Book Title: Jain Tattva Darshan Part 02
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री चन्द्रप्रभ स्वामिने नमः ।। समान SURN IHD श्री वर्धमान जैन मंडल, चेन्नई द्वारा संचालित (संस्थापक सदस्य : श्री तमिलनाड जैन महामंडल) सरकार वाटिका Estd.:2006 Estd.:1991 श्री वर्धमान कुंवर जैन संस्कार वाटिका ... EK Summer & Holiday Camp जब ववदरब (JAIN TATVA DARSHAN) पाठ्यक्रम-2 संकलन व प्रकाशक श्री वर्धमान जैन मंडल, चेन्नई Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक ज्ञान ज्योत जो बनी अमर ज्योत जन्म दिवस 14-2-1913 स्वर्गवास 27-11-2005 aph hlory पंडित भूषण पंडितवर्य श्री कुंवरजीभाई दोसी * जन्म : गुजरात के भावनगर जिले के जैसर गाँव में हुआ था। * सम्यग्ज्ञान प्रदान : भावनगर, महेसाणा, पालिताणा, बैंगलोर, मद्रास। * प.पू. पंन्यास प्रवर श्री भद्रंकरविजयजी म.सा. का आपश्री पर विशेष उपकार। * श्री संघ द्वारा पंडित भूषण की पदवी से सुशोभित। * अहमदाबाद में वर्ष 2003 के सर्वश्रेष्ठ पंडितवर्य की पदवी से सम्मानित * प्रायः सभी आचार्य भगवंतों, साधु -साध्वीयों से विशेष अनुमोदनीय। * धर्मनगरी चेन्नई पर सतत् 45 वर्ष तक सम्यग् ज्ञान का फैलाव। * तत्त्वज्ञान, ज्योतिष, संस्कृत, व्याकरण के विशिष्ट ज्ञाता। * पूरे भारत भर में बड़ी संख्या में अंजनशलाकाएँ एवं प्रतिष्ठाओं के महान् विधिकारक। अनुष्ठान एवं महापूजन को पूरी तन्मयता से करने वाले ऐसे अद्भुत श्रद्धावान् * स्मरण शक्ति के अनमोल धारक। * तकरीबन 100 छात्र-छात्राओं को संयम मार्ग की ओर अग्रसर कराने वाले। * कई साधु-साध्वीयों को धार्मिक अभ्यास कराने वाले। * आपश्री द्वारा मंत्रों का स्पष्ट उच्चारण एवं विधि में शुद्धता को विशेष प्रधानता। * तीर्थ यात्रा के प्रेरणा स्त्रोत। दुनिया से भले गये पंडितजी आप, हमारे दिल से न जा पायेंगे। आप की लगाई इन ज्ञान परब पर, जब-जब ज्ञान जल पीने जायेगे तब बेशक गुरुवर आप हमें बहुत याद आयेंगे...... _ वि.सं. २०७१ ई.स. 2015 पंचम आवृत्ति - 7000 प्रतिया (कुल 22000 प्रतिया) 9 मूल्य : रू.70/ सर्व अधिकार : श्रमण प्रधान श्री संघ के आधीन साधु-साध्वीजी भगवंतो को और ज्ञानभंडारो को भेंट बरूप मिलेगी। Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (वर्धमान संस्कार वाटिका ।। श्री चन्द्रप्रभस्वामिने नमः ।। श्री वर्धमान कुंवर जैन संस्कार वाटिका ...Ek Summer Holiday Camp जैन तत्त्व दर्शन JAIN TATVA DARSHAN पाठ्यक्रम 2) संस्कार वाटिका * दिव्याशीष * "पंडित भूषण" श्री कुंवरजीभाई दोशी * संकलन व प्रकाशक श्री वर्धमान जैन मंडल 33, रेडी रामन स्ट्रीट, चेन्नई - 600079. फोन : 044-25290018 / 25366201 / 25396070 / 23465721 Website : jainsanskarvatika.com E-mail: svjm1991@gmail.com यह पुस्तक बच्चों को ज्यादा उपयोगी बने, इस हेतु आपके सुधार एवं सुझाव प्रकाशक के पते पर अवश्य भेंजे । Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ० संस्कार वाटिका * अंधकार से प्रकाश की ओर ............. एक कदम अज्ञान अंधकार है, ज्ञान प्रकाश है, अज्ञान रूपी अंधकार हमें वस्तु की सच्ची पहचान नहीं होने देता। अंधकार में हाथ में आये हुए हीरे को कोई कांच का टुकडा मानकर फेंक दे तो भी नुकसान है और अंधकार में हाथ में आये चमकते कांच के टुकडे को कोई हीरा मानकर तिजोरी में सुरक्षित रखे तो भी नुकसान हैं। ज्ञान सच्चा वह है जो आत्मा में विवेक को जन्म देता है। क्या करना, क्या नहीं करना, क्या बोलना, क्या नहीं बोलना, क्या विचार करना, क्या विचार नहीं करना, क्या छोडना, क्या नहीं छोडना, यह विवेक को पैदा करने वाला सम्यग ज्ञान है। संक्षिप्त में कहें तो हेय, ज्ञेय, उपादेय का बोध कराने वाला ज्ञान ही सच्चा ज्ञान है। वही सम्यग ज्ञान है। संसार के कई जीव बालक की तरह अज्ञानी है, जिनके पास भक्ष्य-अभक्ष्य, पेय-अपेय, श्राव्य-अश्राव्य और करणीय-अकरणीय का विवेक नहीं होने के कारण वे जीव करने योग्य कई कार्य नहीं करते और नहीं करने योग्य कई कार्य वे हंसते-हंसते करके पाप कर्म बांधते हैं। बालकों का जीवन ब्लोटिंग पेपर की तरह होता है। मां-बाप या शिक्षक जो संस्कार उसमें डालने के लिए मेहनत करते हैं वे ही संस्कार उसमें विकसित होते हैं। बालकों को उनकी ग्रहण शक्ति के अनुसार आज जो जैन दर्शन के सूत्रज्ञान-अर्थज्ञान और तत्त्वज्ञान की जानकारी दी जाय, तो आज का बालक भविष्य में हजारों के लिए सफल मार्गदर्शक बन र सकता है। Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालकों को मात्र सूत्र कंठस्थ कराने से उनका विकास नहीं होगा, उसके साथ सूत्रों के अर्थ, सूत्रों के रहस्य, सूत्र के भावार्थ, सूत्रों का प्रेक्टिकल उपयोग, आदि बातें उन्हें सिखाने पर ही बच्चों में धर्मक्रिया के प्रति रूचि पैदा हो सकती है। धर्मस्थान और धर्म क्रिया के प्रति बच्चों का आकर्षण उसी ज्ञान दान से संभव होगा। इसी उद्देश्य के साथ वि.सं. 2062 (14 अप्रेल 2006) में 375 बच्चों के साथ चेन्नई महानगर के साहुकारपेट में ''श्री वर्धमान जैन मंडल'' ने संस्कार वाटिका के रूप में जिस बीज को बोया था, वह बीज आज वटवृक्ष के सदृश्य लहरा रहा है। आज हर बच्चा यहां आकर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करता है। पंडित भूषण पंडितवर्य श्री कुंवरजीभाई दोसी, जिनका हमारे मंडल पर असीम उपकार है उनके स्वर्गवास के पश्चात मंडल के अग्रगण्य सदस्यों की एक तमन्ना थी कि जिस सद्ज्ञान की ज्योत को पंडितजी ने जगाई है, वह निरंतर जलती रहे, उसके प्रकाश में आने वाला हर मानव स्वव पर का कल्याण कर सके। ___ इसी उद्देश्य के साथ आजकल की बाल पीढी को जैन धर्म की प्राथमिकी से वासित करने के लिए सर्वप्रथम श्री वर्धमान कुंवर जैन संस्कार वाटिका की नींव डाली गयी। वाटिका बचों को आज सम्यग्ज्ञान दान कर उनमें श्रद्धा उत्पन्न करने की उपकारी भूमिका निभा रही हैं। आज यह संस्कार वाटिका चेन्नई महानगर से प्रारंभ होकर भारत में ही नहीं अपितु विश्व के कोने-कोने में अपने पांव पसार कर सम्यग् ज्ञान दान का उत्तम दायित्व निभा रही है। जैन बच्चों को जैनाचार संपन्न और जैन तत्त्वज्ञान में पारंगत बनाने के साथ-साथ उनमें सद् श्रद्धा का बीजारोपण करने का आवश्यक प्रयास वाटिका द्वारा नियुक्त श्रद्धा से वासित हृदय वाले अध्यापक व अध्यापिकागणों द्वारा निष्ठापूर्वक इस वाटिका के माध्यम से कर किया जा रहा है। Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संस्कार वाटिका में बाल वर्ग से युवा वर्ग तक के समस्त विद्यार्थियों को स्वयं के कक्षानुसार जिनशासन के तत्त्वों को समझने और समझाने के साथ उनके हृदय में श्रद्धा दृढ करें ऐसे शुद्ध उद्देश्य से "जैन तत्त्व दर्शन (भाग 1 से 9 तक)" प्रकाशित करने का इस वाटिका ने पुरूषार्थ किया है। इन अभ्यास पुस्तिकाओं द्वारा “जैन तत्त्व दर्शन - (भाग 1 से 9), कलाकृत्ति (भाग 1-3), दो प्रतिक्रमण, पांच प्रतिक्रमण पुस्तक आदि के माध्यम से अभ्यार्थीयों को सहजता अनुभव होगी। इन पुस्तकों के संकलन एवं प्रकाशन में चेन्नई महानगर में चातुर्मास हेतु पधारे, पूज्य गुरु भगवंतों से समय-समय पर आवश्यक एवं उपयोगी निर्देश निरंतर मिलते रहे हैं। संस्कार वाटिका की प्रगति के लिए अत्यंत लाभकारी निर्देश भी उनसे मिलते रहें हैं। हमारे प्रबल पुण्योदय से इस पाठ्यक्रम के प्रकाशन एवं संकलन में विविध समुदाय के आचार्य भगवंत, मुनि भगवंत, अध्यापक, अध्यापिका, लाभार्थी परिवार, श्रुत ज्ञान पिपासु आदि का पुस्तक मुद्रण में अमूल्य सहयोग मिला तदर्थ धन्यवाद । आपका सुन्दर सहकार अविस्मरणीय रहेगा। मंडल को विविध गुरु भगवंतों का सफल मार्गदर्शन एवं आशीर्वादः1. प.पू. पंन्यास श्री उदयप्रभविजयजी म.सा. 2. प. पू. पंन्यास श्री अजयसागरजी म.सा. 3. प.पू. मुनिराज श्री युगप्रभ विजयजी म.सा. 4. प.पू. मुनिराज श्री अभ्युदयप्रभ विजयजी म.सा. 5. प.पू. मुनिराज श्री दयासिंधु विजयजी म.सा. नम्र विनंती: समस्त आचार्य भगवंत, मुनि भगवंत, पाठशाला के अध्यापक-अध्यापिकाओं एवं श्रुत ज्ञान पिपासुओं से नम्र विनंती है कि इन पाठ्यक्रमों के उत्थान हेतु कोई भी विषय या सुझाव अगर आपके पास हो तो हमें अवश्य लिखकर भेजें ताकि हम इसे और भी सुंदर बना सकें। : Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इस पुस्तक के मुद्रक जगावत प्रिन्टर्स धन्यवाद के पात्र हैं जिन्होंने समय पर पुस्तकों को प्रकाशित करने में सहयोग दिया। इस पुस्तक को नौ विभागों में तैयार करने में विविध पुस्तकों का आधार लिया है, एवं नामी - अनामी चित्रकारों के चित्र लिये गये है। अतः उन पुस्तकों के लेखक, संपादक, प्रकाशकों के हम सदा ऋणी रहेंगे... इस पुस्तक में कोई भूल - त्रुटि हो तो सुज्ञ वाचकगण सुधार लेंवे। पुस्तक में प्रकाशित विषय निम्न पुस्तकों में से लिए गये है : 1) धर्मबिंदु 4) नवतत्त्व 7) गुरुवंदन भाष्य गृहस्थ धर्म बाल पोथी भेजिये आपके लाल को, सच्चे जैन हम बनायेंगे । दुनिया पूजेगी उनको, इतना महान बनायेंगे ।। :: उपयुक्त ग्रंथ की सूची :: 2) योगबिंदु 5) लघु संग्रहणी 8) श्राद्धविधि प्रकरण 1) 2) 3) तत्त्वज्ञान प्रवेशिका 4) बच्चों की सुवास 5) कहीं मुरझा न जाए 6) रात्रि भोजन महापाप 7) पाप की मजा-नरक की सजा 8) चलो जिनालय चले 9) रीसर्च ऑफ डाईनिंग टेबल :: उपयुक्त पुस्तक की सूची :: 10) जैन तत्त्वज्ञान चित्रावली प्रकाश 11) अपनी सच्ची भूगोल 12) सूत्रोना रहस्यो 13) गुड बॉय 14 ) हेम संस्कार सौरभ 15) आवश्यक क्रिया साधना 16) गुरू राजेन्द्र विद्या संस्कार वाटिका 17 ) पच्चीस बोल जिनशासन सेवानुरागी श्री वर्धमान जैन मंडल साहुकारपेट, चेन्नई-79. 3) जीव विचार 6 ) चैत्यवंदन भाष्य 9) प्रथम कर्मग्रंथ पू. आचार्य श्रीमद् विजय केसरसूरीश्वरजी म.सा. पू. आचार्य श्रीमद् विजय भुवनभानूसूरीश्वरजी म.सा. पू. आचार्य श्रीमद् विजय कलापूर्णसूरीश्वरजी म.सा. पू. आचार्य श्रीमद् विजय भद्रगुप्तसूरीश्वरजी म.सा. पू. आचार्य श्रीमद् विजय गुणरत्नसूरीश्वरजी म.सा. पू. आचार्य श्रीमद् विजय राजयशसूरीश्वरजी म.सा. पू. आचार्य श्रीमद् विजय रत्नाकरसूरीश्वरजी म.सा. पू. आचार्य श्रीमद् विजय हेमरत्नसूरीश्वरजी म.सा. पू. आचार्य श्रीमद् विजय हेमरत्नसूरीश्वरजी म.सा. पू. आचार्य श्रीमद् विजय जयसुंदरसूरीश्वरजी म.सा. पू. पंन्यास श्री अभयसागरजी म.सा. पू. पंन्यास श्री मेघदर्शन विजयजी म.सा. पू. पंन्यास श्री वैराग्यरत्न विजयजी म.सा. पू. पंन्यास श्री उदयप्रभविजयजी म.सा. पू. मुनिराज श्री रम्यदर्शन विजयजी म.सा. पू. साध्वीजी श्री मणिप्रभाश्रीजी म.सा. पू. महाश्रमणी श्री विजयश्री आर्या Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 32 32 (1) तीर्थंकर परिचय A. श्री 24 तीर्थंकर के नाम व लंछन B. अष्ट मंगल के नाम C. बारह महिनों के नाम D. अंक ज्ञान (2) काव्य संग्रह A. प्रार्थना B. प्रभु स्तुतियाँ C. श्री चौबीस जिन चैत्यवंदन D. श्री सामान्य जिन स्तवन E. श्री सामान्य जिन स्तुति (3) जिन पूजा विधि A. अष्टप्रकारी पूजा के दोहे B. नवअंग पूजा के दोहे (4)ज्ञान A. ज्ञान के दोहे (5) नवपद A. नवपद के नाम (6) नाद, घोष (7) मेरे गुरू (8) दिनचर्या A. सुबह उठने की विधि B. माला गिनने की विधि (9) भोजन विवेक (10) माता-पिता का उपकार (11) जीवदया-जयणा (12) विनय-विवेक (13) सम्यग् ज्ञान A. आठ कर्म के नाम एवं भेद B. नव तत्त्व के नाम एवं भेद c. सहन करना D. इतना नहीं देखना E. प्रभु पूजन E. पाठशाला (14) जैन भूगोल (15) सुत्र एवं विधि A. सूत्र विभाग 1. इरियावहियं सूत्र 2. तस्स उत्तरी सूत्र 3. अन्नत्थ सूत्र 4. लोगस्स सूत्र 5. करेमि-भंते सूत्र 6. सामाइय-वय-जुत्तो सूत्र B. पच्चक्खाण 1. चौविहार 2. तिविहार c. विधि 1. सामायिक लेने की विधि 2. सामायिक पारने की विधि (16) कहानी विभाग A. श्री अईमुत्ता मुनि B. गजसुकुमाल c. श्री मेघरथ राजा D. श्री कपर्दी मंत्री- तिलक की रक्षा E. माता-पिता का विनय (17) प्रश्नोत्तरी (18) सामान्य ज्ञान A. POEMS B. GAMES - मिलान करो C. चित्रावली 19 | D. आज की मजा, नरक की सजा 32 32 33 34 38 41 44 45 46 49 50 52 Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (1) तीर्थंकर परिचय A. श्री 24 तीर्थंकर भगवान के नाम व लंछन 1. श्री ऋषभदेवजी 2. श्री अजितनाथजी 3. श्री संभवनाथजी तेल हाथी घोडा 4. श्री अभिनन्दनस्वामीजी 5. श्री सुमतिनाथजी 6. श्री पद्मप्रभस्वामीजी बदर क्रौंच पक्षी पद्मकमल 7. श्री सुपार्श्वनाथजी 8. श्री चन्द्रप्रभस्वामीजी 9. श्री सुविधिनाथजी Mithi स्वस्तिक चन्द्र मगरमच्छ 10. श्री शीतलनाथजी 11. श्री श्रेयांसनाथजी 12. श्री वासुपूज्यस्वामीजी Oop 100 श्रीवत्स गेंडा Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री 24 तीर्थंकर भगवान के नाम व लंछन 13. श्री विमलनाथजी 14. श्री अनन्तनाथजी | 15. श्री धर्मनाथजी वराह = भूड बाजपक्षी वज 16. श्री शांतिनाथजी | 17. श्री कुंथुनाथजी 18. श्री अरनाथजी बकरा नंदावर्त 19. श्री मल्लिनाथजी 20. श्री मुनिसुव्रतस्वामीजी 21. श्री नमिनाथजी कलश कछुआ नीलकमल 22. श्री नेमनाथजी 23. श्री पार्श्वनाथजी 24.श्री महावीरस्वामीजी सह सर्प Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ B. अष्ट मंगल के नाम 1.स्वस्तिक 2.श्रीवत्स 3.नंद्यावर्त 4.वर्धमानक 5.भद्रासन 6.कलश 7.मीनयुगल 8.दर्पण C. बारह महिनों के नाम 5 कार्तिका मिगसर , पोष 7 9 वैसाख ज्येष्ठ आषाद माघ फाल्गुण चैत्र 10 -11-12 श्रावण भाद्रवा आसोज हिन्दी में | ० 10 १ 1 D. अंक ज्ञान २ ३ ४ 2 3 4 ५ 5 ६ 6 अंग्रेजी में 7 8 A. प्रार्थना TES (2) काव्य संग्रह हे प्रभु आनंद दाता, ज्ञान हमको दिजीये शीघ्र सारे दुर्गुणों को, दूर हमसे किजीए.. लिजीए हमको शरण में, हम सदाचारी बने ___ ब्रह्मचारी धर्मरक्षक, वीर व्रत धारी बने.... प्रेम से हम गुरूजनों की, नित्य ही सेवा करे धैर्य बुद्धि मन लगाकर, वीर गुण गाया करे.. निंदा किसी की हम किसी से, भुलकर भी न करे सत्य बोले झूठ त्यागे, मेल आपस में रखे.... भगवान हमारी लाज रखना, आप ही के हाथ है कर कृपा अति शीघ्र हमको, शुद्ध बुद्धि दीजीए.... Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ B. प्रभु स्तुतियाँ अन्यथा शरणं नास्ति, त्वमेव शरणं मम। तस्मात कारुण्य भावेन, रक्ष रक्ष जिनेश्वर।। जेना गुणो ना सिंधुना बे बिंदु पण जाणुं नहिं, पण एक श्रद्धा दिलमही के नाथ सम को छे नहिं। जेना सहारे क्रोडो तरीया, मुक्ति मुज निश्चय सही, एवा प्रभु अरिहंतने पंचांग भावे हुं नमुं। सवि जीव करुं शासनरसी, आ भावना हैये वहु, झरणा करुणाना बनी हु, जीवनभर वहेतो रह। शणगार संयमना सजु, झंखु सदा शिवसुंदरी, प्रभु आटलु जनमोजनम, देजो मने करुणा करी ।। (SHE.. Coooooooo c. श्री चौबीस जिन चैत्यवंदन पद्म प्रभ ने वासुपूज्य, दोय राता कहिये, चन्द्रप्रभ ने सुविधिनाथ, दोय उज्जवल लहिये ।। 1 ।। मल्लिनाथ ने पार्श्वनाथ, दोय नीला निरख्या, मुनिसुव्रत ने नेमनाथ, दोय अंजन सरिखा ।। 2 ।। सोले जिन कंचन समा, एहवा जिन चोवीश, धीर विमल पंडित तणो, ज्ञान विमल कहे शिष्य ।। 3 ।। D. श्री सामान्य जिन स्तवन जिन तेरे चरण की शरण ग्रहं... हृदय कमल में ध्यान धरत हु, शिर तुज आण वहं तुम सम खोल्यो देव खलक में, पेख्यो नहीं कबहुं तेरेगुणों की जपुंजपमाला, अहर्निश पाप दहुं मेरे मन की तुम सब जानो, क्या मुख बहोत कहुं कहे जस विजय करो त्यु साहिब, ज्युं भवदु:ख न लहुं . जिन. ।। 1।। जिन. ||2|| जिन. ||3|| जिन. ||4|| जिन. ।।5।। HI 101 ..--- Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. E. श्री सामान्य जिन स्तुति कल्लाणकंदं पढमं जिणिंदं, संतिं तओ नेमिजिणं मुणिंद, पासं पयासं सुगुणिक्क - ठाणं, भत्तीइ वंदे सिरि-वद्धमाणं ।। 1 ।। ( 3 ) जिन पूजा विधि A. अष्टप्रकारी पूजा के दोहे जल पूजा चंदन पूजा पुष्प पूजा धूप पूजा दीपक पूजा अक्षत पूजा नैवेद्य पूजा फल पूजा : : : : : जल पूजा जुगते करो, मेल अनादि विनाश । जल पूजा फल मुज होजो, मांगु अम प्रभु पास ॥ शीतल गुण जेह मां रह्यो, शीतल प्रभु मुख रंग । आत्म शीतल करवा भणी, पूजो अरिहा अंग ।। सुरभि अखंड कुसुम ग्रही, पूजो-गत संताप । सुम जंतु भव्यज परे, करीओ समकित छाप ।। ध्यान घटा प्रगटावीओ, वाम नयन जिन धूप । मिच्छत्त दुर्गंध दूरे टले, प्रगटे आत्म स्वरुप | द्रव्य दीप सुविवेकथी, करता दुःख होय फोक । भाव प्रदीप प्रगट हुआ, भासित लोकालोक ॥। शुद्ध अखंड अक्षत ग्रही, नंदावर्त विशाल । पूरी प्रभु सन्मुख रहो, टाली सकल जंजाल ।। अणाहारी पद में कर्या, विग्गह गइ अनंत । दूर करी ते दीजीओ, अणाहारी शिव संत ॥ इन्द्रादिक पूजा भणी, फल लावे धरी राग । पुरुषोत्तम पूजी करी, मांगे शिवफल त्याग ।। 11 Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ B. नव अंग पूजा के दोहे 1. अंगुठा : जलभरी संपूट पत्रमां, युगलिक नर पूजंत; ऋषभ चरण अंगूठडे, दायक भवजल अंत ।। 1 ।। - (परमात्मा ने चरणो द्वारा विहार करके अनंत उपकार किया।) 2. ढींचणाः जानुबले काउस्सग्ग रह्या, विचर्या देश-विदेश; खडा खडा केवल लद्यु, पूजो जानु नरेश ।। 2 ।। (खडे खडे कायोत्सर्ग एवं परिषह सह किया।) 3. कांडे : लोकांतिक वचने करी, वरस्या वरसी दान; कर कांडे प्रभु पूजना, पूजो भवि बहुमान।। 3 ।। (दान देकर जगत का दारिद्र दूर किया।) 4.खंभे मान गयुं दोय अंशथी, देखी वीर्य अनंत; भुजाबले भवजल तर्या, पूजो खंध महंत ।। 4 ।। (शक्ति का अहंकार नहीं करते हुए उपसर्ग सहन किया।) 5.मस्तक-शिखा : सिद्धशिला गुण उजली, लोकांते भगवंत; वसीया तेणे कारण भवि, शिरशिखा पूजंत।। 5 ।। (चौदह राजलोक के अग्रभाग पर स्थान प्राप्त किया।) 6. कपाल तीर्थंकर पद पुण्यथी, त्रिभुवन जन सेवंत; त्रिभुवन तिलक समा प्रभु, भाल तिलक जयवंत ।। 6 ।। (तीन भुवन में परमात्मा तिलक समान है।) 7. कंठ सोल प्रहर प्रभु देशना, कंठे विवर वर्तुल; मधुरध्वनि सुरनर सुणे, तिणे गले तिलक अमूल ।। 7 ।। (देशना देके भव्य जीवों का उद्धार किया।) Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 第 5 8. हृदय 9. नाभि हृदय कमल उपशम बले, बालया रागने रोष; हिम दहे वनखंडने, हृदय तिलक संतोष ॥ 8 ॥ (शत्रु मित्र पर समभाव रखा।) रत्नत्रयी गुण उजली, सकल सुगुण विश्राम; नाभि कमलनी पूजना, करतां अविचल धाम ॥ 9 ॥ (नाभि के आठ रूचक प्रदेश हमेशा कर्म रहित है तो उस के जैसे कर्म रहित बनने के लिए।) उपदेशक नवतत्त्वना, तिणे नव अंग जिणंद, पूजो बहुविध राग थी, कहे शुभवीर मुणिंद ।। (4) ज्ञान A. ज्ञान के दोहे 1. मतिज्ञान का दोहा समकित श्रद्धावंतने, उपन्यो ज्ञान प्रकाश । प्रणमुं पद कज तेहना, भाव धरी उल्लास ॥ 2. श्रुतज्ञान का दोहा पवयण श्रुत सिद्धांत ते, आगम समय वखाण । पूजो बहुविध रागथी, चरण कमल चित्त आण ।। 3. अवधिज्ञान का दोहा उपन्यो अवधिज्ञान नो, गुण जेहने अविकार । वंदना तेहने माहरी, श्वास मांहे सो वार ॥ 4. मन पर्यवज्ञान का दोहा गुण जेहने उपन्यो, सर्वविरति गुण ठाण । प्रणमं हित थी तेहना, चरण कमल चित्त आण || 5. केवलज्ञान का दोहा केवलदंसण नाणनो, चिदानंद घन तेज । ज्ञानपंचमी दिन पूजीए, विजयलक्ष्मी शुभ हेज || S 1) मतिज्ञान 3) अवधिज्ञान 2) श्रुतज्ञान 4) मनः पर्यवज्ञान 5) केवलज्ञान 13 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (5) नवपद देव तत्त्व वर्ण गुण अरिहंत सफेद 12 सिद्ध लाल 8 नमो सिद्धाणं गुरू तत्त्व नमो तवस्स नमो दंसणस्स आचार्य पीला 36 दीअरिहंता उपाध्याय हरा 25 साधु काला 27 नमो लोए सव्व साहणं नमो आयरियाणं पंच परमेष्ठि के गुण 108 धर्म तत्त्व Belut दर्शन सफेद 67 नमा नाणस्स ज्ञान सफेद 51 8 LOLSA DE LA चारित्र 70 सफेद तप सफेद 50 नवपद के गुण 238 एक दो तीन चार जैन धर्म की जय जयकार (6) नाद - घोष एक दो तीन चार - जैन धर्म की जय जयकार पांच छः सात आठ - जैन धर्म की ठाट बाट नौ दस ग्यारह बारह - जैन धर्म का बजे नगाडा तेरह चौदह पंद्रह सोलह - जैन धर्म का बच्चा बोला सत्रह अट्ठारह उन्नीस बीस - जैन धर्म की विसवावीस एक्कीस बाईस तेइस चौबीस - जैन धर्म के तीर्थंकर चौबीस Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (7) मेरे गुरू गलत वाक्य - सही वाक्य 1. अंकलजी खाना लेने आओ। - म.साहेब गोचरी वहोरने पधारो। 2. म.साहेब बार-बार कपड़ा उतारकर पहनते हैं। - म.साहेब पडिलेहन करते हैं। 3. म.साहेब चरवला से कचरा दूर करते हैं। - म.साहेब ओघा से जीवों की जयणा करते हैं। 4. म.साहेब थाली में खाते हैं। - म.साहेब पात्रे में वापरते हैं। 5. म.साहेब एक गाँव से दूसरे गाँव जाते हैं। - म.साहेब चलकर विहार करते हैं। 6. म.साहेब भाषण देते हैं। - म.साहेब व्याख्यान (उपदेश) देते हैं। 7. म.साहेब लंबी लकड़ी रखते हैं और मारते हैं। - म.साहेब डंडा रखते हैं उससे विहार में जानवर आदि पास में नहीं आते और चलने में सुविधा होती है। (8) दिनचर्या A. सुबह उठने की विधि सुबह सूर्योदय से 48 मिनट पहले जागृत होना । उठते ही दो हाथ घिसकर आँख को लगाये। फिर दो हाथ इकट्ठे कर सिद्धशिला रुप हस्त रेखा के ऊपर 24 पर्व में 24 तीर्थंकर भगवान का स्मरण इस प्रकार करें: फिर 8 कर्मों के क्षय के लिए दृढ़ संकल्प पूर्वक 8 नवकार गिनें। बाद में जिस नाक से श्वास चल रहा हो (उसे अंगूली से जाँचकर) उस तरफ का पैर बिस्तर में से प्रथम उठाने पर दिन शुभ जाता है। B. माला गिनने की विधि दाँए (Right) हाथ में क्रमशः नंबर पर माला का मंत्र बोले, एक बार जीमने हाथ में 12 तक पूरा होने के बाद बाँए (Left) हाथ में 1 नंबर पर से 2 नंबर पर जाना। इस प्रकार दाँए हाथ में 12 पूरे होने पर बाँए हाथ का एक एक नंबर आगे बढ़ाते जाना। जब बाँए हाथ के 9 नंबर पूरे हो जाएँ तब एक माला पूरी होती है। वाN 00 Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 9 ) भोजन विवेक 1. खुले स्थान में, खड़े-खड़े, टी.वी. देखते देखते, चलते-चलते, सोतेसोते भोजन नहीं करना चाहिए। 2. हमें कंदमूल, ब्रेड, बटर, चीझ, अण्डा इन सब चीजों का त्याग करना चाहिए। - 3. हमें स्कूल में दोस्तो के साथ लंच लेते समय उसमें कंदमूल जैसी वस्तु न हो वह ध्यान रखना चाहिए। ( 10 ) माता - पिता का उपकार 1. माता-पिता को तीनों समय नमस्कार करके उनके चरण छूएँ । 2. उनकी आज्ञा मानें I 3. उनके सामने नहीं बोलें । तिरस्कार से प्रश्न का उत्तर न दें। 4. दु:ख उत्पन्न हों एवं उनको पसन्द न हो ऐसा काम न करें। 5. बुरे वचन, गाली जैसे शब्द न बोलें । 6. स्वार्थ के लिए अपमान और तिरस्कार न करें। 7. सेवा - भक्ति करें । 8. धर्म मार्ग में लगाएं। 9. उनका आदर-बहुमान विनय करें । 10. उनकी उत्तम वस्त्र - भोजन अलंकारो से यथाशक्ति भक्ति करें। ww 16 बैठकर अलक्ष्य रहित जन करता हुआ बालक 4. भोजन करते समय एक भी दाना नीचे न गिरे एवं गिरे तो ले लेना चाहिए। थाली में झूठा बिल्कुल न छोड़े। झूठा छोड़ने से बहुत पाप लगता है। 5. खाने के बाद थाली धोकर, वह पानी पीकर, थाली को रूमाल से पोंछकर रखनी चाहिए, जिससे उसमें जीवों के उत्पत्ति नहीं होती और आयंबिल का लाभ मिलता है। " 6. खाने के पूर्व - साधु भगवंत को गोचरी वहोराकर एवं साधर्मिक को भोजन कराकर स्वयं भोजन करें। 7. खाते-खाते झूठे मुँह से बोलना नही चाहिए एवं पुस्तक वगैरह को स्पर्श नहीं करना चाहिए । 8. जिन चीजों पर अक्षर लिखे हो या जिन चीजों पर जीवों का आकार (डीजाईन) या चित्र हो वे चीजें नही खानी चाहिए। Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 11 ) जीवदया - जयणा मारो नहीं बेचारी मक्खियों को नहीं मारना । मच्छरों को भी नहीं मारना । खटमलों को भी नहीं मारना । इनका अपराध कितना ? इनको सजा कितनी ? ये कोई तुम्हारी जान थोड़े ही ले लेते हैं ? तो फिर तुम इनकी जान क्यों ले लेते हो ? तुम्हें मार डालने का इनका इरादा थोड़े ही है ? ये तो बेचारे अज्ञान व भोले भाले जन्तु हैं। घूमते-घामते तुम्हारे शरीर पर आकर के बैठ जाते हैं। अपनी खुराक खोजते हैं। रास्ते पर चलते हुए तुमने, मानो किसी को जरा सी टक्कर लगाई और अगर सामने वाला तुम्हें चाकू निकाल के मारने लगे तो बताओ कैसा लगेगा उस वक्त ? न्याय या अन्याय ? अन्याय ! तो फिर भूल से, गल्ती से, तुम्हारे घर में या तुम्हारे शरीर पर आकर बैठे हुए जन्तुओं को यदि तुम मार डालते हो तो यह न्याय या अन्याय ? मक्खी मच्छर खटमल b भोजन खोजने आते और जाते हैं..... 17 Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मामले लनामा .. KHE Rथाना (12) विनय - विवेक दर्शन संबंधी आशातना 1. मंदिर में खाना (चॉकलेट, पान, गुटखा आदि), पानी पीना, भोजन करना, जूते-चप्पल आदि पहनना, अशुभ वर्तन करना। सो जाना, थूकना अथवा कफ (बलगम) फेंकना, पेशाब करना, टट्टी करना, जुआ खेलना, किसी भी प्रकार का खेल खेलना, दौड कूद करना इत्यादि क्रियाओं का त्याग करना चाहिए। 2. जिन प्रतिमा के सामने पैर लम्बे करके बैठना अथवा पीठ फेरकर नहीं बैठना चाहिए। 3. मंदिर में हँसी-मजाक, कुचेष्टा, नाक, कान आदि का मैल डालना, - नींद लेना, किसी की निंदा करना, झगडा करना, खराब कहानी कहना, बातचीत इत्यादि नहीं करना चाहिए। 4. मर्यादाहीन, उद्भट वेश-कपडे पहनकर मंदिर नहीं जाना चाहिए। (ऐसा करने से अन्यों के मन में गंदे भाव पैदा होते है-उसके निमित्त बनने का दोष अपने को लगता है।) 5. खाने पीने की वस्तु लेकर अथवा खाते-खाते मंदिर में नहीं जाना चाहिए। साथिए पर चढाई हुई वस्तु नहीं खानी चाहिए। (13) सम्यग् ज्ञान A. आठ कर्म के नाम एवं भेद कर्म के नाम 1. ज्ञानावरणीय 2. दर्शनावरणीय 3. वेदनीय 4. मोहनीय आयुष्य नाम गोत्र अंतराय ज्ञालावगीय कर्म गोत्रका पटनायक A 6. नामकमी Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ B. नवतत्त्व के नाम एवं भेद | भेद 14 14 42 82 तत्त्व के नाम जीव अजीव पुण्य पाप आश्रव संवर निर्जरा बंध मोक्ष कुलभेद 42 57 12 276 C. सहन करना माता-पिता की डाँट सहन करना। शिक्षक की सजा सहन करना। दु:ख आये तो सहन करना। माता-पिता के सामने मत बोलना। शिक्षक के विरूद्ध मत जाना। गाली देने वाले को भी गाली मत देना। दु:ख में डरपोक बन के रोना नहीं। सहन करने में ढेर सारे गुण समाये हैं। सब लोगों के हम प्रिय बनें! पढ़ लिखकर महाज्ञानी बने! महापुरुष हम सब कहलाये! अपना नाम अमर हो जाये! 119 Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 20 D. इतना नहीं देखना सिनेमा नहीं देखना, दूसरों के दोष नहीं देखना, गलत कार्य नहीं देखना, दूसरों का पैसा नहीं देखना, सिनेमा देखने से आँखें बिगड़ती हैं। पैसे बिगड़ते हैं। मन बिगड़ता है। जीवन बिगड़ता है । दूसरों के दोष देखने से अपने में कई दोष आते हैं, अपने सब गुण चले जाते हैं। खराब काम देखने से अपने से खराब काम होते हैं, खराब भाव पैदा होते हैं। दूसरों का धन देखने से चोरी करने की इच्छा होती है, धन का लोभ पैदा होता है। सिनेमा दूसरों के दोष दूसरों का धन अंतःकरण की खराब काम आँखें खालो Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ E. प्रभु पूजन रोज-रोज पूजन करना चाहिए रोज-रोज प्रभु ध्यान करना चाहिए । रोज खाना खाते हैं तो रोज पूजा करनी चाहिए रोज खेलते हैं तो रोज पूजा करनी चाहिए रोज स्नान करते हैं तो रोज पूजा करनी चाहिए स्नान कर के पूजा के कपड़े पहनना कपड़े सुन्दर एवं स्वच्छ पहनना फटे हुए एवं गन्दे कपड़े नहीं पहनना अंग पूजा अभिषेक पूजा करनी चाहिए चन्दन पूजा करनी चाहिए पुष्प पूजा करनी चाहिए अग्र पूजा धूप पूजा करनी चाहिए दीपक पूजा करनी चाहिए अक्षत पूजा करनी चाहिए नैवेद्य पूजा करनी चाहिए फल पूजा करनी चाहिए उसके बाद में घण्ट बजाना चाहिए भाव पूजा फिर चैत्यवंदन करना चाहिए पूजा से मन को शान्ति मिलती है। से पूजा सुख एवं वैभव मिलता है। से स्वर्ग मिलता है। G पूजा पूजा से मोक्ष मिलता है। वीतराग की पूजा करने से वीतराग बन सकते है। परमात्मा की पूजा करने से परमात्मा बन सकते है। 21 Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Eपाठशाला पाठशाला में रोज जाना चाहिए। पाठशाला में सच्चा ज्ञान मिलता है। पाठशाला में अच्छे संस्कार मिलते हैं। पाठशाला में अच्छे मित्र मिलते हैं। पाठशाला का ज्ञान विनय सिखाता है। पाठशाला का ज्ञान अनुशासन सिखाता है। पाठशाला का ज्ञान नम्रता सिखाता है। पाठशाला का ज्ञान धर्म सिखाता है। पाठशाला में अच्छी-अच्छी कहानियाँ सुनने को मिलती हैं। पाठशाला में अच्छे-अच्छे गीत गाने को मिलते हैं। पाठशाला में शोर मत मचाना। पाठशाला में शरारत मत करना। पाठशाला में बातें मत करना। पाठशाला में पढ़ाई करना। मन लगाकर पढ़ाई करना। शान्त बैठकर पढ़ाई करना। विद्यागुरु का विनय करना। विद्यागुरु पढ़ाये वैसे पढ़ना। पाठशाला हमारे लिये है, इसलिए हमें रोज पाठशाला जाना चाहिए। 1224MNEERRRRRRE Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 14 ) जैन भूगोल अपनी दुनिया 1. उर्ध्वलोक में देवलोक और सिद्धशीला है। 2. मध्य लोक में असंख्य द्वीप व समुद्र है। 3. अधोलोक में भवनपति आदि देवों के निवास स्थान एवं 7 नरक पृथ्वीयाँ है । 1. हम कहां रहे हुए है ? लोक में 2. कौन से लोक में है ? मध्यलोक में (मध्यलोक को तीर्च्छालोक भी कहा जाता है।) 3. मध्यलोक में कहां पर है ? मध्यलोक में असंख्य द्वीप, समुद्र के बीचो बीच रहे जंबुद्वीप नाम के द्वीप में है। 4. जंबुद्वीप में कितने क्षेत्र है ? जंबुद्वीप के कुल 7 क्षेत्र है। 1. भरतक्षेत्र 2. हिमवंत क्षेत्र 3. हरिवर्षक्षेत्र 4. महाविदेहक्षेत्र 5. रम्यक्क्षेत्र 6. हिरण्यवंत क्षेत्र 7. ऐरावत क्षेत्र १४ राजलोक 100 00 006 असंख्य द्वीप समुद्र जंबुद्वीप 216 Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 24 GL Tw CANADA c AL PRIC dont en ello Merial Sexte &t FRICA つし * જાણીતી દુનિયાનો અંક્તિ નકશો 5. जंबुद्वीप में भी कहां पर है ? जंबुद्वीप में भरत नाम के क्षेत्र में है। 6. क्या भरत क्षेत्र ही हमारा विश्व (Earth) है ? भरत क्षेत्र हमारा विश्व नहीं है, परंतु भरत क्षेत्र का एक छोटा सा विभाग ही हमारा विश्व है। 7. क्या विश्व के बाहर भी दुनिया है ? या अंतरिक्ष ही है ? विश्व के बाहर भी दुनिया है, मात्र अंतरिक्ष नहीं है। 8. क्या पृथ्वी अंतरिक्ष में नहीं फिरती ? सूर्य को प्रदक्षिणा नहीं देती ? नहीं, पृथ्वी तो स्थिर है, सूर्य प्रदक्षिणा देते हुए फिरता है। 9. सूर्य किसको प्रदक्षिणा देता है ? जंबुद्वीप के बीच में रहे मेरू नाम के पर्वत को प्रदक्षिणा देता है। Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 15 ) A. सूत्र विभाग 1. इरियावहियं सूत्र (IRIYAVAHIYAM SOOTRA) इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! ICHCHHAKARENA SANDISAHA BHAGAVAN! इरियावहियं पडिक्कमामि ? इच्छं ! IRIYAVAHIYAM PADIKKAMAMI ? ICHCHHAM ! इच्छामि पडिक्कमिउं ! ॥1॥ ICHCHHAMI PADIKKAMIUM! इरियावहियाए विराहणाए ! ।।2।। IRIYAVAHIYAE VIRAHANAE ! गमणागमणे ! ||3|| GAMANAGAMANE ! पाणक्कमणे, बीयक्कमणे, हरियक्कमणे PANAKKAMANE, BEEYAKKAMANE, HARIYAKKAMANE, ओसा - उत्तिंग पणग-दगमट्टी OSA-UTTINGA-PANAGA-DAGA MATTEE मक्कडा संताणा संकमणे ! ||4|| MAKKADA SANTANA SANKAMANE ! जे मे जीवा विराहिया | ||5|| JE ME JEEVA VIRAHIYA | एगिंदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचिंदिया ! |16|| EGINDIYA, BEINDIYA, TEINDIYA, CHAURINDIYA, PANCHINDIYA! अभिया, वत्तिया, लेसिया, संघाइया, संघट्टिया, ABHIHAYA, VATTIYA, LESIYA, SANGHAIYA, SANGHATTIYA, परियाविया, किलामिया, उद्दविया, PARIYAVIYA, KILAMIYA, UDDAVIYA, ठाणाओ ठाणं संकामिया, जीवियाओ ववरोविया, THANAO THANAM SANKAMIYA, JEEVIYAO VAVAROVIYA, तस्स मिच्छामि दुक्कडं II II7।। TASSA MICHCHHAMI DUKKADAM || भावार्थ: इस सूत्र में चलते-फिरते, आते-जाते अपने द्वारा जीव-हिंसा आदि होने के कारण लगे हुए पापों को नष्ट करने के लिए पूर्व क्रिया रूप मिच्छामि दुक्कडं दिया जाता है। EXPLANATION: Whatever sins are incurred or commited in going and coming are removed by this sootra. 25 Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 26 कायल अभिया वत्तिय लेसिया IAN इरियावहियं इरियावहियाए विराहणाए गमणागमणे एगिंदिया बेइंदिया जे मे जीवा विराहिया तेइंदिया - चउरिंदिया पंचिंदिया संघ परियाविया डीड इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! इरियावहियं पडिक्कमामि ? इच्छं, इच्छामि पडिक्कमिउं पाणक्कमणे बीयक्कमणे हरियक्कमणे ओसा उत्तिंग पणग-दगमट्टी MOT संघाइया उद्दविया मक्कडा-संताणा संकमणे किलामिया ठाणाओ ठाणं संकामि जीवियाओ ववरोविया तस्स मिच्छामि दुक्कडं Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2. तस्स उत्तरी सूत्र (TASSA-UTTAREE SOOTRA) तस्स उत्तरी करणेणं, पायच्छित्त करणेणं, TASSA UTTAREE KARANENAM, PAYACHCHHITTA KARANENAM विसोही करणेणं, विसल्ली करणेणं, VISOHEE KARANENAM, VISALLEE KARANENAM पावाणं कम्माणं, PAVANAM KAMMANAM निग्घायणट्ठा ठामि काउस्सग्गं NIGGHAYANATTHAE, THAMI KAUSSAGGAM भावार्थ: इरियावहिया सूत्र से पापों की सामान्य शुद्धि रुप प्रतिक्रमण करने के बाद भी बचे को नाश करने के लिए उत्तर क्रिया काउस्सग्ग के पांच हेतु इस सूत्र में बतायें है । हुए EXPLANATION: Sins are destroyed by iriyavahiyam but to be further free from the sins "Tassa uttari" is recited. 3. अन्नत्थ सूत्र (ANNATTHA SOOTRA) अन्नत्थ ऊससिएणं, नीससिएणं ANNATTHA USASIENAM NEESASIENAM खासिएणं, छीएणं, जम्भाइणं, KHASIENAM, CHHEEANAM, JAMBHAIENAM उड्डुएणं, वायनिसग्गेणं, UDDUENAM, VAYANISAGGENAM भमलीए पित्तमुच्छा ।। 1 ।। BHAMALEEYE PITTAMUCHCHHAE सुमेहिं अंग संचालेहिं SUHUMEHIM ANGA SANCHALEHIM सुमेहिं खेल संचालेहिं SUHUMEHIM KHELA SANCHALEHIM सुमेहिं दिट्ठि संचालेहिं ॥ 2 ॥ SUHUMEHIM DITTHI SANCHALEHIM पापों 27 Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एवमाइएहिं आगारेहिं EVAMAIEHIM AAGAREHIM अभग्गो अविराहिओ ABHAGGO, AVIRAHIO हज्ज मे काउस्सग्गो ।। 3 ।। HUJJA ME KAUSSAGGO जाव अरिहंताणं भगवंताणं JAVA ARIHANTANAM BHAGAVANTANAM नमुक्कारेणं न पारेमि ।। 4 || NAMUKKARENAM NA PAREMI ताव कायं ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं TAVA KAYAM THANENAM MONENAM ZANENAM अप्पाणं वोसिरामि || 5 || APPANAM VOSIRAMI भावार्थ: इस सूत्र में काउस्सग्ग करते समय स्वाभाविकता से होने वाली शारिरिक क्रियाओं से काउस्सग्ग को भंग न होने देने के लिए सोलह आगारों का वर्णन तथा काउस्सग्ग को दृढता पूर्वक पूर्ण करने की मर्यादा बतलायी गयी है। EXPLANATION: There are sixteen exceptions in a kaussagga. The kaussagga means to mediate on the reverend Arihanta bhagavanta by means of Logassa or navakar mantra. The other name of the kaussagga is kayotsarga 4. लोगस्स सूत्र (LOGASSA SOOTRA) Kum अमितकित्तइस ततीति केली गिरगउज्जोजगारे कम-तित्ययरे लोगस्स उज्जोअ गरे, धम्म तित्थयरे जिणे, LOGASSA UJJOAGARE, DHAMMA TITTHAYARE JINE अरिहंते कित्तइस्सं, चउवीसंपि केवली ।। 1।। ARIHANTE KITTAISSAM, CHAUVISAMPI KEVALEE 28 Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उसभ मजिअं च वंदे, संभव मभिणंदणं च सुमई च, USABHAMAJIAM CHA VANDE, SAMBHAVA MABHINANDANAM CHA SUMAIM CHA पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चन्दप्पहं वंदे ।। 2 ।। PAUMAPPAHAM SUPASAM, JINAM CHA CHANDAPPAHAM VANDE सुविहिं च पुप्फदंतं, सीअल सिज्जंस वासुपुज्जं च, SUVIHIM CHA PUPFADANTAM, SEEALA- SIJJANSA VASUPUJJAM CHA विमलमणतं च जिणं, धम्म संतिं च वंदामि ।। 3 ।। VIMALA MANANTAM CHA JINAM DHAMMAM SANTIM CHA VANDAMI कुंथु अरं च मल्लि, वंदे मुणिसुव्वयं नमि जिणं च, KUNTHUM ARAM CHA MALLIM VANDE MUNISUVVAYAM NAMI JINAM CHA वंदामि रिट्टनेमिं पासं तह वद्धमाणं च ।। 4 ।। VANDAMI RITTHANEMIM, PASAM TAHA VADDHAMANAM CHA एवं मए अभिथुआ, विहय रय मला पहीण जरमरणा. EVAM MAE ABHITHUA VIHUYA RAYAMALA PAHEENA JARAMARANA चउवीसं पि जिणवरा, तित्थयरा मे पसीयंत ।। 5 ।। CHAUVEESAMPI JINAVARA, TITTHAYARA ME PĂSEEYANTU कित्तिय वंदिय महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा, KITTIYA VANDIYA MAHIYA, JE AE LOGASSA UTTAMA SIDDHA आरुग्ग बोहिलाभं, समाहि वर मुत्तमं किंतु || 6 || AARUGGA BOHILABHAM SAMAHIVARAMUTTAMAM DINTU चंदेसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा, CHANDESU NIMMALAYARA, AAICH-CHEY-SU AHIYAM PAYASAYARA सागर वर गंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥ 7 ।। SAGARAVARA GAMBHIRA, SIDDHA SIDDHIM MAMA DISANTU भावार्थ: इस सूत्र में नाम पूर्वक चौबीस तीर्थंकरों की तथा गर्भित रुप मे तीनों काल के सर्व तीर्थंकरों की स्तुति की गई है | EXPLANATION: The prayers are done to all the twenty four jineshwars by name चंदेसु निम्मलया आइच्चेसुअहियं पयासन्यर सागस्वरगंभीरा, सिदासिदिदीमम दिसतु॥ 1291 Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 30 5. करेमि भंते सूत्र (KAREMI-BHANTE SOOTRA) करेमि भंते! सामाइयं, सावज्जं जोगं KAREMI BHANTE ! SAMAIYAM, SAVAJJAM JOGAM पच्चक्खामि, जाव नियमं पज्जुवासामि, PACCHAKKHAMI, JAVA NIYAMAM PAJJUVASAMI दुविहं तिविहेणं, मणेणं बाधाए कारण, DUVIHAM TIVIHENAM, MANENAM VAYAE KAYENAM, न करेमि, न कारवेमि, तस्स भंते NA KAREMI, NA KARAVEMI, TASSA BHANTE पडिक्कमामि, निंदामि गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि ॥ 1 ॥ PADIKKAMAMI, NINDAMI, GARIHAMI, APPANAM VOSIRAMI भावार्थ: इस सूत्र में सामायिक ग्रहण करने का और सावद्य योग रूप पाप का त्याग करने का पच्चक्खाण है। अर्थात- मन-वचन-काया से कोई भी पाप न करने, न कराने एवं सामायिक के नियम तक समभाव में रहने का बतलाया है। EXPLANATION: In this sootra, after accepting the vow of samayika we should not do any sinful act, we should be away from speaking ill of others and from gossiping unneccessarily, but we should study religious scriptures and we should pass our time in reading or in learning new religious lessons and we should turn over the bids of rosary. The vow of samayika means the process of self-experiencing. The equality with all the beings in this whole universe and it means also prohibiting the new karmas from joining or intermingling of the karmas with our own soul particles during the specified period of forty-eight minutes as prescribed by the omniscients In samayika we should not touch the raw water, the raw earth, the fire, the wind, the vegetables, the opposite sex or the women and the money, nor we should use any electrical appliance श्रेणिक महाराजा अपने नरक आयुष्य को मिटाने के लिए पुणिया श्रावक से मात्र एक सामायिक का फल मांगते हुए। Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6. सामाइय वय-जुत्तो सूत्र (SAMAIYA VAYAJUTTO SOOTRA) सामाइय वय जुत्तो, जाव मणे होइ नियम संजुत्तो, SAMAIYA VAYAJUTTO, JAVA MANE HOI NIYAMA SANJUTTO छिन्नई असुहं कम्म, सामाइय जत्तिआवारा CHHINNAI ASUHAM KAMMAM, SAMAIYA JATTIAVARA सामाइयम्मि उ कए, समणो इव सावओ हवइ जम्हा, SAMAIYAMMI U KAE, SAMANO IVA SAAVAO HAVAI JAMHAA, एएण कारणेणं, बहसो सामाइयं कुज्जा EENA KARANENAM, BAHUSO SAMAIYAM KUJJA सामायिक विधिए लीधं, विधिए पार्य, SAMAYIKA VIDHIE LIDHU, VIDHIE PARYUN विधि करता जे कोइ अविधि हओ होय, ते सवि हं VIDHI KARTA JE KOI AVIDHI HUO HOYA, TE SAVI HU मन, वचन, कायाए करी मिच्छामि दुक्कडं MANA VACHANA KAYAE KAREE MICHCHHAMI DUKKADAM दश मनना, दश वचनना, बार कायाना DASA MANANA, DASA VACHANANA, BARA KAYANA ओ बत्रीश दोष मांही जे कोई दोष लाग्यो होय, E BATREESHA DOSHHA MAAHEE JE KOEE DOSHHA LAGYO HOYA ते सवि हूँ मन, वचन, कायाए करी मिच्छामि दुक्कडं TE SAVI Hun MANA, VACHANA, KAYAE KAREE MICHCHHAMI DUKKADAM भावार्थ: इस सूत्र में सामायिक व्रत की महिमा बताई गई है। सामायिक करने वाला श्रावक जब तक सामायिक में रहता है, तब तक वह मुनि तुल्य कहा जाता है। इसलिए पवित्र धर्म की आराधना के लिए एवं पुन: सामायिक करने की भावना को स्थायी बनाने के लिए सामायिक पूर्ण करते समय यह सूत्र बोला जाता है। EXPLANATION: By this sootra, the vow of samayika is completed and the observer of the samayika destroys his evil karmas during this period for which he observes the vow of samayika similarly, the shravak-the follower of jainism is considered as good as jain monk during this period of samayika. Hence we should observe the vow samayika again and again. Such is the right advice of the religious scriptures. | 31 Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 32 B. पच्चक्खाण A. चौविहार दिवस चरिमं पच्चक्खाई, चउव्विहंपि आहारं असणं, पाणं, खाइमं, साइमं, अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं, वोसिरइ । B. तिविहार - दिवस चरिमं पच्चक्खाई, तिविहंपि आहारं असणं, खाइमं, साइमं, अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं, वोसिरइ । - C. सामायिक लेने की विधि (प्रथम स्थापनाचार्यजी के सामने दाहिना हाथ रखकर नवकार व पंचिंदीय बोले, फिर एक खमासमण देकर इरियवाहियं, तस्स उत्तरी, अन्नत्थ तक बोले ।) फिर काउस्सग्ग मुद्रा में एक लोगस्स चंदेसु निम्मलयरा तक बोलना। अगर नहीं आता हो तो चार नवकार का काउस्सग्ग करना, फिर प्रगट लोगस्स कहना फिर इच्छामि खमासमणो । वंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए मत्थएण वंदामि । इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सामायिक मुँहपत्ति पडिलेहुँ ? 'इच्छं' (ऐसा कहकर पसाच बोल से मुहपत्ति का पडिलेहण करना) फिर इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए मत्थएण वंदामि । इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सामायिक संदिसाहुं ? 'इच्छं' इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए मत्थएण वंदामि । इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सामायिक ठाऊं? 'इच्छं' (ऐसा कहकर हाथ जोड़कर एक नवकार गिनकर) इच्छकारी भगवन् । पसाय करी सामायिक दंडक उच्चरावोजी । (ऐसा कहकर मस्तक पर दोनों हाथ जोड़कर एक नवकार गिनकर करेमि भंते, उच्चरना) (फिर) इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए मत्थएण वंदामि | इच्छाकारेण संदिसह भगवन्! बेसणे संदिसाहू ? 'इच्छं' (फिर) Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए मत्थएण वंदामि। इच्छाकारेण संदिसह भगवन्! बेसणे ठाउं? 'इच्छं' (फिर) इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए मत्थएण वंदामि । इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सज्झाय संदिसाहुं? 'इच्छं' (फिर) इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए मत्थएण वंदामि। इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सज्झाय करूं? 'इच्छं' । (ऐसा कहकर दोनों हाथ जोड़कर नवकार मंत्र तीन बार गिनना। फिर दो घड़ी तक स्वाध्याय या नवकार आदि का ध्यान करना।) D. सामायिक पारने की विधि इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए, मत्थएण वंदामि। (इस प्रकार खमासमण पूर्वक पहले की तरह इरियावहियं, तस्स उत्तरी, अन्नत्थ का पाठ बोलकर चंदेसु निम्मलयरा तक लोगस्स न आवे तो चार नवकार का काउस्सग्ग करें और 'नमो अरिहंताणं' बोलकर प्रगट लोगस्स कहें। फिर खमासमण देकर) इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! मुँहपत्ति पडिलेहुँ ? 'इच्छं' (कहकर पचास बोल से मुहपत्ति पडिलेवे) (फिर खमासमण देकर) इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सामायिक पारूं? 'यथाक्ति' (फिर खमासमण देकर) इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सामायिक पार्यु ? 'तहत्ति' (कहकर दाहिने हाथ को चरवले या आसन पर रखकर व मस्तक को झुकाकर एक नवकार गिनकर सामाइय वय जुत्तो बोलना। फिर स्थापनाचार्यजी के सामने दाहिना हाथ उल्टा (अपने मुँह के सन्मुख खड़ा रखकर) एक नवकार गिने । 33 Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (16) कहानी विभाग A. श्री अईमुत्ता मुनि The Boy - Ascetic ATIMUKTAK राजगृही नगर में गौतम स्वामी गोचरी के लिए निकलते हैं। खेलते हुए बालक अईमुत्ता ने मुनि को देखा और बाल भाव से मुनि को पूछा कि ऐसी तेज दोपहर में नंगे पाँव क्यों घूम रहे हो ? गौतम स्वामी कुमार अईमुत्ता को समझाते हैं, हम शुद्ध, दूषण बिना की भिक्षा, घर-घर से लेते हैं। हमारे आचार अनुसार, पाँव में जूते पहिनते नहीं हैं तथा गाड़ी वगैरह में बैठकर कहीं भी आते जाते नहीं है। One day, some children were playing at a place in the city of Rajgrihi. Just then, Muni Gautam Swami, a great ascetic happened to pass by that place. A bright boy by name Atimuktak approached Gautam Swami and said "Maharaj! You are travelling barefoot in this hot sun. How amazing!" Gautam Swami explained to the boy principles relating to Sadhu Dharma. He also told the boy that the Jain sadhus always walk barefoot and they do not use any Vehicle for travelling. 34 Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यह सुनकर अईमुत्ता ने अपने महल में गोचरी हेतु पधारने के लिए मुनि को प्रार्थना की। गौतम स्वामी बालक की भावना देखकर बालक के महल में गये। बालक की माता ने गुरु को वंदना करके भावपूर्वक मोदक की गोचरी अर्पण की और अईमुत्ता को समझाया, हम बड़े भाग्यशाली हैं कि श्री महावीर प्रभु के प्रथम गणधर गौतम स्वामी स्वयं पधारे हैं। The young boy was greatly fascinated by the very sight of Gautam Swami and requested him to visit his house and receive Bhiksha (food). Gautam Swami also was greatly pleased with the boy's devotion and politeness and agreed to visit his house. Atimuktak's mother heard all this and felt supremely happy to see that first gandhar of Bhagwan Mahaveer Guru Gautam Swami had come to her house. She offered laddus to the Sadhu. गोचरी लेकर गौतम स्वामी महल से बाहर निकले तब अईमुत्ता उन्हें विदा करने के लिये साथ चला और बाल भाव से गुरुजी को कहा, "लाइये, यह भोजन का भार अधिक है, मैं ले लूं।' श्री गौतम स्वामी बोले, 'नहीं...नहीं... । यह अन्य किसी को नहीं दिया जा सकता, यह तो हमारे जैसे चारित्रपालक साधु ही उठा सकते हैं।' यह सुनकर अईमुत्ता ने साधु बनने की हठ ली। गौतम स्वामी ने कहा, हम तुम्हारे माँ-बाप की आज्ञा बगैर तुम्हें साधु नहीं बना सकते।' अईमुत्ता ने घर जाकर माता को समझाया। साधु बनने पर क्या-क्या करना पड़ेगा, माता ने समझाया। अईमुत्ता ने सब कुछ सहन करूंगा - यों कहकर माता को समझाकर युक्तिपूर्वक आज्ञा प्राप्त की और गौतम स्वामी के साथ समवसरण पधारकर प्रभु महावीर से दीक्षा प्राप्त की। Gautam Swami left the place and Atimuktak also followed him as if drawn magnetically. Seeing that the asceti 'zoli' (bag) of Gautam Swami was heavy, Atimuktak said, "Maharaj! Kindly give me that zoli (bag). I will carry it. Gautam Swami said with a smile on his lips, "No, no you should not carry this bag. It can be carried only by ascetics(Sadhu). "Well, in that case, I too will become a Sadhu", the young boy, Atimuktak said, "But we cannot initiate any boy into Sadhu Dharma (Deeksha) without the consent of his parents", said Gautam Swami. On hearing this, Atimuktak returned home and informed his parents that he had decided to become a Sadhu. His parents made all the efforts to dissuade him from his pan of becoming a Sadhu. They explained to him that receiving Deeksha is not a child's play and that it was a serious step. They also told him that the Sadhu Dharma requires inordinate patience and even great heroism because many severe austerities are to be performed, many vows have to be observed, and that many impediments have to be 135 Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ overcome by a Sadhu. But all this advice produced no effect on the boy. His determination was final and remained unshaken. He had made a heroic determination. At last, his parents gave their consent to his becoming a Sadhu. Atimuktak was then initiated into the Sadhu Dharma by the Lord Mahavir himself. The boy Atimuktak now became Atimuktak Muni. गौतम स्वामी ने अईमुत्ता को एक वृद्ध साधु को सौंपा। वृद्ध मुनि स्थंडिल के लिए वन में पधार रहे थे। उनके साथ अईमुत्ता गये। मार्ग में एक छोटा सा सरोवर था। वहाँ अईमुत्ताजी ने सहज बालभाव से पातरे की नाव बनाकर तैरायी। यह देखकर वृद्ध मुनि ने अईमुत्ता को समझाया, हम मुनिगण ऐसा अधर्म नहीं कर सकते। पानी के अंदर ऐसे खेल करेंगे तो छ:काय जीव की विराधना होगी और उसके फलस्वरूप हमारा जीव दुर्गति प्राप्त करेगा। The young Atimuktak Muni now began to get education from a great Sthavir Muni. One day, the young Atimuktak Muni accompanied the old Muni into the forest. It was the rainy season. There Atimuktak happened to see some young boys playing. They were all making small boats out of leaves and floated them on the water in a puddle. This game gave them great delight. 36 Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Atimuktak who was also fascinated by the game began to play the same game. He too began to float his PATRA as boat on the water. Then he said smiling. "A small lake and tiny boat!" Seeing how the boy was playing, the old Muni said, "Oh, Muni! What are you doing ? We Muni's do not even touch cold water which has life in it but here you are playing with it. Think well about what you are doing! What a great sin you are committing!" बालमुनि अईमुत्ता बड़े लज्जित हुए। बड़ा पछतावा हुआ। समवसरण पधारकर इरियावही, पडिक्कमते शुक्ल ध्यान लगा दिया। शुद्ध भाव से किये पाप का पछतावा करते-करते केवल ज्ञान प्राप्त किया। The young Muni heard all this with deep attention. He repented his action and stopped playing at once. Then the two Muni's started on their way to the Lord's Samavasaran (the place where the Lord was preaching). The old Muni approached the Lord in the Samavasaran and said to the Lord, "Revered Lord! This young Muni is innocent. He is committing mistakes. The Bhagavan then advised the young Muni to carry out an austerity called 'Iriyavahiyam' by way of repentance for his er ror, Accordingly the young Muni, Atimuktak then carried out the austerity of Iriyavahiyam with such deep devotion and absorption that he attained Kevalgyan (the Supreme Enlightenment). The old Muni who was greatly amazed at this, stood watching the situation with stupefaction. सार : हृदय की निर्मलता हो तो, छोटी उम्र में भी केवलज्ञान पाया जा सकता है। भूल को निष्कपट वृत्ति से स्वीकारने की तैयारी चाहिए। The Moral of the story: Even in young age, one can attain Keval gyan if one has pure head. The only thing necessary is that one should be ready to admit one's mistakes and must be ready to carry out repentance with an open heart. 37 Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ B. गजसुकुमाल MUNI GAJASUKUMAL GOOO RELAWASTES Cropo यह कहानी उस समय की है जब श्री कृष्ण द्वारीका नगरी पर राज कर रहे थे। इस द्वारीका नगरी के श्रीकृष्ण के छोटे भाई गजसुकुमाल ने प्रभु श्री नेमिनाथ की देशना सुनी। प्रभु की देशना सुनते ही गजसुकुमाल बहुत ही प्रभावित हुये और उन्होने सांसारिक जीवन त्याग कर दीक्षा लेने का निर्णय कर लिया। This story took place during the time of Sri Krishna. He was ruling over Dwaraka. At that time. Sri Krishna's younger brother. Gajasukumal happened to hear the dis course delivered by the Lord Neminath. The discourse brought about a very deep impact on Gajasukumal; and he decided to renounce worldly life and to receive initiation into the Sadhu Dharma. मां देवकी ने मोहवश दीक्षा के लिए बहुत मना किया और समझाया की साधु जीवन बीताना कोई आसान काम नहीं है। काफी समझाने पर भी जब गजसुकुमाल नही माने तो उसका दृढ निर्णय देखकर मां ने कहा: हे वत्स ! तुझे दीक्षा लेनी ही है तो अच्छी तरह से लेना और अच्छी तरह से पालना। सिंह की तरह लेना और सिंह की तरह पालना। ऐसी साधना करना कि अब किसी को मा बनाना न पड़े। 38 Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 與 MOOD His mother, Devaki who was overcome with her attachment for her son tried her best to dissuade him from his determination; but seeing that his determination was unchangeable, she said: "Dear Son! If you are bent upon taking Deeksha you must receive it wholeheartedly and with an unflinching determination. You must receive it in the right manner. You must receive the Deeksha like a lion and you must observe the principles of Sadhu Dharma in the right manner like a lion. You must carry out the vows of Sadhu Dharma in such a way that you need not be born as the son of any mother again. In other words, you should get liberated from Sansar (worldly life). " मां की शुभेच्छा ले कर गजसुकुमाल श्री नेमिनाथ भगवान के पास गये और उत्कृष्ट भावना से दीक्षा ली। दीक्षा लेने के बाद वे उग्र तपश्चर्या करने लगे और प्रभु के दिखाये हुए मार्ग पर चलते चलते वे संयम साधना में डूब गये। After thus receiving his mother's blessings and auspicious exhortations, Gajasukumal approached Lord Sri Neminath and accepted Deeksha from him. After being thus initiated into the Sadhu Dharma by the Lord, he became deeply absorbed in various spiritual austerities. एक वक्त भगवान की आज्ञापूर्वक वे शमशान में कायोत्सर्ग-ध्यान करने लगे। वहां से उनके संसारी ससुर सोमिल गुजरे। अपने दामाद को साधु वेष में देखकर उसको बडा गुस्सा आया । वे सोचने लगे कि, इस लडके ने मेरी बेटी की पूरी जिंदगी बिगाड दी। अब मैं उसका I 39 Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 40 अवश्य बदला लूंगा। मैं गजसुकुमाल को सबक सिखाऊँगा और उससे बदला लूंगा। बदले की भावना से सोमिल ने गजसुकुमाल मुनि के सिर पर मिट्टी की पाल की और धधकते हुए अंगारे डाले । Once with due permissions of the Bhagawan, he began carrying out meditation in the Kayotsarg posture, in a cemetary. By chance, his father-in-law (of his worldly life) by name Somil happened to be passing by. He was extremely angry when he saw his son-in-law in the clothes of a Sadhu. He thought, "this fellow has ruined the life of my daughter by leaving her in the lurch. Now, I have to change him, I have to teach him a lesson."Somil decided to punish Gajasukumal Muni. He made small muddy boundary on the Muni's head and put burning charcoal into it. मुनि का मस्तक जल उठा। भयंकर दर्द होने लगा। लेकिन मुनि का हृदय नहीं जला। वे सोचने लगे: संसार में बहुतों को ससुर मिलते है, लेकिन मोक्ष की पगडी पहनाने वाले ऐसे ससुर तो सिर्फ मुझे ही मिले है। मैं कितना भाग्यशाली ? The head of the Muni began to burn He began to experience great pain and anguish but the Muni's heart did not burn. He began to think thus, "In this Samsar (world) people get fathers-in-law; but only I have seared a father-in-law who is helping me to wear the turben of Moksha. How fortunate I am!" उत्कृष्ट भावना से गजसुकुमाल मुनि को केवलज्ञान हो गया और उसी वक्त उनकी आयु की समाप्ति हो गई। मुनि मोक्ष में चले गये। अब दूसरी मां नहीं बनाना, ऐसी मां की भावना सफल हुई। By the very means of such lofty contemplations, Gajaskumal Muni attained Kevalgyan; and just then his life-span also ended. The great Muni attained Moksha. His mother's wish that he should not get another mother thus came true. Gajasukumal Muni attained liberation from this Samsar (the world). सार: किसी भी अवस्था में अपने ध्येय से मत डिगो । The Moral of the story: We should never deviate from the pursuit of our objectives. Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ C. श्री मेघरथ राजा SHRI MEGHRATH RAJA महाविदेह की पुंडरीकिणी नगरी के राजा मेघरथ पौषध में थे, उस वक्त भय से कांपता हुआ एक कबूतर उनकी गोद में आया और मानव - वाणी में बोलने लगा : हे राजन् ! मेरी रक्षा करो। मेरे प्राणों की रक्षा करो। King Megharatha, the ruler of the city of PundariKini, in Mahavideh, was absorbed in carrying out a vow called Paushadha Vrat. Just at that time a dove which was shivering with fear, came and fell into his lap; and then in the human language, it said, "Oh, King! Kindly give me refuge and protection, Kindly save my life, My life is in danger." राजा ने उस कबूतर को सुरक्षा का आश्वासन दिया.. उतने में ही एक बाजपक्षी आया और बोलने लगा : राजन् ! यह कबूतर मेरा भोजन है। मुझे दे दो। राजा ने देने से इन्कार किया तो उसने कहा : राजन् ! तुम्हें कबूतर पर दया आती है, तो मुझ पर दया नहीं आती, मैं भूखा मर रहा हूँ । आप कबूतर को नही दे सकते हो, तो उतना मांस दो। The king moved by the birds fear and anguish, assured it that he would give the necessary protection. Meanwhile, a hawk came there; and began to say, "C King! This dove is my food. Kindly give it to me." The king refused to give the dove to the hawk. Then it said, "Oh king! You want to show kindness to the dove, don't you have any kindness for me? I am dying of hunger. If you do not like to give me the dove you may keep it but give me it's weight of flesh." राजा ने सोचा: दूसरों का मांस तो मैं नहीं दे सकता हूं, लेकिन मेरा खुद का मांस इस बाजपक्षी को अवश्य दे सकता हूं। The king thought that he could not give the flesh of any other jiva but he could give the hawk his own flesh. 41 Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा ने तराजू मंगवा कर एक पलडे में कबूतर को रखा और दूसरे में छूरी से अपनी जांघ में से मांस काट-काट कर रखने लगे, लेकिन कबूतर का पलडा नीचे ही रहा। आखिर राजा स्वयं ही पलडे पर बैठ गये। सभी लोग हाहाकार करने लगे: अरे नरनाथ ! आप यह क्या करते है? एक कबूतर के लिए पूरे जीवन का बलिदान ? नि:संदेह यह कबूतर कोई देवमाया है। नहीं तो इतना वजन कहां से ? मनुष्यवाणी कहां से? The king got a balance and in one plate he placed the dove. Then he took a knife and cut some flesh from his thigh and placed it in other plate of the balance. But though he placed large pieces of his flesh in the plate, the other plate containing the dove was hanging down as if it had greater weight. Finally, the king himself sat in the plate. All the beholders cried out in great anguish, "Oh great king! Oh, you ruler of men! What are you doing? In order to save the life of a dove, you are sacrificing your own life. Undoubtedly, this dove has some magical or supernatural powers. It is a divine bird! Otherwise, how could it be so heavy ? Moreover, how could it speak the human language ?" इतने में ही तेज से देदिप्यमान एक देव प्रगट हुआ और कहने लगा: हे राजन् ! ईशानेन्द्र 42 Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ने देवलोक में आपकी जैसी प्रशंसा की थी वैसे ही आप है । आपकी परिक्षा के लिए मैं आया था । मेरा अपराध माफ करना । .... और वह अदृश्य हो गया। Just at that very moment a radiant heavenly being appeared and said, "Oh.. King! You are exactly as great as Ishanendra in heaven described you to be. I have come here only to test you. Kindly forgive my blunder." Saying this he disappeared. इधर न कबूतर रहा, न बाज रहा, न खून से लथपथ राजा का शरीर रहा। राजा पूर्ववत् अवस्था में पौषध में थे। The dove had disappeared. The hawk had disappeared too. The body of the king which had been chopped and was bleeding had returned into its original form. As at the beginning he sat there continuing the Paushadh Vrat. उसके बाद दीक्षा लेकर वीस स्थानक तप की आराधना के साथ सर्वजीवों के उद्धार की भावना से मेघरथ राजर्षि ने तीर्थंकर नामकर्म बांधा। आगे चल कर वे ही मेघरथ राजा सोलहवें तीर्थंकर श्री शांतिनाथ भगवान बने । Later on, he received the Deeksha and carried out a severe austerity called the Vees Sthanak Tap. The saintly King Meghrath because of performing all those austerities and by showing true compassion for all jivas, attained the Tirthankar Nam Karma. Thus by achieving higher and higher levels of spiritual excellence, King Megharatha became the 16th Lord known as Shantinath Bhagwan. सार : जब हम दूसरों को शांति देते है, तब वही शांति दुगुनी - चौगुनी हो कर हमें ही मिलती है। The Moral of the story: When we give peace to others, the same peace multiplied fills our lives. Dear God, My mother took care of my body U take care of my soul Your Child 43 Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ D. श्री कपर्दी मंत्री - तिलक की रक्षा गुजरात के महाराजा कुमारपाल के निधनोपरांत अजयपाल सम्राट बना । राजा कुमारपाल की कीर्ति पताका को तहस-नहस करने का जुनून उस पर सवार था, उसने लोगों में घोषणा करा दी कि सभी जैन तिलक मिटा दो या पाटण की धरती छोड़ दो। घोषणा के बाद भी मंत्रीश्वर कपर्दी जो जैन थे सदा कपाल में तिलक लगाकर ही राजदरबार में आते थे। एक दिन अजयपाल ने स्पष्टत: कह दिया कि यह तिलक छोड़ दो, या पाटण। यदि दोनों मंजूर नहीं, तो उबलते तेल की कढ़ाई में जलने के लिए तैयार हो जाओ। मंत्रीश्वर ने जैन सभा बुलाई और कहा - "परमात्मा की आज्ञा का तिलक कभी भी मिटेगा नहीं, और जहाँ हजारों जिनालय हैं, उस पाटन की भूमि को भी नहीं छोड़ा जा सकता, अब उबलते तेल की कढाई ही एकमात्र उपाय है।'' इसके बाद तुरन्त ही बलिदान के लिए नव-विवाहित युवक-युवतियों का सजोड़े नाम लिखने का काम प्रारम्भ हुआ। दूसरे दिन अनेक जैन नवयुवक स्नान करके, तिलक धारण कर, जिन-पूजा करके, उत्तम प्रकार के वस्त्र पहन कर बलिदान करने हेतु प्रयाण करने लगे। सिंह की चाल को लज्जित करे, इस प्रकार वे नवयुवक तिलक अमर रहे' के गगन भेदी दिव्यनाद के साथ राज सभा में प्रवेश करते हैं। अजयपाल के संकेत पर राजसभा के प्रांगण पर भड़भड़ाती होली के समान आग प्रज्वलित की गयी। उस पर विशाल कढ़ाई रखकर तेल से परिपूरित कर दिया। महामंत्र नवकार का स्मरण कर जैन नवयुवकों सजोडे ने कूदना आरम्भ किया। एक...दो...तीन...चार..ग्याहर...बारह...सत्रह...अठारह... उन्नीस..। इनके पश्चात् जैसे ही कपर्दी स्वयं अपनी पत्नी के साथ कदम बढ़ाते हैं, तब अजयपाल देख नहीं पाता और कहता है - "हे कपर्दी ! बस करो, मुझे अब ये मौतें नहीं देखनी है। आपका तिलक चिरकाल तक सलामत रहे। मैं तिलक हेतु अभयदान देता हूँ।'' सभा में जयघोष गुंजित हुआ। "जिनशासन देव की जय, तिलक जयवंता हो, शहीदों अमर रहो।'' जिसके रक्षण के लिए प्राणों की आहुतियाँ हुई हैं वह तिलक निश्चय ही हमारे मस्तक का भूषण है। सार: अपने सिद्धान्तों की रक्षा के लिए हमें तत्पर रहना चाहिए। 44 Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ E. माता - पिता का विनय वि.सं. 2023 में मलाड-मुम्बई में हुए धार्मिक शिक्षण-शिविर में गुरु भगवन्त के श्रीमुख से माता-पिता के उपकार विषयक प्रवचन सुनकर एक सत्रह वर्ष के युवक ने प्रतिदिन प्रात:काल अपने परम उपकारी माता-पिता को प्रणाम करने का नियम लिया। वह युवक अपने घर आया। प्रात:काल में ज्योहि अपने पिता के पैर पर गिरकर वह नमस्कार करने लगा तुरन्त उसके पिता ने उसे रोकते हुए कहा, "बेटा, दो मिनट अभी ठहर जा।'' इतना कहकर उस युवक के पिता, साथ वाले कमरे में बैठे अपने बूढ़े माँ-बाप को नमस्कार कर, फिर आकर बोले, "बेटा, अब तू मुझे नमस्कार कर सकता है।" जिस बाप ने कभी भी अपने माँ-बाप की सेवा न की और न ही कभी उन्हें नमस्कार किया परन्तु आज उसीके बेटे ने अपने बाप का हृदय परिवर्तन कर दिया। बेटा हो तो ऐसा। माँ-बाप की सेवा करना, एहसान नहीं, फर्ज है अपना । जो झुकता है, समझ लो उसमें जान है। अक्कडपन तो खास मुर्दे की पहचान है। 45 Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 46 प्रश्न 1 : रिक्त स्थानों की पूर्ति किजिए : (17) प्रश्नोत्तरी 1. श्री चन्द्रप्रभस्वामी का लंछन 2. परमात्मा के है। . अंगों पर पूजा की जाती है। सरीखा । 3. मुनिसुव्रत ने नेमनाथ, दोय 4. पंच परमेष्ठि के कुल गुण 5. खाते समय 6. अईमुत्ता ने अपने महल में 1. अईमुत्ता 2. अभिनंदन स्वामी 3. सिद्ध 4. कपर्दी मंत्री 5. एक दो तीन चार (अंजन) (108) (मौन) . को भिक्षा हेतु पधारने की प्रार्थना की । (गौतम स्वामी) (8) ( कपर्दी मंत्री) (जीवदया ) (लोगस्स) है। . रखना चाहिए। 7. सुबह उठकर हमें नवकार गिननी चाहिए। 8. तिलक के लिए 9. हमें जीवों के प्रति 10. चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति . सूत्र में की गई है। प्रश्न 2 : निम्नलिखित वाक्य सही है या गलत, चुनकर लिखिए । 1. हमें सिनेमा नहीं देखना चाहिए। 2. प्रभु की पूजा करते समय दोहे बोलने चाहिए। 3. श्री पार्श्वनाथ भगवान का लंछन सिंह है । ने बलिदान दिया। 4. अरिहंत के 12 गुण है । 5. हमें सूर्योदय के बाद उठना चाहिए। 6. भोजन करने के बाद थाली नहीं धोनी चाहिए। का पालन करना चाहिए। 7. हमें माता-पिता की आज्ञा माननी चाहिए। 8. मंदिर में झूठे मुँह नहीं जाना चाहिए । 9. हमें परमात्मा की पूजा रोज करनी चाहिए। 10. हमें पाठशाला नहीं जाना चाहिए। प्रश्न 3 : जोड़े मिलाओ (चन्द्र) (सही) (सही) (गलत) (सही) (गलत) (गलत) (सही) (सही) (सही) (गलत) गौतमस्वामी बंदर आठ गुण अजयपाल जैन धर्म की जय जयकार Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . . . . . . . . . . . . . . . . . . प्रश्न 4: एक वाक्य में उत्तर लिखिए :1. आचार्य उपाध्याय साधु इनको क्या कहते है ? 2. तीर्थंकर भगवान कितने होते है ? 3. मल्लिनाथ व पार्श्वनाथ भगवान का वर्ण कैसा है ? 4. दर्शन तत्व के गुण कितने है ? 5. हमें माता-पिता की क्या करनी चाहिए? 6. धूप पूजा के बाद कौन-सी पूजा करनी चाहिए? 7. हमें विद्यागुरु का क्या करना चाहिए? 8. अईमुत्ता मुनि ने किसकी नाव बनाकर तैरायी ? 9. कुमारपाल महाराजा की मृत्यु के बाद कौन राजा बना ? 10. श्री सुविधिनाथजी का लंछन क्या है ? (गुरुतत्त्व) (24) (नीलवर्ण) (67) (सेवा भक्ति) (दीपक पूजा) (विनय) (पातरा) (अजयपाल) (मगरमच्छ) प्रश्न 5 : सही जवाब चुनकर लिखिए : 1. एक अष्ट मंगल का नाम है । (दर्पण, सिंह, हाथी) (दर्पण) 2. हमें अक्षत पूजा के पहले यह पूजा करनी चाहिए। (दर्पण, दीपक, चामर) (दीपक) 3. पद्मप्रभ और वासुपूज्य का वर्ण कैसा है ? (सफेद, नीला, राता) (राता) 4. ज्ञान पद के कितने गुण है ? (12,27,51) । (51) 5. गौतमस्वामी कौन-सी नगरी में भिक्षा के लिये गये? (पावापुरी, राजगृही, शिखरजी) (राजगृही) .............................. मुझे पता है आपके दिल में मैं हूँ मेरे दिल में भी आप रहना -आपका लडकी 4 . Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PRAYER OF TIRTHANKARAS 48 (18) सामान्य ज्ञान A. POEMS 1. I am candle you are light, I am eye and you are sight, I am heart and beat you are. Suparshwanath not you are far, 2. Come come come come Shining Moon, See my Chandraprabha soon, why you look so dull and pale? Sea of sorrow you can sail. 3. I like lovely number nine, Suvidhinath swamy is mine, Forget O God! my mistake, My burden you have take. 4. Burning world is too much hot, Where to get cold water pot ? Push me out of burning flame, Sheetalnath you are same as name. 5. Night is dark and journey long, Shreyansnath your name, I sing Singing makes my journey sweet, Reserve me a Mukti seat. 6. Your are ocean of mercy! Give me lovely master key, Can you see lock on my door? Vasupujya swami I adore. Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 B. GAME - मिलान करो ऋषभदेव मंदिर ठवणी 108 मणका लोच (मुंडन) साधु श्रीपाल - मयणा अजितनाथ जीवदया कलश 49 Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ C. चित्रावली 50 Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ܬܙ 1. mnn /&6)ZS2IX8 2. quam ܘ܀ܘ܀ܘ܀o܀ 51 Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 52 2 D. आज की मजा, नरक की सजा CENO मिथ्यात्वी देव-देवी को मानना और उसका फल धर्म द्रव्य का भक्षण करने वाला और उसका फल ० ज्यादा बताकर कम देनेवाले और उसका फल चोरी कर्म करना और उसका फल Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Astro THE SPORTING PEOPLE Sidharath Sales Corporation The Sports Shop 44/2, Narayana Mudali Lane, Chennai - 600 079. E-mail : dilipghoda@yahoo.com Off: 2538 60.38, 2539 20 53 Cell : 98410 88974 Ghoda Group of Companies Sha Hastimal Chaganraj Sidharath Sales Corporation South India Sports & Toys., Sports Center Sports Planet LLP Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धार्मिक पाठशाला में आने से..... 1) सुदेव, सुगुरु, सुधर्म की पहचान होती है। 2) भावगर्भित पवित्र सूत्रों के अध्ययन व मनन से मन निर्मल व जीवन पवित्र बनता है और जिनाज्ञा की उपासना होती है। कम से कम, पढाई करने के समय पर्यंत मन, वचन व काया सद्विचार, सद्वाणी तथा सद्वर्तन में प्रवृत्त बनते हैं। पाठशाला में संस्कारी जनों का संसर्ग मिलने से सद्गुणों की प्राप्ति होती है "जैसा संग वैसा रंग"। सविधि व शुद्ध अनुष्ठान करने की तालीम मिलती है। भक्ष्याभक्ष्य आदि का ज्ञान मिलने से अनेक पापों से बचाव होता है। कर्म सिद्धान्त की जानकारी मिलने से जीवन में प्रत्येक परिस्थिति में समभाव टिका रहता है और दोषारोपण करने की आदत मिट जाती है। महापुरुषों की आदर्श जीवनियों का परिचय पाने से सत्त्वगुण की प्राप्ति तथा प्रतिकुल परिस्थितिओं में दुर्ध्यान का अभाव रह सकता है। विनय, विवेक, अनुशासन, नियमितता, सहनशीलता, गंभीरता आदि गुणों से जीवन खिल उठता है। बच्चा आपका, हमारा एवं संघ का अमूल्य धन है। उसे सुसंस्कारी बनाने हेतु धार्मिक पाठशाला अवश्य भेजे।