Book Title: Vitrag Vigyana Pathmala 3
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 19
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates अगृहीत और गृहीत मिथ्यात्व छात्र - छहढाला में किसकी कथा है ? अध्यापक - हमारी, तुम्हारी और सब की कथा है। उसमें तो इस जीव के संसार में घूमने की कथा है। यह जीव अनंतकाल से चारों गति में भ्रमण कर रहा है, पर इसे कहीं भी सुख प्राप्त नहीं हुआ – यही तो बताया है पहली ढाल में। छात्र - यह संसार में क्यों घूम रहा है और किस कारण से दुःखी है ? अध्यापक - इसी प्रश्न का उत्तर तो दूसरी ढाल में दिया गया है - ऐसे मिथ्या दृग-ज्ञान-चर्णवश, भ्रमत भरत दुःख जन्म-मर्ण ।।१।। यह जीव मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र के वश होकर इस प्रकार संसार में घूमता हुआ जन्म-मरण के दुःख उठा रहा है। छात्र - यह मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र क्या हैं, जिनके कारण सब दुःखी हैं। अध्यापक - जीवादि सात तत्त्वों की विपरीत श्रद्धा ही मिथ्यात्व है, इसे ही मिथ्यादर्शन भी कहते हैं। जीव, अजीव आदि सात तत्त्व जो तुमने पहिले सीखे थे न, वे जैसे हैं, उन्हें वैसे न मानकर उल्टा मानना ही विपरीत श्रद्धा है। कहा भी है___ जीवादि प्रयोजनभूत तत्त्व, सरधैं तिनमाँहि विपर्ययत्व ।।२।। छात्र - इस मिथ्यात्व के चक्कर में हम कब से आगये ? अध्यापक - यह तो अनादि से हैं, जब से हम हैं तभी से है, पर हम इसे वाह्य कारणों से और पुष्ट करते रहते हैं। यह दो प्रकार का होता है। एक प्रगृहीत मिथ्यात्व और दूसरा गृहीत मिथ्यात्व। छात्र - यह गृहीत और अगृहीत क्या बला है ? अध्यापक - जो बिना सिखाये अनादि से ही शरीर, रागादि पर-पदार्थों में अहंबुद्धि है वह तो अगृहीत मिथ्यात्व है और जो कुदेव , कुगुरु और कुशास्त्र के उपदेशादि से अनादि से चली आई उल्टी मान्यता की पुष्टि होती है, वह गृहीत मिथ्यात्व है। अगृहीत अर्थात् बिना ग्रहण किया हुआ और गृहीत अर्थात् ग्रहण किया हुआ। १६ Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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