Book Title: Ye to Socha hi Nahi
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 39
________________ ७७ 40 ये तो सोचा ही नहीं प्रगाढ़ करने और परस्पर के संकोच को, झिझक को मिटाना होता है। तीर्थयात्रा में भी वह सब संभव है।" रूपेश मुस्कराया और बोला - "लोग क्या कहेंगे?" रूपश्री ने रूपेश के संकोच को दूर करते हुए कहा - "अरे ! कहनेवालों का क्या ? जो जिसके मन में आये, कहता रहे। हम किसी के कहने की परवाह क्यों करें ? हम कोई गलत काम करने को तो जा नहीं रहे, जो ऐसा संकोच करें। धर्म साधना करने की कोई निश्चित उम्र नहीं होती। धर्म तो जीवन का अभिन्न अंग होना चाहिए। क्या पता कब/क्या हो जाये ? अंत में धर्म ही तो हमारा सच्चा साथी है।" रूपश्री की ऐसी समझदारी की बात सुनकर रूपेश मन ही मन बहुत खुश हुआ। उसे लगा कि रूपश्री सच्ची भारतीय धर्मपत्नी है, तभी तो धर्म कार्यों में साथ दे रही है। ___इसके लिए उन्होंने दक्षिण भारत की यात्रा पर जाने का निश्चय कर लिया । एक सप्ताह की तीर्थयात्रा सानन्द सम्पन्न हुई । वहाँ से लौटते समय धर्मस्थल से नीची-ऊँची घाटियों का आनन्द लेते हुए चारों ओर हरे-भरे दृश्यों को देखते हुए धार्मिक गीत गुनगुनाते कार में बैठे मस्ती से आ रहे थे कि अचानक कार का ब्रेक फेल हो गया। ड्राइवर ने कार संभालने की काफी कोशिश की, पर कार काबू से बाहर हो गई, आउट ऑफ कन्ट्रोल हो गई। उनकी समझ में आ गया कि अब तो भगवान का नाम लेने के सिवाय दूसरा कोई उपाय ही नहीं है। रूपेश को अचानक रूपश्री का यह वाक्य स्मरण हो आया कि - धर्म करने की उम्र कोई निश्चित नहीं होती, धर्म तो हमारे जीवन का अभिन्न अंग होना चाहिए। क्या पता कब/क्या हो जाये ? बस तुरन्त सावधान होकर ध्यानमुद्रा में दोनों मन ही मन आत्मा-परमात्मा के स्वरूप का स्मरण करने लगे। विचित्र संयोग : पुण्य-पाप का देखते ही देखते कार वृक्षों से टकराती बल खाती एक गहरे गर्त में गिरने ही वाली थी कि उसका एक फाटक खुल गया और रूपश्री वृक्ष की डाल में अटक गयी और बाल-बाल बच गई। उधर गाड़ी गर्त में गिरने से रूपेश के उसी समय प्राण-पखेरू उड़ गये। ___ होनहार की बात है कि एक ही सीट पर एक साथ बैठे युगल दम्पत्ति रूपश्री और रूपेश में रूपश्री साधारण-सी चोट खाकर बच गई और रूपेश का गिरना-मरना एक ही साथ हो गया। यह भी कर्मों की कैसी विचित्रता है ? जिसकी आयु शेष है, उसे कोई मार नहीं सकता तथा जिसकी आयु के क्षण समाप्त हो गये हैं, उसे कोई बचा नहीं सकता। रूपश्री के दुर्भाग्य का अभी अन्त नहीं आया था। तभी तो इतना सुन्दर संबंध मिलने पर भी उसके भाग्य में पति का सुख नहीं था। शादी हुए चंद दिन ही हुए थे कि उसके प्राणों से प्यारे पति का इस दु:खद दुर्घटना में देहावसान हो गया और रूपश्री जीवन भर के लिए अनाथ हो गई। इसीलिए तो कहा गया है कि भूल कर भी हम ऐसा आर्तध्यान और पापाचरण न करें, जिसका ऐसा दुःखद नतीजा हो।

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