पापुरी Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه 0 0 0 0 0 ا 0 ا ا ا ا ا ا ا س | 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 90 0 0 0 0 0 0 0 0 0 9 0 Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 و و و و و و و | 3 | 4 | 3 اس | س | س | س وو هوو هوو هوو هوو هوو هوو هوو هوو هه و و و و و و و و و و و و و دعا ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه هه Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पालपस श्रीनिमलना जानान विमलस्वामिनो वाच: कतकक्षोदसोदराः। जयन्ति त्रिजगरचेतो-जलनमल्यहेतवः / / Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 13. भगवान् विमलनाथ निर्माल्य चूर्ण की भांति जगत् जन के चित्त रूपी वारि को जो निर्मल करते हैं उन्हीं विमलनाथ की वाणी जययुक्त हो। ' पूर्वभव संख्या -3. च्यवन स्थान-सहस्त्रार च्यवन तिथि - वैशाख सुदि 12 जन्म नगरी -कापिल्यपुर जन्म तिथि -माघ सुदि३ वंश -इक्ष्वाकु पित नाम -कृतवर्म मातू नाम -श्यामा जन्म नक्षत्र -उभाद्रपद जन्म राशि -मीन लाञ्छन -शूकर वर्ण -स्वर्ण दीक्षा नगरी -कांपिल्यपुर दीक्षा तिथि -माष सुदि४ * छयस्थ काल -2 वर्ष ज्ञान नगरी -कांपिल्यपुर ज्ञान तिथि -पौष सुदि६ गणधर संख्या-५७ गणधर नाम -मंदर मोक्ष स्थान -सम्मेतशिखर मोक्ष तिथि -आषाढ़ वदि७ यक्ष नाम -षण्मुख यक्षिणी नाम-विदिता प्रमुख तीर्थ-कंपिला, पेदाअमीरम् Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Www शादेनी जनन्तनाथजावान स्वयंभूरमणस्पद्धि-करुणारसवारिणा / अनन्तज़िदनन्तां वः प्रयच्छतु सुखश्रियम् / / Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 14. भगवान् अनन्तनाथ जिनका करुणा रूप वार स्वयंभूरमण नाम समुद्र जल का प्रतिस्पर्धी है वे अनन्तनाथ असीम मोक्ष रूपी लक्ष्मी तुम्हें प्रदान करें। पूर्वभव संख्या -3 च्यवन स्थान-प्राणत च्यवन तिथि -श्रावण वदि७ जन्म नगरी -अयोध्या जन्म तिथि -वैशाख वदि 13 वंश. -इक्ष्वाकु पितृ नाम -सिंहसेन मातृ नाम -सुयशा जन्म नक्षत्र -रेवती (पुष्य) जन्म राशि -मीन लाञ्छन -श्येन वर्ण -स्वर्ण दीक्षा नगरी -अयोध्या दीक्षा तिथि -वैशाख वदि 14 छास्थ काल -3 वर्ष ज्ञान नगरी -अयोध्या ज्ञान तिथि -वैशाख वदि 14 गणधर संख्या-५० गणधर नाम -यश मोक्ष स्थान -सम्मेतशिखर मोक्ष तिथि -चैत्र सुदि 5 यक्ष नाम -पाताल यक्षिणी नाम - अंकुशा प्रमुख तीर्थ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ооооооооооооооооооооооооооооооооооооо ооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооо Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6...000000000000000000 .0000000000000000000000000 / 0000000000000000000 0 | | 000000000000000000000000000000 | 5 | 4 | 1 | 2 | 3 0000000000000000000000000000000000000000000000000 Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्पद्र मसधर्माण-मिष्टप्राप्तौ शरीरिणाम / चतुर्धा धर्मदेवार धर्मनाथ-मुपास्महे / / Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 15. भगवान् धर्मनाथ शरीरधारी जीवों के लिए कल्पवृक्ष की भांति जो अभीप्सित वस्तु प्रदान करते हैं और दान, तप, भाव रूप धर्म के उपदेशक हैं उन धर्मनाथ स्वामी की हम उपासना करते हैं। पूर्वभव संख्या -3 च्यवन स्थान-वैजयन्त . च्यवन तिथि -वैशाख सुदि७ जन्म नगरी -रत्मपुर जन्म तिथि -माघ सुदि 3 वंश पित नाम -भानु मातृ नाम -सुव्रता जन्म नक्षत्र -पुष्य जन्म राशि -कर्क लाञ्छन -वत्र वर्ण -स्वर्ण दीक्षा नगरी -रलपुर दीक्षा तिथि -माघ सुदि 13 छद्यस्थ काल -2 वर्ष ज्ञान नगरी -रत्नपुर ज्ञान तिथि -पौष सुदि 15 गणधर संख्या-४३ गणधर नाम -अरिष्ट मोक्ष स्थान -सम्मेतशिखर मोक्ष तिथि -ज्येष्ठ सुदि 5 यक्ष नाम -किन्नर यक्षिणी नाम-कन्दर्या प्रमुख तीर्थ- रत्नपुरी, खुडाला, कर्णावती Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुधासोदरवागज्योत्स्ना-निर्मलीकृतदिङ मुखः। मृगलमा तमःशान्त्यै शान्तिनाथजनोऽस्तु वः॥ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 16. भगवान् शान्तिनाथ __ जिनकी वाणी रूपी चन्द्रिका समस्त दिक्समूह को निर्मल करती है, जिनका लांछन मृग है वे शान्तिनाथ अज्ञानरूप अन्धकार को शान्त कर तुम्हें शान्ति प्रदान करें। पूर्वभव संख्या -12 च्यवन स्थान-सर्वार्थसिद्धि च्यवन तिथि -भादवा वदि७ जन्म नगरी -हस्तिनापुर जन्म तिथि - ज्येष्ठ वदि 13 वंश -इक्ष्वाकु पितृ नाम -विश्वसेन मातृ नाम -अचिरा जन्म नक्षत्र -भरणी जन्म राशि -मेष लाञ्छन -मृग वर्ण -स्वर्ण दीक्षा नगरी -हस्तिनापुर दीक्षा तिथि - ज्येष्ठ वदि 14 छास्थ काल -1 वर्ष ज्ञान नगरी -हस्तिनापुर ज्ञान तिथि -पौष सुदि९ गणधर संख्या-३६ गणधर नाम -चक्रायुध मोक्ष स्थान -सम्मेतशिखर मोक्ष तिथि -ज्येष्ठ वदि 13 यक्ष नाम -गरुड़ यक्षिणी नाम -निर्वाणी प्रमुख तीर्थ- हस्तिनापुर, सेवाड़ी, भोपावर, ईडर Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 ه ي د 0 0 5 0 0 0 0 0 0 0 0 | 8 0 0 0 0 0 م 6 ه | م م ه ه ه ه 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 ه ه ه ه سي | ه ه ه ه ه 0 0 0 0 0 ه ه ه ه ه ه 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 << 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 عم دوو و و و و و و و و و و و و و و ه ههههههه ههههههه هههههه 2 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीकथुनाथो भगवान् सनाथोऽतिशयद्धिभिः। सुरासुरनृनाथाना-मे कनाथोऽस्तु वः श्रिये / / Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - 17. भगवान् कुन्थुनाथ जो अतिशय रूप ऋद्धि सम्पन्न हैं, सुरासुर-नर के अद्वितीय स्वामी हैं वे कुन्थुनाथ तुम्हारे कल्याणरूप लक्ष्मी-प्राप्ति का कारण बनें। पूर्वभव संख्या -3 च्यवन स्थान-सर्वार्थसिद्धि - च्यवन तिथि - श्रावण वदि 9 जन्म नगरी -हस्तिनापुर जन्म तिथि -वैशाख वदि 14 / वंश -इक्ष्वाकु पितृ नाम -सूर मातृ नाम -श्री जन्म नक्षत्र -कृत्तिका जन्म राशि -वृषभ लाञ्छन -छाग वर्ण -स्वर्ण दीक्षा नगरी -हस्तिनापुर दीक्षा तिथि -वैशाख वदि५ . छदस्थ काल -16 वर्ष ज्ञान नगरी -हस्तिनापुर ज्ञान तिथि -चैत्र सुदि३ गणधर संख्या-३५ गणधर नाम -स्वयम्भू मोक्ष स्थान -सम्मेतशिखर मोक्ष तिथि -वैशाख वदि 1 यक्ष नाम -गन्धर्व यक्षिणी नाम-बला प्रमुख तीर्थ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2ACH भारिणी देना श्रीअरनाथजागान अरनाथस्तु भगवाँ -श्चतुर्थारनभोरविः। चतुर्थपुरुषार्थश्री-विलासं वितनोतु वः // Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 18. भगवान् अरनाथ कालचक्र के चतुर्थ आरा रूप आकाश में जो मार्तण्ड रूप हैं वे भगवान् अरनाथ तुम्हें चतुर्थ पुरुषार्थ रूप (मोक्ष) लक्ष्मी सहित विलास की अभिवृद्धि करें। पूर्वभव संख्या -3 च्यवन स्थान-नवम त्रैवेयक च्यवन तिथि - फाल्गुन सुदि२ जन्म नगरी -हस्तिनापुर जन्म तिथि -मिगसर सुदि 10 वंश -इक्ष्वाकु पितृ नाम -सुदर्शन मातृ नाम -देवी जन्म नक्षत्र -रेवती जन्म राशि -मीन लाञ्छन -नन्द्यावर्त वर्ण -स्वर्ण दीक्षा नगरी -हस्तिनापुर दीक्षा तिथि -मिगसर सुदि 11 छदस्थ काल -3 वर्ष ज्ञान नगरी -हस्तिनापुर ज्ञान तिथि -कार्तिक सुदि 12 गणधर संख्या-३३ गणधर नाम -कुम्भ मोक्ष स्थान -सम्मेतशिखर मोक्ष तिथि -मिगसर सुदि 10 यक्ष नाम -यक्षराज यक्षिणी नाम -धारिणी प्रमुख तीर्थ Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ OOOOOOOOOOO...ooo. ...000..........oooo... evvvvv. 0000000000000000000000000000000 ooo00000000000000 000000000000000000000000000000000000 Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ WIGIZI NDIO MTU M HOTEINMENUI S HIRANTHISEILLUTAN THERMONI AMAHAHA Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ IfsiOSHI श्रीमलिनाथ जगनान सुरासुरनराश्वीश-मयूर नववारिदम। कमंद्र न्मूलने हस्ति-मल्ल मल्ल मभिष्ट मः / / Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 19. भगवान् मल्लिनाथ नवीन. मेघ के उदय से जिस प्रकार मयूर आनन्दित हो जाता है उसी प्रकार जिन्हें देखने मात्र से सुर-असुर-नरपालों के चित्त आनन्दित हो जाते हैं और जो कर्मरूपी अटवी के उत्खात में मत्त हाथी की भांति हैं उन मल्लिनाथ का मैं स्तवन करता हूँ। पूर्वभव संख्या -3 च्यवन स्थान-वैजयन्त . च्यवन तिथि -फाल्गुन सुदि 4 जन्म नगरी -मिथिला जन्म तिथि -मिगसर सुदि 11 वंश -इक्ष्वाकु पितृ नाम -कुम्म मातृ नाम -प्रभावती जन्म नक्षत्र -अश्विनी जन्म राशि -मेष लाञ्छन वर्ण -नील दीक्षा नगरी -मिथिला दीक्षा तिथि -मिगसर सुदि 11 छद्यस्थ काल -१दिन ज्ञान नगरी -मिथिला ज्ञान तिथि -मिगसर सुदि 11 गणधर संख्या-२८ गणधर नाम -भिवक् मोक्ष स्थान -सम्मेतशिखर मोक्ष तिथि -फाल्गुन सुदि 12 यक्ष नाम -कुबेर यक्षिणी नाम-धरणप्रिया प्रमुख तीर्थ- भोयणी Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नरस्तावेजो नमणयम श्रीमनिसजनजारा जान जगन्महामोहनिद्रा-प्रत्यूषसमयोपमम् / मुनिसुव्रतनाथस्य देशनावचनं स्तुमः / / Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 20. भगवान् मुनिसुव्रत जिनकी वाणी मोह निद्रा प्रसुप्त प्राणियों के लिए प्रभाती रूप है उन मुनिसुव्रतस्वामी का मैं स्तवन करता हूँ। पूर्वभव संख्या -3 च्यवन स्थान-प्राणत च्यवन तिथि -श्रावण सुदि 15 जन्म नगरी -राजगृह जन्म तिथि -ज्येष्ठ वदि 8 वंश -हरिवंश पितृ नाम -सुमित्र मातृ नाम -पद्या . जन्म नक्षत्र -श्रवण जन्म राशि -मकर लाञ्छन -कूर्म -कृष्ण दीक्षा नगरी - राजगृह दीक्षा तिथि -फाल्गुन सुदि 12 छदस्थ काल -11 मास ज्ञान नगरी -राजगृह ज्ञान तिथि -फाल्गुन वदि 12 , गणधर संख्या-१८ गणधर नाम -इन्द्र मोक्ष स्थान -सम्मेतशिखर मोक्ष तिथि -ज्येष्ठ वदि 9 यक्ष नाम -वरुण यक्षिणी नाम-नरदत्ता वर्ण प्रमुख तीर्थ- राजगृह भरुच, अगासी, थाणा Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ооооооооооооооооооооооооооооооооооооооо оооооооооооооооооооооооо ооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооо о оооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооооо Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ vieux Tere x x x x x x dah Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ENDLA सीनामिना चालान लुठन्तो नमतां मुनि निर्मलीकारकारणम् / वारिप्लवा इव नमेः पान्तु पादनखांशवः / / Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . 21. भगवान् नमिनाथ - प्रणाम करते समय जिनके चरणों की नखप्रभा निखिल जनों के मस्तक पर पड़ती है और जो जलधारा की भांति उनके हृदय को निर्मल करती है उन नमिनाथ भगवान के चरणों की नखप्रभा तुम्हारी रक्षा करे। . पूर्वभव संख्या -3 च्यवन स्थान-अपराजित च्यवन तिथि -आश्विन सुदि 15 जन्म नगरी -मिथिला जन्म तिथि -श्रावण वदि८ वंश -इक्ष्वाकु पितृ नाम -विजय मातृ नाम -वप्रा जन्म नक्षत्र -अश्विनी जन्म राशि -मेष लाञ्छन -नीलकमल वर्ण -स्वर्ण दीक्षा नगरी -मिथिला दीक्षा तिथि -आषाढ़ वदि 9 / छयस्थ काल -9 मास ज्ञान नगरी -मिथिला ज्ञान तिथि -मिगसर सुदि 11 गणधर संख्या-१७ गणधर नाम -कुम्भ मोक्ष स्थान -सम्मेतशिखर मोक्ष तिथि -वैशाख वदि 10 यक्ष नाम -भृकुटि यक्षिणी नाम-गान्धारी प्रमुख तीर्थ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेधपस श्रीनेमिना धनगवान SASTER TOSCODSAN यदुवंशसमुद्रन्दुः कमेकनहुताशनः / अरिष्टनेमिभगवान् भूयाद्वोऽग्टिनाशनः // Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 22. भगवान् नेमिनाथ (अरिष्टनेमि) यदुवंश रूपी समुद्र के लिए जो चन्द्रमा रूप हैं और कर्मरूप अरण्य के लिए हुताशन स्वरूप हैं वे अरिष्टनेमि भगवान् तुम्हारे अरिष्ट या दुःखों को दूर करें। पूर्वभव संख्या -9 च्यवन स्थान-अपराजित - च्यवन तिथि -कार्तिक वदि 12 जन्म नगरी -सौरिपुर जन्म तिथि -श्रावण सुदि 5 वंश -हरिवंश पित नाम -समुद्रविजय मातृ नाम -शिवा जन्म नक्षत्र -चित्रा जन्म राशि -कन्या लाञ्छन -शंख वर्ण -कृष्ण दीक्षा नगरी -द्वारिका दीक्षा तिथि -श्रावण सुदि६ . छद्यस्थ काल -54 दिन ज्ञान नगरी -उज्जयन्त गिरि ज्ञान तिथि -आश्विन वदि 15 गणधर संख्या-११ गणधर नाम -वरदत्त मोक्ष स्थान -गिरिनार मोक्ष तिथि -आषाढ़ सुदि 8 यक्ष नाम -गोमेध यक्षिणी नाम -अम्बिका प्रमुख तीर्थ-गिरिनार, सौरीपुर, आबू, नाडलाई कुंभारियाजी, भोरोल, वालम, पारोली। Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ eee.oooooooooooooooooooooooooeeeeeeeeeeeeee оооооооооооооооо eeeeeeeeeeet э оооооо ооооооооооооооооо Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Tim meTea Anni_geomungeon imsTown Seunsgenter Seunmight MECH MEDIA TENEAR IMDA Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कमठे धरणेन्द्र च स्वोचित कर्म कुर्वति / प्रभुस्तुल्यमनोवृत्तिः पाश्वनाथः श्रियेऽस्तु वः Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 23. भगवान् पार्श्वनाथ कमठ और धरणेन्द्र दोनों अपना-अपना कार्य करते हैं, किन्तु दोनों ही के प्रति जिनका मनोभाव एकरूप है वे पार्श्वनाथ तुम्हारा कल्याण करें। पूर्वभव संख्या -10 च्यवन स्थान-प्राणत . च्यवन तिथि -चैत्र वदि 4 जन्म नगरी -वाराणसी जन्म तिथि -पौष वदि 10 वंश -इक्ष्वाकु पितृ नाम -अश्वसेन मातृ नाम -वामा जन्म नक्षत्र -विशाखा (अनुराधा) जन्म राशि -तुला लाञ्छन -सर्प वर्ण -नील दीक्षा नगरी -वाराणसी दीक्षा तिथि -पौष वदि 11 छास्थ काल -84 दिन ज्ञान नगरी -वाराणसी ज्ञान तिथि -चैत्र वदि 4 गणधर संख्या-८ गणधर नाम -आर्य दत्त मोक्ष स्थान -सम्मेतशिखर मोक्ष तिथि -श्रावण सुदि 8 यक्ष नाम -पार्श्व यक्षिणी नाम-पद्यावती प्रमुख तीर्थ-सम्मेतशिखर, खंभात, शंखेश्वर, वाराणसी, फलवधि, कापरड़ा, करेड़ा, नाकोड़ा, लौद्रवा, जीरावला, अजाहरा, पंचाशरा, अमीझरा, घोघा, अवन्ती, भद्रावती, अन्तरिक्ष, मक्षी। Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सस्त क REA5280 सोमालीरनामी नगलात S24 श्रीमते वीरनाथाय सनाथायाद्भुतश्रिया। महानन्दसरोराज-मरालायाहते नमः॥ Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 24. भगवान् महावीर (वर्धमान स्वामी) जिनके नयनताराओं में कृतापराधी के प्रति भी दयाभाव प्रस्फुटित है और इसी कारण जिनके पल्लव ईषत् बाष्पार्द्र हैं उन्हीं भगवान महावीर के नयन कल्याणवर्षी बनें। पर्वभव संख्या -27 च्यवन स्थान-प्राणत च्यवन तिथि -आषाढ़ सुदि६ गर्भ संहरण - आश्विन वदि 13 जन्म नगरी -क्षत्रियकुण्ड जन्म तिथि -चैत्र सुदि 13 वंश -इक्ष्वाकु पितृ नाम -सिद्धार्थ मातृ नाम -त्रिशला जन्म नक्षत्र -हस्तोत्तरा (उ. फाल्गुनी) जन्म राशि -कन्या लाज्छन -सिंह वर्ण -स्वर्ण दीक्षा नगरी -क्षत्रियकुण्ड दीक्षा तिथि -मिगसर वदि 10 छद्मस्थ काल -12 वर्ष, 6 मास, 15 दिन ज्ञान नगरी -ऋजुवालिका ज्ञान तिथि -वैशाख सुदि 10 गणधर संख्या-११ गणधर नाम -इन्द्रभूति गौतम मोक्ष स्थान -पावापुरी मोक्ष तिथि -कार्तिक वदि 15 ईस्वी पूर्व 527 यक्ष नाम -मातङ्ग यक्षिणी नाम - सिद्धायिका प्रमुख तीर्थ-पावापुरी, क्षत्रियकुंड वैशाली, ओसियाँ, मुंछाला, बामणवाड़ नांदिया, साँचोर, महुवा। Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सर्वारिष्टप्रणाशाय सर्वामिष्टार्थदायिने / सर्वलब्धिनिधानाय गौतमस्वामिने नमः / / Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ WWWXXN w | x x x x | 20 Page #85 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A sttha या पाश्नाथन 25EO LEDEO प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर.