Book Title: Vitrag Vigyana Pathmala 3
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 50
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार स्तुति का भावार्थ हे महावीर! आपने संसारी जीवों के भाव-मरण ( राग-द्वेषरूप परिणमन) को टालने के लिए करुणा करके सच्चा जीवन देने वाली, तत्त्वज्ञान को समझाने वाली दिव्यध्वनिरूपी अमृत की नदी बहाई थी; उस अमृतवाणीरूपी नदी को सूखती हुई देख कर कृपा करके भावलिंगी सन्त मुनिराज कुन्दकुन्दाचार्य ने समयसार नामक महाशास्त्र रूपी वर्तन में उस जीवन देने वाली अमृतवाणीरूपी जल को भर लिया। पूज्य कुन्दकुन्दाचार्यदेव ने समयसार शास्त्र बनाया और प्राचार्य अमृतचन्द्र ने उस पर आत्मख्याति टीका एवं कलश लिखकर उस पर मंगलिक साँथिया बना दिया। हे महानग्रन्थ समयसार! तुझ में सारे ब्रह्माण्ड का भाव भरा हुआ है। हे कुन्दकुन्दाचार्यदेव! समयसार नामक महाशास्त्र में प्रगट हुई आपकी वाणी शान्त रस से भरपूर है और मुमुक्षु प्राणियों को अंजलि में भरभर कर अमृत रस पिलाती है। जैसे विष पान से उत्पन्न मूर्छा अमृत-पान से दूर हो जाती है, उसी प्रकार अनादिकालीन मिथ्यात्व-विषोत्पन्न मूर्छा तेरी अमृतवाणी के पान से शीघ्र ही दूर हो जाती है और विभाव भावों में रमी हुई परिणति स्वभाव की अोर दोड़ने लगती है। हे समयसार! तूं निश्चयनय का ग्रन्थ है, अतः व्यवहार के समस्त भंगों का भेदने वाला है, और तूं ही ज्ञानभाव और कर्मोदयजन्य औपाधिक भावों की सन्धि को भेदने वाली प्रज्ञारूपी छैनी है। मुक्ति के मार्ग के साधकों का तू सच्चा साथी है, जगत् का सूर्य है, और तूं ही सच्चा महावीर का संदेश है। संसार दुख से दुखी हृदयों को विश्राम देने वाले ग्रन्थराज! मानो तुम मुक्ति के मार्ग ही हो। ४७ Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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