Book Title: Vitrag Vigyana Pathmala 3
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 31
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates मार्यगण से युक्त है। आप प्रात्मरस में निमग्न रहने वाले महात्मा थे, अतः आपकी रचनायें अध्यात्म-रस से अोतप्रोत हैं। आपके सभी ग्रन्थ संस्कृत भाषा में हैं। आपकी रचनायें गद्य और पद्य दोनों प्रकार की पाई जाती हैं। गद्य रचनाओं में प्राचार्य कुन्दकुन्द के महान् ग्रन्थों पर लिखी हुई टीकायें हैं। १. समयसार की टीका – जो ‘आत्मख्याति' के नाम से जानी जाती हैं। २. प्रवचनसार की टीका - जिसे 'तत्त्वप्रदीपिका' कहते हैं। ३. पञ्चास्तिकाय की टीका - जिसका नाम 'समयव्याख्या' है। ४. तत्त्वार्थसार – यह ग्रन्थ गृद्धपिच्छ उमास्वामी के गद्य सूत्रों का एक तरह से पद्यानुवाद है। ५. पुरुषार्थसिद्धियुपाय – गृहस्थ धर्म पर आपका मौलिक ग्रन्थ है। इसमें हिंसा और अहिंसा का बहुत ही तथ्यपूर्ण विवेचन किया गया है। प्रस्तुत अंश आपके ग्रन्थ पुरुषार्थसिद्ध्युपाय पर आधारित हैं। " तातै बहुत कहा कहिए, जैसैं रागादि मिटावने का श्रद्धान होय सो ही श्रद्धान सम्यग्दर्शन है। बहुरि जैसैं रागादि मिटावने का जानना होय सो ही जानना सम्यग्ज्ञान है। बहुरि जैसैं रागादि मिटै सो ही आचरण सम्यक्चारित्र है। ऐसा ही मोक्षमार्ग मानना योग्य है।” -मोक्षमार्ग प्रकाशक , सस्ती ग्रंथमाला, दिल्ली, पृष्ठ ३१३ २८ Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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