Book Title: Ye to Socha hi Nahi
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 54
________________ किसने देखे नरक... १०७ 55 १०६ ये तो सोचा ही नहीं माननेरूप विषयानन्दी रौद्रध्यान में ही डूबा रहता था। अत: ज्ञानेश के मुख से रौद्रध्यान संबंधी बातें सुनकर सेठ का रोम-रोम सिहर उठा, उसकी रुह काँप गई। सेठ को विचार आया कि “मैं तो दिन-रात इन्हीं भावों में डूबा हूँ। अरे! इतना भयंकर दुःखद है इस रौद्रध्यान का फल ।” ज्ञानेश का भाषण चालू था, उन्होंने आगे कहा - "बहुत से लोगों को तो यह भी पता नहीं होगा कि ये नरक क्या बला है ? अरे भाई ! ये ऐसी दुर्गतियाँ हैं जहाँ हमें हमारे पापाचरण का अत्यन्त दुःखद फल असंख्य वर्षों तक सहना पड़ता है। यदि उन्हें यह पता होता तो वे लोग व्यर्थ ही इस रौद्र भावों के चक्कर में नहीं पड़े रहते, जिसके फल में ये पशु-पक्षी, कीड़े-मकोड़ों की योनियाँ मिलती हैं। एक श्रोता बोला - "किसने देखे नरक ?" ज्ञानेश ने कहा - अरे भाई ! यदि कोई एक जीव की हत्या करता है तो उसका फल एक बार फाँसी की सजा है; परन्तु जो रोजाना अपने स्वाद और स्वार्थ के लिए अनन्त जीवों की हिंसा करता हो, उसको अनन्त बार फाँसी जैसी सजा इस नरभव में तो मिलना संभव नहीं है। अत: कोई ऐसा स्थान अवश्य होना चाहिए कि जहाँ प्रतिसमय मरणतुल्य दुःख हो; बस उसी स्थान का नाम नरक है, जो कि हिंसा आदि पाँचों पापों के फल में प्राप्त होता है। धंधा-व्यापार तो बारहों मास चलता ही रहता है परन्तु धन का आना न आना, हानि-लाभ होना तो पुण्य-पाप के अनुसार ही होता है। महाकवि तुलसीदास ने कहा है - "हानि-लाभ, जीवन-मरण, सुख-दुःख विधि के हाथ' जिसके पास पैसा आता है छप्पर फाड़कर चला आता है और जिसके भाग्य में नहीं होता वह दिन-रात दुकान पर बैठे-बैठे मक्खियाँ भगाया करता है। अत: पुण्य-पाप पर भी थोड़ा भरोसा करके समय अवश्य निकालो। सेठ ने उद्घाटनकर्ता के पद से बोलते हुए हाथ जोड़कर विनम्र स्वर में कहा - "भाई ज्ञानेश का कहना बिल्कुल सही है। हम लोग व्यापारी अवश्य हैं, पर सचमुच व्यापार करना भी अभी हमें नहीं आया। अब कुछ-कुछ यह समझ में आ रहा है कि असली व्यापार तो आप ही कर रहे हो । हम तो सचमुच बासा खा रहे हैं, पुराने पुण्य का फल भोग रहे हैं। नई कमाई तो अभी तक कुछ भी नहीं की है। वह काहे का व्यापार, जिसमें पाप ही पाप हो । सचमुच आत्मकल्याण का व्यापार ही असली व्यापार है। मैंने अबतक आप जैसे सत्परुषों के व्याख्यानों की उपेक्षा करके बहुत बड़ी भूल की है। मैं प्रयास करूँगा कि अब मैं आपके प्रवचनों का अधिक लाभ लँ।" ज्ञानेश के मन में इस बात की प्रसन्नता हुई कि सेठ ने भाषण को ध्यान से सुना और कुछ-कुछ समझने का प्रयास भी किया। ज्ञानेश ने सोचा - सेठ की पकड़ भी ठीक है, बुद्धि तो विलक्षण है ही। अन्यथा बिजनिस में सफल कैसे होता ? यदि होनहार भली होगी तो सेठ का कल्याण होगा ही - ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है।" उद्घाटन का कार्यक्रम पूरा हुआ। अन्त में राष्ट्रीय आत्मगीत के साथ सभा विसर्जित हुई।

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