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________________ और विलक्षण संग्रह युक्त संग्रहालय बनवाना है, इसके लिए आपके छोटे से संग्रहालय के पार्श्व में जो भूमि है वह यदि आप प्रदान करें तो वहां संग्रहालय बन सकता है। उन्होंने सहानुभूति दर्शाई, साथ में संग्रहालय की रुपरेखा भी मांगी जो मैने लिखकर उनको भेज दी। पेढ़ी के ट्रस्टियों ने दो-तीन बार मिलकर विचार विमर्श किया और मुझे सूचित किया कि आपका आयोजन वर्तमान देशकाल को ध्यान में रखकर बहुत ही महत्वपूर्ण और उपयोगी है, अतः भूमि भी देंगे और आर्थिक सहयोग भी देंगे। __उसके पश्चात मेरे सामने कमभाग्य से ऐसे अनेक संयोग उपस्थित हुए कि म्यूजियम-प्रदर्शनी के आयोजन की दिशा में मैं आगे बढ़ न सका, अन्यथा वहां साथ में एक चित्र (पिक्चर) गैलरी का निर्माण हो जाता और वहां जयपुरी चित्र आकर्षक पद्धति से प्रदर्शित कर दिये जाते। अब तो जीवन की संध्या वेला में पहुंच गया हूं। मेरी इच्छा तीस साल से बड़ौदा राजकीय पुस्तकालय जैसा एक अखिल भारतीय विशाल जैन पुस्तकालय खड़ा करने की थी और दूसरी इच्छा बड़ौदा के संग्रहालय (म्यूजियम) जैसा विशाल संग्रहालय खड़ा करने की थी; जो कि अनेक दृष्टियों से विशिष्ट, बुद्धिवर्धक और ज्ञानवर्धक हो। और, तीसरी इच्छा जैन समाज, जैन शासन का जैन-अजैन समाज में गौरव बढ़े इस लिए अस्वस्थ एवं पीडित जीवों के लिये अति जरूरी बोम्बे चिकित्सालय-हास्पीटल जैसी विशाल अस्पताल बनवाने की थी। लेकिन मेरे तीनों स्वप्न कमनसीबी से सफल नहीं हुए। यह है मुझे चित्र किस प्रकार प्राप्त हुए उसकी छोटी कथा।
SR No.004352
Book TitleJin Darshan Chovisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakrit Bharti Academy
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages86
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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