Book Title: Vitrag Vigyana Pathmala 3
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 49
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पाठ ११ . समयसार स्तुति (हरिगीत) संसारी जीवनां भावमरणो टालवा करुणा करी, सरिता बहाती सुधा तणी प्रभु वीर ! तें संजीवनी । शोषाती देखी सरितने करुणाभीना हृदये करी, मुनिकुन्द संजीवनी समयप्राभृत तणे भाजन भरी।। (अनुष्टुप) कुन्दकुन्द रच्यूं शास्त्र , सांथिया अमृते पूर्या , ग्रन्थाधिराज! तारामां भावो ब्रह्मांडना भर्या । (शिखरिणी) अहो! वाणी तारी प्रशमरस-भावे नीतरती, मुमुक्षुने पाती अमृतरस अंजलि भरी भरी । अनादिनी मूर्छा विष तणी त्वराथी उतरती, विभावेथी थंभी स्वरूप भणी दोड़े परिणति।। (शार्दूलविक्रीड़ित) तुं छे निश्चयग्रन्थ, भंग सघला व्यवहारना भेदवा, तं प्रज्ञाछीणी ज्ञानने उदयनी संधि सह छेदवा । साथी साधकनो, तुं भानु जगनो, संदेश महावीरनो, विसामो भवक्लांतना हृदयनो, तुं पंथ मुक्ति तणो।। (वसंततिलका) सूण्ये तने रसनिबंध शिथिल थाय, जाण्ये तने हृदय ज्ञानी तणां जणाय। तुं रूचतां जगतनी रुचि आलसे सौ, तुं रीझतां सकलज्ञायकदेव रीझे ।। (अनुष्टुप) बनावं पत्र कुन्दनना, रत्नोंना अक्षरो लखी, तथापि कुन्दसूत्रोना अंकाये मूल्य ना कदी।। ४६ Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 47 48 49 50 51