________________ विस्तृत प्रकाशन वर्षों के अन्तराल के बाद नवीन स्वरूप में, नूतन/आकर्षक रंगों में जनता के हाथ में आयेगा। इस प्रकार परमात्मा की भक्ति का और समाज के लिए उपकारक बनने का प्रकाशकों को महत लाभ प्राप्त होगा। कलाप्रेमी इसको खरीद कर अवश्य ही लाभ उठवें। भगवानदासजी मेरे अंतरंग/आत्मीय मित्र थ्य। अतः उनके प्रकाशन के पुनर्मुद्रण में मुझे थोड़ा बहुत निमित्त बनने का सदभाग्य प्राप्त हुआ है अतः मेरे लिए भी यह गौरव की बात है। जैन समाज में हजारों आत्माएं प्रातःकाल में अनानुपूर्वी दर्शन चौवीसी को गिनते हैं, उन्हें भी इस नूतन एवं श्रेष्ठ प्रकाशन से अत्यधिक आनन्द होगा। पुनः एकबार प्रस्तुत प्राकृत भारती द्वारा जैनधर्म के प्राण समान सतत ज्ञान प्रकाशन का यज्ञ प्रारम्भ कर संस्था को उत्तरोत्तर सेवा देकर संस्था को समृद्ध बनाने में सुयोग्य सहयोग देने वाले श्री विनयसागरजी को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ। जैन साहित्य मंदिर, पालीताणा यशोदेवसूरि