Book Title: Vitrag Vigyana Pathmala 3
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 30
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पाठ ७ . मुक्ति का मार्ग आचार्य अमृतचंद्र ( व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व) आध्यात्मिक सन्तो में कुन्दकुन्दाचार्य के बाद यदि किसी का नाम लिया जा सकता है तो वे हैं प्राचार्य अमृतचन्द्र। दुःख की बात है कि १०वीं शती के लगभग होने वाले इन महान् आचार्य के बारे में उनके ग्रन्थों के अलावा एक तरह से हम कुछ भी नहीं जानते। लोक-प्रशंसा से दूर रहने वाले आचार्य अमृतचन्द्र तो अपूर्व ग्रन्थों की रचनायें करने के उपरान्त भी यही लिखते हैं - वर्णैः कृतानि चित्रैः पदानि, तु पदैः कृतानि वाक्यानि । वाक्यैः कृतं पवित्रं शास्त्रमिदं न पुनरस्माभिः ।। २२६ ।। ___ - पुरुषार्थसिद्ध्युपाय तरह-तरह के वर्षों से पद बन गये, पदों से वाक्य बन गये और वाक्यों से यह पवित्र शास्त्र बन गया। मैंने कुछ भी नहीं किया है। इसी प्रकार का भाव आपने ‘तत्त्वार्थसार' में भी प्रकट किया है। पं. आशाधरजी ने आपको ‘ठक्कुर' शब्द से अभिहित किया है, अतः प्रतीत होता है कि आप किसी उच्च क्षत्रिय घराने से सम्बन्धित रहे होंगे। आपका संस्कृत भाषा पर अपूर्व अधिकार था। आपकी गद्य और पद्य दोनों प्रकार की रचनाओं मे आपकी भाषा भावानुवर्तिनी एवं सहज बोधगम्य , २७ Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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