Book Title: Vitrag Vigyana Pathmala 3
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 43
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इसी प्रकार त्रैकालिक शौचस्वभावी आत्मा के आश्रय से तीन प्रकार के लोभ के त्यागरूप शुद्धि निश्चय से उत्तम शौच धर्म है और निश्चय शौच के साथ लोभरूप अशुभ भाव न होकर शुभ भावरूप निर्लोभता का होना व्यवहार से उत्तम शौच धर्म है। विनोद - और सत्य बोलना तो सत्य धर्म है ही ? जिनेश - अरे भाई! वाणी तो पुद्गल की पर्याय है, उसमें धर्म कैसा ? त्रैकालिक ज्ञानस्वभावी आत्मा के आश्रय से जो तीन कषाय के अभावरूप शुद्ध परिणति है, वही निश्चय से उत्तम सत्य धर्म है और निश्चय सत्य धर्म के साथ होने वाला सत्य बचन बोलनेरूप शुभ भाव व्यवहार से उत्तम सत्य धर्म है। इसी प्रकार त्रैकालिक संयमस्वभावी आत्मा के आश्रय से होने वाली तीन कषाय के अभावरूप शुद्ध परिणति निश्चय से उत्तम संयम धर्म है और निश्चय संयम के साथ होने वाली मुनि भूमिकानुसार हिंसादि से पूर्ण विरति और इन्द्रियनिग्रह व्यवहार से उत्तम संयम धर्म है। विनोद - भाई! तुम तो बहुत अच्छा समझाते हो, समय हो तो थोड़ा विस्तार से कहो? जिनेश - अभी समय कम है, प्रवचन का समय हो रहा है। प्रतिदिन शाम को इन्हीं दश धर्मों पर प्रवचन होते हैं, अतः विस्तार से वहाँ सुनना। अभी शेष तप, त्याग आदि को भी संक्षेप में बताना है। त्रैकालिक ज्ञानस्वभावी आत्मा के आश्रय से तीन कषाय के प्रभावरूप शुद्धि निश्चय से उत्तम तप धर्म है तथा उसके साथ होने वाला अनशनादि संबंधी शुभ भाव व्यवहार से उत्तम तप धर्म है। त्रैकालिक ज्ञानस्वभावी आत्मा के प्राश्रय से तीन कषाय के अभावरूप शुद्धि निश्चय से उत्तम त्याग धर्म है और उसके साथ होने वाला योग्य पात्रों को दानादि देने का शुभ भाव व्यवहार से उत्तम त्याग धर्म है। इसी प्रकार त्रैकालिक ज्ञानस्वभावी आत्मा के आश्रय से तीन कषाय के प्रभावरूप शुद्धि निश्चय से उत्तम आकिंचन धर्म है और उसके साथ होने वाला परिग्रह का त्यागरूप शुभ भाव व्यवहार से उत्तम आकिंचन धर्म है। ४० Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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