________________ अन्त में हम श्री रवीन्द्रकुमारजी सिंघवी एवं उनकी धर्मपत्नी श्रीमती अमिला सिंघवी, जो कि हमारी अकादमी के उपाध्यक्ष एवं परम संरक्षक सदस्य भी हैं, के माध्यम से सौभाग्य एडवरटाइजिंग कं0, दिल्ली से यह दर्शनीय एवं नयनाभिराम प्रकाशन संभव हो सका, अतः इन्हें पुनःपुनः हार्दिक धन्यवाद देते हैं। हम आशा करते हैं कि इस दुर्लभ कलात्मक चौवीसी के पुनः प्रकाशन से जैन समाज की चिरकाल से पोषित अभिलाषा अवश्य पूर्ण होगी और कलाप्रिय दर्शनार्थी इस का उपयोग कर अवश्य ही लाभ उठायेंगे। देवेन्द्रराज मेहता म० विनयसागर निदेशक एवं संयुक्त सचिव प्राकृत भारती अकादमी, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर जयपुर