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8. हृदय
9. नाभि
हृदय कमल उपशम बले, बालया रागने रोष; हिम दहे वनखंडने, हृदय तिलक संतोष ॥ 8 ॥ (शत्रु मित्र पर समभाव रखा।) रत्नत्रयी गुण उजली, सकल सुगुण विश्राम; नाभि कमलनी पूजना, करतां अविचल धाम ॥ 9 ॥ (नाभि के आठ रूचक प्रदेश हमेशा कर्म रहित है तो उस के जैसे कर्म रहित बनने के लिए।)
उपदेशक नवतत्त्वना, तिणे नव अंग जिणंद,
पूजो बहुविध राग थी, कहे शुभवीर मुणिंद ।।
(4) ज्ञान A. ज्ञान के दोहे
1. मतिज्ञान का दोहा
समकित श्रद्धावंतने, उपन्यो ज्ञान प्रकाश ।
प्रणमुं पद कज तेहना, भाव धरी उल्लास ॥ 2. श्रुतज्ञान का दोहा
पवयण श्रुत सिद्धांत ते, आगम समय वखाण ।
पूजो बहुविध रागथी, चरण कमल चित्त आण ।।
3. अवधिज्ञान का दोहा
उपन्यो अवधिज्ञान नो, गुण जेहने अविकार ।
वंदना तेहने माहरी, श्वास मांहे सो वार ॥
4. मन पर्यवज्ञान का दोहा गुण जेहने उपन्यो, सर्वविरति गुण ठाण । प्रणमं हित थी तेहना, चरण कमल चित्त आण ||
5. केवलज्ञान का दोहा
केवलदंसण नाणनो, चिदानंद घन तेज । ज्ञानपंचमी दिन पूजीए, विजयलक्ष्मी शुभ हेज ||
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1) मतिज्ञान
3) अवधिज्ञान
2) श्रुतज्ञान
4) मनः पर्यवज्ञान
5) केवलज्ञान
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