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________________ खरीद लिये गये। तत्पश्चात इन चित्रों को मढ़वाया गया और इनके लिए सुन्दर एवं विशाल मंजूषा/पेटी बनवाकर ये चित्र उसमें सुरक्षित रूप से रख दिये। __कुछ समय पश्चात हमने पालीताणा से विहार किया। 25 वर्ष पर्यंत हम बम्बई में रहे। उस समय में विश्वशान्ति का महामहोत्सव पायधुनी, बम्बई में मनाया गया। इस प्रसंग पर विशाल रूप से एक भव्य प्रदर्शनी भी आयोजित की गयी थी तब कतिपय चित्र वहां प्रदर्शित भी किये गये थे। मम्बादेवी के मैदान पर इस प्रदर्शनी को चार लाख लोगों ने देखा था। प्रासंगिक पुरानी घटना प्रस्तुत की है। अनानुपूर्वी दर्शन चौवीसी की प्रथमावृत्ति बहुत वर्षों से अप्राप्त थी। इसका पुनर्मुद्रण कला वैशिष्ट्य की दृष्टि से कोई श्रेष्ठ आफसेट प्रेस में करवाना आवश्यक था, लेकिन पूज्य गुरुदेवों की आज्ञा से कल्पसूत्र सबोधिका टीका का प्रकाशन किया गया, उसका सम्पादन विशिष्ट प्रकार से मैंने किया था। इस सबोषिका प्रति में चित्र कलात्मक होने से जनता को उसकी जानकारी मिले इसलिए पांच तीर्थकरों के पांच तथा छठा श्री गौतमस्वामीजी के चित्रों को मुद्रण कराकर रखा गया। पालीताणा में बड़े पर्व दिवसों में भी कुछ चित्र दर्शनार्थ रखे गये थे। लगभग 40 वर्ष से मेरा एक स्वप्न था कि भविष्य में एक उत्कष्ट असाधारण एवं दर्शकों को प्रभावित करने वाला म्यूजियम का निर्माण करवाऊ। इसके लिए बम्बई के मध्य में विशाल स्थान प्राप्त करने के लिये प्रयत्न भी किये, किन्तु मध्य बम्बई में विशाल स्थान प्राप्त करने की बात अशक्य सिद्ध हुई। फलतः यह कार्य स्थगित हो गया। तत्पश्चात 33 वर्षों के बाद संवत् 1933 में पूज्य गुरुदेवों के साथ पुनः पालीताणा आने पर आगम मंदिर के सम्मुख खेत की जगह पर अतिविशाल संग्रहालय के लिए विचार किया। यह भूमि आणंदजी कल्याणजी पेढ़ी की थी। जैन समाज के अग्रगण्य प्रभावशाली सेठ श्री कस्तूरभाई लालभाई जब पालीताणा आये तब वे मुझे मिले। उस समय मैंने उनसे कहा कि एक विशिष्ट शैली, अनोखी पद्धति
SR No.004352
Book TitleJin Darshan Chovisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakrit Bharti Academy
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages86
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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