Book Title: Ye to Socha hi Nahi
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 7
________________ १२ ये तो सोचा ही नहीं सम्मिलित तो हो गया; परन्तु पता नहीं क्यों अन्यत्र व्यस्तता का कारण बताकर वह थोड़ी देर ही रुका। बर्थ-डे प्रजेन्ट के रूप में 'आत्मोन्नति कैसे करें' नामक पुस्तक भेंट करके शीघ्र चला गया। ज्ञानेश के आने से सुनीता को तो हार्दिक प्रसन्नता हुई ही, उसके माता-पिता का भी ज्ञानेश के व्यक्तित्व के प्रति सहज आकर्षण हो गया । ज्ञानेश ने जाते-जाते सुनीता से धीरे से कहा- “तुम भी हमारे घर आओ न कभी ! मेरे मम्मी-पापा तुम से मिलकर बहुत खुश होंगे। उन्हें तुम जैसी लड़कियाँ बहुत अच्छी लगती हैं।" "ऐसा मुझमें क्या है ?” सुनीता ने कहा । यह तो मैं नहीं जानता; पर तुम्हारा सरल स्वभाव, सादगीपूर्ण रहन-सहन, भारतीय पहनावा, धार्मिक रुचि तथा पूर्वाग्रहों से रहित विचार – ये सब बातें मम्मी-पापा की रुचि के अनुकूल हैं। वे तुम्हें अपने बीच पाकर बहुत खुश होंगे। सुनीता ने कहा - “ठीक है, आपकी मम्मी-पापा की खुशी के लिए मैं आऊँगी; परन्तु मैं अपनी सहेली की सुविधा के अनुसार ही आ सकूँगी। देखती हूँ उसे कब समय मिलता है।” ज्ञानेश ने कहा – “यदि सहेली को समय एवं सुविधा न हो तो फोन पर बता देना ।" मैं स्वयं लेने आ जाऊँगा।" “आप का कहना सही है; परन्तु आपको कष्ट करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।" मैं स्वयं ही सहेली के साथ आ जाऊँगी। "ठीक है, मैं प्रतीक्षा करूँगा।" सुनीता ने एक बार अपने प्रोफेसर के भाषण में सुना था कि - "कोई कितना भी चिर-परिचित क्यों न हो ? नजदीकी रिश्तेदार और 8 प्रेम संबंध हों पर ऐसे अत्यन्त विश्वसनीय ही क्यों न हो; फिर भी नर-नारी का एकसाथ एकान्तवास दोनों के सदाचार और शील सुरक्षा की दृष्टि से खतरे से खाली नहीं है। इसमें किसी व्यक्ति विशेष का अधिक दोष नहीं होता । यह उम्र ही ऐसी होती है, जिसमें जरा सी सावधानी हटी और दुर्घटना घटी। अतः किसी भी नर और नारी को यथासंभव एकान्त में एकसाथ नहीं रहना चाहिए; किसी अन्य पुरुष के साथ कहीं आना-जाना नहीं चाहिए।" १३ बस, तभी से सुनीता प्रोफेसर के कथन को अक्षरश: पालन करती आ रही है। ज्ञानेश भी तभी से इसी नैतिक मूल्य के अन्तर्गत कॉलेज में लड़कियों से सदैव दूर ही रहता है। फिर भी न जाने क्यों ? उसका हृदय भी सुनीता की ओर आकर्षित हुए बिना नहीं रहा। अब ज्ञानेश व सुनीता तन से दूर रहकर भी मन से एक-दूसरे के नजदीक हैं। जिनकी जैसी होनहार होती है, जिसके जिनके साथ जैसे संस्कार होते हैं, उसका उनके साथ सहज ही वैसा बनाव बन जाता है। ज्ञानेश के बर्थ-डे पर बधाई देने के बहाने अपने वायदे के अनुसार सुनीता भी अपनी सहेली के साथ ज्ञानेश की बर्थ-डे पार्टी में सम्मिलित हुई। सुनीता को आया देख ज्ञानेश को तो हर्ष हुआ ही; उसके मम्मीपापा भी सुनीता की सादगी, सरलता, गंभीरता और उसका हंसमुख मुख मण्डल देख हर्षित हुए। सुनीता ने ज्यों ही ज्ञानेश के माता-पिता का चरणस्पर्श किया तो ज्ञानेश की मम्मी ने उसे सहज ही स्नेहवश गले से लगा कर सदा सुखी रहने और अपने लक्ष्य में सफल होने का मंगल आशीर्वाद दिया। ...

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