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ये तो सोचा ही नहीं
सम्मिलित तो हो गया; परन्तु पता नहीं क्यों अन्यत्र व्यस्तता का कारण बताकर वह थोड़ी देर ही रुका। बर्थ-डे प्रजेन्ट के रूप में 'आत्मोन्नति कैसे करें' नामक पुस्तक भेंट करके शीघ्र चला गया।
ज्ञानेश के आने से सुनीता को तो हार्दिक प्रसन्नता हुई ही, उसके माता-पिता का भी ज्ञानेश के व्यक्तित्व के प्रति सहज आकर्षण हो गया ।
ज्ञानेश ने जाते-जाते सुनीता से धीरे से कहा- “तुम भी हमारे घर आओ न कभी ! मेरे मम्मी-पापा तुम से मिलकर बहुत खुश होंगे। उन्हें तुम जैसी लड़कियाँ बहुत अच्छी लगती हैं।"
"ऐसा मुझमें क्या है ?” सुनीता ने कहा ।
यह तो मैं नहीं जानता; पर तुम्हारा सरल स्वभाव, सादगीपूर्ण रहन-सहन, भारतीय पहनावा, धार्मिक रुचि तथा पूर्वाग्रहों से रहित विचार – ये सब बातें मम्मी-पापा की रुचि के अनुकूल हैं। वे तुम्हें अपने बीच पाकर बहुत खुश होंगे।
सुनीता ने कहा - “ठीक है, आपकी मम्मी-पापा की खुशी के लिए मैं आऊँगी; परन्तु मैं अपनी सहेली की सुविधा के अनुसार ही आ सकूँगी। देखती हूँ उसे कब समय मिलता है।”
ज्ञानेश ने कहा – “यदि सहेली को समय एवं सुविधा न हो तो फोन पर बता देना ।" मैं स्वयं लेने आ जाऊँगा।"
“आप का कहना सही है; परन्तु आपको कष्ट करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।" मैं स्वयं ही सहेली के साथ आ जाऊँगी।
"ठीक है, मैं प्रतीक्षा करूँगा।"
सुनीता ने एक बार अपने प्रोफेसर के भाषण में सुना था कि - "कोई कितना भी चिर-परिचित क्यों न हो ? नजदीकी रिश्तेदार और
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प्रेम संबंध हों पर ऐसे
अत्यन्त विश्वसनीय ही क्यों न हो; फिर भी नर-नारी का एकसाथ एकान्तवास दोनों के सदाचार और शील सुरक्षा की दृष्टि से खतरे से खाली नहीं है। इसमें किसी व्यक्ति विशेष का अधिक दोष नहीं होता । यह उम्र ही ऐसी होती है, जिसमें जरा सी सावधानी हटी और दुर्घटना घटी। अतः किसी भी नर और नारी को यथासंभव एकान्त में एकसाथ नहीं रहना चाहिए; किसी अन्य पुरुष के साथ कहीं आना-जाना नहीं चाहिए।"
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बस, तभी से सुनीता प्रोफेसर के कथन को अक्षरश: पालन करती आ रही है। ज्ञानेश भी तभी से इसी नैतिक मूल्य के अन्तर्गत कॉलेज में लड़कियों से सदैव दूर ही रहता है।
फिर भी न जाने क्यों ? उसका हृदय भी सुनीता की ओर आकर्षित हुए बिना नहीं रहा। अब ज्ञानेश व सुनीता तन से दूर रहकर भी मन से एक-दूसरे के नजदीक हैं।
जिनकी जैसी होनहार होती है, जिसके जिनके साथ जैसे संस्कार होते हैं, उसका उनके साथ सहज ही वैसा बनाव बन जाता है।
ज्ञानेश के बर्थ-डे पर बधाई देने के बहाने अपने वायदे के अनुसार सुनीता भी अपनी सहेली के साथ ज्ञानेश की बर्थ-डे पार्टी में सम्मिलित हुई।
सुनीता को आया देख ज्ञानेश को तो हर्ष हुआ ही; उसके मम्मीपापा भी सुनीता की सादगी, सरलता, गंभीरता और उसका हंसमुख मुख मण्डल देख हर्षित हुए। सुनीता ने ज्यों ही ज्ञानेश के माता-पिता का चरणस्पर्श किया तो ज्ञानेश की मम्मी ने उसे सहज ही स्नेहवश गले से लगा कर सदा सुखी रहने और अपने लक्ष्य में सफल होने का मंगल आशीर्वाद दिया।
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