Book Title: Vitrag Vigyana Pathmala 3 Author(s): Hukamchand Bharilla Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 6
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पाठ १ . सिद्ध पूजन स्थापना चिदानन्द स्वातमरसी', सत् शिव सुन्दर जान। ज्ञाता दृष्टा लोक के, परम सिद्ध भगवान।। ॐ ह्रीं श्री सिद्धचक्राधिपते ! सिद्धपरमेष्ठिन् ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । अत्र तिष्ठ ठः ठः। अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। जल ज्यों-ज्यों प्रभुवर जल पान किया, त्यों-त्यों तृष्णा की आग जली । थी आश कि प्यास बुझेगी अब, पर यह सब मृगतृष्णा निकली ।। आशा-तृष्णा से जला हृदय, जल लेकर चरणों में आया । होकर निराश सब जग भरसे, अब सिद्ध शरण में मैं आया ।। ॐ ह्रीं श्री सिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा। चंदन तन का उपचार किया अब तक, उस पर चन्दन का लेप किया । मल-मल कर खूब नहा करके, तन के मल का विक्षेप किया ।। अब आतम के उपचार हेतु, तुमको चन्दन सम है पाया । होकर निराश सब जग भर से, अब सिद्ध शरण में मैं आया ।। ॐ ह्रीं श्री सिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने संसारतापविनाशनाय चंदनम् नि। १. ज्ञानानन्द स्वभावी. २. अपने आत्मा में लीन रहने वाले. ३. सत्ता स्वरूप. ४. कल्याणमयी. ५. त्रैकालिक शुद्धस्वभावी. Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.comPage Navigation
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