Book Title: Vitrag Vigyana Pathmala 3
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 42
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates जिनेश - आत्मस्वभाव की प्रतीतिपूर्वक चारित्र (धर्म) की दश प्रकार से आराधना करना ही दशलक्षण धर्म है। आचार्य उमास्वामी ने तत्त्वार्थसूत्र में लिखा है : 66 'उत्तमक्षमामार्दवार्जवशौचसत्यसंयमतपस्त्यागाकिंचन्यब्रह्मचर्याणि धर्म: 11 ९।। ६।। अर्थात् उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन और उत्तम ब्रह्मचर्य ये धर्म के दश प्रकार हैं । विनोद - इन दश धर्मों को थोड़ा स्पष्ट करके समझा सकते हो ? जिनेश - क्यों नहीं ? सुनो। "" अनंतानुबंधी आदि तीन कषाय के प्रभाव में ज्ञानी मुनिवरों को जो विशिष्ट चारित्र की शुद्ध परिणति होती है, निश्चय से उसे उत्तम क्षमा मार्दव आदि दश धर्म कहते हैं और उस भूमिका में मुनिवरों को सहज रूप से जो क्षमादि रूप शुभ भाव होते हैं, उन्हें व्यवहार से उत्तम क्षमादि दश धर्म कहते हैं, जो कि पुण्यरूप हैं। ‘उत्तम' शब्द ‘निश्चय सम्यग्दर्शनपूर्वक' के अर्थ में आता है। निश्चय से तो त्रैकालिक क्षमास्वभावी आत्मा के आश्रय से अनंतानुबंधी आदि तीन प्रकार के क्रोध के त्यागरूप शुद्धि ही उत्तम क्षमा है । निश्चय क्षमा के साथ होने वाली निंदा और शरीरघात आदि अनेक प्रतिकूल संयोगों के आ पड़ने पर भी क्रोधरूप अशुभ भाव न होकर शुभ भावरूप क्षमा होना व्यवहार से उत्तम क्षमा है। इसी प्रकार निश्चय से तो त्रैकालिक मार्दवस्वभावी प्रात्मा के आश्रय से अनंतानुबंधी आदि तीन प्रकार के मान के त्यागरूप शुद्धि ही उत्तम मार्दव धर्म है तथा निश्चय मार्दव के साथ होने वाले जाति आदि के लक्ष से उत्पन्न आठ मदरूप अशुभ भाव न होकर निरभिमानरूप शुभ भाव होना व्यवहार से उत्तम मार्दव धर्म है। विनोद और आर्जव ? जिनेश निश्चय से त्रैकालिक आर्जवस्वभावी आत्मा के आश्रय से तीन प्रकार के माया के त्यागरूप शुद्धि का होना उत्तम आर्जव धर्म है तथा निश्चय आर्जव के साथ ही कपटरूप अशुभ भाव न होकर शुभ भावरूप सरलता का होना व्यवहार से उत्तम आर्जव धर्म है। - - ३९ Please inform us of any errors on rajesh@Atma Dharma.com

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