SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आज से पचास वर्ष पूर्व आफसेट प्रिंट का युग नहीं था, उस समय ब्लाक प्रिंटिंग प्रेस और लीथो प्रेस प्रारंभिक दशा में थे, जो पत्थर के उपर प्लेट बनवाते थे, तत्पश्चात् कागज के उपर छापते थे। इसी कारण चित्रों को छापने के लिए लाक बनवाना और उसे छपवाना यह एक ही मार्ग प्रकाशकों के लिए था। पंडितजी ने भी ब्लाक दिल्ली में बनवाये और उस समय में प्राप्त आर्ट पेपर पर उन चित्रों को छपवाया, किंतु तीन कलर के ब्लाकों का काम उभार वाला न हो सका, जिससे श्रेष्ठ कोटि के न तो ब्लाक बन सके और न उच्च श्रेणी का मुद्रण हो सका, जो हुआ वह भी मध्यम कोटि का हुआ। आज के युग में जब आफसेट का कार्य उन्नत कोटि पर पहुंच गया है, तब जैसे चित्र हैं, यदि वैसा ही उनका मुद्रण हो तभी उत्तम कलाकारों के श्रेष्ठ चित्रों के साथ न्याय किया जा सकता यह चौवीसी कई दशकों से अनुपलब्ध थी, इसी कारण जैन संस्कृति कलाकेन्द्र संस्था की ओर से प्रकाशित करवाने का निश्चय किया था। एकाएक मेरे धर्मस्नेही श्रीमान् विनयसागरजी की ओर से अनुरोध आया और मैंने उसे सहर्ष स्वीकार कर समस्त प्रकार का सहकार देने का संकेत किया। उन्होंने प्राकृत भारती अकादमी की प्रबंध समिति द्वारा इस चौवीसी को प्रकाशित करने का निर्णय करवाया। यह सुखद संयोग ही कहा जायेगा कि जिस धरती पर इसका प्रथम संस्करण निकला था, उसका द्वितीय संस्करण भी उसी घरती की संस्था प्राकृत भारती जयपुर की ओर से हो रहा है। इसके लिए प्राकृत भारती तथा इसके संस्थापक एवं मानद सचिव धर्मश्रद्धालु सौजन्य स्वभावी श्री देवेन्द्रराज मेहता तथा इस संस्था को प्रेरणा देने वाले श्रीमान् विनयसागरजी अधिकाधिक धन्यवाद के पात्र हैं। एक
SR No.004352
Book TitleJin Darshan Chovisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakrit Bharti Academy
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages86
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy