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E. श्री सामान्य जिन स्तुति
कल्लाणकंदं पढमं जिणिंदं, संतिं तओ नेमिजिणं मुणिंद, पासं पयासं सुगुणिक्क - ठाणं, भत्तीइ वंदे सिरि-वद्धमाणं ।। 1 ।।
( 3 ) जिन
पूजा विधि
A. अष्टप्रकारी पूजा के दोहे
जल पूजा
चंदन पूजा
पुष्प पूजा
धूप पूजा
दीपक पूजा
अक्षत पूजा
नैवेद्य पूजा
फल पूजा
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जल पूजा जुगते करो, मेल अनादि विनाश । जल पूजा फल मुज होजो, मांगु अम प्रभु पास ॥ शीतल गुण जेह मां रह्यो, शीतल प्रभु मुख रंग । आत्म शीतल करवा भणी, पूजो अरिहा अंग ।। सुरभि अखंड कुसुम ग्रही, पूजो-गत संताप । सुम जंतु भव्यज परे, करीओ समकित छाप ।। ध्यान घटा प्रगटावीओ, वाम नयन जिन धूप । मिच्छत्त दुर्गंध दूरे टले, प्रगटे आत्म स्वरुप | द्रव्य दीप सुविवेकथी, करता दुःख होय फोक । भाव प्रदीप प्रगट हुआ, भासित लोकालोक ॥। शुद्ध अखंड अक्षत ग्रही, नंदावर्त विशाल । पूरी प्रभु सन्मुख रहो, टाली सकल जंजाल ।। अणाहारी पद में कर्या, विग्गह गइ अनंत । दूर करी ते दीजीओ, अणाहारी शिव संत ॥ इन्द्रादिक पूजा भणी, फल लावे धरी राग । पुरुषोत्तम पूजी करी, मांगे शिवफल त्याग ।।
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