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D. श्री कपर्दी मंत्री - तिलक की रक्षा
गुजरात के महाराजा कुमारपाल के निधनोपरांत अजयपाल सम्राट बना । राजा कुमारपाल की कीर्ति पताका को तहस-नहस करने का जुनून उस पर सवार था, उसने लोगों में घोषणा करा दी कि सभी जैन तिलक मिटा दो या पाटण की धरती छोड़ दो।
घोषणा के बाद भी मंत्रीश्वर कपर्दी जो जैन थे सदा कपाल में तिलक लगाकर ही राजदरबार में आते थे। एक दिन अजयपाल ने स्पष्टत: कह दिया कि यह तिलक छोड़ दो, या पाटण। यदि दोनों मंजूर नहीं, तो उबलते तेल की कढ़ाई में जलने के लिए तैयार हो जाओ।
मंत्रीश्वर ने जैन सभा बुलाई और कहा - "परमात्मा की आज्ञा का तिलक कभी भी मिटेगा नहीं, और जहाँ हजारों जिनालय हैं, उस पाटन की भूमि को भी नहीं छोड़ा जा सकता, अब उबलते तेल की कढाई ही एकमात्र उपाय है।'' इसके बाद तुरन्त ही बलिदान के लिए नव-विवाहित युवक-युवतियों का सजोड़े नाम लिखने का काम प्रारम्भ हुआ।
दूसरे दिन अनेक जैन नवयुवक स्नान करके, तिलक धारण कर, जिन-पूजा करके, उत्तम प्रकार के वस्त्र पहन कर बलिदान करने हेतु प्रयाण करने लगे। सिंह की चाल को लज्जित करे, इस प्रकार वे नवयुवक तिलक अमर रहे' के गगन भेदी दिव्यनाद के साथ राज सभा में प्रवेश करते हैं।
अजयपाल के संकेत पर राजसभा के प्रांगण पर भड़भड़ाती होली के समान आग प्रज्वलित की गयी। उस पर विशाल कढ़ाई रखकर तेल से परिपूरित कर दिया। महामंत्र नवकार का स्मरण कर जैन नवयुवकों सजोडे ने कूदना आरम्भ किया। एक...दो...तीन...चार..ग्याहर...बारह...सत्रह...अठारह... उन्नीस..। इनके पश्चात् जैसे ही कपर्दी स्वयं अपनी पत्नी के साथ कदम बढ़ाते हैं, तब अजयपाल देख नहीं पाता
और कहता है - "हे कपर्दी ! बस करो, मुझे अब ये मौतें नहीं देखनी है। आपका तिलक चिरकाल तक सलामत रहे। मैं तिलक हेतु अभयदान देता हूँ।''
सभा में जयघोष गुंजित हुआ। "जिनशासन देव की जय, तिलक जयवंता हो, शहीदों अमर रहो।'' जिसके रक्षण के लिए प्राणों की आहुतियाँ हुई हैं वह तिलक निश्चय ही हमारे मस्तक का भूषण है।
सार: अपने सिद्धान्तों की रक्षा के लिए हमें तत्पर रहना चाहिए।
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